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चीन अपने पड़ोसी देशों भारत और पाकिस्तान के बीच कूटनीतिक संतुलन बनाए रखने की कोशिश कर रहा है, जबकि हाल ही में हुए सैन्य संघर्ष के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव चरम पर है.
चीन की पाकिस्तान के साथ रणनीतिक और सहयोगात्मक साझेदारी सदाबहार है. लेकिन अमेरिका के साथ चल रही ट्रेड वॉर के बीच चीन ने भारत के साथ भी संबंधों को सुधारने की कोशिश की है.
चीन भारत के साथ महत्वपूर्ण आर्थिक संबंध भी साझा करता है. इस साल भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय व्यापार 127 अरब डॉलर तक पहुंच गया है.
हालांकि भारत का चीन के साथ 99 अरब डॉलर से अधिक का व्यापार घाटा है और वो डोमेस्टिक मैन्युफैक्चरिंग के लिए चीन से आने वाले सामान पर निर्भर है.
चीन ने दोनों पड़ोसियों के बीच हालिया संघर्ष पर एहतियात बरती और दोनों देशों से संयम बरतने की अपील की.
लेकिन पाकिस्तान के एयर डिफेंस सिस्टम के लिए चीन के समर्थन से कुछ चिंताएं भी पैदा हुई हैं. इसकी वजह से भारत के साथ संबंधों में आई हालिया कूटनीतिक मधुरता के कमज़ोर होने का जोखिम पैदा हुआ है.
चीन ने इस सवाल को टाल दिया है कि क्या उसने संघर्ष के दौरान पाकिस्तान को इस तरह का समर्थन दिया. चीन ने कहा, “संघर्ष के बाद से हमेशा निष्पक्ष रुख को बनाए रखा गया है.”
चीन के रक्षा निर्यात पर क्या असर होगा?

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भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्षविराम बाद दक्षिण एशिया में चीन के रक्षा निर्यात में बढ़ोतरी होने की संभावना है.
एक स्थानीय भारतीय समाचार वेबसाइट की 13 मई की रिपोर्ट में कहा गया है कि बांग्लादेश की सेना चीन की एक कंपनी से जमीन से हवा में मार करने वाली बैलिस्टिक मिसाइलें खरीदने की तैयारी कर रही है.
पाकिस्तान के विदेश मंत्री ने इसी महीने दावा किया कि पाकिस्तान ने फ्रांस निर्मित राफेल लड़ाकू विमानों सहित कई भारतीय विमानों को मार गिराने के लिए, पीएल-15ई मिसाइलों से लैस चीन के जे-10सी विमानों का इस्तेमाल किया था.
इस खबर से चीन की चेंगदू एयरक्राफ्ट कॉरपोरेशन (सीएसी) के शेयरों में भी उछाल आया. सीएसी जे-10सी बनाती है. सीएसी पाकिस्तान के इस्तेमाल किए जाने वाले जेएफ-17 थंडर लड़ाकू विमानों को संयुक्त रूप से डेवलप करती है.
चीन के सरकारी समाचार पत्र ग्लोबल टाइम्स ने 20 मई को कहा कि चीन मलेशिया में आयोजित लैंगकावी अंतरराष्ट्रीय समुद्री और एयरोस्पेस (एलआईएमए) प्रदर्शनी में अपने टॉप एयर प्रोडक्ट का प्रदर्शन कर रहा है. इसमें जे-10सीई और एफसी-31 लड़ाकू जेट भी शामिल हैं.
इसमें कहा गया कि जे-10सीई ने हाल ही में हाल ही में युद्ध में सफलता हासिल की है. हालांकि इसमें भारत और पाकिस्तान का जिक्र नहीं किया गया.
रिपोर्ट में चीन के सैन्य मामलों के एक्सपर्ट फू चियानशाओ के हवाले से कहा गया, “इस कार्यक्रम में जे-10सीई का मॉडल का प्रदर्शन करना विमान के निर्यात को बढ़ावा देने की चीन की इच्छा को दिखाता है. कई देश अपने विमान बेड़े के आधुनिकीकरण के लिए इसे खरीदने पर विचार कर सकते हैं.”
इसके साथ ही चीन के सरकारी ब्रॉडकास्टर चाइना सेंट्रल टेलीविजन ने भी स्पष्ट रूप से पुष्टि की है कि हालिया संघर्ष में पाकिस्तान ने जे-10सीई का इस्तेमाल किया था.
हालांकि भारत ने पाकिस्तान के इस दावे की पुष्टि या खंडन करने से परहेज किया है कि उसके लड़ाकू विमानों को मार गिराया गया है.
लेकिन चीनी लड़ाकू विमानों के कारण पूरे एशिया में दिलचस्पी और चिंता पैदा होने की संभावना है, खासकर ताइवान में.
पाकिस्तान में चीन के निवेश और परियोजनाओं का क्या होगा?

