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भारतीय नेवी

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  • Author, संदीप राय
  • पदनाम, बीबीसी संवाददाता
  • 18 जनवरी 2025, 08:44 IST

    अपडेटेड एक घंटा पहले

भारत ने बुधवार को एक साथ तीन युद्धपोतों को कमिशन किया, जिसमें पनडुब्बी आईएनएस वागषीर, डिस्ट्रॉयर आईएनएस सूरत और स्टील्थ फ्रिगेट आईएनएस नीलगिरी पी17ए हैं.

इसे हिंद महासागर में चीन की मजबूत मौजूदगी की काट के रूप में देखा जा रहा है.

भारत का 95 प्रतिशत व्यापार हिंद महासागर क्षेत्र से होकर गुजरता है और यहां चीनी नौसेना की बढ़ती मौजूदगी ने भारत के लिए चुनौतियां बढ़ा दी हैं.

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि अटलांटिक महासागर का महत्व हिंद महासागर की ओर शिफ़्ट हो गया है, जोकि अंतरराष्ट्रीय महाशक्तियों की प्रतिद्वंद्विता का केंद्र होता जा रहा है.

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रक्षामंत्री ने कहा, “भारत अपने हितों की रक्षा के लिए अपनी नेवी को ताक़तवर बनाने पर सबसे अधिक ध्यान दे रहा है.”

मुंबई में सरकार द्वारा संचालिच मझगांव डॉकयार्ड से तीन युद्धपोतों को कमिशन करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, “तीन प्रमुख नौसैनिक युद्धपोतों का कमिशन किया जाना रक्षा निर्माण और समुद्री सुरक्षा में वैश्विक अगुवा बनने के भारत के नज़रिये को साकार करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण छलांग है.”

लेकिन भारत हिंद महासागर में चीन की नेवी को संतुलन करने में कितना क़ामयाब होगा, यह सवाल अभी भी बना हुआ है.

समुद्री सुरक्षा में भारत की ताक़त बढ़ी

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बुधवार को कमिशन की गई कन्वेंशनल पनडुब्बी आईएनएस वागषीर की कमिशनिंग के साथ ही भारत के पास अब 16 पनडुब्बियां हो गई हैं.

इससे हिंद महासागर से लेकर बंगाल की खाड़ी में भारतीय समुद्री सुरक्षा में भारत की क्षमता बढ़ी है.

लेकिन रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि भारत के प्रमुख प्रतिद्वंद्वी चीनी नौसेना के तेज़ी से ताक़तवर होने की वजह से हिंद महासागर क्षेत्र में हालात चुनौतीपूर्ण होते जा रहे हैं.

रक्षा विश्लेषक राहुल बेदी ने बीबीसी हिंदी से कहा, “नई कमिशनिंग का मकसद पानी के अंदर पुराने हो रहे भारतीय बेड़े को बदलना है और मौजूदा समय में क्षमताओं में अंतर को कम करना है.”

“पी75 स्कॉर्पियन सबमरीन प्रोजेक्ट, बेदी ने कहा कि नेवल ग्रुप ऑफ़ फ़्रांस के साथ मिलकर पनडुब्बी निर्माण के क्षेत्र में भारत की बढ़ती विशेषज्ञता को दिखाता है.”

उन्होंने कहा कि ‘आईएनएस वागषीर पनडुब्बी फ़्रांस के लाइसेंस पर बनाई जाने वाली कालवारी (स्कॉर्पियन) क्लास की छठी पारंपरिक डीज़ल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बी है.’

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अगले महीने पेरिस में हो रहे आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस एक्शन समिट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फ़्रांस जाने वाले हैं और इस दौरान तीन और स्कॉर्पियन पनडुब्बी का समझौता हो सकता है.

हिंद महासागर में चीन के तेज़ी से बढ़ते बेड़े की ताक़त को संतुलित करने के लिए भारत ने देश में निर्मित अपने पहले विमान वाहक पोत को 2022 में कमिशन किया था.

आईएनएस विक्रांत भारत का दूसरा एयरक्राफ़्ट कैरियर (विमान वाहक पोत) है, जो इस्तेमाल में है. पहला एयरक्राफ़्ट कैरियर सोवियत युग का आईएनएस विक्रमादित्य है जिसे हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी की सुरक्षा के लिए 2004 में रूस से खरीदा गया था.

पनडुब्बी की क्षमता

सबमरीन

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अब भारत के पास कुल 16 पनडुब्बियां हो गई हैं, जिनमें छह आधुनिक हैं जबकि 10 पनडुब्बियां 29 से 34 साल पुरानी हैं, इनमें दो या तीन रिटायर होने की कगार पर हैं.

छह और पनडुब्बियों पर पिछले कुछ सालों से बात हो रही है. अगले दो तीन महीने में तीन और कन्वेंशनल पनडुब्बी का सौदा हो सकता है.

लेकिन भारतीय नौसेना की राह इतनी आसान भी नहीं है.

