Source :- BBC INDIA
पश्चिम बंगाल के सबसे प्रतिष्ठित सरकारी मेडिकल कॉलेजों में से एक आरजी कर मेडिकल कॉलेज में हुई बलात्कार और हत्या की घटना को पांच महीने हो चुके हैं.
9 अगस्त, 2024 को एक महिला ट्रेनी डॉक्टर का अस्पताल के कॉन्फ़्रेंस रूम में शव मिला था. इस घटना के बाद ये बात सामने आई कि इस डॉक्टर का पहले बलात्कार किया गया और फिर उनकी हत्या कर दी गई.
इस घटना के बाद काफ़ी जनाक्रोश हुआ और राज्य में स्वास्थ्य सेवाएं भी दो महीने से ज़्यादा समय तक ठप रहीं.
जहां एक ओर राज्य में सरकारी अस्पतालों में काम करने वाले स्वास्थ्यकर्मी अपनी सुरक्षा को लेकर आशंकित हैं वहीं मृतक डॉक्टर के माता-पिता ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली है.
शनिवार को कोलकाता के सियालदह कोर्ट में इस मामले को लेकर फ़ैसला आएगा.
इस मामले में ‘साक्ष्य मिटाने’ के आरोप में मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल संदीप घोष और स्थानीय टाला थाना के प्रभारी अभिजित मंडल के ख़िलाफ़ सीबीआई आरोप पत्र दाख़िल नहीं कर पायी है जिसकी वजह से उन्हें ज़मानत मिल गयी है.
लेकिन सीबीआई की जांच को लेकर मृतक डॉक्टर के माता-पिता ने असंतोष व्यक्त किया है और उन्होंने मामले की निगरानी कर रहे सुप्रीम कोर्ट और कलकत्ता हाई कोर्ट में याचिका दायर की है.
इस याचिका में उन्होंने अपील की है कि सियालदह की विशेष अदालत को इस मामले में सज़ा सुनाने से रोका जाए और पूरे मामले की एक बार फिर नए सिरे से जांच की जाए.
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माता-पिता की याचिका
माता-पिता की वकील गार्गी गोस्वामी ने बीबीसी के साथ याचिका साझा करते हुए कहा कि उन्होंने शीर्ष अदालत का दरवाज़ा इसलिए खटखटाया है क्योंकि सीबीआई ने भी जांच ठीक से नहीं की है.
याचिका में कई बिंदुओं को सामने रखा गया है जिसमें ‘पोस्टमार्टम’ की रिपोर्ट, मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट और केंद्रीय फॉरेन्सिक विज्ञान प्रयोगशाला यानी ‘सीएसएफ़एल’ की रिपोर्ट में विरोधाभास का उल्लेख किया है.
गार्गी गोस्वामी कहती हैं, ”हमने अदालत के सामने सीबीआई की जांच की त्रुटियों को रखा है और हमारा मानना है कि इसकी वजह से इंसाफ़ नहीं मिल पायेगा. सीबीआई ने वहां मौजूद सीसीटीवी कैमरों की जांच के बाद सिर्फ़ संजय राय को ही चिन्हित किया है जबकि उसमें कई और लोगों को आते-जाते देखा जा सकता है.”
वो कहती हैं कि सीबीआई ने सीसीटीवी में नज़र आ रहे दूसरे लोगों की शिनाख़्त नहीं की है जिसकी वजह से सच्चाई सामने नहीं आ सकेगी.
पुलिस इस मामले में मुख्य अभियुक्त संजय रॉय को गिरफ़्तार कर चुकी है. संजय रॉय अस्पताल ‘सिविल वालंटियर’ (कोलकाता पुलिस का एक अंग) के तौर पर तैनात थे.
इस घटना के पांच दिनों बाद यानी 14 अगस्त (2024) को कलकत्ता हाई कोर्ट ने मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी थी.
जहां इस मामले में मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल संदीप घोष और स्थानीय टाला थाना के प्रभारी अभिजित मंडल को साक्ष्य मिटाने के प्रयास के आरोप में सीबीआई ने गिरफ़्तार कर लिया था.
वहीं कोलकाता के पुलिस कमिश्नर विनीत गोयल को राज्य सरकार ने उनके पद से स्थानांतरित कर दिया था.