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क्षेत्र में जब चीन के निवेश की बात आती है खासकर चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (सीपीईसी) और ग्वादर पोर्ट की, तो चीन पाकिस्तान के बुनियादी ढांचे में अपने अरबों डॉलर के निवेश के लिए स्थिरता और सुरक्षा बनाए रखने को प्राथमिकता देगा.
सीपीईसी चीन की बेल्ट एंड रोड पहल का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. लेकिन बलूच चरमपंथियों के चीन के इंजीनियरों पर हमले और पाकिस्तान में व्यापक राजनीतिक और आर्थिक अस्थिरता सहित कई मुद्दों के कारण प्रमुख परियोजनाएं अभी तक पूरी नहीं हुई हैं.
हालांकि, चीन, पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान ने सीपीईसी का काबुल तक विस्तार करने पर सहमति जताई है. इसके बाद कुछ भारतीय समाचार आउटलेट्स ने एशिया में शक्ति का केंद्र बदलने पर चिंता जताई.
चीन पाकिस्तान में अन्य प्रमुख द्विपक्षीय वेंचर्स खासकर जल सुरक्षा से संबंधित को भी तेजी से आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहा है.
22 अप्रैल को कश्मीर के पहलगाम में हुए चरमपंथी हमले के बाद भारत की ओर से सिंधु जल संधि को निलंबित कर दिया गया. इसके बाद चीन ने पाकिस्तान की मोहमंद बांध परियोजना पर काम तेज़ कर दिया है.
यह कदम दक्षिण एशियाई क्षेत्र में बढ़ती हलचलों को उजागर करता है, जिसमें जल सुरक्षा रणनीतिक प्रभाव की एक नई धुरी के रूप में उभर रही है. पाकिस्तान के द एक्सप्रेस ट्रिब्यून ने 19 मई की रिपोर्ट में इसका जिक्र किया है.
चीन ने पाकिस्तान में एक अन्य जलविद्युत परियोजना डायमर-बाशा बांध के लिए भी फंड किया है. भारत की लंबे समय से चली आ रही आपत्तियों के बावजूद पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में इसे बनाया जाना प्रस्तावित है.
भारत और चीन के रिश्ते कैसे आगे बढ़ेंगें?

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चीन पहले से ही पाकिस्तान का सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्ता है.
चीन के विदेश मंत्री वांग यी और पाकिस्तान के विदेश मंत्री इसहाक डार के बीच हाल ही में एक बैठक हुई. इस बैठक के बाद चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा, “चीन-पाकिस्तान के बीच सहयोग किसी तीसरे पक्ष पर केंद्रित नहीं है.”
हालांकि, वांग यी ने बातचीत के माध्यम से भारत और पाकिस्तान से मतभेद सुलझाने पर जोर दिया.
इसके बाद भारतीय मीडिया में चर्चा हुई कि चीन, भारत के साथ व्यापार और कूटनीतिक संबंधों को फिर से बनाने की कोशिश कर रहा है.
भारतीय मीडिया से जुड़े एक्सपर्ट्स का कहना है कि भारत को सुरक्षा के लिहाज से दो सैन्य योजनाओं पर काम करना चाहिए. इसकी वजह संघर्ष के दौरान पाकिस्तान को चीन से मिलने वाली सहायता को बताया गया.
भारत के वरिष्ठ पत्रकार शेखर गुप्ता ने 17 मई को अपने शो ‘नेशनल इंटरेस्ट’ में चेतावनी देते हुए कहा कि वो, “चीन का भारत के साथ स्थाई शांति बनाने का कोई कारण नहीं देखते हैं, क्योंकि पाकिस्तान हमें असंतुलित रखने के लिए उनका सस्ता साधन है.”
गुप्ता ने तर्क दिया कि भारत को रक्षा पर अधिक खर्च करना चाहिए. उन्होंने कहा, “भारत को चीन और पाकिस्तान के बीच त्रिकोणीय स्थिति से बाहर निकलने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए.”
चीन के सरकारी मीडिया ने हालांकि इस तरह के तर्कों को खारिज कर दिया. ग्लोबल टाइम्स ने 20 मई को अपने संपादकीय में भारतीय मीडिया पर “चीन की कथित संलिप्तता के दावों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने का आरोप लगाया.”
ग्लोबल टाइम्स ने इन दावों को हास्यास्पद और खतरनाक बताया.
ग्लोबल टाइम्स के संपादकीय में लिखा गया, “भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के बाद कश्मीर मुद्दा दोनों देशों के संबंधों के बीच परेशानी का सबब रहा है. चीन को इन सबके बीच नहीं घसीटा जाना चाहिए.”
बड़े पैमाने पर देखें तो चीन के प्रभाव को साधने के लिए भारत यूरोप के देशों के साथ पार्टनरशिप मजबूत करने पर भी विचार कर सकता है.
भारत ने 20 मई को अमेरिकी अधिकारियों के साथ हुई एक वार्ता में विमान तकनीक को लेकर भविष्य में सहयोग की योजनाओं पर चर्चा की.
जहां तक सवाल भारत और चीन का है दोनों देश प्रतिस्पर्धा और चुनौतियों के बीच धीरे-धीरे विश्वास कायम करने के तरीकों पर ध्यान केंद्रित करना जारी रख सकते हैं.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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