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शुक्रवार, 13 जून 2025 को इसराइल ने ईरान के ख़िलाफ़ ‘ऑपरेशन राइज़िंग लॉयन’ शुरू किया और इसके तहत ईरान में कई जगहों पर हमले किए.
हमलों के बाद इसराइली सेना ने एक बयान जारी कर इस ऑपरेशन के बारे में जानकारी दी और ईरान को अस्तित्व के लिए ख़तरा बताते हुए कहा कि ख़ुफ़िया जानकारी के अनुसार वो परमाणु हथियार हासिल करने के बेहद क़रीब है.
इसराइल की कार्रवाई के पीछे की वजह इसराइली सेना के प्रवक्ता बीजी एफ़ी डेफ़रिन ने बताई. उन्होंने कहा, “हम ईरानी शासन को ऐसे परमाणु हथियार हासिल करने की अनुमति नहीं दे सकते जिससे इसराइल और दुनिया के लिए ख़तरा हो. इसलिए इसराइल ने पूरी तैयारी के साथ ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमला किया है.”
इसराइल के हमले के बाद ईरान ने जवाबी कार्रवाई में इसराइल के सैन्य ठिकानों और मिसाइल अड्डों को निशाना बनाते हुए हमले किए.
ईरान ने इन हमलों में शुक्रवार से अब तक 220 से अधिक लोगों की मौत की बात की और कहा कि इनमें मारे गए अधिकांश ‘आम नागरिक’ हैं. वहीं ईरान के हमलों में इसराइल ने अब तक 24 लोगों की मौत की जानकारी दी है.
इन हमलों में इसराइल ने ईरान के कई परमाणु ठिकानों को निशाना बनाया. इनमें ईरान का नतांज़ न्यूक्लियर एनरिचमेंट फ़ैसिलिटी महत्वपूर्ण है.
2007 के बाद से ईरान का ये परमाणु सेंटर चर्चा में रहा है. और ताज़ा हमलों से पहले भी इसे कई बार निशाना बनाया गया है.
आइए जानते हैं कि ईरान का परमाणु कार्यक्रम कितना बड़ा है, उसमें नतांज़ फ़ैसिलिटी की क्या अहमियत है और ईरान के लिए ये इतना महत्वपूर्ण क्यों है?

ईरान की परमाणु ताक़त
पिछले सप्ताह संयुक्त राष्ट्र की परमाणु निगरानी संस्था आईएईए ने अपनी ताज़ा तिमाही रिपोर्ट में कहा था कि ईरान ने 60 फ़ीसदी शुद्धता तक यूरेनियम इकट्ठा कर लिया है.
एजेंसी के अनुसार, अगर ये स्तर 90 फ़ीसदी तक पहुँचा तो तकनीकी तौर पर इससे परमाणु बम बनाए जा सकते हैं. एजेंसी ने इसे गंभीर चिंता का विषय बताया था.
ईरान हमेशा से कहता रहा है कि उसका परमाणु कार्यक्रम बम बनाने के लिए नहीं बल्कि नागरिकों के इस्तेमाल के लिए है. वो संयुक्त राष्ट्र के परमाणु अप्रसार संधि में भी शामिल है.
लेकिन आईएईए का कहना है कि ईरान का परमाणु कार्यक्रम शांतिपूर्ण है, इसका उसे भरोसा नहीं है.
कितने परमाणु सेंटर कहां-कहां हैं?

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ईरान ने अपने परमाणु कार्यक्रम की शुरुआत 1974 में की थी जब शाह रज़ा पहलवी ने ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने के लिए परमाणु ऊर्जा के इस्तेमाल के लिए योजना बनाई और एटॉमिक एनर्जी ऑर्गनाइज़ेशन ऑफ़ ईरान (एआईओई) की स्थापना की.
इसके तहत पूरे देश में अगले 20 सालों में 20 से अधिक परमाणु संयंत्र लगाए जाने थे, लेकिन उसका कार्यक्रम धीमी गति से आगे बढ़ा.
