Source :- BBC INDIA
इस महीने तालिबान कैबिनेट के दो प्रमुख मंत्री काबुल के एक मदरसे में हुए कार्यक्रम के दौरान एक दूसरे पर परोक्ष रूप से निशाना साधते हुए दिखाई दिए. इस घटना ने तालिबान सरकार के भीतर गहरे अंदरूनी विभाजन को सामने ला दिया.
इस कार्यक्रम में हक़्क़ानी ग्रुप के नेता और गृह मंत्री सिराजुद्दीन हक़्क़ानी ने शीर्ष तालिबान नेता हिबतुल्लाह अख़ुंदज़ादा के क़रीबी माने जाने वाले उच्च शिक्षा मंत्री निदा मोहम्मद नदीम पर ‘संकीर्ण मानसिकता’ का आरोप लगाया.
सूत्रों ने बीबीसी से इस बात की पुष्टि की कि कंधार में तालिबान नेता के साथ उनकी ‘असफल’ मीटिंग के बाद हक़्क़ानी ने काबुल के कार्यक्रम में शिरकत की थी.
इस कार्यक्रम में निदा मोहम्मद नदीम ने तालिबान विरोधियों की बहुत तल्ख़ लहज़े में आलोचना की थी. नदीम ने उन्हें ‘अल्लाह और इस्लामिक व्यवस्था के दुश्मन, काफ़िरों के ग़ुलाम, धर्म छोड़ने वाले और काफ़िर’ क़रार देते हुए कहा कि ‘इन लोगों से केवल मुल्ला और धार्मिक गुरु ही लड़’ सकते हैं.
सिराजुद्दीन हक़्क़ानी अफ़ग़ानिस्तान के नामी परिवार से आते हैं. उनके पिता जलालुद्दीन हक़्क़ानी का तालिबान नेतृत्व में ख़ासा दख़ल था.
ग़ौरतलब है कि 11 दिसंबर को सिराजुद्दीन के चाचा और तालिबान सरकार में शरणार्थी मामलों के मंत्री ख़लीलुर रहमान हक़्क़ानी की काबुल में हुए एक ‘आत्मघाती’ हमले में मौत हो गई है.
लेकिन मदरसे में हुआ ये कार्यक्रम खलील हक़्क़ानी की मौत से पहले हो चुका था.
उस कार्यक्रम में उच्च शिक्षा मंत्री नदीम का भाषण ख़त्म हुआ.
उसके बाद सिराजुद्दीन हक़्क़ानी ने अपने भाषण में कहा, “हमें लोगों के बारे में कड़े शब्दों में नहीं बोलना चाहिए या उन्हें भ्रष्ट कहकर ख़ारिज नहीं कर देना चाहिए. हमारे ऊपर भ्रष्ट लोगों को सुधारने की ज़िम्मेदारी है. लोग भ्रष्ट और काफ़िर हो जाते हैं, इसका कारण हमारी संकीर्ण मानसिकता और कमज़ोरी है.”
कंधार में जन्मे निदा मोहम्मद नदीम को तालिबान में एक प्रभावशाली शख़्सियत माना जाता है, हालांकि जंग के मैदान में उनकी कोई ख़ास भूमिका नहीं रही है.
उन्हें काबुल में हिबतुल्लाह अख़ुंदज़ादा का प्रतिनिधि और शिक्षा में महिलाओं पर प्रतिबंध लगाने के तालिबान नेता के फ़ैसले को लागू करने में अहम भूमिका निभाने वाला शख़्स माना जाता है.
दूसरी तरफ़, सिराजुद्दीन हक़्क़ानी मार्च 2022 में पहली बार सार्वजनिक तौर पर दिखने वाले उन तालिबान नेताओं में से हैं जो बेबाकी से अपनी राय रखते हैं.
समय के साथ उनके लहज़े में तल्ख़ी बढ़ती गई. उन्होंने तालिबान नेतृत्व और ‘कंधार सर्किल’ के नाम से जाने जाने वाले लोगों पर निशाना साधा है.
