Home National news hindi इंडिगो संकट ने किसकी नाकामी को उजागर किया?

इंडिगो संकट ने किसकी नाकामी को उजागर किया?

1
0

Source :- BBC INDIA

दो दिसंबर से यात्रियों ने इंडिगो की उड़ानों में देरी और रद्द होने की शिकायत शुरू की

इमेज स्रोत, Vipin Kumar/Hindustan Times via Getty Images

एक घंटा पहले

सोशल मीडिया से लेकर अखबार और टेलिविज़न की ख़बरों तक, उड़ानों पर लगे ‘ब्रेक’ की कहानी आपकी नज़र से ज़रूर गुज़री होगी.

देश की सबसे बड़ी एयरलाइन इंडिगो अचानक एक बड़ी मुसीबत में घिरी हुई नज़र आई. हज़ारों उड़ानें रद्द हुईं. एयरपोर्ट पर यात्री फंसे रहे. लंबी क़तारें लगीं. और परेशान लोग इंडिगो के स्टाफ़ से सवाल-जवाब करते दिखे.

कहीं शादी अटक गई, तो किसी को अपने ही रिसेप्शन में वीडियो कॉल के ज़रिए शामिल होना पड़ा. किसी का इंटरव्यू छूट गया. तो किसी की छुट्टियों की योजना चौपट हो गई. इस दौरान चार हज़ार रुपये की टिकटें 20 हज़ार रुपये तक में बिकती भी नज़र आईं.

हालांकि इन सबके बीच इंडिगो ने माफ़ी माँगी और इस संकट से ‘गंभीर रूप से प्रभावित’ हुए लोगों को ट्रैवल वाउचर देने की बात कही. इन सब के साथ ही इंडिगो को लेकर कई अहम सवाल भी सामने आए.

आख़िर इस तरह की स्थिति का आभास पहले से क्यों नहीं हुआ? इंडिगो के इस संकट ने सिस्टम की किन ख़ामियों को उजागर किया?

एविएशन पर निगरानी रखने वाले डीजीसीए को किस तरह के सुधारों को प्राथमिकता देनी चाहिए और लोगों को हुई परेशानियों का सही मुआवज़ा क्या हो और ये कैसे मिले.

प्लेबैक आपके उपकरण पर नहीं हो पा रहा

बीबीसी हिन्दी के साप्ताहिक कार्यक्रम, ‘द लेंस’ में कलेक्टिव न्यूज़रूम के डायरेक्टर ऑफ़ जर्नलिज़म मुकेश शर्मा ने इन्हीं सब मुद्दों पर चर्चा की.

इन सवालों पर चर्चा के लिए पूर्व डीजीसीए (नागरिक उड्डयन के डायरेक्टर जनरल) एम आर शिवरामन, एविएशन मामलों पर लगातार नज़र रखने वाली द हिंदू की पत्रकार जागृति चन्द्रा और फ़ेडरेशन ऑफ़ इंडियन पायलट्स के अध्यक्ष कैप्टन सी एस रंधावा शामिल हुए.

इस संकट से क्या कमियां सामने आईं?

इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे

इमेज स्रोत, Raj K Raj/Hindustan Times via Getty Images

देश की सबसे बड़ी एयरलाइन इंडिगो में हाल के दिनों में पैदा हुई अव्यवस्था ने हज़ारों यात्रियों को प्रभावित किया.

उड़ानों के बड़े पैमाने पर रद्द होने और देरी के बाद अब यह सवाल तेज़ हो गया है कि इस संकट की ज़िम्मेदारी किसकी है और सिस्टम में सुधार कैसे किया जाए.

इस संकट पर पूर्व डीजीसीए (डायरेक्टोरेट जनरल ऑफ सिविल एविएशन) एम आर शिवरामन का कहना है कि यह सिस्टम की अचानक आई नाकामी नहीं है.

वह कहते हैं, “ये सिस्टम की कोई परेशानी नहीं है. अक्तूबर 2023 में सभी एयरलाइंस को मालूम था कि नया एफडीटीएल, यानी फ़्लाइट ड्यूटी टाइम लिमिटेशन सिस्टम लागू होने वाला है. इसके लिए उन्हें लगभग दो साल का समय भी मिला. इसके बावजूद एयरलाइंस ने इसको लेकर कोई परवाह नहीं की.”

हालांकि वह मानते हैं कि इस मामले में डीजीसीए से भी चूक हुई है.

उनका कहना है, “इसमें पूरी ज़िम्मेदारी इंडिगो की है. लेकिन दूसरी तरफ़ डीजीसीए की भी है. डीजीसीए को इस पर नज़र रखनी चाहिए थी और इसका जायज़ा लेना चाहिए था.”

डीजीसीए

द हिंदू की पत्रकार जागृति चन्द्रा कहती हैं कि इस संकट का असर सबसे ज़्यादा दो वर्गों पर पड़ा है.

