Source :- BBC INDIA

इमेज स्रोत, Getty Images
ईरान के सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह अली ख़ामेनेई एक बार नहीं बल्कि अलग-अलग मौकों पर कई बार ये ज़ाहिर कर चुके हैं कि इसराइल को लेकर उनके इरादे क्या हैं.
ख़ामेनेई खुलकर इसराइल के अस्तित्व को मिटाने की बात करते रहे हैं. वो लंबे समय से इसराइल को पश्चिम एशियाई क्षेत्र का एक ऐसा ‘कैंसरग्रस्त ट्यूमर‘ बताते रहे हैं, जिसे उखाड़ फेंकना ज़रूरी है और उनके मुताबिक़ ये होकर रहेगा.
लेकिन ये शायद पहली बार है जब इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने ख़ामेनेई को निशाने पर लिए जाने से जुड़ी कोई बात सीधे और सार्वजनिक तौर पर कही हो.
एबीसी चैनल को दिए एक इंटरव्यू में इसराइली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू से जब पूछा गया कि क्या अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने, ईरान के सुप्रीम लीडर की हत्या से जुड़ी इसराइली योजना को ये कहते हुए ख़ारिज कर दिया है कि इससे क्षेत्र में संघर्ष बढ़ सकता है?

इमेज स्रोत, Getty Images
जवाब में नेतन्याहू ने कहा कि ख़ामेनेई की मौत “संघर्ष को बढ़ाने के बजाय, उसे ख़त्म करने का काम करेगी.”
नेतन्याहू के इस बयान से यह संकेत मिला कि इसराइल, आयतुल्लाह अली ख़ामेनेई को निशाना बनाने की योजना पर काम कर रहा है, लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति की ओर से उसे अब तक हरी झंडी नहीं मिली है.
क्यों शुरू हुई ये चर्चा?
दरअसल, अमेरिका में बीबीसी के सहयोगी चैनल सीबीएस को अमेरिकी सरकार के तीन अधिकारियों ने बताया है कि डोनाल्ड ट्रंप ने आयतुल्लाह अली ख़ामेनेई की हत्या से जुड़ी इसराइली योजना को ख़ारिज कर दिया है.
रिपोर्ट के मुताबिक़, ट्रंप ने इसराइली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू से कहा कि ख़ामेनेई की हत्या करना उचित नहीं होगा, क्योंकि इससे इसराइल और ईरान के बीच जारी संघर्ष और ज़्यादा भड़क सकता है.
हालांकि, देर रात अमेरिकी राष्ट्रपति ने अपने एक बयान में कहा, “हम अभी के लिए ख़ामेनेई को मारने नहीं जा रहे हैं.”
ट्रंप ने ट्रूथ सोशल पर एक पोस्ट में लिखा, “हमें अच्छी तरह पता है कि तथाकथित सुप्रीम लीडर ख़ामेनेई कहां छिपे हुए हैं. वह एक आसान टारगेट हैं, लेकिन वहां सुरक्षित हैं. हम उन्हें मारने नहीं जा रहे, कम से कम अभी के लिए नहीं. लेकिन हम यह भी नहीं चाहते कि आम नागरिकों या अमेरिकी सैनिकों पर मिसाइल दागी जाएं.”
ऐसे में इसराइल के सैन्य और ख़ुफ़िया अभियानों के पैटर्न और ट्रंप के ताज़ा बयान को मिलाकर देखें, तो इस बात पर यक़ीन करना मुश्किल हो जाता है कि आयतुल्लाह अली ख़ामेनेई पर संकट के बादल नहीं मंडरा रहे.
ख़ामेनेई ईरान के सबसे ताक़तवर पद पर हैं. जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के सेंटर फ़ॉर वेस्ट एशियन स्टडीज़ में प्रोफेसर एके महापात्रा मानते हैं कि भले ही इसराइल अपने हमलों को यह कहकर जायज़ ठहरा रहा है कि उसने ईरान को परमाणु हथियार बनाने से रोकने के लिए ये क़दम उठाए हैं लेकिन असल मक़सद आयतुल्लाह अली ख़ामेनेई को सत्ता से बेदखल करना ही है.
आयतुल्लाह अली ख़ामेनेई इतने महत्वपूर्ण क्यों हैं और कैसे वह बीते साढ़े तीन दशकों से ईरान के सबसे ताक़तवर व्यक्ति बने हुए हैं, इसे समझना अब ज़रूरी हो गया है.
ईरान में धार्मिक होने की ‘चुनौतियां’