हक़्क़ानी के भाषण पर मीडिया में काफ़ी प्रतिक्रिया आ रही है.
अपने भाषण में उन्होंने चेतावनी दी थी कि हालात यहां तक पहुंच गए हैं जहां तालिबान सरकार के पास लोगों के सवालों के जवाब नहीं हैं. अपनी स्पीच में हक़्क़ानी ने अपने सहयोगियों पर ‘इस्लाम पर एकाधिकार करने और उसे बदनाम’ करने का आरोप लगाया.
सिराजुद्दीन हक़्क़ानी ने कहा, “हमें ग़लतफहमी नहीं पालनी चाहिए कि अगर हम सत्ता में हैं तो जनता को हमारे हर शब्द को मानना चाहिए वरना ज़मीन आसमान एक हो जाएगा. हमें धर्म की ओर से एकाधिकारवादी तरीक़े से पेश नहीं होना चाहिए, हमें खुद को धर्म का स्वयंभू प्रतिनिधि नहीं कहना चाहिए. धर्म की रक्षा के लिए अफ़ग़ानों ने दशकों तक क़ुर्बानियां दी है.”
महिला शिक्षा पर पाबंदी पर मतभेद
स्वास्थ्य क्षेत्र में महिलाओं पर पाबंदी के बाद तालिबान सरकार के कैबिनेट की एक बैठक कंधार में हुई थी, जिसमें तालिबान नेता हिबतुल्लाह अख़ुंदज़ादा भी शामिल हुए थे.
मीडिया रिपोर्टों में कहा गया है कि इस मीटिंग में विवादित फ़ैसले पर भी चर्चा हुई.
सूत्रों ने बीबीसी को बताया कि सिराजुद्दीन हक़्क़ानी दो दिन तक कंधार में रहे और तालिबान नेता के साथ उनकी बातचीत हुई लेकिन दोनों पक्षों में ‘सहमति नहीं’ बन पाई.
कई सूत्र बताते हैं कि काबुल के नेता के तौर पर जाने जाने वाले हक़्क़ानी, हिबतुल्लाह अख़ुंदज़ादा के धार्मिक तर्कों के सामने उनकी आलोचना नहीं कर पाए. इसलिए काबुल लौटने के बाद उन्होंने सार्वजनिक मीटिंगों और भाषणों में अपनी आलोचना और असंतोष को ज़ाहिर करना शुरू कर दिया.
कुछ सूत्रों का कहना है कि काबुल में अख़ुंदज़ादा ने जिन लोगों को नियुक्त किया है उनके और हक़्क़ानी के क़रीबियों के बीच ‘अविश्वास’ पैदा हो गया है.
सूत्र बताते हैं कि अख़ुंदज़ादा कई मामलों में शक्तियों का एकतरफ़ा इस्तेमाल करते रहे हैं, चाहे पूरे अफ़ग़ानिस्तान में प्रमुख पदों पर नियुक्ति का मामला हो या सुरक्षा बलों को अपने मातहत करने का मामला हो.
एक महीने पहले ही उन्होंने गृह मंत्रालय, रक्षा मंत्रालय और तालिबान इंटेलिजेंस सेंटर से सैन्य उपकरणों के वितरण और इस्तेमाल के सारे अधिकार ले लिये थे.
कई सूत्रों ने नाम न बताने की शर्त पर बीबीसी से कहा कि महिला शिक्षा और हिबतुल्लाह अख़ुंदज़ादा की ओर से सत्ता पर एकतरफ़ा पकड़ बनाए जाने को लेकर काबुल और कंधार के तालिबान नेताओं में ‘मतभेद’ हैं.