उनके मुताबिक़, “एक पायलट और क्रू, जो एविएशन का पूरा बोझ अपने कंधों पर उठाते हैं. और दूसरे यात्री.”

उनका कहना है कि सरकार का पैसेंजर चार्टर ज़मीन पर कमज़ोर तरीके़ से लागू हुआ है.

जागृति चन्द्रा दूसरे देशों से तुलना करते हुए कहती हैं, “अमेरिका और यूरोप में रेगुलेटर की वेबसाइट पर बहुत साफ़ और यूज़र फ्रेंडली तरीके़ से बताया जाता है कि फ़्लाइट लेट या कैंसल होने पर यात्रियों के क्या अधिकार हैं. लेकिन भारत में डीजीसीए या मंत्रालय की वेबसाइट पर यह जानकारी आसानी से नहीं मिलती.”

उनके मुताबिक़ एविएशन सेक्टर में सुधार की बातें अक्सर संकट के बाद ही होती हैं.

वह कहती हैं, “हम एविएशन हब बनने की बात करते हैं. लेकिन हक़ीक़त यह है कि यात्रियों के पास सीमित विकल्प हैं. अगर दो ही बड़ी एयरलाइंस हों, तो यात्री मजबूरी में उन्हीं में से एक को चुनता है.”

डीजीसीए की ज़िम्मेदारी क्या है?

सांकेतिक तस्वीर

इमेज स्रोत, Getty Images

नागरिक उड्डयन महानिदेशालय यानी डीजीसीए भारत में एविएशन का मुख्य नियामक है.

इसकी ज़िम्मेदारी सिर्फ़ नियम बनाना नहीं, बल्कि यह सुनिश्चित करना भी है कि पूरे एविएशन सिस्टम का संचालन सुरक्षित, व्यवस्थित और यात्रियों के हित में हो.

जागृति चन्द्रा का कहना है कि जिस रफ़्तार से एविएशन इंडस्ट्री बढ़ रही है, उसी अनुपात में डीजीसीए को भी मज़बूत करना होगा.

उन्होंने बताया कि द हिंदू की डेटा टीम के विश्लेषण के मुताबिक़, 2021 के बाद चार साल में इंडिगो के पायलटों की संख्या में लगभग एक फ़ीसदी की गिरावट आई है. जबकि इसी दौरान उसकी उड़ानों में क़रीब 9 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है.

वह कहती हैं, “इंडिगो का मार्केट शेयर 53-54 फ़ीसदी से बढ़कर क़रीब 65 फ़ीसदी हो गया है. लेकिन मैनपावर उसी अनुपात में नहीं बढ़ी. इसका सीधा असर ऑपरेशन्स और ह्यूमन फैक्टर पर पड़ रहा है.”

जागृति चन्द्रा कहती हैं कि पायलट ट्रेनिंग के नाम पर भारी रक़म ली जा रही है और कई फ्लाइंग स्कूल बीच में ही बंद हो जाते हैं.

वहीं एम आर शिवरामन के मुताबिक़, डीजीसीए की तीन बुनियादी ज़िम्मेदारियां हैं.

उन्होंने कहा, “डीजीसीए को तीन तरह की ज़िम्मेदारियां निभानी होती हैं. पहली यात्रियों की सुरक्षा. दूसरी क्रू की सुरक्षा और तीसरी यह कि एयरपोर्ट और पूरा सिस्टम उड़ानों और ऑपरेशनों को संभालने के लिए तैयार और सुरक्षित हो.”

उनका कहना है कि डीजीसीए एक स्वतंत्र नियामक संस्था है.

शिवरामन ने कहा, “डीजीसीए को कोई इंस्ट्रक्शन नहीं दे सकता. इसी वजह से साफ़ तौर पर कहा गया है कि डीजीसीए देश की एविएशन और उससे जुड़ी सुरक्षा के हित में कोई भी आदेश या सर्कुलर जारी कर सकता है. इसलिए यह उसकी बुनियादी ज़िम्मेदारी है कि इन सभी चीज़ों का सही संचालन हो.”

वह कहते हैं कि बीते तीन-चार वर्षों से साफ़ है कि भारत का एविएशन सेक्टर तेज़ी से बढ़ रहा है.

उन्होंने कहा, “हिंदुस्तान 6 से 7 फ़ीसदी की दर से ग्रो कर रहा है. इसका मतलब है कि हवाई यातायात की मांग पर भारी दबाव है. इसी वजह से एयर इंडिया और दूसरी कंपनियों ने 300-500 विमानों जैसे बड़े ऑर्डर दिए. लेकिन सेक्टर में विमानों की कमी है और प्रशिक्षित क्रू की भी कमी है.”

एम आर शिवरामन डीजीसीए के ढांचे पर भी वह सवाल उठाते हैं.

वह कहते हैं, “दुर्भाग्य से सरकार डीजीसीए की ज़िम्मेदारी ऐसे आईएएस अधिकारियों को दे देती है जो प्रशासन के किसी भी सेक्टर से आ सकते हैं. मेरी राय में यह ज़िम्मेदारी किसी इंजीनियरिंग ग्रैजुएट आईएएस अधिकारी को दी जानी चाहिए, ताकि वह तकनीकी पहलुओं को बेहतर ढंग से समझ सके.”

