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जम्मू-कश्मीर के पहलगाम इलाके में मंगलवार को हुए चरमपंथी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के ख़िलाफ़ कई कड़े क़दम उठाए हैं.
इनमें अटारी-वाघा सीमा बंद करना, राजनयिक कर्मचारियों की संख्या में कटौती और वीज़ा पर पाबंदी के साथ-साथ छह दशक पुरानी सिंधु जल संधि के क्रियान्वयन को निलंबित करना शामिल है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में बुधवार को हुई मंत्रिमंडल की सुरक्षा मामलों की समिति की बैठक में सिंधु जल संधि को निलंबित करने का फैसला किया गया है.
बैठक में लिए गए फैसलों की घोषणा करते हुए भारत के विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने कहा कि सिंधु जल संधि पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी गई है.

विक्रम मिसरी ने बताया कि भारत तब तक इसे लागू नहीं करेगा और न ही इसके लिए बाध्य रहेगा जब तक पाकिस्तान सीमा पार से आतंकवाद को समर्थन बंद करने के सबूत नहीं देगा.
सिंधु जल संधि के तहत भारत को ब्यास, रावी और सतलुज नदियों के पानी पर अधिकार दिया गया था, जबकि तीन पश्चिमी नदियों सिंधु, चिनाब और झेलम के पानी पर पाकिस्तान को अधिकार दिया गया था.
हालांकि इस संधि के तहत इन तीनों नदियों (सिंधु, चिनाब, झेलम) के पानी का भी 20 फ़ीसदी पानी भारत के पास है.
भारत ने सिंधु जल संधि को ऐसे समय में निलंबित किया है जब पाकिस्तान पहले से ही जल संकट का सामना कर रहा है.
पाकिस्तान के सिंध और पंजाब प्रांत में छह नई नहरें बनाने की योजना भी विवादों में फंसी है.
क्या कह रहे हैं पाकिस्तान के विशेषज्ञ

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बीबीसी उर्दू से बात करते हुए पाकिस्तान में सिंधु जल संधि के पूर्व अतिरिक्त आयुक्त शिराज मेमन ने कहा कि सिंधु जल संधि के तहत दोनों देशों की बुनियादी जिम्मेदारियों में साल में कम से कम एक बार दोनों देशों के जल आयुक्तों की बैठक, नदियों में पानी के प्रवाह का डेटा साझा करना और दोनों तरफ़ नदियों पर चल रही परियोजनाओं के निरीक्षण के लिए अन्य देशों के दलों का दौरा कराना शामिल है.
उन्होंने कहा कि दोनों देशों के सिंधु जल आयुक्त आमतौर पर मई के महीने में यह बैठक करते हैं और इसकी सालाना रिपोर्ट 1 जून को दोनों देशों की सरकारों को सौंपी जाती है.
शिराज मेमन के मुताबिक़, संधि के क्रियान्यवन के निलंबन का मतलब यह नहीं है कि बैठकें, निरीक्षण दौरे या नदियों में जल प्रवाह का डेटा साझा नहीं किया जाएगा.
शिराज मेमन दावा करते हैं कि भारत ने भले ही अब इस समझौते के क्रियान्वयन को रोकने की घोषणा की है, लेकिन भारत ने करीब चार साल से व्यावहारिक रूप से इसके क्रियान्वयन को रोका हुआ है.
शिराज मेमन के मुताबिक़ भारत पिछले चार सालों से जल आयुक्तों की सालाना बैठक आयोजित नहीं कर रहा है. उनके मुताबिक़ भारत नदियों में पानी का आंकड़ा भी 30 से 40 फ़ीसदी ही दे रहा है.
उन्होंने कहा, ”भारत केवल 30 से 40 फ़ीसदी डेटा दे रहा है, बाकी पर वह ‘निल’ या ‘नॉन ऑब्ज़रवेंट’ लिख कर भेज रहा है.”
सिंधु नदी के पूर्व अतिरिक्त जल आयुक्त शिराज मेमन ने कहा कि डेटा शेयरिंग न होने से पाकिस्तान पर ज्यादा फ़र्क़ नहीं पड़ेगा, क्योंकि वो अपनी तरफ़ की नदियों पर उपकरण लगाकर पानी के बहाव का अनुमान लगा सकता है.
पाकिस्तान पर कितना असर पड़ेगा

