Source :- BBC INDIA
कोविड-19 अब हर जगह फैल चुका है. इसके बावजूद अस्पताल में भर्ती होने वाले मरीज़ों की संख्या में कमी आ रही है. कोई नहीं जानता कि इसके पीछे का कारण क्या है?
लेकिन जब वायरस का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों ने पहली बार कोविड के एक्सईसी वैरिएंट के बारे में जानना शुरू किया, तो उन्हें वायरस में कुछ ख़तरनाक संकेत मिले.
एक्सईसी, कोविड-19 वायरस का एक नया वैरिएंट है, जो साल 2024 में सर्दियों के दौरान व्यापक रूप से फैलना शुरू हुआ.
वायरस का यह नया संस्करण एक ऐसी प्रक्रिया से बना है, जिसमें वायरस के दो अलग-अलग वैरिएंट अपने जेनेटिक मैटेरियल को मिलाते हैं और एक नए वायरस का निर्माण करते हैं.
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कई टेस्ट से पता चलता है कि जो लोग पुराने वैरिएंट के संपर्क में आए थे और जिन्होंने इन पुराने वैरिएंट से निपटने के लिए वैक्सीन लगवाई थी, उन लोगों पर भी एक्सईसी वैरिएंट का असर होगा.
केई सातो, टोक्यो यूनिवर्सिटी में वायरोलॉजी (वायरस का अध्ययन करने वाले) प्रोफ़ेसर हैं. उन्होंने ही एक्सईसी वैरिएंट पर पहला अध्ययन किया था.
क्या कहते हैं वायरोलॉजिस्ट
केई सातो कहते हैं, “एक्सईसी में एक स्पाइक प्रोटीन है, जो वायरस के पिछले वैरिएंट से बहुत अलग है. इसलिए यह कहना बहुत आसान है कि एक्सईसी वैरएंट, पुराने वैरिएंट से मिलने वाली इम्यूनिटी पर भी असर दिखा सकता है”.
अमेरिका में, इंफ़ेक्शन का अध्ययन करने वाले डॉक्टरों ने छुट्टियों के बाद अस्पताल में मरीज़ों की संख्या में इज़ाफ़े की उम्मीद की थी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
बड़े शहरों में गंदे पानी की जांच करने वाले टेस्ट से पता चला कि एक्सईसी वैरिएंट लोगों को संक्रमित कर रहा था. हालांकि, गंभीर रूप से बीमार होकर अस्पताल जाने वाले लोगों की संख्या पिछली सर्दियों की तुलना में बहुत कम थी.
सीडीसी डेटा के मुताबिक़, दिसंबर 2023 की शुरुआत में अस्पताल में भर्ती होने वालों की दर प्रति एक लाख लोगों पर 6.1 थी. वहीं दिसंबर 2024 में यह दर प्रति एक लाख लोगों पर दो तक आ गई.
क्या हो रहा था?
पीटर चिन-होंग, सैन फ़्रांसिस्को के कैलिफ़ोर्निया यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर हैं.
वह कहते हैं, “भले ही गंदे पानी में कोविड की मात्रा बहुत ज़्यादा है, लेकिन अभी बहुत कम लोग गंभीर रूप से बीमार हो रहे हैं. इससे पता चलता है कि लैब में कोई भी वैरिएंट कितना भी डरावना क्यों न लगे, वास्तविक दुनिया में आने पर वायरस के लिए गंभीर बीमारी पैदा करना मुश्किल होता है.”
कुछ संकेत बताते हैं कि 2025 में कोविड एक हल्की बीमारी होगी. जहां पहले कोविड-19 के दौरान स्वाद और गंध खोने जैसे लक्षण बहुत आम थे, वह अब बहुत कम नज़र आते हैं.
