Source :- BBC INDIA
“दिल्ली यूनिवर्सिटी में जब एडमिशन लेने जाते हैं तो राजस्थान के जाट समाज को दिल्ली के कॉलेज में आरक्षण मिलता है. दिल्ली के जाट समाज को दिल्ली के कॉलेज में आरक्षण नहीं मिलता.”
दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने सोमवार को यह बात कही.
जाट आरक्षण के मुद्दे पर अरविंद केजरीवाल ने गुरुवार को प्रेस कॉन्फ़्रेंस की. इस दौरान उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री और गृह मंत्री ने चार बार जाट समाज को आश्वासन दिया लेकिन आरक्षण नहीं दिया.
भारतीय जनता पार्टी कह रही है कि अरविंद केजरीवाल को चुनाव से 25 दिन पहले जाट समाज की याद क्यों आ रही है?
दिल्ली चुनाव के लिए वोटिंग में एक महीने से भी कम समय बचा है. चुनाव से पहले इस मुद्दे के आने पर कुछ सवाल भी उठ रहे हैं.
अरविंद केजरीवाल अभी दिल्ली में जाट आरक्षण के मुद्दे को क्यों उठा रहे हैं? दिल्ली की राजनीति में जाट समाज कितना प्रभावी है? क्या यह मुद्दा दिल्ली चुनाव में असरदार होगा?
बीजेपी ने क्या कहा?
अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के जाटों को केंद्र की ओबीसी लिस्ट में शामिल करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखा है. केजरीवाल ने पत्र में पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की जाट समाज के प्रतिनिधियों से मुलाक़ात का ज़िक्र किया.
केजरीवाल का दावा है कि इन मुलाक़ातों में केंद्र सरकार ने दिल्ली के जाट समाज को आरक्षण का आश्वासन दिया था. केजरीवाल के मुताबिक़,
- 26 मार्च 2015: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली के जाट समाज के प्रतिनिधियों से अपने घर में मुलाक़ात की.
- 8 फ़रवरी 2017: अमित शाह ने यूपी चुनाव से पहले दिल्ली और देश के जाट नेताओं की मीटिंग बुलाई.
- 2019: लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी सांसद प्रवेश वर्मा के आवास पर अमित शाह ने जाट नेताओं से मुलाक़ात की.
- 2022: दिल्ली में सैकड़ों जाट नेताओं से गृह मंत्री अमित शाह ने मुलाक़ात की.
केजरीवाल का कहना है कि केंद्र सरकार की वादा-ख़िलाफ़ी के कारण दिल्ली के हज़ारों जाट युवाओं के साथ अन्याय हो रहा है.
बीजेपी की ओर से केजरीवाल के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ रहे प्रवेश वर्मा ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस की. पश्चिमी दिल्ली लोकसभा सीट से दो बार के सांसद प्रवेश वर्मा बीजेपी का प्रमुख जाट चेहरा हैं.
प्रवेश वर्मा का दावा है कि आप सरकार में मंत्री रहे कैलाश गहलोत ने इस मुद्दे पर अरविंद केजरीवाल को दो बार पत्र लिखा लेकिन केजरीवाल ने कोई जवाब नहीं दिया.
प्रवेश वर्मा ने कहा, “राज्य सरकार पहले प्रस्ताव पास करती है और उस प्रस्ताव को नेशनल ओबीसी कमीशन में भेजती है. पिछले दस सालों में केजरीवाल ने कई बार विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया. इसमें उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी और एलजी साहब को भर-भरकर अपशब्द बोले. एक बार भी उन्होंने जाटों को केंद्रीय ओबीसी लिस्ट में डालने का प्रस्ताव पास नहीं किया.”
प्रवेश वर्मा का कहना है कि आज केजरीवाल जाटों के नाम पर राजनीति कर रहे हैं और यह शर्मनाक है.
दिल्ली की राजनीति में जाट
दिल्ली की बसावट में सीमावर्ती इलाक़ों में ग्रामीण आबादी रहती है. इनमें जाटों के गांव भी शामिल हैं. खेती-किसानी इन लोगों का मुख्य पेशा है.
दिल्ली की 70 में से लगभग 10 सीटों पर जाट अपना असर रखते हैं. ये सीटें हैं- महरौली, नजफ़गढ़, बिजवासन, पालम, मटियाला, विकासपुरी, नांगलोई जाट, नरेला, रिठाला और मुंडका.