इन सूत्रों का कहना है कि तालिबान सरकार में हक़्क़ानी के अलावा, रक्षा मंत्री मोहम्मद याक़ुब मुजाहिद, विदेश मंत्री आमिर ख़ान मुत्तक़ी, उप प्रधानमंत्री अब्दुल ग़नी बरादार और उप विदेश मंत्री अब्बास स्तानिकज़ाई इस बात से चिंतित हैं कि तालिबान नेता के ‘कठोर बर्ताव’ से तालिबान सरकार ‘कमज़ोर होगी या ढह’ जाएगी.
जानकारों का कहना है कि इनके अलावा अन्य असंतुष्ट तालिबान सदस्य डर के मारे अख़ुंदज़ादा की सीधी आलोचना नहीं करते हैं और अपने ऊपर ‘अमीर की नाफरमानी’ का आरोप नहीं लगने देना चाहते, जोकि उनके लिए ‘ख़तरनाक़’ नतीजे वाला हो सकता है. हालांकि असंतुष्टों की संख्या ‘कम नहीं’ है.
इसके लिए उन्हें अलग थलग किया जा सकता है, कंधार बुलाया जा सकता है या पद से हटाया जा सकता है और बग़ावत का आरोप लगाया जा सकता है.
तालिबान नेता के आलोचक
तालिबान मामलों के विश्लेषक एंथनी जुस्तुसी कहते हैं कि सिराजुद्दीन हक़्क़ानी की तालिबान अमीर की आलोचना नई नहीं है, ‘लेकिन बाकी लोग कड़े लहज़े में अमीर की आलोचना करने से बचने लगे हैं.’
जुस्तुसी के मुताबिक़, “2023 की शुरुआत में तालिबान के वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा हिबतुल्लाह अखुंदज़ादा की काफ़ी आलोचना होती थी. इसका कारण था कि सक्रिय तालिबान नेताओं ने कई अधिकारियों को पद से हटाने के लिए असंतुष्टों के साथ हाथ मिला लिया था.”
“उस समय आम तौर पर अलग थलग रहे अमीर को जब इसका पता चला तो उन्होंने कार्रवाई की. उन्होंने खुद प्रमुख लोगों की नियुक्ति की. तालिबान सरकार का नेतृत्व करने वाली परिषद में साज़िशकर्ताओं पर अंकुश लगाकर उन्होंने ने इन कोशिशों को विफल कर दिया.”
“अमीर ने अपनी आलोचना से सहयोगियों को सावधान किया. मुल्ला याक़ूब जैसे लोगों ने उनकी चेतावनी पर ध्यान दिया और तबसे सार्वजनिक मंचों पर ऐसी कोई बात नहीं कही.”
लेकिन जुस्तुसी के अनुसार, सिराजुद्दीन हक़्क़ानी इसके अपवाद हैं.
हक़्क़ानी की वैचारिक पृष्ठभूमि तालिबान की बजाय मुस्लिम ब्रदरहुड की है और उनका तर्क है कि केवल यूनिवर्सिटी से शिक्षा प्राप्त लोगों को ही सरकार पदों पर नियुक्त किया जाना चाहिए.
जुस्तुसी कहते हैं, “इसके अलावा सिराजुद्दीन और अमीर में और भी मतभेद हैं, जैसे कि सिराजुद्दीन आईएसआईएस-के के ख़िलाफ़ व्यापक अभियान के विरोधी हैं, वह पाकिस्तान के साथ रिश्ते सुधारना चाहते हैं.”
हक़्क़ानी पर एक करोड़ डॉलर का इनाम
हालांकि पश्चिमी शक्तियों के साथ क़रीबी संबंध की अपनी इच्छा को उन्होंने कभी सार्वजनिक रूप से ज़ाहिर नहीं किया लेकिन पश्चिमी अधिकारियों के साथ कई मीटिगों से उन्होंने अपना झुकाव दिखा दिया है.
उन्हें खाड़ी के देशों का समर्थन भी हासिल है, ख़ासकर संयुक्त अरब अमीरात का.