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पाकिस्तान में पानी से जुड़े मामलों के जानकार डॉक्टर शोएब ने बीबीसी को बताया कि भारत ने अपने बयान में इस पर रोक लगाने की परिभाषा या विवरण नहीं बताया है कि वे इस फ़ैसले के तहत क्या-क्या करेगा.
उन्होंने कहा कि समझौते के तहत भारत नदियों में पाकिस्तान के हिस्से के पानी का 19.84 फ़ीसदी पहले ही ब्लॉक कर रहा है और जल भंडारण के लिए भारत इस पानी को अपने संसाधनों में इकट्ठा कर रहा है.
उनका कहना है कि आयुक्त की सालाना बैठक, नदियों में पानी के आंकड़ों को साझा करने और दोनों सिंधु जल आयुक्तों के बीच संचार ब्लैकआउट को छोड़कर इस निलंबन का कोई मतलब या असर नहीं है.
लेकिन भारत की यह घोषणा पाकिस्तान के लिए किस तरह की मुश्किलें खड़ी कर सकती है?
इस सवाल पर पूर्व अतिरिक्त सिंधु जल कमिश्नर शिराज मेमन ने कहा कि शॉर्ट टर्म में पाकिस्तान पर इसका ज्यादा असर नहीं पड़ेगा.
उन्होंने कहा कि भारत पाकिस्तान के हिस्से के पानी को रोक नहीं सकता क्योंकि उसके पास वर्तमान में कोई ऐसा इंफ्रास्ट्रक्चर या संसाधन नहीं है जहां वह इन नदियों के पानी का संग्रह कर सके.
हालांकि वो ये ज़रूर मानते हैं कि दीर्घकाल में इसका असर पाकिस्तान पर पड़ सकता है.
भारत क्या कर सकता है

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मेमन कहते हैं, ”यदि दोनों देशों के बीच गतिरोध जारी रहता है तो भारत पाकिस्तान को सूचित किए बिना इन नदियों पर बनाए जा रहे बांधों, बैराजों या जल भंडारण के बुनियादी ढांचे के डिजाइन को बदल सकता है. यदि ऐसा होता है तो यह पाकिस्तान को लंबे समय में नुक़सान पहुंचा सकता है.”
उन्होंने कहा कि समझौते के तहत भारत, पाकिस्तान को अपनी हरेक जल परियोजना के डिज़ाइन और स्थान के बारे में विवरण देने के लिए बाध्य है और वह अतीत में ऐसा करता रहा है.
उन्होंने कहा कि इसके अलावा भारत पाकिस्तान को बिना बताए और भी ऐसे प्रोजेक्ट पर काम शुरू कर सकता है, जिससे पाकिस्तान के हिस्से में आने वाले पानी पर असर पड़ेगा.
हालांकि मेमन के मुताबिक़ भारत के लिए ऐसा करना आसान नहीं होगा क्योंकि वर्ल्ड बैंक इस समझौते का मध्यस्थ है और पाकिस्तान इस मसले को इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस में भी ले जा सकता है.

डॉ. शोएब भी सिंधु जल संधि के अतिरिक्त आयुक्त के बयान से सहमत नज़र आते हैं. उनका कहना है कि यह निलंबन सिर्फ़ राजनीतिक बयानबाज़ी है और इससे पाकिस्तान को ज़्यादा फ़र्क़ नहीं पड़ेगा.
उन्होंने कहा कि भारत पाकिस्तान के पानी को रोकने में सक्षम नहीं है न ही उसके पास ऐसे करने के संसाधन या मक़सद है.
पाकिस्तान में जल और बिजली के पूर्व संघीय सचिव मोहम्मद यूनुस का भी कहना है कि यह बयान भारत की राजनीतिक ग़लतफहमी का नतीजा है.
उन्होंने कहा कि यह अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के साथ वैश्विक समझौता है और इसका निलंबन भारत के लिए संभव नहीं है और यह किसी राजनीतिक बयान से ज़्यादा कुछ नहीं है.
क्या भारत के पास समझौते को रद्द करने का अधिकार है?