लेकिन कुछ लोग अभी भी अस्पताल में भर्ती हो रहे हैं या मर रहे हैं. इस पर चिन-होंग कहते हैं कि इनमें से ज़्यादातर लोग या तो बिना लक्षण वाले होंगे या उन्हें इतनी हल्की सर्दी होगी, जो सर्दियों के मौसम में होने वाली एलर्जी की तरह है.
वह कहते हैं कि कमज़ोर इम्यूनिटी सिस्टम वाले लोग अभी भी ज़्यादा ख़तरे में हैं, लेकिन कोविड से सबसे ज़्यादा ख़तरा उन लोगों को है, जिनकी उम्र 75 वर्ष से ज़्यादा है.
इसके बावजूद एक्सपर्ट्स ने सलाह दी है कि कमज़ोर समूहों जैसे बुज़ुर्गों और बच्चों को हाल में बनाई गई वैक्सीन लगवानी चाहिए. यह वैक्सीन उन्हें संक्रमित होने से बचाने में मदद कर सकती है.
जबकि एक्सईसी वैरिएंट से बहुत गंभीर बीमारियां होने का ख़तरा नहीं है, लेकिन इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि भविष्य में अधिक गंभीर वैरिएंट सामने नहीं आएंगे.
इसका मतलब यह है कि कोविड-19 का ख़तरा अभी ख़त्म नहीं हुआ है और वायरस को अभी कम नहीं आंकना चाहिए.
एक्सपर्ट्स क्या आशंका जताते हैं?
एक्सपर्ट्स को उम्मीद है कि कोविड-19 अभी भी सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर ख़तरा बना रहेगा. लॉन्ग कोविड (कोविड के बाद वाले लक्षण) होने का जोखिम भी ख़त्म नहीं हुआ है. कुछ लोगों के लिए, यह कई सालों तक रहने वाली है.
न्यूयॉर्क के एक स्कूल में हार्म वैन बैकल, माइक्रोबायोलॉजी के एसोसिएट प्रोफ़ेसर हैं. वह माउंट सिनाई पैथोजन सर्विलांस प्रोग्राम के डिप्टी लीडर भी हैं.
यह प्रोग्राम माउंट सिनाई के भीतर बैक्टीरिया, वायरल और फ़ंगल इंफ़ेक्शन की ट्रैकिंग करने के लिए लेटेस्ट जीनोमिक्स (डीएनए) तकनीकों का इस्तेमाल करता है.
वैन बैकल बताते हैं कि डेटा से पता चलता है कि एक्सईसी वैरिएंट के आने के बावजूद, इस सर्दी में कोविड के कम मामले सामने आए हैं.
वह कहते हैं, “पिछले छह महीनों में यह काफी शांत रहा है. फेफड़ों को प्रभावित करने वाले अन्य वायरस की तुलना में, इस मौसम में कोविड के 10 प्रतिशत मामले ही सामने आए हैं.”
यहां तक कि पिछले दो से तीन सालों में मरीज़ों के इलाज करने के तरीकों में भी काफी बदलाव आया है.
चिन-होंग याद करते हुए कहते हैं कि पहले खून के थक्कों की संभावनाओं को कम करने के लिए तुरंत एंटीकोएगुलेंट्स या खून को पतला करने वाली दवाएं दी जाती थीं. लेकिन अब ऐसा करना ज़रूरी नहीं माना जाता है.
हालांकि अभी भी कुछ गंभीर मामलों में डेक्सामेथासोन जैसे स्टेरॉयड का इस्तेमाल किया जाता है. लेकिन वह कहते हैं कि ये अपवाद है क्योंकि ज़्यादातर रोगियों का इलाज एंटीवायरल से ही किया जाता है.
चिन-होंग कहते हैं, “मुझे लगता है कि ओमिक्रॉन और इसके सब-वैरिएंट अब निमोनिया, हृदय रोग और थक्के जैसे लक्षण पैदा करने की जगह ज़्यादातर हल्के सर्दी-ज़ुकाम जैसे लक्षणों को जन्म देते हैं.”
