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लखनऊ: उत्तर प्रदेश के कानपुर में बंद पड़े हिंदू मंदिरों को अवैध कब्जों से मुक्त कराने की मुहिम ने जोर पकड़ लिया है। शहर की मेयर प्रमिला पांडेय ने 21 दिसंबर 2024 को पुलिस फोर्स के साथ मुस्लिम बहुल इलाकों में स्थित 5 मंदिरों का दौरा किया। इन मंदिरों की बदहाल स्थिति देखकर उन्होंने नाराजगी जताई और साफ-सफाई शुरू करवाने के आदेश दिए। साथ ही, उन्होंने इन मंदिरों में नियमित पूजा-अर्चना शुरू करने की घोषणा की। ऐसे कुल कब्ज़ा प्रभावित मंदिरों की संख्या 100 से अधिक बताई जा रही है।

मेयर के दौरे में यह सामने आया कि इन मंदिरों में से कुछ को अवैध रूप से कब्जे में ले लिया गया था। उदाहरण के लिए, राम जानकी मंदिर के पीछे बिरयानी बनाई जा रही थी। वहीं, कुछ मंदिरों को कूड़ाघर में तब्दील कर दिया गया था। प्रशासन ने इन कब्जों को हटाने का काम शुरू कर दिया है और आगे भी कार्रवाई जारी रहेगी। राम जानकी मंदिर के पास रहने वाले नफीस ने दावा किया कि मंदिर की देखभाल वही लोग कर रहे हैं। उनका कहना था कि 1992 के दंगों में उन्होंने मंदिर को बचाया था। हालांकि, यह तर्क प्रशासन के लिए स्वीकार्य नहीं है क्योंकि मंदिरों की दुर्दशा और अवैध कब्जों की स्थिति स्पष्ट रूप से देखी गई।

राम जानकी मंदिर के पीछे बिरयानी बनाने का काम चल रहा था। अवैध कब्जों ने इसके अधिकांश हिस्से पर कब्जा जमा लिया था। वहीं, राधा कृष्ण मंदिर बेहद जर्जर हालत में मिला। महादेव शिव मंदिर में शिवलिंग के अवशेष ही बचे पाए गए। दूसरा राधा कृष्ण मंदिर शटर बंद था और अंदर कूड़ा भरा हुआ मिला। मेयर प्रमिला पांडेय ने घोषणा की कि सभी मंदिरों का जीर्णोद्धार करवाया जाएगा और वहाँ पूजा-अर्चना फिर से शुरू होगी। साथ ही, उन्होंने कहा कि मंदिरों में से गायब हुई मूर्तियों की भी जाँच करवाई जाएगी। प्रशासन की इस कार्रवाई के बाद मुस्लिम पक्ष खुद को कब्जेदार के बजाय मंदिरों का रखवाला बताने में जुट गया है। उनका कहना है कि वे मंदिरों की देखभाल कर रहे थे, लेकिन मंदिरों की बदहाल स्थिति उनके दावे पर सवाल खड़े करती है।

इन घटनाओं ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि मुस्लिम बहुल इलाकों में हिंदू मंदिरों की ऐसी दुर्दशा क्यों देखने को मिल रही है? क्या यह इस बात का संकेत नहीं है कि जहाँ मुस्लिम आबादी अधिक होती है, वहाँ अन्य समुदायों के लिए स्थान सिकुड़ने लगता है? ये बंद पड़े मंदिर यह भी बताते हैं कि यहाँ कभी हिंदू समुदाय बसता था, पूजा-पाठ करता था, लेकिन मुस्लिम आबादी के बढ़ते प्रभाव के कारण उन्हें अपनी जान बचाकर, सुरक्षा के लिए पलायन करना पड़ा।

आज हालत यह है कि इन मंदिरों के प्रांगण में कहीं बिरयानी बन रही है, तो कहीं उन्हें कूड़ाघर में बदल दिया गया है। यह स्थिति केवल कानपुर तक सीमित नहीं है, बल्कि यह समस्या वैश्विक स्तर पर देखी जा सकती है। इतिहास गवाह है कि जब भी किसी क्षेत्र में मुस्लिम आबादी बढ़ी है, वहाँ अन्य समुदायों को पीछे हटना पड़ा है। मिस्र, यूनान और पारसी समुदायों के उदाहरण इस सच्चाई को साबित करते हैं।

कानपुर में शुरू हुई यह मुहिम केवल मंदिरों को कब्जे से मुक्त कराने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक सांस्कृतिक पुनर्जागरण का प्रतीक है। यह घटना गैर-मुस्लिम समुदायों के लिए एक चेतावनी भी है कि यदि वे समय रहते सतर्क नहीं हुए, तो उनकी सभ्यता और संस्कृति खतरे में पड़ सकती है। प्रशासन की यह कार्रवाई एक महत्वपूर्ण कदम है, लेकिन यह मुद्दा देशव्यापी बहस और जागरूकता की माँग करता है।

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