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सिंधु जल संधि की मध्यस्थता विश्व बैंक ने की थी और क्या भारत के पास इसे एकतरफ़ा तरीके से लागू करने से रोकने का अधिकार है?
अंतरराष्ट्रीय क़ानून मामलों के जानकार अहमर बिलाल सोफ़ी ने बीबीसी संवाददाता आज़म ख़ान से कहा कि भारत को इस समझौते को एकतरफ़ा रद्द करने या निलंबित करने का कोई अधिकार नहीं है.
उनके मुताबिक़ इस समझौते में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि इसे निलंबित किया जा सकता है.

हालांकि इस समझौते के तहत दोनों देश आपसी सहमति से इस समझौते में बदलाव ज़रूर कर सकते हैं.
अहमर बिलाल के मुताबिक़ पाकिस्तान इस क़दम को संयुक्त राष्ट्र में चुनौती दे सकता है और भारत के ख़िलाफ़ ऐसे ही कदम उठा सकता है.
उन्होंने कहा, ”पाकिस्तान के पास न केवल बल प्रयोग का अधिकार है, बल्कि वह हर तरह के ग़ैर दोस्ताना और कड़े कदम उठा सकता है.”
अहमर बिलाल के मुताबिक़ पाकिस्तान और भारत के बीच सात दशकों में इस समझौते से कभी छेड़छाड़ नहीं हुई और अब भारत का यह क़दम पूरे क्षेत्र और वैश्विक शांति के लिए बहुत ही अभूतपूर्व क़दम है.
अहमर बिलाल कहते हैं कि इस समझौते से लोगों का अस्तित्व जुड़ा हुआ है इसलिए इस समझौते को रद्द करने से दोनों देश युद्ध की स्थिति में पहुंच सकते हैं.

वहीं शिराज मेमन भी इस तरह की राय ज़ाहिर करते हैं. शिराज कहते हैं कि कोई भी देश, चाहे वह पाकिस्तान हो या भारत, इस समझौते को ना ही एकतरफ़ा क़दम उठाते हुए निलंबित कर सकता है और ना ही इसे बदल सकता है.
शिराज मेमन कहते हैं कि दोनों देशों के बीच युद्धों के दौरान भी ये समझौता निलंबित नहीं हुआ था. वो याद दिलाते हैं कि इस समझौते का मध्यस्थ वर्ल्ड बैंक है.
शिराज मेमन कहते हैं कि इस समझौते में बदलाव के लिए दोनों देशों के बीच आपसी सहमति होना ज़रूरी है और ऐसा नहीं होने पर अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में ये मामला ले जाया जा सकता है.
वहीं डॉ. शोएब कहते हैं कि इस समझौते के कुछ प्रावधानों को विएना कन्वेंशन के तहत भी संरक्षण प्राप्त है और एकतरफ़ा तरीके से इस समझौते को निलंबित नहीं किया जा सकता है.
डॉ. शोएब कहते हैं कि भारत का जिस तरह से पाकिस्तान के साथ सिंधु जल समझौता है वैसे ही समझौते उसने श्रीलंका और बांग्लादेश के साथ भी किए हैं.
यदि भारत पाकिस्तान के ख़िलाफ़ एकतरफ़ा क़दम उठाता है तो ये देश भी अपने-अपने समझौतों को लेकर चौकन्ना हो सकते हैं और भारत के लिए मुश्किल खड़ी कर सकतै हैं.
डॉ. शोएब का कहना है कि इसी तरह भारत में बहने वाली ब्रह्मपुत्र नदी चीन से निकलती है और अगर भारत ने पाकिस्तान के हितों का ध्यान नहीं रखा तो उसे भी चीन से दबाव और ख़तरे का सामना भी करना पड़ सकता है.
क्या ये चरमपंथ के ख़िलाफ़ भारत का हथियार है?