हालांकि इसके लिए शुरुआती क़दम ईरान ने 1974 से काफ़ी पहले, 1957 में ही उठाए थे, जब उसने अमेरिका के साथ परमाणु सहयोग समझौता किया था. इस समझौते को कोऑपरेशन कन्सर्निंग सिविल यूज़ ऑफ़ एटम्स कहा गया था.
जानकारों के अनुसार, मौजूदा वक़्त में ईरान में तीन बड़ी परमाणु फ़ैसिलिटीज़ हैं- इनमें नतांज़ और फ़ोर्दो यूरेनियम एनरिचमेंट सेंटर्स हैं और इस्फ़हान परमाणु रिसर्च सेंटर है. इनके अलावा बुशहर, दरखोविन और सिरिक में परमाणु ऊर्जा संयंत्र हैं. वहीं अरक में जो परमाणु ढांचा है वो दरअसल हेवी वॉटर प्लांट है जिसका इस्तेमाल काफ़ी हद तक सीमित है.
आईएईए के अनुसार इन जगहों के अलावा उन्हें तीन जगहों पर मानव निर्मित परमाणु कण के निशान मिले थे, लेकिन इन जगहों के बारे में ईरान ने कभी आधिकारिक तौर पर जानकारी नहीं दी.
ये जगहें हैं- वारामिन, मारिवन और तुर्कुज़ाबाद. आईएईए को साल 2019 और 2020 के बीच इन जगहों पर जाने का मौक़ा मिला था लेकिन इनसे जुड़े सवालों के जवाब उन्हें नहीं मिले.
2024 तक की ख़बरों के अनुसार- आईएईए ने ईरान पर जांच में सहयोग न करने का आरोप लगाया और कहा कि ये वो जगहें हैं जो ईरान के परमाणु कार्यक्रम से जुड़ी हैं लेकिन इनके बारे में उसने जानकारी नहीं दी है.
नतांज़ एनरिचमेंट फ़ैसिलिटी
नतांज़ को 2002 में गुप्त रूप से स्थापित किया गया था, हालांकि जल्द ही इसका पता चल गया था. ईरान के ही विपक्षी समूहों ने अगस्त 2002 में इसके अस्तित्व के बारे में जानकारी सार्वजनिक कर दी.
ये प्लांट 2007 में काम करने लगा था. 2008 में तत्कालीन राष्ट्रपति अहमदिनेज़ाद ने इस प्लांट के दो साल पूरे होने पर इसका दौरा किया. मीडिया में उनके इस दौरे की काफ़ी चर्चा रही.
इसी साल मई के आख़िर में आईएईए ने बताया कि नतांज़ ईरान का वो परमाणु केंद्र है जहां यूरेनियम एनरिचमेंट का काम किया जाता है.
इस प्लांट में ज़मीन के नीचे परमाणु संवर्धन संयंत्र रखे गए हैं. इंस्टीट्यूट फ़ॉर साइंस एंड इंटरनेशनल सिक्योरिटी की शुरुआती रिपोर्ट के अनुसार, इस जगह को संभावित रूप से 50 हज़ार से अधिक सेंट्रीफ्यूज़ (यूरेनियम को समृद्ध करने वाली मशीनें) संचालित करने के लिए बनाया गया था.
‘काउंटडाउन टू ज़ीरो डे’ नामक किताब में किम ज़ेटर लिखते हैं कि जहां 2007 में इस परमाणु प्लांट में 75 किलोग्राम यूरेनियम का संवर्धन हुआ, साल 2008 के ख़त्म होने तक ये बढ़कर 630 किलोग्राम तक हो गया था.
जानकारों के हवाले से किम ज़ेटर लिखते हैं कि इस यूरेनियम से (जो निम्न स्तर का था) 20 से 25 किलोग्राम तक उच्च क्वालिटी का यूरेनियम बनाया जा सकता है, वो क्वालिटी जिसका इस्तेमाल परमाणु हथियार में किया जा सके.
परमाणु हथियारों में इस्तेमाल होने लायक यूरेनियम बनाने के लिए यूरेनियम के अयस्क (ओर) को कई स्तरों में रिफ़ाइन किया जाता है. प्रोसेसिंग के इसी काम को संवर्धन कहते हैं और इस प्रक्रिया को विशेष सेंट्रीफ्यूज़ में अंजाम दिया जाता है.