इमेज स्रोत, Getty Images
आयतुल्लाह अली ख़ामेनेई का जन्म 1939 में ईरान के उत्तर-पूर्वी शहर मशहद में हुआ, जिसे देश का सबसे पवित्र शहर माना जाता है.
अपने पिता की तरह उन्होंने भी मौलवी बनने की राह चुनी और शिया मुसलमानों के दो प्रमुख शैक्षणिक केंद्रों में से एक, क़ुम में जाकर धार्मिक शिक्षा प्राप्त की. महज़ 11 साल की उम्र में वह मौलवी बन गए थे.
हालांकि, ख़ामेनेई उस दौर के ईरान में बड़े हो रहे थे जब शाह मोहम्मद रज़ा पहलवी का शासन था. उस समय ईरान एक राजतंत्र था, जहां पहलवी वंश के शाह सत्ता में थे.
शाह एक पंथनिरपेक्ष राजा माने जाते थे, जो धर्म को एक प्राचीन और अप्रासंगिक अवधारणा मानते थे. वे धार्मिक लोगों को शक़ की निगाह से देखते थे.
साल 2011 में बीबीसी संवाददाता जेम्स रिनॉल्ड्स ने ईरानी-अमेरिकी लेखक मेहदी ख़ालाजी का इंटरव्यू किया था, जो उस समय ख़ामेनेई की जीवनी पर काम कर रहे थे.
इस बातचीत में मेहदी ख़ालाजी ने ख़ामेनेई के शुरुआती वर्षों से जुड़ा एक किस्सा साझा किया. उन्होंने बताया कि जब ख़ामेनेई मौलवियों की पोशाक पहनकर अपने हमउम्र बच्चों के साथ सड़कों पर खेलते, तो लोग उनका मज़ाक उड़ाया करते थे.
वे यह भी बताते हैं कि अपने शुरुआती वर्षों में ख़ामेनेई को सिगरेट और पाइप पीना पसंद था — जो कि एक धार्मिक व्यक्ति के लिए अपेक्षाकृत असामान्य आदत मानी जाती थी.

इमेज स्रोत, Getty Images
जैसे-जैसे ख़ामेनेई बड़े हुए, शाह शासन के प्रति उनकी नाराज़गी और विरोध बढ़ता गया. उन्होंने जल्द ही शाह के मुख्य विरोधी अयातुल्लाह रुहोल्लाह ख़ुमैनी के समर्थन में काम करना शुरू कर दिया.
इंडियन काउंसिल ऑफ़ वर्ल्ड अफ़ेयर्स में फ़ेलो और मध्यपूर्व मामलों के जानकार डॉ. फ़ज़्ज़ुर रहमान सिद्दीकी बताते हैं कि ख़ुमैनी के प्रभाव में आने से पहले ख़ामेनेई को कविताएं लिखने का बहुत शौक़ था. वे “अमीन” नाम से कविताएं लिखा करते थे. लेकिन ख़ुमैनी से प्रभावित होने के बाद उन्होंने यह रचनात्मक गतिविधि पूरी तरह छोड़ दी.
अयातुल्लाह रुहोल्लाह ख़ुमैनी उस समय शाह के सबसे मुखर आलोचकों में से एक थे. अमेरिका से नज़दीकी संबंधों का विरोध करने के चलते शाह ने उन्हें देश से निष्कासित कर दिया था.
ख़ुमैनी चाहते थे कि ईरान में इस्लामी शासन स्थापित हो. ख़ामेनेई ने ख़ुमैनी के संदेश को देश के भीतर फैलाना शुरू किया. इसी प्रयास में उन्हें छह बार गिरफ़्तार भी किया गया.
इस्लामिक क्रांति