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पाकिस्तानी विशेषज्ञों का दावा है कि यह पहली बार नहीं है जब भारत ने सिंधु जल संधि को चरमपंथ की किसी भी गतिविधि के बाद एक ‘हथियार’ के रूप में इस्तेमाल करने की बात की है.
पिछले कुछ सालों में जितनी बार पाकिस्तान और भारत के बीच विवाद बढ़े हैं उतनी ही बार सिंधु जल संधि को तोड़ने की बात भी होती रही है.
पिछले दो दशकों में ख़ासकर भारत में भाजपा के सत्ता में रहने के दौरान, सिंधु जल संधि को लेकर भारत का रुख़ सख़्त हुआ है.
2001 और 2002 में जब भारत और पाकिस्तान के बीच हालात तनावपूर्ण हो गए थे तो तत्कालीन जल संसाधन मंत्री बिजया चक्रवर्ती ने कहा था, ”भारत पाकिस्तान पर दबाव बनाने के लिए कई क़दम उठा सकता है और अगर हम सिंधु जल संधि को ख़त्म करने का फ़ैसला करते हैं तो पाकिस्तान सूखे की चपेट में आ जाएगा और वहां के लोगों को पानी के लिए भीख मांगनी पड़ेगी.”
2016 में उरी में भारतीय सेना के एक शिविर पर हमले के बाद डेढ़ सप्ताह बाद हुई एक समीक्षा बैठक में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था, ”ख़ून और पानी एक साथ नहीं बह सकते हैं.”
नरेंद्र मोदी के इस बयान का इशारा सिंधु जल समझौते की ही तरफ़ था.
2019 में पुलवामा में सुरक्षा बलों पर हमले के बाद केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने बयान देते हुए कहा था, “सरकार ने पाकिस्तान को पानी के वितरण को रोकने का फैसला किया है.”
अगस्त 2019 में भारत के तत्कालीन जल संसाधन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा था, “सिंधु जल संधि का उल्लंघन किए बिना पाकिस्तान को जाने वाले पानी को रोकने के लिए काम शुरू हो गया है.”
पिछले साल अगस्त में भारत ने सिंधु जल संधि के अनुच्छेद 13 (3) के तहत पाकिस्तान को एक नोटिस भेजा और संधि की “समीक्षा और बदलाव” के लिए सरकार स्तर पर वार्ता की मांग की गई. इसमें ‘सीमा पार से आतंकवादी गतिविधियों’ का भी उल्लेख किया गया था.
इसमें भी भारत की तरफ़ से कहा गया था कि ‘सीमा पार से आतंकवाद’ इस समझौते के सुचारू रूप से संचालन में बाधा है.
यह पहली बार नहीं था जब भारत सरकार ने 1960 में दोनों देशों के बीच हुई इस संधि में बदलाव की मांग की थी.
दो साल पहले भारत ने पाकिस्तान को इस संबंध में नोटिस भेजा था लेकिन इस नोटिस में सिर्फ ‘बदलावों’ के बारे में बात की गई थी.
हालांकि अगस्त 2024 में भेजे नोटिस में भारत ने बदलावों के साथ-साथ समझौते की ‘समीक्षा’ करने की भी बात की थी.
क्या है सिंधु जल समझौता?