एम आर शिवरामन का कहना है कि डीजीसीए को अपने भीतर संरचनात्मक बदलाव करने होंगे.

वह कहते हैं, “डीजीसीए को विमान के क्रू रोस्टरिंग और फ़्लाइट रोस्टरिंग की जांच के लिए एक अलग सेल बनानी चाहिए.” इससे भविष्य में ऐसी स्थितियों को पहले ही पहचाना जा सकेगा.

इंडिगो को पहले से अंदाज़ा क्यों नहीं हुआ?

इंडिगो

इमेज स्रोत, Getty Images

एक सवाल जो बार-बार उठ रहा है वह यह है कि नए नियमों की बात पिछले साल जनवरी से हो रही थी. तो आख़िर इंडिगो इसके लिए ख़ुद को तैयार क्यों नहीं कर पाया?

फ़ेडरेशन ऑफ़ इंडियन पायलट्स के अध्यक्ष कैप्टन सी एस रंधावा इस पूरे मामले को एयरलाइन की आंतरिक नाकामी मानते हैं.

वह कहते हैं, “सारी एयरलाइंस को ठीक से मालूम था कि ये नियम लागू होने वाले हैं. पायलटों की भर्ती करनी थी. यह उनकी एचआर और ऑपरेशन टीम की तरफ़ से टोटल फेल्योर है.”

उनका कहना है कि पायलटों की संख्या को लेकर दिया गया तर्क सही नहीं है.

इंडिगो के पास 434 विमानों को उड़ाने के लिए 5,085 पायलट हैं. दूसरी तरफ एयर इंडिया के पास 191 विमानों को उड़ाने के लिए 6,350 पायलट हैं.

तो यह साफ़ है कि एयर इंडिया के पास इंडिगो की तुलना में आधे से भी कम विमान हैं लेकिन उसके पास ज़्यादा पायलट हैं.

सी एस रंधावा ने कहा, “130–140 पायलटों की कमी से 1500 फ़्लाइट्स कैंसल नहीं होतीं. यह बिल्कुल ग़लत बात है.”

विंटर शेड्यूल को लेकर उन्होंने कहा, “जब उन्हें मालूम था कि पायलटों की कमी है, तब उन्होंने डीजीसीए से विंटर शेड्यूल में 6 फ़ीसदी बढ़ोतरी क्यों मांगी. और डीजीसीए की भी यह ग़लती है कि उसने इसे मंज़ूरी दी.”

हालांकि उनका कहना है कि ज़्यादा ज़िम्मेदारी इंडिगो की ही बनती है.

कैप्टन रंधावा के मुताबिक़ एयरलाइंस पायलट ट्रेनिंग में निवेश नहीं करना चाहतीं.

वह कहते हैं, “अगर कोई पायलट एक एयरलाइन छोड़कर दूसरी में जाना चाहता है, तो उसे क़रीब साढ़े सात महीने लगते हैं. इसमें छह महीने का नोटिस पीरियड और लगभग डेढ़ महीने की ट्रेनिंग शामिल होती है.”

भारत में विदेशी एयरलाइंस निवेश क्यों नहीं करतीं?

पूर्व डीजीसीए का बयान

ईंधन की लागत को लेकर एम आर शिवरामन कहते हैं कि यही भारत के एविएशन सेक्टर की सबसे बड़ी समस्या है.

उनका कहना है, “दुनिया भर में औसतन फ़्यूल कॉस्ट कुल ऑपरेटिंग कॉस्ट का लगभग 25 फ़ीसदी होता है. जबकि भारत में सिर्फ़ फ़्यूल कॉस्ट ही कुल लागत का 42 से 50 फ़ीसदी तक हिस्सा बनाती है.”

उनके मुताबिक़, “जब तक इसके लिए एक स्पष्ट पॉलिसी नहीं बनेगी, तब तक कोई विदेशी एयरलाइन भारत में निवेश करने नहीं आएगी.”

एम आर शिवरामन ने कहा, “जो भी भारत के एविएशन सेक्टर में निवेश करना चाहेगा, उसे सबसे पहले एयरलाइन की पूरी ऑपरेशन कॉस्ट देखनी पड़ेगी और 40 फ़ीसदी ईंधन लागत किसी भी निवेशक को बहुत ज़्यादा महसूस होगी. टैक्सेशन भी एक बड़ी चुनौती है.”

“भारत सरकार लगातार राज्य सरकारों से कह रही है कि टैक्स घटाएं, लेकिन वे मानने को तैयार नहीं हैं. ऐसा भी एक तरीक़ा है, जिससे इसे राज्य सरकारों पर लागू करवाया जा सकता है. लेकिन मैं इसे यहां पर बताना नहीं चाहता.”

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.

SOURCE : BBC NEWS