तो अब क्या चल रहा है?
यूनिवर्सिटी ऑफ़ मिसौरी स्कूल ऑफ़ मेडिसिन के वायरोलॉजिस्ट मार्क जॉनसन कोविड के स्तर को अलग-अलग तरीक़ों से ट्रैक करते हैं. चिन-होंग की तरह, वे पुष्टि कर सकते हैं कि कोविड अभी भी व्यापक रूप से हमारे आस-पास मौजूद है.
वह कहते हैं, “हमने यूनिवर्सिटी के आस-पास की कई जगहों से हवा के नमूने इकट्ठा करना शुरू किया और ज़्यादातर छात्रों में हमें कोविड के होने का पता चला. हम अभी भी हर समय संक्रमित हो रहे हैं, लेकिन ज़्यादातर संक्रमण में लक्षणों का असर बेहद कम हो गया है.”
लेकिन इसके कारण का पता लगाना आसान नहीं है. सातो बताते हैं कि नए कोविड वैरिएंट अक्सर वास्तविकता से कहीं ज़्यादा डरावने लगते हैं.
इसका एक कारण यह है कि इन वैरिएंट का टेस्ट अकसर हैम्स्टर (चूहे जैसा दिखने वाला जानवर) में इंजेक्शन लगाकर किया जाता है, जिन्हें वैक्सीन नहीं लगाई जाती है.
हैम्स्टर की संरचना 2019 के इंसानों से बहुत मिलते-जुलती है. तब इंसानों के पास वायरस से लड़ने के लिए कोई इम्यूनिटी नहीं थी. लेकिन 2025 तक, उन्होंने इम्यूनिटी विकसित कर ली है, इसलिए अब स्थिति बहुत अलग है.
एंटीबॉडी का स्तर इम्यूनिटी को मापने का सबसे आसान तरीक़ा है. लेकिन ये अब हाल में आए कोविड वैरिएंट के असर को कम करने में बहुत मदद नहीं कर रहा है.
दुनिया भर में वैक्सीनेशन की दरें गिर रही हैं. सीडीसी डेटा के मुताबिक़, दिसंबर के आख़िर तक अमेरिका में केवल 21.5% वयस्कों और 10.6% बच्चों को 2024-2025 कोविड वैक्सीन मिली थी.
जब सातो और उनकी टीम ने एक्सईसी वैरिएंट का अध्ययन किया, तो उन्होंने पाया कि यह पिछले ओमिक्रॉन सबवैरिएंट के ख़िलाफ़ संक्रमण से पैदा होने वाली एंटीबॉडी से आसानी से बच जाता है.
चिन-होंग कहते हैं कि ऐसा होने की दो संभावनाएं है. एक यह है कि अब ज़्यादातर लोगों को वैक्सीन लगाई जा चुकी है और लोग इतनी बार संक्रमित हो चुके हैं कि उनके शरीर में वायरस से लड़ने के लिए इम्यूनिटी विकसित हो गई है.
इसका मतलब यह है कि नए संक्रमण शरीर में और फैलने से पहले ही ख़त्म हो जाते हैं. उन्हें यह भी लगता है कि लॉन्ग कोविड मामलों की घटती संख्या इस बात का संकेत है कि ऐसा हो सकता है.
चिन-होंग कहते हैं, “अगर कोविड शरीर के अंदर आ भी जाए, तो अभी इसकी पहचान करके इसे शरीर से बहुत प्रभावी तरीके से बाहर निकाला जा सकता है.”
दूसरी संभावना यह है कि कोविड अब एक सामान्य बीमारी बन गई है. जो कि धीरे-धीरे कम होती जाएगी और यह आम सर्दी-ज़ुकाम जैसी बीमारी बन जाएगी.
चिन-होंग का कहना है कि यह बात समझ में आती है, ख़ासकर तब जब हम अतीत में आई कोरोना वायरस बीमारियों को देखते हैं.