इमेज स्रोत, Getty Images
फिर आया साल 1979.
शाह की सत्ता गिर गई और अयातुल्लाह रुहोल्लाह ख़ुमैनी ने पेरिस से लौटकर ईरान में इस्लामिक गणराज्य की स्थापना की.
वरिष्ठ पत्रकार सईद नक़वी बताते हैं कि उस समय ईरान की सड़कों पर केवल दो लोगों की तस्वीरें दिखती थीं — एक अयातुल्लाह ख़ुमैनी की और दूसरी हुसैन अली मोंतज़री की.
इस्लामिक ईरान में अब शासन की बागडोर मौलवियों के हाथ में थी, और इन्हीं मौलवियों में एक नाम अली ख़ामेनेई का भी था. वह बहुत कम समय में ख़ुमैनी के सबसे क़रीबी सहयोगियों में शामिल हो गए.
इसी साल तेहरान में अमेरिकी दूतावास पर क़ब्ज़े की घटना में भी ख़ामेनेई ने अहम भूमिका निभाई. इस घटनाक्रम के बाद अमेरिका से संवाद स्थापित करने की ज़िम्मेदारी भी उन्हें सौंपी गई.
बाद में अली ख़ामेनेई को देश का उप-रक्षा मंत्री नियुक्त किया गया. इस दौरान उन्होंने इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कोर (आईआरजीसी) को संगठित करने में अहम भूमिका निभाई.
आईआरजीसी आगे चलकर ईरान की सबसे शक्तिशाली संस्थाओं में से एक बन गई.
इस बल को स्थापित करने का उद्देश्य था — ऐसी सेना खड़ी करना जो देश के लिए धार्मिक, राजनीतिक और आर्थिक मोर्चों पर लड़ सके और इस्लामिक राष्ट्र को न सिर्फ़ बाहरी ख़तरों, बल्कि आंतरिक संकटों से भी सुरक्षित रख सके.

इमेज स्रोत, Getty Images
हत्या की नाकाम कोशिश
दो साल ही बीते थे कि साल 1981 में एक ख़ामेनेई पर जानलेवा हमला हुआ .
ख़ामेनेई एक न्यूज़ कॉन्फ्रेंस को संबोधित कर रहे थे कि तभी उनके नज़दीक रखे एक टेप रिकॉर्डर में ब्लास्ट हुआ.
इस विस्फ़ोट में ख़ामेनेई का दायां हाथ पैरालाइज़ हो गया और एक कान के सुनने की क्षमता भी प्रभावित हुई.
इस हमले का आरोप मुजाहिदीन-ए-ख़ल्क़ (एमईके) पर लगाया गया था, जो उस समय इस्लामी शासन के ख़िलाफ़ सक्रिय थे.
इस घटना के बाद तेहरान में एक सभा को संबोधित करते हुए ख़ामेनेई ने कहा था, ”हमले के बाद मैं बहुत बुरी स्थिति में था. मुझे लगा मौत मेरे दरवाज़े के सामने है. अगले कुछ दिनों तक मैं सोचता रहा कि आख़िर मैं बचा क्यों? फिर समझ आया कि ऊपरवाले ने किसी न किसी कारणवश ही मुझे बचाया होगा.”
राष्ट्रपति का पद

इमेज स्रोत, Getty Images
ख़ामेनेई अपनी उस चोट से उबर ही रहे थे कि उन्हें ईरान का अगला राष्ट्रपति चुन लिया गया. साल 1981 से अगले सात साल और 311 दिनों तक वे देश के राष्ट्रपति पद पर रहे.
उनके राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान ही इराक़ के तत्कालीन शासक सद्दाम हुसैन ने ईरान पर हमला कर दिया, जिसके बाद दोनों देशों के बीच आठ साल लंबी और विनाशकारी जंग छिड़ गई.
इस युद्ध के दौरान ख़ामेनेई ने कई अहम फैसले लिए और रणनीतिक मोर्चों पर सक्रिय भूमिका निभाई.
फिर आया साल 1989.
इस वर्ष अयातुल्लाह रुहोल्लाह ख़ुमैनी का निधन हो गया. इसके बाद अली ख़ामेनेई को ईरान का अगला सुप्रीम लीडर नियुक्त किया गया.
सुप्रीम लीडर बनाने के लिए संविधान में हुआ बदलाव