फ़ोर्दो एनरिचमेंट फ़ैसिलिटी
ये जगह तेहरान के दक्षिण में क़ोम शहर में पहाड़ों के बीच है और टाइम की एक रिपोर्ट के अनुसार ये आधा मील ज़मीन के भीतर है.
इंस्टीट्यूट ऑफ़ साइंस एंड इंटरनेशनल सिक्योरिटी में छपे एक पेपर के अनुसार, फ़ोर्दो में ज़मीन के नीचे सुरंगों का जटिल जाल है जिसे हवाई हमलों से नुक़सान पहुंचाना आसान नहीं है.
2018 में इसराइली ख़ुफ़िया एजेंसी मोसाद के हाथों ईरान के परमाणु कार्यक्रम से जुड़े कुछ दस्तावेज़ लगे थे, जिनके अनुसार इस संयंत्र का काम हथियारों में इस्तेमाल होने के लिए उच्च गुणवत्ता वाले यूरेनियम का संवर्धन करना था. हालांकि ये इतनी बड़ी जगह नहीं है जहां बड़े पैमाने पर संवर्धन का काम किया जा सके.
2023 में आईएईए को यहां पर 83.7 फ़ीसदी तक शुद्धता वाले यूरेनियम के कण मिले. यूरेनियम में इस स्तर की शुद्धता को हथियार बनाने के स्तर के काफ़ी क़रीब माना जाता है.
इस बारे में जब ईरान से सवाल किया गया तो ईरान ने कहा कि संवर्धन के स्तर में “अनपेक्षित उतार-चढ़ाव” की वजह से ऐसा हुआ हो सकता है.
इस्फ़हान परमाणु रिसर्च सेंटर
ईरान के केंद्रीय हिस्से और तेहरान के दक्षिण में मौजूद इस्फ़हान में ईरान का सबसे बड़ा परमाणु रिसर्च सेंटर है. यहां एक परमाणु फ़ैसिलिटी है जहां यूरेनियम कन्वर्ज़न का काम किया जाता है.
1980 के दशक में चीन और ईरान के बीच समझौता हुआ जिसके तहत चीन की मदद से इस्फ़हान में रिसर्च रिएक्टर्स लगाए गए.
यहां पर इस्फ़हान न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी सेंटर (आईएनटीसी) की स्थापना की गई. बाद में 1992 में एक और समझौते के तहत चीन ने द्विपक्षीय समझौते के तहत कुछ परमाणु मैटीरियल भी ईरान को सप्लाई किए.
साल 2005 में अमेरिका ने इसके प्रमुख जवाद रहीक़ी पर परमाणु एनरिचमेंट जैसे काम में शामिल होने के आरोप में प्रतिबंध लगाए थे.
ऑब्ज़र्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन के अनुसार चीन का मानना था कि शिया बहुल ईरान के साथ सहयोग से अपने शिनजियांग प्रांत में वो सुन्नी अलगाववादियों से निपट सकेगा.
ईरान का इस्फ़हान इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यहां ईरान की ड्रोन और बैलिस्टिक मिसाइल फ़ैक्ट्रियां भी हैं.
बुशहर परमाणु ऊर्जा प्लांट

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जून 2014 तक मिली जानकारी के आधार पर आईएईए का कहना है कि ईरान के पास बुशहर (बुशहर परमाणु पॉवर प्लांट) में परमाणु ऊर्जा संयंत्र है.
तेहरान के दक्षिण में फ़ारस की खाड़ी के पास मौजूद इस संयंत्र ने 2013 में कमर्शियल ऑपरेशन शुरू किया था और 2023 तक देश की कुल बिजली का लगभग 1.7 फ़ीसदी हिस्से का उत्पादन यहां होता है.
1992 में ईरान और रूस के बीच एक समझौता हुआ जिसके तहत बुशहर परमाणु ऊर्जा प्लांट बनाया गया. ये देश का पहला कमर्शियल परमाणु रिएक्टर था.