घटना के बाद क्या बदला
अब इस अस्पताल की सुरक्षा का ज़िम्मा केन्द्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ़) को सौंप दिया गया है.
लेकिन यहां काम करने वाले स्वास्थ्यकर्मियों से बात करने पर पता चलता है कि वे अपनी सुरक्षा को लेकर आशंकित रहते हैं.
अस्पताल से बीएससी नर्सिंग कर रहीं छात्रा तृषा बनर्जी कहती हैं कि घटना के बाद परिसर में सुरक्षा के इंतज़ाम बढ़ा दिए गए हैं और सीसीटीवी कैमरा भी लगाए गए हैं लेकिन फिर भी डर लगता है.
इसी बात को आगे बढ़ाते हुए तन्द्रा साहा कहती हैं, “हमारे मन से डर निकल ही नहीं पा रहा है. घटना के बाद अब तक जैसे वो डर मन में समा गया है. पढ़ाई करते वक्त सुरक्षा का ही विचार आता है. हालांकि पुरुष सहयोगी तो संभल गए हैं लेकिन महिलाकर्मी हमेशा सुरक्षा को लेकर आशंकित रहती हैं.”
ये भी देखा जा रहा है कि यहां काम करने वाली महिला स्वास्थ्यकर्मी कैमरे के सामने आने से अब बच रही हैं और अनजान लोगों से बात करने में कतराती हैं.
लेकिन कुछ चुनिंदा हैं जो मुखर होकर बोलती हैं जिनमें से एक रेज़िडेंट डॉक्टर शबनम शाह हैं. वो अस्पताल के हॉस्टल में ही रहती हैं.
वो कहती हैं, “जब हम उस कॉफ्रेंस हॉल से गुज़रते हैं तो हमारा आज भी दिल दहल जाता है. हमारी रूह काँप जाती है. दिल में एक अनजान सा डर पैदा हो जाता है. हम अकेले उस जगह से होकर नहीं जाते हैं. कोशिश करते हैं कि कोई साथ हो और यहाँ से जल्दी निकल जाएं.”
रेज़िडेंट डॉक्टर शगुफ़्ता यासमीन बताती हैं कि वो इस घटना के बाद घर लौट गईं थीं और दो महीने बाद लौटी हैं.
उनके अनुसार, ”मेरे घर वाले रह-रह कर फ़ोन करते रहते हैं. जब रात में ड्यूटी पर जाना होता है तो डर लगा रहता है. हम देख रहे हैं कि सीआईएसएफ़ के जवान तैनात हैं लेकिन उसके बावजूद डर लगता है.”
इधर डॉक्टर श्रेया शॉ बीबीसी से बातचीत में कहती हैं कि उनकी बृस्पतिवार से 36 घंटे की ड्यूटी है और उन्हें घर से काफ़ी फ़ोन आएंगे.
वो बताती हैं, “रात को सोने से पहले वे बार-बार फ़ोन करेंगे कि ध्यान से लॉक करके सोना. बाहर गार्ड है कि नहीं? अकेली हो या कोई साथ में है? ये सारे सवाल पूछते हैं.”
आंदोलनकारी डॉक्टरों का क्या कहना है?
इस घटना के बाद राज्य के डॉक्टर भूख हड़ताल पर भी गए थे.
राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इन डॉक्टरों से वार्ता भी की थी और सुरक्षा का आश्वासन भी दिया गया है.
लेकिन डॉक्टरों का कहना है कि उन्हें सरकार के आश्वासन पर भरोसा नहीं है और वे सीबीआई की जांच से भी संतुष्ट नहीं हैं.
सीबीआई ने बलात्कार और हत्या के मामले में ‘प्राइमरी चार्जशीट’ (प्राथमिक आरोप पत्र) को सियालदह की विशेष अदालत में दायर कर दिया है.
प्राथमिक आरोप पत्र में बलात्कार की घटना को अंजाम देने का आरोप सिर्फ़ ‘सिविल वालंटियर’ संजय रॉय पर है.
सीबीआई ने एक दूसरी प्राथमिकी भी दर्ज की है जिसमें आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में हुईं वित्तीय अनियमितता के सिलसिले में प्रिंसिपल संदीप घोष को गिरफ़्तार किया गया था.
इस मामले की जांच अलग से चल रही है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.
SOURCE : BBC NEWS