एक समय था जब इन जाट बहुल सीटों पर बीजेपी की अच्छी पकड़ थी. फिर ये सीटें आम आदमी पार्टी के पास चली गईं.
2013 के चुनाव में 10 सीटों में आठ सीटें बीजेपी को, एक सीट आप को और एक अन्य को मिली थी. 2015 के बाद माहौल पूरी तरह से आम आदमी पार्टी के पक्ष में हो गया.
2015 और 2020 के चुनावों में आप ने जाट बहुल सभी 10 सीटें जीतीं और बीजेपी-कांग्रेस का खाता नहीं खुला.
वरिष्ठ पत्रकार शरद गुप्ता वर्तमान परिस्थितियों में इसे अरविंद केजरीवाल की छटपटाहट से जोड़कर देखते हैं.
शरद गुप्ता बीबीसी से बातचीत में कहते हैं, “जब से आम आदमी पार्टी बनी है तब से जाति और आरक्षण उनके एजेंडे में नहीं था. आप पहले जाति की जगह सुशासन की बात करती थी. मुझे लगता है केजरीवाल का जनता से जुड़े मुद्दों पर भरोसा कम हुआ है. जो मुफ़्त की चीज़ें केजरीवाल बांट रहे थे, आज लगभग सभी पार्टियां उन चीज़ों का वादा कर रही हैं. वादे के साथ वो पार्टियां यह चीज़ें दे भी रही हैं.”
हालांकि, लोकसभा चुनाव में जाट मतदाता बीजेपी के साथ खड़े हुए दिखाई देते हैं. पिछले दो चुनाव में बीजेपी ने दिल्ली की सभी सात लोकसभा सीट जीती हैं. इसमें जाट बहुल पश्चिमी दिल्ली की सीट भी शामिल है.
दिल्ली की मौजूदा राजनीति में प्रवेश वर्मा, कैलाश गहलोत और रघुविंदर शौकीन प्रमुख जाट चेहरे हैं. बीजेपी ने बिजवासन से कैलाश गहलोत को टिकट दिया है. गहलोत बीजेपी से पहले नजफ़गढ़ से आम आदमी पार्टी से दो बार (2015 और 2020) के विधायक थे. इस दौरान वह केजरीवाल की कैबिनेट का हिस्सा भी थे.
नवंबर, 2024 में कैलाश गहलोत आप से इस्तीफ़ा देकर बीजेपी में शामिल हुए. इसके बाद दिल्ली कैबिनट में रघुविंदर शौकीन को मंत्री बनाया गया. रघुविंदर शौकीन दिल्ली की नांगलोई सीट से दो बार (2020 और 2015) के विधायक हैं. 2015 से पहले शौकीन बीजेपी के नेता थे.
दिल्ली की राजनीति में जाट एक समय ताक़तवर राजनीतिक शक्ति हुआ करते थे. 1996 में साहिब सिंह वर्मा के रूप में दिल्ली को पहला जाट मुख्यमंत्री मिला. समय के साथ दिल्ली में शहरी इलाक़े बढ़ते चले गए और राजनीति में जाटों का प्रभाव कम होता चला गया.
एक और वजह परिसीमन है. परिसीमन के कारण नए निर्वाचन क्षेत्र बने और इस वजह से जाटों की राजनीति पर असर पड़ा.
उदाहरण के लिए साल 2008 तक दिल्ली में बाहरी दिल्ली लोकसभा सीट थी. इस सीट पर जाट समाज से आने वाले दिल्ली के मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा साल 1999 में जीते थे. इस सीट पर जाट मतदाता निर्णायक भूमिका में थे.
2008 में यह सीट तीन निर्वाचन क्षेत्रों में बंट गई. पश्चिमी दिल्ली और उत्तर-पश्चिमी दिल्ली नई सीटें बनीं. एक हिस्सा पहले से मौजूद दक्षिणी दिल्ली सीट में शामिल हो गया. इसके बाद नई सीटों पर जाटों का उतना प्रभाव नहीं रह गया जितना बाहरी दिल्ली सीट पर था.