अधिकारियों के अनुसार, साल 2044 तक यहां 10 हज़ार मेगावॉट परमाणु बिजली बनाने का लक्ष्य रखा गया था.
हालांकि 1974 से ईरान यहां परमाणु रिएक्टर लगाने की कोशिश कर रहा था, लेकिन 1979 में इस्लामी क्रांति के कारण उसे अपनी इस योजना को ठंडे बस्ते में डालना पड़ा था. जिस जर्मन कंपनी के साथ उसका क़रार हुआ था, उसने इससे हाथ खींच लिया.
बाद में ईरान ने इसके लिए रूस के साथ क़रार किया. 2011 में रूस ने इस प्लांट के पूरा होने की जानकारी देते हुए बताया कि ये प्रोजेक्ट परमाणु अप्रसार संधि के नियमों का पालन करता है. इसके लिए ईंधन की सप्लाई आईएईए के नियमों के तहत होगी.
दरख़ोविन और सिरिक परमाणु ऊर्जा प्लांट
दरख़ोविन परमाणु प्लांट का निर्माण मौजूदा वक़्त में कुज़ेस्तान प्रांत में करुन नाम की एक नदी के पास हो रहा है. ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी ने इसका उद्देश्य बिजली उत्पादन बताया था.
शुरुआत में इसे 360 मेगावॉट बिजली उत्पादन के लिए बनाया जा रहा है लेकिन बाद में यहां से 10 हज़ार मेगावॉट तक बिजली बनाने का उद्देश्य है.
ईरान के एटॉमिक एनर्जी संगठन ने 2007 में कहा था कि कुज़ेस्तान प्रांत में परमाणु बिजली परियोजना बनाने में उसकी दिलचस्पी है. उसकी इस घोषणा के बाद उसी साल आईएईए ने इस प्लांट के बारे में ईरान से और जानकारी मांगी थी.
जवाब में ईरान ने बताया था कि इस पर काम 2011 में शुरू होगा और 2015 तक इसे पूरा कर लिया जाएगा, लेकिन इसकी टाइमलाइन बढ़ती चली गई.
दरअसल 1979 के वक़्त से ईरान यहां एक ऊर्जा संयंत्र लगाने की कोशिश कर रहा है. इसके लिए उसने पहले फ्रांस की एक कंपनी के साथ क़रार किया, जो टूट गया. बाद में चीन के साथ उसका क़रार हुआ लेकिन चीन इससे बाहर निकल गया. बाद में 2022 में इस पर काम शुरू हो सका.
एटॉमिक एनर्जी ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ़ ईरान के प्रमुख मोहम्मद इस्लामी ने कहा कि ईरान अपने बलबूते यहां पर रिएक्टर लगाएगा और आठ साल में इस परियोजना को पूरा करेगा.

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इसके बाद 2024 में मोहम्मद इस्लामी ने कहा कि इस परियोजना का पहला चरण पूरा हो गया है. उन्होंने कहा कि 12 साल पहले, यानी 2012 में इस पर काम शुरू हुआ था लेकिन इस पर ईरान आगे नहीं बढ़ सका था.
इसके अलावा ईरान अपने होर्मोज़गान प्रांत के सिरिक में भी एक परमाणु ऊर्जा केंद्र बना रहा है. इसका नाम ईरान-होर्मुज़ न्यूक्लियर पॉवर स्टेशन है.
2024 में ही इस पर काम शुरू हुआ है. ये बुशहर से कहीं बड़ा, 5 हज़ार मेगावॉट का परमाणु प्लांट होगा जिसमें चार यूनिट होंगी, हर यूनिट 1,250 मेगावॉट बिजली का उत्पादन करेगी.
अरक हेवी वॉटर परमाणु कॉम्प्लेक्स
दुनियाभर के परमाणु कार्यक्रमों पर नज़र रखने वाले संगठन, न्यूक्लियर थ्रेट इनिशिएटिव के अनुसार मरकाज़ी प्रांत में अरक हेवी वॉटर कॉम्प्लेक्स है. इसके निर्माण का काम 2004 में शुरू किया गया था. इस प्लांट का नाम बाद में बदल कर खोन्दाब कर दिया गया था.