राहुल बेदी कहते हैं, “नई कमिशन हुई आईएनएस वागषीर सबमरीन में इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन सिस्टम नहीं है जिसकी वजह से उसे दो तीन दिन बाद ही सतह पर आना होगा.”

“इस सिस्टम की वजह से कन्वेंशनल सबमरीन 15 से 20 दिन पानी के अंदर ऑपरेट कर सकती है. भारत की छह सबमरीन में यह सिस्टम नहीं है जिससे इन्हें आम तौर पर दो से तीन दिन में पानी के बाहर आना पड़ता है.”

वो कहते हैं, “इसके अलावा आईएनएस वागषीर में टॉरपीडो जैसे हथियार अभी नहीं लगे हैं. टॉरपीडो का ठेका 2017-18 में रद्द कर दिया गया. असल में वीआईपी हेलीकॉप्टर बनाने वाली वेस्टलैंड कंपनी ही टॉरपीडो बनाती थी.”

“पनडुब्बी का डिज़ाइन उसी के मुताबिक बनाया गया था. लेकिन जब वेस्टलैंड घोटाले के बाद सौदा रद्द हुआ तो यह डील भी अधर में पड़ गई. अब पनडुब्बी तो कमीशन हो गई लेकिन टॉरपीडो हैं ही नहीं.”

राहुल बेदी कहते हैं कि ‘रक्षा क्षेत्र को लेकर होने वाले फैसलों में देरी भारतीय नौसेना के विकास की सबसे बड़ी बाधा है.’

भारतीय नौसेना की बाधाएं

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आम तौर भारत का ध्यान लंबी थल सीमा पर अधिक होता है, क्योंकि पाकिस्तान और चीन जैसे प्रतिद्वंद्वी देशों से उसकी लंबी सीमा जुड़ी है.

राहुल बेदी कहते हैं, “अधिकांश फ़ोकस ज़मीनी सीमाओं को लेकर है जैसे लद्दाख या पाकिस्तान के साथ लगती वास्तविक नियंत्रण रेखा. समुद्री सीमा पर उस तरह से ध्यान नहीं दिया गया. नीति निर्माताओं का फ़ोकस भी कम रहा और फंड भी उतना नहीं दिया गया.”

इसके अलावा रक्षा विनिर्माण में भी भारत चीन से अभी भी बहुत पीछे है.

राहुल बेदी के अनुसार, “जिन सबमरीन, फ्रिगेट और डिस्ट्रॉयर को भारत ने हाल ही में एकसाथ कमिशन किया, उन्हें बनाने में तीन से चार साल लग गए.”

“जबकि चीन में उत्पादन की गति बहुत तेज़ है. चीन एक फ़्रिगेट या डिस्ट्रॉयर बनाने में अधिक से अधिक 10 महीने या 12 महीने का समय लेता है. यहां तक कि एक परमाणु पनडुब्बी को भी एक साल के अंदर बनाने की उनमें क्षमता है.”

उत्पादन में देरी पर परमाणु पनडुब्बी का उदारहण देते हुए वो कहते हैं, “भारतीय नौसेना दो परमाणु पनडुब्बियां ऑपरेट करती है. हमारा न्यूक्लियर प्रोग्राम 1974 में शुरू हुआ था और पहली न्यूक्लियर सबमरीन 2016 में नेवी में शामिल की गई.”

दूसरी परमाणु पनडुब्बी आईएनएस अरिघात अगस्त 2024 में कमिशन की गई.

चीन की नौसेना कितनी ताक़तवर

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राहुल बेदी का कहना है कि चीन और भारत की नौसेना में ‘ज़मीन आसमान का फ़र्क’ है.

वो कहते हैं, “चीन की नेवी में पानी के ऊपर और नीचे रहने वाले 600 युद्धपोत हैं. उसके पास तीन विमान वाहक पोत और 50 सबमरीन हैं, जिनमें 15 न्यूक्लियर सबमरीन हैं. जबकि भारत की नेवी के पास लगभग 145 युद्धपोत हैं.”

“पिछले पांच साल से चीन की नेवी ने अपने क्षेत्र का काफ़ी विस्तार किया है. पाकिस्तान में ग्वादर बंदरगाह से खाड़ी क्षेत्र में, श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह से हिंद महासागर में चीनी नेवी ऑपरेट करती है. म्यांमार में भी उनकी काफ़ी मौजूदगी है. इसके अलावा मालदीव और बांग्लादेश में उनका प्रभाव है.”

उनके अनुसार, एक तरह से भारतीय नौसेना चारों ओर से चीन की नौसेना से घिरी हुई है.

ऐसे में उससे मुकाबला करना मुश्किल है और भारतीय नौसेना का भी मानना है कि चीन की मौजूदगी और उससे पैदा होने वाला ख़तरा बढ़ता जा रहा है.