उत्तर-पश्चिमी सीट पर जाटों की अच्छी आबादी है लेकिन यह आरक्षित सीट है. दक्षिणी दिल्ली में जनसंख्या में बदलाव के कारण गुर्जर समाज का प्रभाव बढ़ गया. 2014 से लेकर अब तक इस सीट पर गुर्जर उम्मीदवार जीते हैं. पश्चिमी दिल्ली लोकसभा सीट पर 2014 से जाट समाज के सांसद हैं.
चुनाव में क्या असर होगा?
आम आदमी पार्टी के 70 उम्मीदवारों में आठ जाट हैं. बीजेपी ने अभी सिर्फ़ 29 उम्मीदवार घोषित किए हैं. इनमें चार प्रत्याशी जाट हैं. कांग्रेस ने अभी तक 48 उम्मीदवारों के नाम का एलान किया है. इनमें तीन जाट उम्मीदवार भी शामिल हैं.
जाट समाज अरविंद केजरीवाल की मांग को कैसे देख रहा है? यशपाल मलिक अखिल भारतीय जाट आरक्षण संघर्ष समिति के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं.
यशपाल मलिक का दावा है कि दिल्ली की कम से कम चालीस सीटों पर जाट वोटर प्रभावी हैं.
मलिक कहते हैं, “जब 2014 में जाटों को केंद्रीय पिछड़ा वर्ग सूची में डाला गया तो हरियाणा और पश्चिमी यूपी के हज़ारों बच्चों ने दिल्ली यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया था. आम जाट वोटर पर इसका सकारात्मक असर पड़ेगा. मैं जाट समाज के कई सोशल मीडिया ग्रुप में जुड़ा हूं और वहां इसकी चर्चा हो रही है. निश्चित रूप से अरविंद केजरीवाल को इससे फ़ायदा मिल सकता है क्योंकि उन्होंने इसे चुनावी मुद्दा बनाया है.”
बाहरी दिल्ली में बीजेपी जाट और दूसरी किसान जातियों को लुभाने की भरपूर कोशिश कर रही है. केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान पिछले एक पखवाड़े में दिल्ली देहात के लोगों से दो बार मुलाक़ात कर चुके हैं.
शिवराज सिंह चौहान किसानों के मुद्दों पर दिल्ली की मुख्यमंत्री आतिशी को पत्र लिख चुके हैं. शिवराज सिंह चौहान का कहना है कि दिल्ली में आप सरकार को किसानों के लिए केंद्र सरकार की योजनाएं लागू करनी चाहिए.
सीएम आतिशी ने इसका जवाब देते हुए कहा था, “बीजेपी का किसानों के बारे में बात करना वैसा ही है जैसे दाऊद अहिंसा पर प्रवचन दे रहा हो. किसानों से राजनीति करना बंद करो. बीजेपी राज में किसानों पर गोलियां और लाठियां चलाई गईं.”
शरद गुप्ता का मानना है कि जाट आरक्षण का मुद्दा सीधे चुनाव पर असर डालेगा.
शरद गुप्ता बताते हैं, “चुनाव के समय हर मुद्दे का असर जनता पर होता है क्योंकि आम दिनों में आदमी न तो उतना सक्रिय होता है और न ही इतने ज़ोर-शोर से मुद्दों को उठाया जाता है. अभी आप के पास कोई बड़ा जाट चेहरा नहीं है तो ऐसे करके वो चेहरे की कमी को दूर करने की कोशिश भी कर रही है.”
हालांकि वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद जोशी का कहना है कि यह सिर्फ़ चुनावी मुद्दा बनकर रह जाएगा.
प्रमोद जोशी कहते हैं, “जाट को केंद्र की ओबीसी लिस्ट में आरक्षण मिलना आसान नहीं है क्योंकि केंद्र की तरफ़ से कोई सुगबुगाहट देखने को नहीं मिल रही है. मुझे नहीं लगता कि केजरीवाल को इस मुद्दे से कोई बहुत फ़ायदा मिलेगा. पिछले कुछ दिनों से केजरीवाल लगातार नए मुद्दे ला रहे हैं और यह भी उसी रणनीति का एक हिस्सा है. दस साल में केजरीवाल चाहते तो इसे पहले उठा सकते थे लेकिन उन्होंने चुनाव का समय चुना.”
2014 के लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने अलग-अलग राज्यों के जाटों को केंद्रीय ओबीसी सूची में शामिल किया था. इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ पिछड़ा वर्ग के संगठनों ने इसको सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. एक साल बाद 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने जाट आरक्षण को रद्द कर दिया था.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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