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अहमदाबाद के दीपेश का चौकीदार की नौकरी से आईआईएम में एडमिशन तक का सफ़र

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Source :- BBC INDIA

दीपेश केवलानी की तस्वीर

इमेज स्रोत, Dipesh Kewlani

“यह पहली बार होगा जब मैं पूरी तरह से अपनी पढ़ाई पर फ़ोकस कर पाऊंगा. इससे पहले, मैंने नौकरी के साथ-साथ अपनी पढ़ाई भी जारी रखी. मैं पूरी तरह से अपनी पढ़ाई पर फ़ोकस नहीं कर सकता था. मैं फ़ाइनेंस में अपना करियर बनाना चाहता हूं. आईआईएम से एमबीए करने के बाद, मैं एक इनवेस्टमेंट बैंकर बनना चाहता हूं.”

अहमदाबाद में चौकीदार की नौकरी करने वाले दीपेश केवलानी अपनी सफलता के बारे में बात करते हुए कुछ ऐसा ही कहते हैं.

देश के शीर्ष मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट (आईआईएम) में प्रवेश के लिए नवंबर, 2024 में आयोजित कॉमन एडमिशन टेस्ट (कैट) में 27 साल के दीपेश केवलानी ने 92.5 पर्सेंटाइल अंक हासिल कर आईआईएम शिलांग में एडमिशन सुनिश्चित किया है.

आईआईएम बिजनेस मैनेजमेंट की पढ़ाई के लिए देश का शीर्ष संस्थान है. देश के आईआईएम संस्थानों से पास आउट होने वाले स्टूडेंट्स अक़्सर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय कंपनियों की तरफ़ से लाखों रुपये की सैलरी ऑफ़र किए जाने के कारण चर्चा में रहते हैं.

दीपेश ने बचपन में ही अपने पिता को खो दिया था और कम उम्र से ही नौकरी के साथ-साथ पढ़ाई भी की.

बीबीसी को अपनी सफलता की यात्रा के बारे में बताते हुए दीपेश कहते हैं कि वे अभावों से घिरे जीवन से कभी निराश नहीं हुए और उन्होंने कड़ी मेहनत के साथ अपने हुनर ​​पर भरोसा किया.

दीपेश का परिवार एक कमरे और छोटे से किचन वाले घर में रहता है.

11 साल की उम्र में पिता को खोया

दीपेश केवलानी ने अपने पिता को तब खो दिया जब वह सिर्फ 11 साल के थे. पिता को खोने के बाद दीपेश का परिवार उनके मामा के साथ जयपुर से अहमदाबाद आ गया और नरोदा इलाके़ में बस गया.

उनके परिवार में उनके छोटे भाई दिनेश (छह साल) और उनकी मां थीं. दीपेश बताते हैं कि इन परिस्थितियों में परिवार की ज़िम्मेदारी बहुत छोटी उम्र में ही उनके कंधों पर आ गई थी.

दीपेश कहते हैं, “हमारे समुदाय के एक ट्रस्ट ने हमारी मदद की. दोनों भाइयों को स्कूल की फ़ीस के लिए ट्रस्ट से सहायता मिलती थी. इस तरह पढ़ाई तो चलती रही, लेकिन मैंने घर में मदद के लिए कुछ काम करने के बारे में भी सोचा.”

दीपेश बताते हैं कि जब वह सातवीं कक्षा में थे, तब उन्होंने अपने इलाके़ में एक जूते की दुकान पर काम करना शुरू कर दिया था.

उनका कहना है, “ये 2011-12 की बात है, उस समय मुझे 1500 रुपए महीना वेतन मिलता था. ये बहुत मेहनत वाला काम था. मैं सुबह स्कूल से आता और फिर काम पर चला जाता. वेतन के अलावा मुझे मेरे चाचा से भी थोड़ी मदद मिल जाती थी और हमारी ज़िंदगी चलती रहती थी.”

दीपेश बताते हैं कि उन्होंने नौकरी करते हुए 10वीं और 12वीं की परीक्षा दी और दोनों में ही अच्छे नंबर हासिल किए.

बकौल दीपेश, “हम स्कूल में मुश्किल से ही पढ़ पाते थे, उस समय ट्यूशन भी एक दूर का सपना था. फिर भी मैंने अपनी मेहनत से कक्षा 10 में 85 प्रतिशत अंक प्राप्त किए और कक्षा 12 में मुझे 89 प्रतिशत अंक मिले. कक्षा 12 में तो मैं स्कूल टॉपर था.”

दीपेश केवलानी की तस्वीर

इमेज स्रोत, Dipesh Kewlani

जब चौकीदार की नौकरी करनी पड़ी

दीपेश ने आगे बताया कि जब उन्होंने मार्च 2017 में 12वीं की परीक्षा दी, तब उन्हें अहमदाबाद के शाहीबाग स्थित कैंट में चौकीदार की नौकरी के लिए रिक्त पद के बारे में पता चला.

वो कहते हैं “मैंने उस समय 12वीं की परीक्षा दी ही थी. तभी मुझे चौकीदार की नौकरी मिल गई है. मैंने बिना मन से नौकरी ज्वाइन की, क्योंकि मुझे आय का कोई स्थायी स्रोत चाहिए था. यह सरकारी नौकरी थी. उस समय मुझे 18 हज़ार रुपए महीने का वेतन मिलने लगा था.”

दीपेश का कहना है कि चौकीदारी करते हुए उन्होंने बी.कॉम और एम.कॉम भी किया. दीपेश ने अपनी प्रतिभा के दम पर नौकरी करते हुए दोनों परीक्षाएं डिस्टिंक्शन के साथ पास कीं.