बेदी के मुताबिक़, चीन की महत्वाकांक्षा अपने पुराने शाही साम्राज्य के दौर के क्षेत्र पर फिर से दबदबा हासिल करना है.

वो कहते हैं, “ये याद रखना चाहिए कि चीन की तीनों सेनाओं में नौसेना सबसे पुरानी सेवा है और उसकी अहमियत भी बाकी दो सेनाओं से अधिक है. उसके रक्षा बजट में नौसेना का बाकी दो सेनाओं से कहीं ज़्यादा हिस्सा है. वहीं रक्षा बजट में भारतीय नौसेना का हिस्सा बाकी दो सेनाओं के मुकाबले सबसे कम है.”

हिंद महासागर में चीन की रणनीति

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हिंद महासागर में चीन जिस रणनीति को विकसित करता दिख रहा है उसे “स्ट्रिंग ऑफ़ पर्ल्स” के नाम से जाना जाता है.

इसमें, हिंद महासागर के आसपास के देशों में रणनीतिक रूप से अहम बंदरगाहों और बुनियादी ढांचे का निर्माण और सुरक्षा शामिल है जिसका ज़रूरत पड़ने पर सैन्य उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है.

माना जाता है कि ये “पर्ल्स” चीन की ऊर्जा हितों और सुरक्षा उद्देश्यों की रक्षा के लिए मध्य पूर्व से दक्षिण चीन सागर तक समुद्री मार्गों पर कई देशों के साथ रणनीतिक संबंध बनाने में मदद करने के लिए बनाए जा रहे हैं.

चीन हॉर्न ऑफ़ अफ़्रीका में जिबूती में और पाकिस्तान के ग्वादर में बंदरगाह बना रहा है. साथ ही उसने श्रीलंका के हंबनटोटा को 99 साल की लीज़ पर ले लिया है.

म्यांमार के कोको द्वीप पर भी चीनी नौसेना की गतिविधियां हैं.

ये बंदरगाह चीन को हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी नौसैनिक पहुँच और प्रभाव बढ़ाने में मददगार हैं.

हिंद महासागर क्षेत्र इतना महत्वपूर्ण क्यों है?

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समाचार एजेंसी एपी के अनुसार, भारत का 95 प्रतिशत समुद्री व्यापार हिंद महासागर के रास्ते होता है. जबकि पूरब से पश्चिम और पश्चिम से पूरब को होने वाला दुनिया का 70 प्रतिशत समुद्री व्यापार भी इस क्षेत्र से होकर गुज़रता है.

ऐसी स्थिति में कोई इलाक़ा स्वतः प्रतिद्वंद्विता का क्षेत्र बन जाता है.

राहुल बेदी कहते हैं, “इसीलिए हिंद महासगर क्षेत्र का बहुत ही रणनीतिक महत्व है और इसकी अहमियत आने वाले समय में और बढ़ती जाएगी.”

चीन नहीं चाहता है कि इस क्षेत्र में अमेरिकी दबदबा रहे. फिलहाल अमेरिकी नेवी के पास 12 एयरक्राफ़्ट कैरियर हैं, जो समुद्री ताक़त के लिहाज से काफ़ी अहम हैं.

लेकिन राहुल बेदी का कहना है कि ‘चीन ने इसकी काट के तौर पर एक मिसाइल सिस्टम विकसित किया है, जिसे ए.डी. (एयर डिनायल मिसाइल) टेक्नोलॉजी कहते हैं.’

वो कहते हैं, “यह ज़मीन पर स्थापित होता है और इसकी मारक क्षमता 300 से 500 किलोमीटर है. इससे अमेरिका के एयरक्राफ़्ट कैरियर घबराते हैं क्योंकि वे इससे हिट हुए तो पूरी तरह बेकार हो जाते हैं. चीन यह सिस्टम पाकिस्तान को भी दे रहा है, जिससे भारत के सामने भी मुश्किल खड़ी हो जाएगी.”

“इसके अलावा वो पाकिस्तान को सबमरीन भी दे रहा है, जिसकी वजह से पाकिस्तान की नौसेना की क्षमता बढ़ी है. पाकिस्तान की नौसेना में चीन निर्मित पहली पनडुब्बी कमिशन होगी.”

राहुल बेदी कहते हैं, “एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन सिस्टम की वजह से पाकिस्तानी नौसेना की क्षमता, भारतीय नौसेना की कन्वेंशनल सबमरीन के मुकाबले थोड़ी बढ़ जाएगी. पिछले 18 साल से भारतीय नौसेना इस सिस्टम को लगाने की बात कर रही है लेकिन अभी तक कोई फैसला नहीं हो पाया.”

वो कहते हैं, “भारतीय रक्षा मंत्रालय द्वारा खरीद के फैसले लेने की लंबी प्रक्रिया होती है, जो नौसेना के विकास पर काफ़ी असर डालती है. भारत को निर्णय प्रक्रिया में और तेज़ी लानी होगी.”

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SOURCE : BBC NEWS