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कोलकाता में पीड़िता के समर्थन में प्रदर्शन करते समर्थक.

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आरजी कर अस्पताल में ट्रेनी महिला डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या के मामले में अदालत ने संजय रॉय को उम्र क़ैद की सज़ा सुनाई है.

सोमवार को फ़ैसला सुनाते हुए सियालदह कोर्ट के एडिशनल सेशन जज अनिर्बान दास ने कहा कि ये ‘रेयरेस्ट ऑफ़ द रेयर’ मामला नहीं है. इसमें मौत की सज़ा की ज़रूरत नहीं है.

‘रेयरेस्ट ऑफ़ द रेयर’ यानी दुर्लभ में भी ऐसे दुर्लभ मामले जिनमें अदालत किसी को मौत की सज़ा दे सकती है.

कोर्ट ने रॉय पर एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया है. यही नहीं, राज्य सरकार को पीड़िता के परिवार को 17 लाख रुपए का मुआवज़ा देने का आदेश दिया है.

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क़ानूनी सफ़र अभी बाक़ी है

अगस्त में जब ये घटना हुई तो देश भर में काफ़ी विरोध हुआ. क़ानूनी उथल-पुथल भी हुई.

इस केस में कलकत्ता हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक सुनवाई चली.

हालाँकि, इस फ़ैसले के बाद भी अभी इसका क़ानूनी सफ़र ख़त्म नहीं हुआ है.

इस बीच पश्चिम बंगाल सरकार ने कलकत्ता हाईकोर्ट में इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ मंगलवार को अपील दायर की है. राज्य सरकार ने आजीवन कारावास को मृत्यु दंड में बदलने की माँग की है.

दूसरी ओर, पीड़ित डॉक्टर के माता-पिता ने दिसंबर में ही कलकत्ता हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की थी. वे चाहते हैं कि इस मामले की फिर से जाँच हो.

वहीं, पूरी सुनवाई में संजय रॉय का कहना था कि वह निर्दोष हैं. फैसला सुनाते हुए जज अनिर्बान दास ने भी कहा कि रॉय के पास इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ हाईकोर्ट में अपील करने का क़ानूनी अधिकार है.

आइए जानते हैं, इस मामले में अब तक क्या हुआ और आगे क्या हो सकता है.

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कोर्ट ने संजय रॉय को दोषी कैसे ठहराया?

आरजी कर मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल रेप और मर्डर केस का आरोपी संजय रॉय (फ़ाइल फोटो)

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शनिवार को अदालत ने संजय रॉय को भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की अलग-अलग धाराओं के तहत दोषी ठहराया था.

इनमें बलात्कार की धारा-64, हत्या की धारा- 103 (1) और बलात्कार के दौरान हत्या की धारा- 66 शामिल हैं. सोमवार को कोर्ट ने इन्हीं आधार पर सज़ा सुनाई.

इस मामले की तहक़ीक़ात केंद्रीय जाँच ब्यूरो (सीबीआई) कर रही थी. सीबीआई ने अपनी चार्जशीट में कई सबूतों का ज़िक्र किया. सीबीआई के मुताबिक, घटना स्थल से रॉय के बाल और उनका ब्लूटूथ हेडफोन मिला था. रॉय के कपड़ों और जूतों पर पीड़िता के ख़ून के निशान भी मिले थे.

इसके साथ सीबीआई ने यह भी कहा कि सीसीटीवी फुटेज में रॉय उस सेमिनार रूम की ओर जाते हुए दिख रहे हैं, जहाँ से पीड़िता की लाश मिली थी.

दूसरी ओर, रॉय ने इन आरोपों का खंडन किया और कहा कि वह निर्दोष हैं. उन्हें फँसाने की कोशिश की जा रही है. हालाँकि, उन्होंने अपनी तरफ़ से कोई गवाह पेश नहीं किया. उन्होंने सीबीआई के सबूतों पर कई सवाल खड़े करने की नाकाम कोशिश की.

कोर्ट ने सबूतों को देखते हुए कहा कि पीड़िता को गला घोंट कर मारा गया था. उनके साथ बलात्कार हुआ था. कोर्ट ने यह भी कहा कि सीबीआई ने जो सबूत पेश किए हैं, उससे यह बात साफ़ है कि रॉय ने ही अपराध किया है.

जज ने कहा की रॉय के ख़िलाफ़ जो भी सबूत मिले हैं, वह इन सबका खंडन नहीं कर पाए हैं.

जज के मुताबिक, “यह कहने का पर्याप्त सबूत है कि यह एक सामूहिक बलात्कार नहीं था. एक व्यक्ति ने ही पीड़िता का बलात्कार किया था.”

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कोर्ट ने और क्या कहा

कोर्ट ने फ़ैसले में पुलिस और अस्पताल के रवैये की भी आलोचना की है.

कोर्ट ने कहा कि आरजी कर अस्पताल के प्रिंसिपल और वाइस-प्रिंसिपल को पता था कि अस्पताल में एक बलात्कार और हत्या हुई है. ऐसे में ये साफ़ नहीं है कि उन्होंने तुरंत पुलिस को इसकी जानकारी क्यों नहीं दी.

वहीं, कोर्ट ने ये भी कहा कि पुलिस ने इस केस को अपने रजिस्टर में दाख़िल करने में भी देरी की.