इमेज स्रोत, social media
डॉ. फ़ज़्ज़ुर रहमान सिद्दीकी बताते हैं कि आयतुल्लाह अली ख़ामेनेई को ईरान का सुप्रीम लीडर तो चुना गया, लेकिन वह स्वयं को इस पद के योग्य नहीं मानते थे.
ख़ामेनेई को लगता था कि इस पद के लिए उनके पास पर्याप्त धार्मिक योग्यता नहीं है. हालांकि, वे अयातुल्लाह ख़ुमैनी के बेहद क़रीबी थे और देश में उनकी लोकप्रियता भी काफ़ी थी. इसी कारण संविधान में संशोधन कर उन्हें सुप्रीम लीडर बनाया गया.
सुप्रीम लीडर बनने के बाद ख़ामेनेई ने स्वयं को मज़बूत करने और अपने इर्द-गिर्द भरोसेमंद लोगों को तैनात करने की दिशा में काम करना शुरू किया.
डॉ. सिद्दीकी के अनुसार, ख़ामेनेई ने अपने नज़दीकी सर्कल में जानबूझकर साधारण पृष्ठभूमि वाले लोगों को रखा. उन्हें आशंका रहती थी कि मज़बूत सामाजिक या धार्मिक पृष्ठभूमि वाले लोग भविष्य में उनके लिए चुनौती बन सकते हैं.
वहीं, वाशिंगटन स्थित थिंक टैंक मिडल ईस्ट इंस्टीट्यूट में ईरान कार्यक्रम के निदेशक एलेक्स वतांका ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से बातचीत में कहा कि “ख़ामेनेई जितने ज़िद्दी हैं, उतने ही सतर्क भी. यही वजह है कि वह इतने लंबे समय से सत्ता के केंद्र में बने हुए हैं.”
ख़ामेनेई से जुड़े विवाद

इमेज स्रोत, Getty Images
बीते साढ़े तीन दशक से भी ज़्यादा समय से ईरान के सर्वोच्च नेता के पद पर काबिज़ आयतुल्लाह अली ख़ामेनेई से जुड़े कई विवाद समय-समय पर सामने आते रहे हैं.
जैसे — देश में विरोध की आवाज़ों को दबाना, पत्रकारों को प्रताड़ित करना, साहित्यकारों की रचनाओं पर सेंसरशिप लगाना, मानवाधिकारों का हनन और कट्टरपंथ को बढ़ावा देने जैसे आरोप, जिनके चलते ख़ामेनेई अक्सर सवालों के घेरे में रहे हैं.
साल 2022 में महसा अमीनी की मौत के बाद ईरान में भड़के विरोध-प्रदर्शनों को सख़्ती से कुचलने में भी उनकी संदिग्ध भूमिका बताई जाती है.
ख़ामेनेई के कार्यकाल में ही ईरान पर परमाणु हथियार तैयार करने के आरोपों के चलते कई अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध लगे, जो आज भी जारी हैं.
हालांकि, वरिष्ठ पत्रकार सईद नक़वी बताते हैं कि साल 2003 के आसपास ख़ामेनेई ने परमाणु हथियारों के ख़िलाफ़ एक फ़तवा जारी किया था.
यह फ़तवा लिखित नहीं था, लेकिन अपने सार्वजनिक भाषणों में उन्होंने बार-बार कहा कि परमाणु हथियार इस्लाम के ख़िलाफ़ हैं और इनका निर्माण व उपयोग हराम है.
पश्चिमी देशों ने इस फ़तवे को कभी गंभीरता से नहीं लिया और इसे ईरान की तरफ़ से अपनी छवि सुधारने की एक कोशिश के रूप में ही देखा.
अपने लंबे कार्यकाल में ख़ामेनेई अब तक पांच राष्ट्रपतियों के साथ काम कर चुके हैं जिनमें से चार पर यह आरोप लगे कि उन्होंने अपनी नीतियों के ज़रिए ख़ामेनेई की सत्ता को चुनौती देने की कोशिश की.
ईरान के अलग-अलग राष्ट्रपतियों के साथ उनके रिश्ते