हेवी वॉटर (ड्यूटेरियम ऑक्साइड) प्लांट में प्यूटोनियम का उत्पादन संभव हो सकता है, जो कि यूरेनियम की ही तरह का एक रेडियोएक्टिव पदार्थ है. इसके इस्तेमाल से भी परमाणु हथियार बनाया जा सकता है. इस वजह से अरक प्लांट आईएईए के लिए चिंता का विषय बना.
लेकिन इसका काम बहुत धीमी गति से चल रहा था. इसलिए कम वक़्त में इसे जोखिम नहीं माना गया.
2015 में अरक में हो रही गतिविधि पर परमाणु समझौते के ज़रिए लगाम लगा दी गई. ईरान से अरक में रिएक्टर बनाने के काम को रोकने और उसे सीमेंट से भर देने को कहा गया.
2014 में ईरान के उप राष्ट्रपति और एटॉमिक एनर्जी ऑर्गनाइज़ेशन ऑफ़ ईरान के प्रमुख रहे अली अकबर सालेही ने कहा कि ईरान अरक प्लांट को फिर से डिज़ाइन करेगा और यहां से उत्पादन को पहले की योजना के मुक़ाबले पांचवें हिस्से तक कम करेगा.
उनका कहना था, “इसके बाद पश्चिमी मुल्कों को ये चिंता नहीं रहनी चाहिए कि यहां से निकले प्लूटोनियम का इस्तेमाल परमाणु हथियार बनाने के लिए किया जा सकता है.”

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नतांज़ को कितना नुक़सान पहुंचा?
ईरान की सरकारी मीडिया के अनुसार, उसके ख़िलाफ़ जब शुक्रवार को इसराइल के हमले हुए, तो राजधानी तेहरान से 225 किलोमीटर दूर स्थित नतांज़ परमाणु फ़ैसिलिटी के पास धमाके हुए.
बाद में इसराइली सेना ने सोशल मीडिया पर एक सैटेलाइट तस्वीर पोस्ट की और लिखा कि हमले में इस साइट के अंडरग्राउंड हिस्से को नुक़सान पहुंचा है.
इसराइली सेना ने कहा, “सटीक ख़ुफ़िया जानकारी के आधार पर लड़ाकू विमानों ने रात में नतांज़ साइट में ईरान के यूरेनियम एनरिचमेंट साइट पर हमला किया. यह ईरान की सबसे बड़ी यूरेनियम एनरिचमेंट साइट है, जो सालों से परमाणु हथियार हासिल करने के लिए काम कर रही है और ये सैन्य-स्तर तक यूरेनियम एनरिचमेंट के लिए ज़रूरी बुनियादी ढांचा है.”
इसके बाद एक अन्य पोस्ट में इसराइली सेना के प्रवक्ता लेफ्टिनेन्ट कर्नल सोशानी ने कहा कि नतांज़ के अलावा इसराइल ने अपने हमलों में इस्फ़हान परमाणु ठिकाने को भी निशाना बनाया है.
कुछ देर बाद आईएईए के प्रमुख राफ़ेल ग्रॉसी ने कहा कि ईरानी अधिकारियों ने नतांज़ पर हमले की पुष्टि की है और ज़मीन के ऊपर बने कुछ ढांचों को नुक़सान पहुंचने की बात की है. हालांकि उन्होंने कहा कि अधिकारियों ने उन्हें बताया है कि हमलों के बाद नतांज़ और फ़ोर्दो परमाणु संयंत्र में अधिक रेडिएशन की कोई ख़बर नहीं है.

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शुक्रवार को आईएईए प्रमुख राफ़ेल ग्रॉसी ने कहा कि नतांज़ यूरेनियम एनरिचमेंट प्लांट के अंडरग्राउंड हिस्से को नुक़सान पहुंचा हो, इस बात के सबूत नहीं मिलते. हालांकि उनका कहना था कि हमलों की वजह से बिजली आपूर्ति पर असर पड़ा सकता है जिससे एनरिचमेंट प्लांट भी प्रभावित हो सकता है.
