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आक्रोश, गुस्से और बेबसी के बीच रोते बच्चों की चीखें, ढहते मकान, तपती धूप में खाकी वर्दी में खड़े पुलिसकर्मी और अपने घरों को ढहते देखते लोग.
ये दृश्य अहमदाबाद के चंडोला तालाब पर मंगलवार सुबह शुरू हुए दूसरे चरण की डिमोलिशन ड्राइव के हैं. बड़े पैमाने पर ये डिमोलिशन ड्राइव कथित बांग्लादेशी नागरिकों के ख़िलाफ़ चलाई जा रही है.
लगभग दो सप्ताह पहले चंडोला तालाब के सियासत नगर में बंगाली मोहल्ले से शुरू हुआ घरों को ढहाने का अभियान अब पूरे क्षेत्र में फैल गया है. इस दौरान कड़ी पुलिस सुरक्षा के बीच लोग अपने घरों को बचाने का संघर्ष करते दिखे.
यह अभियान अहमदाबाद पुलिस कमिश्नर जीएस मलिक, अन्य वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों और अहमदाबाद नगर निगम की एक टीम की मौजूदगी में चलाया गया.
इस क्षेत्र में हज़ारों घर थे, जो अब ज़मींदोज़ हो चुके हैं. हालाँकि, धार्मिक स्थलों को फ़िलहाल इससे बाहर रखा गया है.
बीबीसी गुजराती ने कई लोगों से बात की जिनका दावा था कि उन्हें कोई नोटिस नहीं दिया गया था. लोगों का कहना है कि चार दिन पहले मौखिक चेतावनी में कहा गया था कि उनके घरों को भी अन्य घरों की तरह ध्वस्त कर दिया जाएगा, इसलिए वे अपना सामान हटा लें.

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मंगलवार की सुबह बीबीसी ने चंडोला इलाक़े का दौरा किया. वहाँ लोग आख़िरी पल तक अपने घरों से जो कुछ भी बचा सकते थे, उसे निकालने की कोशिश कर रहे थे. चाहे वह घरेलू सामान हो, दरवाज़े हों, बच्चों के खिलौने हों, टूटी साइकिलें हों या छत की टाइलें हों.
हर कोई जो कुछ भी हटा सकता था उसे हटाने में व्यस्त था, जबकि कई लोग बुलडोज़रों को काम करते देख बस रो रहे थे.
अहमदाबाद के एडिशनल पुलिस कमिश्नर शरद सिंघल ने पहले संवाददाताओं से कहा था, “2022 में, अल-क़ायदा के साथ सहानुभूति रखने वाले चार लोगों को इस इलाक़े से गिरफ़्तार किया गया था. ये चार लोग स्लीपर सेल के रूप में काम कर रहे थे और पहलगाम हमले के बाद, तथाकथित बांग्लादेशी नागरिकों को गिरफ़्तार करने के लिए एक बड़ा अभियान चलाया गया था और कई अवैध नागरिकों को इस संदेह पर हिरासत में लिया गया था कि देश में इस तरह के हमले बढ़ सकते हैं.”
इस तरह का अभियान पूरे प्रदेश में चलाया गया. इस दौरान अहमदाबाद, सूरत, वडोदरा और पाटन जैसे शहरों से कई लोगों को हिरासत में लिया गया.
अब तक गुजरात से करीब 450 लोगों को हिरासत में लिया गया है और उनमें से कई को वापस बांग्लादेश भेज दिया गया है. कई लोग फ़िलहाल एसओजी और सरदारनगर स्थित डिटेंशन सेंटर में हैं.
चंडोला क्षेत्र के हालात क्या हैं?