इमेज स्रोत, Getty Images
मिसाल के तौर पर, साल 1997 में राष्ट्रपति बने मोहम्मद ख़ातमी पश्चिमी देशों से संबंध बेहतर करना चाहते थे. वे ईरान में सामाजिक और राजनीतिक स्वतंत्रता के भी समर्थक थे. लेकिन उनका ख़ामेनेई से लगातार टकराव होता रहा और वे अपने प्रयासों में सफल नहीं हो सके.
हसन रूहानी को भी एक हद तक उदारवादी नेता माना गया, लेकिन उनके और ख़ामेनेई के बीच भी मतभेद समय-समय पर सामने आते रहे.
वहीं, इब्राहिम रईसी के साथ ख़ामेनेई के संबंध अपेक्षाकृत अच्छे रहे, लेकिन उनके कार्यकाल में मानवाधिकार हनन के मामलों में तेज़ी आई और देश ने दमन का एक नया दौर देखा.
मौजूदा राष्ट्रपति मसूद पेज़ेशकियान सुधारवादी विचारधारा से जुड़े हैं, लेकिन उन्होंने अब तक ख़ामेनेई के साथ संतुलन साधकर काम किया है.
ख़ामेनेई के निजी जीवन के बारे में अधिक जानकारी सार्वजनिक नहीं है. सिर्फ़ यह मालूम है कि उनके छह बच्चे हैं — चार बेटे और दो बेटियां.
उनके बेटे मुज़तबा का नाम अक्सर ख़ामेनेई के संभावित उत्तराधिकारी के रूप में लिया जाता है.
यह भी उल्लेखनीय है कि सुप्रीम लीडर बनने के बाद से ख़ामेनेई ने कभी कोई विदेश यात्रा नहीं की है.
इसराइल-अमेरिका पर रुख़

इमेज स्रोत, Getty Images
आयतुल्लाह अली ख़ामेनेई अमेरिका को “बड़ा शैतान” और इसराइल को “छोटा शैतान” मानते हैं.
अमेरिका और ईरान के बीच संबंध लंबे समय से तनावपूर्ण रहे हैं, और इसके पीछे कई ऐतिहासिक घटनाएं रही हैं, जैसे साल 1953 में अमेरिकी खुफ़िया एजेंसी सीआईए और ब्रिटेन की मदद से ईरान में हुआ तख़्तापलट, 1979 की ईरानी क्रांति, तेहरान में अमेरिकी दूतावास पर बंधक संकट, इराक़ के साथ आठ साल लंबा युद्ध, ईरान का परमाणु कार्यक्रम और डोनाल्ड ट्रंप से टकराव जैसे मामले.
जहां तक इसराइल की बात है, तो इस्लामिक क्रांति से पहले तक ईरान और इसराइल के संबंध सौहार्दपूर्ण थे.
लेकिन क्रांति के बाद ईरान ने न सिर्फ इसराइल के अस्तित्व को अस्वीकार किया, बल्कि फ़लस्तीनी मुद्दे का कट्टर समर्थन भी शुरू कर दिया.
समय-समय पर दोनों देशों के बीच ‘शैडो वॉर’ — यानी परदे के पीछे चलने वाले सैन्य और साइबर हमले होते रहे हैं.
हालांकि, हाल के वर्षों में यह पहली बार है जब ईरान और इसराइल लगातार पांच दिनों से सीधे सैन्य संघर्ष में उलझे हुए हैं.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
SOURCE : BBC NEWS