चिन-होंग कहते हैं, “लोग अकसर कोविड की तुलना 1918 के स्पैनिश फ़्लू से करते हैं, लेकिन कोरोनावायरस फ़्लू से अलग व्यवहार कर सकते हैं. इसलिए, पिछले कोरोनावायरस प्रकोपों को देखने से हमें कोविड के साथ क्या होगा, इसका बेहतर अंदाज़ा लग सकता है.”
“कुल मिलाकर, ऐसा लगता है कि समय के साथ हम कम ख़तरनाक बीमारी और लॉन्ग कोविड को देख सकते हैं क्योंकि जनसंख्या की इम्यूनिटी में सुधार होता है. इस बात से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि वायरस अपने आप को कितना बदलता है और एक्सईसी जैसे नए वैरिएंट बनते हैं.”
कोविड अभी भी एक नया मोड़ ले सकता है
नवंबर 2021 में सामने आया ओमिक्रॉन अभी भी अल्फ़ा और डेल्टा वैरिएंट के बाद कोविड का सबसे हालिया “सुपरवैरिएंट” है.
हालांकि पिछले तीन सालों में कई सबवैरिएंट सामने आए हैं, लेकिन उनमें से किसी ने भी कोविड के व्यवहार में किसी नए बदलाव की ओर इशारा नहीं किया है.
जॉनसन का कहना है कि अगर कमज़ोर इम्यूनिटी वाला कोई व्यक्ति कोविड के पुराने वैरिएंट, जैसे कि 2020 के डेल्टा वैरिएंट से संक्रमित होता है, तो यह बहुत ज़्यादा गंभीर बीमारी का कारण बन सकता है.
ऐसा इसलिए है क्योंकि पुराना वैरिएंट उन कोविड वैरिएंट से बहुत अलग होगा, जिनसे हम हाल ही में मिले हैं, इसलिए शरीर इसे पहचान नहीं पाएगा और इसके ज़्यादा गंभीर नतीजे हो सकते हैं.
जॉनसन कहते हैं, “कोविड के पुराने वैरिएंट अब पहले जितने आम नहीं रहे, लेकिन फिर भी हम कभी-कभी पहले एक या दो साल में इनमें से कुछ स्ट्रेन का पता लगा लेते हैं. हम जानते हैं कि ऐसे लोग हैं जो डेल्टा (दिसंबर 2020 में भारत में पहली बार पहचाना गया एक प्रकार) से संक्रमित है. अगर इनमें से कोई पुराना स्ट्रेन फिर से फैलना शुरू हुआ, तो लोगों की इम्यूनिटी उसे पहचान नहीं पाएगी क्योंकि यह उन वैरिएंट से बहुत अलग होगा जिन्हें हमने पिछले कुछ सालों में देखा है”.
यह भी मुमकिन है कि कोविड समय के साथ बदले. जॉनसन के मुताबिक़, “कुछ शुरुआती संकेत है कि कोविड फेकल ओरल वायरस में तब्दील हो सकता है. जिसके बाद वह नोरोवायरस, हैजा या हेपेटाइटिस ए जैसे अन्य वायरस की तरह फैलना शुरू कर सकता है. फेकल ओरल वायरस एक ऐसा वायरस होता है जो किसी गंदे पानी, खाने और मल (स्टूल) के माध्यम से फैलता है.”
सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म ‘एक्स’ पर जॉनसन खुद को “वेस्ट वाटर डिटेक्टिव” बताते हैं. वह कहते हैं कि सीवर में कोविड को ट्रैक करके कुछ सबसे हैरान करने वाली बातें सामने आ सकती हैं.