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चंडोला तालाब पर अपने सामान के साथ एक बुज़ुर्ग बशीर अलाउद्दीन बैठे हुए थे.
उन्होंने बताया कि 1970 के दशक से कड़ी मेहनत करके उन्होंने अपना घर बनाया था. उनके परिवार में लगभग 30 लोग हैं, जिनमें उनके भाई और बहन का परिवार शामिल है.
उनके पास करीब 50 भेड़, बकरियां, मुर्गियां आदि हैं. इन सबके साथ वह अपना सामान लेकर चंडोला तालाब के मैदान में बैठे हैं.
वो कहते हैं, “मेरा दिल बहुत दुख रहा है, मुझे समझ नहीं आ रहा कि क्या करूँ. कोई रास्ता नहीं है. मैंने इन भेड़-बकरियों को अपने बच्चों की तरह पाला है, अब मेरे पास इन्हें बेचने के अलावा कोई विकल्प नहीं है.”
उनकी पत्नी के आँसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे.
उन्होंने कहा, “इन जानवरों को कहां ले जाएं? कोई हमें घर भी किराए पर नहीं दे रहा है.”
अपना घर नष्ट होते देख बशीरभाई ने बीबीसी गुजराती से कहा, “कल यहां शांति थी, आज मलबे का ढेर लगा हुआ था. देखो क्या हुआ? मेरा दिल दुखा है.”
ये कहते हुए वह फूट-फूट कर रोने लगे.
उनके घर के ठीक बगल में बिस्मिल्लाह बीबी का घर था. वो अकेली हैं और शाम को चंडोला क्षेत्र में पापड़ और आलू बेचकर अपना जीवन यापन करती थीं.
वो कहती हैं, “मुझे नहीं पता कि अब कैसे ज़िंदा रहूंगी. मुझे डायबिटीज़ है, ब्लड प्रेशर है, इन सब के साथ, मुझे नहीं पता कि मैं कहां जाऊंगी.”

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चंडोला तालाब दानिलिमडा, इसनपुर और शाह-ए-आलम जैसे इलाक़ों में फैला हुआ है. इस पूरे इलाक़े में कितने घर होंगे इसका कोई सटीक अनुमान नहीं है, लेकिन कई लोगों का कहना है कि इनकी संख्या हज़ारों में होगी.
ये सभी लोग फ़िलहाल चंडोला तालाब के मैदान में बनी छोटी-छोटी झोपड़ियों में रह रहे हैं और किराए का मकान पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.
कुछ लोग जिनके घरों को दो सप्ताह पहले जेसीबी से नष्ट कर दिया गया था, अब आसपास के इलाक़ों में रहने के लिए जा रहे हैं.
प्रशासन का मानना है कि इस क्षेत्र में वेश्यावृत्ति, नशीले पदार्थों का कारोबार, शराब का कारोबार, सट्टा-जुआ समेत कई अवैध गतिविधियां चल रही थीं.
हालांकि, इस तोड़फोड़ के बाद अहमदाबाद नगर निगम ने घोषणा की है कि साढ़े सात हज़ार रुपये देकर सरकारी आवास योजना के तहत वैकल्पिक व्यवस्था की जा सकती है.
लेकिन लोगों से जब बीबीसी ने बुधवार को बात की तो उनका कहना था की उनके पास साढ़े सात हजार रुपये भी नहीं है.
बुधवार को क्या थे हालात, लोगों ने क्या कहा?

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बुधवार को बीबीसी की टीम चंडोला तालाब और उसके आसपास के क्षेत्रों में गई थी जहां मकान गिराए गए हैं.
जिनके घर कल तोड़े गए थे, वो आज रास्तों के किनारे अपना बचा हुआ सामान लेकर बैठे थे.
हीराबेन की मां 40 साल से चंडोला में रह रही हैं. हीराबेन ने कहा, “हम अहमदाबाद के मीरा इलाके में रहते थे, जहां दंगे हुए थे. इसलिए हम उस इलाके को छोड़कर चंडोला में रहने आ गए.”
उन्होंने कहा, “कल बुलडोजर आया और एक ही दिन में हम बेघर हो गए. पहलगाम में तो लोगों से पूछने के बाद उनकी हत्या कर दी गई थी, यहां तो उन्होंने बिना पूछे ही घर गिरा दिया.”
एक बुज़ुर्ग महिला सविता चावड़ा ने कहा, “हमने ईंटें इकट्ठा करके ये घर बनाया था. हमारे पास कहीं भी किराये पर रहने के लिए पर्याप्त पैसे नहीं हैं. इसलिए हमें कहना पड़ रहा है कि भले ही आप हमें यहां से हटा दें, लेकिन हमें कहीं और रहने की जगह तो दे दीजिए. हम चले जाएंगे. “
एक अन्य महिला सविताबेन ने कहा, “हमने कल रात सड़क पर बिताई. लोग हमें खाना देकर गए. यहीं सड़क पर बैठकर खाना खाया. “
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SOURCE : BBC NEWS