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ब्रिटिश राज के दौरान ही दक्षिण पंजाब में सिंधु नदी घाटी पर बड़ी नहर का निर्माण करवाया गया था.
उस इलाक़े को इसका इतना लाभ मिला कि बाद में वो दक्षिण एशिया का एक प्रमुख कृषि क्षेत्र बन गया.
भारत और पाकिस्तान के बीच बंटवारे के दौरान जब पंजाब को विभाजित किया गया तो इसका पूर्वी भाग भारत के पास और पश्चिमी भाग पाकिस्तान के पास गया.
बंटवारे के दौरान ही सिंधु नदी घाटी और इसकी विशाल नहरों को भी विभाजित किया गया. लेकिन इससे होकर मिलने वाले पानी के लिए पाकिस्तान पूरी तरह भारत पर निर्भर था.
पानी के बहाव को बनाए रखने के उद्देश्य से पूर्व और पश्चिम पंजाब के चीफ़ इंजीनियरों के बीच 20 दिसंबर 1947 को एक समझौता हुआ.
इसके तहत बंटवारे से पहले तय किया गया पानी का निश्चित हिस्सा भारत को 31 मार्च 1948 तक पाकिस्तान को देते रहना तय हुआ.
1 अप्रैल 1948 को जब समझौता लागू नहीं रहा तो भारत ने दो प्रमुख नहरों का पानी रोक दिया जिससे पाकिस्तानी पंजाब की 17 लाख एकड़ ज़मीन पर हालात ख़राब हो गए.
भारत के इस क़दम के कई कारण बताए गए जिसमें एक था कि भारत कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान पर दबाव बनाना चाहता था.
बाद में हुए समझौते के बाद भारत पानी की आपूर्ति जारी रखने पर राज़ी हो गया.
एक अध्ययन के मुताबिक़ 1951 में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने टेनसी वैली अथॉरिटी के पूर्व प्रमुख डेविड लिलियंथल को भारत बुलाया.
लिलियंथल पाकिस्तान भी गए और वापस अमेरिका लौटकर उन्होंने सिंधु नदी घाटी जल बंटवारे पर एक लेख लिखा.
ये लेख विश्व बैंक प्रमुख और लिलियंथल के दोस्त डेविड ब्लैक ने भी पढ़ा और उन्होंने भारत और पाकिस्तान के प्रमुखों से इस बारे में संपर्क किया. और फिर दोनों पक्षों के बीच बैठकों का सिलसिला शुरू हुआ.
ये बैठकें क़रीब एक दशक तक चलीं और आख़िरकार 19 सितंबर 1960 को कराची में सिंधु नदी घाटी संधि पर हस्ताक्षर हुए.

संधि के मुताबिक़, सिंधु, झेलम और चिनाब को पश्चिमी नदियां बताते हुए इनका पानी पाकिस्तान के लिए तय किया गया. जबकि रावी, ब्यास और सतलुज को पूर्वी नदियां बताते हुए इनका पानी भारत के लिए तय किया गया.
इसके मुताबिक़, भारत पूर्वी नदियों के पानी का, कुछ अपवादों को छोड़कर, बेरोकटोक इस्तेमाल कर सकता है.
वहीं पश्चिमी नदियों के पानी के इस्तेमाल का कुछ सीमित अधिकार भारत को भी दिया गया था. जैसे बिजली बनाना, कृषि के लिए सीमित पानी.
इस संधि में दोनों देशों के बीच समझौते को लेकर बातचीत करने और साइट के मुआयना आदि का प्रावधान भी था.
इसी संधि में सिंधु आयोग भी स्थापित किया गया. इस आयोग के तहत दोनों देशों के कमिश्नरों (आयुक्तों) के मिलने का प्रस्ताव था.
संधि में दोनों कमिश्नरों के बीच किसी भी विवादित मुद्दे पर बातचीत का प्रावधान है.
इसमें यह भी था कि जब कोई एक देश किसी परियोजना पर काम करता है और दूसरे को उस पर कोई आपत्ति है तो पहला देश उसका जवाब देगा. इसके लिए दोनों पक्षों की बैठकें होंगी.
बैठकों में भी अगर कोई हल नहीं निकल पाया तो दोनों देशों की सरकारों को इसे मिलकर सुलझाना होगा.
साथ ही ऐसे किसी भी विवादित मुद्दे पर तटस्थ विशेषज्ञ की मदद लेने या कोर्ट ऑफ़ ऑर्बिट्रेशन में जाने का प्रावधान भी रखा गया है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
SOURCE : BBC NEWS