जुस्तुसी कहते हैं, “माना जाता है कि अमीर के क़रीबी लोग अमेरिकी राजनयिकों और ख़ुफ़िया अधिकारियों के संपर्क में है.”
यह सब ऐसे समय हो रहा है जब अमेरिकी ख़ुफ़िया एजेंसी हक़्क़ानी को पकड़ने की कोशिश में है और उनके ऊपर एक करोड़ डॉलर का इनाम रख रखा है.
हाल ही में सिराजुद्दीन हक़्क़ानी पर एक लेख में न्यूयॉर्क टाइम्स ने पूछा, “क्या अफ़ग़ानिस्तान के सबसे मुखर नेता बदलाव की एक नई उम्मीद बनकर उभरे हैं?”
तीन सालों में ऐसा पहली बार हुआ जब सिराजुद्दीन हक़्क़ानी ने एक अमेरिकी पत्रकार को उनके साथ वक़्त गुजारने की अनुमति दी और सिर्फ अपनी दिनचर्या ही नहीं दिखाई बल्कि चार दशकों के अपने अनुभव भी साझा किया.
हक़्क़ानी नेटवर्क, प्रभाव और वैधता की चुनौतियां
सिराजुद्दीन हक़्क़ानी का मुख्य गढ़ दक्षिणपूर्वी प्रांत खोस्त, पक्तिया और लोगार हैं. यहां ग़िलज़ई और कारलानी पश्तून बहुसंख्यक हैं.
हालांकि हक़्क़ानी कारलानी पश्तून के ज़ारदान कबीले से आते हैं. शायद यही कारण है कि कुछ पश्चिमी विश्लेषक उन्हें दुर्रानी पश्तूनों के मुक़ाबले गिलज़ाई पश्तूनों का प्रतिनिधि मानते हैं. सत्ता और दबदबे का इसका ऐतिहासिक संदर्भ है.
तालिबान नेता हिबदुल्लाह अख़ुदज़ादा दुर्रानी पश्तूनों के नूरज़ई कबीले से आते हैं, जो कंधार, हेलमंड और फ़राह प्रांतों में बहुसंख्यक हैं.
एक और अहम बात है कि हक़्क़ानी को मजहबी वैधता हासिल है, जिसका तालिबान के अंदर ख़ास महत्व है, और तालिबान के मजहबी अहमियत को चुनौती देना उनके लिए आसान काम नहीं है. हालांकि उनके पिता जलालुद्दीन हक़्क़ानी का उनके अनुयायियों में काफ़ी प्रभाव था.
एंथनी जुस्तुसी कहते हैं, “ये तो स्पष्ट है कि दक्षिणी अफ़ग़ानिस्तान पर हिबतुल्लाह अख़ुंदज़ादा का प्रभाव है लेकिन सिराजुद्दीन हक़्क़ानी के समर्थन को आंक पाना मुश्किल है.”
वह कहते हैं, “उनके गढ़ माने जाने वाले दक्षिणपूर्वी प्रांतों में बहुत से लोग आम मुद्दों पर उनसे सहमत हैं लेकिन व्यक्तिगत रूप से उनपर भरोसा नहीं करते. काबुल में जंग के समय में तालिबान नेता के रूप में उनका अतीत अभी भी पीछा कर रहा है. कई लोग अमीर के आलोचक हैं, ख़ासकर महिलाएं, लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि वे सिराजुद्दीन का समर्थन करेंगे.”
पिछले दो दशकों में हुए कुछ ख़ौफ़नाक हमलों के पीछे सिराजुद्दीन हक़्क़ानी का हाथ माना गया था, ख़ासकर काबुल में.
लेकिन कुछ पश्चिमी विश्लेषकों के अनुसार, अब वह अफ़ग़ानिस्तान के ‘ठहरे हुए हालात’ में बदलाव की ‘उम्मीद’ बनकर उभरे हैं.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.
SOURCE : BBC NEWS