जॉनसन और उनकी टीम ने ऐसे लोगों की तलाश की है जिन्हें लंबे समय से आंत में इंफ़ेक्शन है. उन्होंने सीवेज में एक अजीब तरह के कोविड वायरस स्ट्रेन की खोज की है जो उन्हें अस्पताल के नमूनों में नहीं मिला है. “क्रिप्टिक लिनीइज” कहे जाने वाले ये अजीब से वायरस स्ट्रेन एक ऐसे व्यक्ति द्वारा बार-बार छोड़े जा रहे हैं जिसके बारे में कोई जानकारी नहीं है.
जॉनसन का मानना है कि ऐसा, म्यूटेशन (डीएनए में बदलाव) के कारण होता है. जिससे लंबे समय तक पेट और आंतों में इंफे़क्शन रहता है.
जॉनसन का मानना है कि अगर ऐसा होता है तो यह संभव है कि कोविड मल (स्टूल) के ज़रिए फैलना शुरू हो जाए, जिस तरह से फेकल ओरल वायरस फैलता है.
जॉनसन कहते हैं, “बैट कोरोनावायरस के बहुत से मामले इसी तरह फैलते हैं. दिलचस्प बात यह है कि जब कोविड का विकास होना शुरू हुआ, तब यह गंदे खाने, पानी या एक-दूसरे के नज़दीक आने से फैलता था. इसलिए यह मुमकिन है कि कोविड पूरी तरह से खाने से फैलने वाली बीमारी बन जाए, लेकिन ऐसा शायद जल्दी नहीं होने वाला है.”
कोविड का पाचन तंत्र पर क्या असर होता है
एक और ज़रूरी सवाल यह है कि कोविड का किसी इंसान के पाचन तंत्र पर क्या असर हो सकता है और यह कितना आम है. इस बारे में ज़्यादा जानने के लिए, जॉनसन अब उन लोगों पर रिसर्च कर रहे हैं, जिन्होंने कोविड संक्रमण के बाद पेट या आंत की समस्याओं का सामना किया है.
जॉनसन का मानना है कि लंबे समय तक आंत में कोविड इंफेक्शन होने के परिणामों को समझना ज़रूरी है. उन्होंने देखा है कि लंबे समय के बाद, कभी-कभी तो सालों बाद, गंदे पानी में पाए जाने वाले ज़्यादातर असामान्य वायरस स्ट्रेन अंततः गायब हो जाते हैं.
वह कहते हैं, “मेरा अनुमान है कि इससे व्यक्ति की मौत हो जाती है, लेकिन मुझे इसके कारण के बारे में पता नहीं है. अभी भी बहुत से सवालों के जवाबों के बारे में जानना बाकी है.”
ज़्यादातर कोविड इंफेक्शन बहुत गंभीर नहीं होते हैं. इसी कारण जॉनसन और चिन-होंग जैसे रिसर्चर इस बात पर ज़ोर देते हैं कि लोगों के लिए वैक्सीन लगवाना अभी भी ज़रूरी है. साथ ही कंपनियों को आने वाले समय में नई वैक्सीन बनाने पर काम करते रहना चाहिए.
चिन-होंग बताते हैं कि साल में लगने वाले बूस्टर के अलावा, आने वाला समय “म्यूकोसल वैक्सीन” का है. ये वैक्सीन गंभीर बीमारी को रोकने के साथ-साथ वायरस को दूसरों में फैलने से भी रोक सकती है.
इसके साथ ही, एक ऐसी यूनिवर्सल कोविड वैक्सीन बनाने के लिए भी काम चल रहा है, जिसे हर साल अपडेट करने की ज़रूरत नहीं है.
चिन-होंग कहते हैं, “कोविड के साथ आगे क्या होगा, उसके बारे में अंदाज़ा लगाना मुश्किल है. हालांकि अभी भी गंभीर बीमारी और अस्पताल में भर्ती होने का ख़तरा बना हुआ है. इसलिए हमें अभी भी भविष्य में बेहतर इलाज और वैक्सीन की ज़रूरत होगी.”
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SOURCE : BBC NEWS