दो पुलिसकर्मियों के बयान के आधार पर कोर्ट ने टिप्पणी की, “इस बात में कोई शक नहीं कि अधिकारियों द्वारा ये कोशिश की जा रही थी कि इस मौत को आत्महत्या दिखाया जाए ताकि अस्पताल पर कोई बुरा असर न पड़े.”

जज ने अपने फ़ैसले में कहा, “चूँकि जूनियर डॉक्टरों ने विरोध करना शुरू कर दिया था, इसलिए ये ‘ग़ैर क़ानूनी सपना’ पूरा नहीं हो पाया.”

हालाँकि, जज ने ये भी कहा कि सीबीआई के सबूतों को देख कर ये साफ़ है कि इन सब चीज़ों से केस पर कोई असर नहीं पड़ा है.

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मौत की सज़ा क्यों नहीं दी?

सज़ा के एलान के बाद संजय रॉय को ले जाती पुलिस

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केंद्रीय जाँच ब्यूरो (सीबीआई) ने कोर्ट से संजय रॉय के लिए मौत की सज़ा माँगी थी. हालाँकि, रॉय के वकीलों ने कहा कि इस मामले में फाँसी नहीं बल्कि उम्र क़ैद मिलनी चाहिए.

हत्या के मामले में न्यूनतम सज़ा उम्र क़ैद हो सकती है.

कोर्ट ने दोनों पक्षों की बात सुनते हुए कहा कि यह एक बहुत ही संगीन और क्रूर अपराध था. यह साफ़ है कि रॉय ने अपराध किया था. हालाँकि, उन्होंने कहा कि यह अपराध ‘रेयरेस्ट ऑफ़ द रेयर’ की श्रेणी में नहीं आता.

सुप्रीम कोर्ट के कुछ फ़ैसलों का हवाला देते हुए, जज ने कहा कि मौत की सज़ा कुछ असाधारण परिस्थितियों में ही देनी चाहिए.

उन्होंने कहा कि ऐसे गंभीर मामलों में भी ‘रिफ़ॉर्मेटिव जस्टिस’ होना चाहिए यानी दोषियों में सुधार की कोशिश करने वाला न्याय हो.

इसके अलावा उनका कहना था कि फैसला देते वक़्त ‘सैंक्टिटी ऑफ़ ह्यूमन लाइफ’ यानी मानव जीवन की पवित्रता जैसे सिद्धांतों का भी ख़्याल रखना ज़रूरी है.

कोर्ट ने अपने फ़ैसले में कहा, “हमारा कर्तव्य क्रूरता का सामना क्रूरता से करना नहीं है. बल्कि बुद्धिमत्ता और न्याय की गहरी समझ से मानवता को ऊपर उठाना है.”

यह कहते हुए कोर्ट ने रॉय पर एक लाख रुपए का जुर्माना लगाया और उन्हें उम्र क़ैद की सज़ा दी.

आगे क्या होगा?

सज़ा के एलान के बाद कोलकाता में भी हुए प्रदर्शन

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अपने फ़ैसले में जज अनिर्बान दास ने कहा कि रॉय के पास इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ अपील करने का क़ानूनी अधिकार है.

वहीं, कई लोगों ने यह भी माँग की है कि सीबीआई को मृत्यु दंड की माँग के साथ इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ अपील करनी चाहिए. हालाँकि, पश्चिम बंगाल सरकार ने इस संबंध में एक अपील दायर कर दी है.

समाचार एजेंसी ‘एएनआई’ से बात करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने कहा, “सीबीआई या पीड़िता का परिवार मृत्युदंड माँगते हुए हाईकोर्ट में अपील दायर कर सकते हैं. साथ ही जो दोषी हैं, वह भी सज़ा के ख़िलाफ़ अपील दाख़िल कर सकते हैं. अब आगे मामला कैसे बढ़ेगा, यह देखने वाली बात है.”

दिसंबर में ही पीड़िता के परिवार ने हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की थी. इसमें उन्होंने सीबीआई की तहक़ीक़ात पर कई सवाल खड़े किए हैं. उनका कहना है कि इस मामले में और भी लोग शामिल हैं.

उन्होंने अपनी याचिका में लिखा है, “पूरी जाँच से साफ़ है कि यह पूरा मुकदमा ऐसे किया जा रहा है कि सिर्फ़ संजय रॉय दोषी पाए जाएँ और बाक़ी लोग छूट जाएँ.” ये कहते हुए उन्होंने माँग की है कि इस केस की हाईकोर्ट की निगरानी में जाँच कराई जाए.

इस बीच, 24 दिसंबर को हाईकोर्ट ने कहा कि इस केस की तहक़ीक़ात के कुछ पहलू सुप्रीम कोर्ट के सामने भी लंबित हैं. इसलिए, उन्होंने याचिकाकर्ताओं को सुप्रीम कोर्ट से इस बात पर स्पष्टीकरण लेने को कहा है कि हाईकोर्ट इस याचिका को सुन सकती है या नहीं.

इसके बाद, पीड़िता के परिवार ने सुप्रीम कोर्ट में अर्ज़ी डाली है. इस अर्ज़ी पर सुनवाई 22 जनवरी को होने की संभावना है.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.

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