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छोटे भाई के लिए अपने सपने पर लगाया ब्रेक

एमबीए करने के अपने सपने के बारे में बात करते हुए दीपेश आगे कहते हैं, “मुझे शुरू से ही एमबीए करना था. लेकिन मेरे ऊपर घर की ज़िम्मेदारियाँ थीं. और उसी समय मेरा छोटा भाई भी आईआईएम में एडमिशन की तैयारी कर रहा था. इसलिए मैंने इसे प्राथमिकता दी और आईआईएम करने के अपने सपने को किनारे रख दिया.”

इस बीच दीपेश के छोटे भाई दिनेश को साल 2023 में आईआईएम लखनऊ में दाख़िला मिल गया.

दीपेश कहते हैं कि उन्होंने कुछ समय के लिए आईआईएम से एमबीए (मास्टर ऑफ़ बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन) करने का सपना छोड़ दिया था.

लेकिन जब उनका छोटा भाई 2024 में आईआईएम-लखनऊ से इंटर्नशिप के लिए अहमदाबाद आया, तो उन्होंने कुछ दोस्तों के साथ मिलकर अपने बड़े भाई दीपेश को अपना सपना पूरा करने के लिए राज़ी कर लिया.

दीपेश का कहना है कि उनके समझाने पर ही मैंने कैट परीक्षा देने का फै़सला किया.

दीपेश कहते हैं, “मैंने मई 2024 से कैट की तैयारी शुरू कर दी थी. इसके लिए मैंने कोचिंग भी ज्वाइन की. मेरे काम के घंटे दोपहर ढाई बजे तक थे. उसके बाद शाम साढ़े चार बजे कैट कोचिंग की क्लास शुरू होती थी.”

“इसलिए, कोचिंग जाने से पहले, मैं अपने ऑफ़िस में रहता था और डेढ़ घंटे तक पढ़ता था. उसके बाद, मैं कोचिंग जाता और फिर घर लौट आता. उसके बाद, मैं लगभग दो घंटे पढ़ने में बिताता. इस प्रकार, मैं हर दिन औसतन चार घंटे पढ़ता था.”

दीपेश बताते हैं कि उस समय उन्हें नौकरी के साथ-साथ कैट की तैयारी के लिए हर दिन 50-60 किलोमीटर का सफर करना पड़ता था.

फिर भी, उन्होंने बिना थके कड़ी मेहनत जारी रखी. अंततः उनकी कड़ी मेहनत रंग लाई.

नवंबर 2024 में आयोजित कैट परीक्षा का परिणाम दिसंबर 2024 में जारी किया गया. दीपेश ने शानदार सफलता हासिल की और 92.50 पर्सेंटाइल हासिल किया.

इसके बाद उन्होंने कॉलेज की इंटरव्यू सहित पूरी प्रक्रिया में अच्छा प्रदर्शन किया और आख़िरकार आईआईएम शिलॉन्ग में एडमिशन मिल गया.

दीपेश (बाएं) अपने भाई दिनेश और मां के साथ.

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‘मेरे बेटे ने बहुत मेहनत की है’

दीपेश का कहना है कि वह नहीं चाहते कि उनकी कहानी को कोई दया या सहानुभूति की नज़र से देखे. उन्हें उम्मीद है कि उनकी कहानी दूसरों को कभी हार न मानने के लिए प्रेरित करेगी, चाहे कुछ भी हो जाए.

दीपेश कहते है कि जीवन के हर पड़ाव पर किसी न किसी व्यक्ति या संगठन से मिले सहयोग के कारण ही वह यह उपलब्धि हासिल कर पाए हैं.

उनके मुताबिक़, “स्कूल के दौरान मुझे मेरे चाचा और हमारे समाज से, कॉलेज में मेरे साथियों से, कैट की तैयारी के दौरान मेरे साथियों से और कोचिंग में पढ़ाने वाले टीचरों से सहयोग मिला. आख़िरकार जब मेरा एडमिशन हो गया और मुझे शिलॉन्ग जाना पड़ा तो मेरे भाई ने घर की ज़िम्मेदारी संभाल ली. कोचिंग के दौरान भी उन्होंने मुझे प्रेरित किया. अब एडमिशन के दौरान मेरी मां ने भी कहा कि वो घर पर अकेली रह जाएंगी लेकिन मुझे उनकी चिंता किए बिना पढ़ाई करने जाना चाहिए. इस तरह मेरी सफलता में कई लोगों की भूमिका रही है.”

दीपेश की मां भारती केवलानी अपने बेटे दीपेश की सफलता पर गर्व महसूस करती हैं.

वो कहती हैं, “मेरे बड़े बेटे दीपेश ने बहुत मेहनत की है. अब उसका सपना पूरा होने जा रहा है. इसके लिए मुझे कुछ समय तक अकेले भी रहना पड़ सकता है. यह सब उसकी मेहनत की वजह से ही संभव हो पाया है. उसने संघर्ष के दिन देखे हैं. अब उसे उस मेहनत का फल मिल रहा है.”

साल 2025 में दीपेश के छोटे भाई दिनेश ने एमबीए की पढ़ाई पूरी कर हैदराबाद में एक कंपनी में नौकरी पा ली थी.

अब दीपेश भी 23 जून को आईआईएम-शिलॉन्ग पहुंचकर एमबीए करने के अपने सपने को पूरा करने के लिए एक नई यात्रा शुरू करेंगे.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

SOURCE : BBC NEWS