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मशहूर टेक्नोलॉजी कंपनी एप्पल के सह-संस्थापक स्टीव जॉब्स का 19 साल की उम्र में लिखा गया एक पत्र हाल ही में नीलामी में $500,312 (करीब 4.32 करोड़ रुपये) में बिका है। यह पत्र जॉब्स ने अपने बचपन के दोस्त टिम ब्राउन को लिखा था, जिसमें उन्होंने भारत आकर कुंभ मेले में शामिल होने की अपनी योजना का जिक्र किया था।

इस पत्र को उन्होंने अपने जन्मदिन से ठीक पहले लिखा था। जॉब्स ने कहा, “मैं भारत में कुंभ मेले में जाने की इच्छा रखता हूं, जो अप्रैल में शुरू हो रहा है। मैं मार्च में रवाना होऊंगा, हालांकि अभी पक्के तौर पर तय नहीं है।” पत्र के अंत में उन्होंने “शांति, स्टीव जॉब्स” लिखकर हस्ताक्षर किए।

भारत यात्रा और आध्यात्मिक अनुभव

स्टीव जॉब्स की भारत यात्रा ने उनके जीवन को गहराई से प्रभावित किया। वह उत्तराखंड के नीम करोली बाबा के आश्रम पहुंचे, लेकिन बाबा के निधन के कारण उनसे मुलाकात नहीं हो सकी। इसके बाद जॉब्स ने कई महीने कैची धाम में बिताए, भारतीय संस्कृति और आध्यात्म में डूबे रहे। भारत से लौटते समय जॉब्स ने कहा, “मेरा सिर मुंडा हुआ था, मैंने भारतीय सूती वस्त्र पहने हुए थे, और मेरी त्वचा गहरे भूरे-लाल रंग की हो चुकी थी।”

कुंभ मेले से जुड़ी विरासत

इस साल प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन हो रहा है। यह 12 वर्षों में एक बार आयोजित होने वाला महोत्सव है, जिसमें लाखों श्रद्धालु पवित्र नदियों में स्नान कर अपने पापों से मुक्ति और आध्यात्मिक पुण्य अर्जित करने का विश्वास रखते हैं।

स्टीव जॉब्स की विधवा लॉरेन पॉवेल जॉब्स ने इस बार कुंभ मेले में आकर भारत से उनकी गहरी आध्यात्मिक जुड़ाव को सम्मानित किया। उनके आध्यात्मिक गुरु स्वामी कैलाशानंद गिरी ने उन्हें “कमला” नाम दिया है। लॉरेन ने मेले के दौरान ध्यान, क्रिया योग और प्राणायाम को अपनाया है और गंगा स्नान करने की योजना बनाई।

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कुंभ मेले की पौराणिकता और महत्व

कुंभ मेले की शुरुआत हिंदू पौराणिक कथाओं में समुद्र मंथन से मानी जाती है। मान्यता है कि अमृत कलश से अमृत की कुछ बूंदें चार स्थानों—हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक-त्र्यंबकेश्वर—पर गिरी थीं। इन्हीं स्थानों पर कुंभ मेले का आयोजन होता है। हरिद्वार और प्रयागराज में हर छह साल में अर्धकुंभ का आयोजन भी होता है। कुंभ मेला श्रद्धालुओं, साधुओं और विश्वभर के आध्यात्मिक नेताओं का संगम है, जो परंपरा, आस्था और सांस्कृतिक आदान-प्रदान का अद्भुत दृश्य प्रस्तुत करता है। इस महोत्सव का केंद्रबिंदु पवित्र नदियों में डुबकी लगाना है, जिसे आत्मशुद्धि और मुक्ति का प्रतीक माना जाता है। प्रयागराज में संगम के पवित्र जल में स्नान का विशेष महत्व है, जहां गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम होता है।

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