बीबीसी वेरिफ़ाई के रिसर्चर टॉमस स्पेन्सर ने रक्षा विशेषज्ञों के हवाले से बताया है कि इसराइल के हमले ने ईरान के न्यूक्लियर एनरिचमेंट प्रोग्राम को नुक़सान पहुंचाया है.
बीबीसी वेरिफ़ाई के अनुसार, सोशल मीडिया और मैसेजिंग ऐप्स पर मिल रही जानकारियों और फ़ुटेज की पुष्टि से इसराइल के हवाई हमलों के बाद नतांज़ साइट से धुएं का एक बड़ा ग़ुबार उठता हुआ दिखाई दिया था.
बीबीसी संवाददाता पॉल ब्राउन का कहना है कि ईरानी सरकारी टेलीविज़न पर आ रही तस्वीरों से भी उन्होंने इसकी तस्दीक की है कि नतांज़ में नुक़सान के संकेत स्पष्ट दिखाई दे रहे थे.
अमेरिकी कंपनी अम्ब्रा स्पेस ने सिंथेटिक अपर्चर रडार (SAR) का इस्तेमाल कर नतांज़ साइट की तस्वीरें ली हैं. इन तस्वीरों के अनुसार, ये हमले सटीक निशाना लगाकर किए गए थे और इनमें नतांज़ साइट पर चार इमारतों को नुक़सान पहुंचा है.

पहले कब-कब हुए हैं हमले?
2024 अप्रैल में इस्फ़हान में कई धमाके सुनाई दिए थे. इसके तुरंत बाद ईरानी अधिकारियों ने कहा था कि यहां के परमाणु ढांचे पूरी तरह सुरक्षित हैं.
इसका आरोप ईरान ने इसराइल पर लगाया, हालांकि इसराइल ने इसकी ज़िम्मेदारी नहीं ली.
2023 जनवरी में इस्फ़हान में हथियारों की एक फ़ैक्ट्री पर ड्रोन हमला हुआ जिसका आरोप ईरान ने इसराइल पर लगाया. संयुक्त राष्ट्र में ईरान ने कहा कि जांच में पता चला है कि इसके लिए इसराइल ज़िम्मेदार है. इसराइल ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.
2022 में ईरान ने दो परमाणु वैज्ञानिकों को ज़हर देने का आरोप इसराइल की ख़ुफ़िया एजेंसी मोसाद पर लगाया था.
2021 अप्रैल में ईरान के सिविल न्यूक्लियर प्रोग्राम के प्रवक्ता ने बताया कि सरकार के नए सेंट्रीफ़्यूज़ लगाने की घोषणा के एक दिन बाद नतांज़ में विस्फोट हुए.
इससे साल भर पहले, 2020 में नतांज़ में इसी तरह के विस्फोट हुए थे. इसी साल ईरान के परमाणु कार्यक्रम से जुड़े परमाणु वैज्ञानिक मोहसिन फ़ख़रीज़ादेह की हत्या कर दी गई. पश्चिमी देशों के सुरक्षा जानकार उन्हें ईरान के परमाणु कार्यक्रम का प्रमुख रणनीतिकार मानते हैं.
ईरानी अधिकारियों के अनुसार, हमलावरों ने इलेक्ट्रॉनिक उपकरण का इस्तेमाल किया. ईरान ने इस हत्या के लिए इसराइल को दोषी ठहराया और इस हमले के 72 घंटे के भीतर इसकी संसद ने अपने सिविल न्यूक्लियर प्रोग्राम को “तेज़” करने की मंज़ूरी दे दी.
बाद में इसराइल के ख़ुफ़िया मंत्री एली कोहेन ने एक इंटरव्यू में कहा कि उन्हें नहीं पता है कि ईरानी परमाणु वैज्ञानिक की हत्या के पीछे कौन है.
ईरान 2010 से 2012 के बीच अपने चार और परमाणु वैज्ञानिकों की हत्या का आरोप इसराइल पर लगा चुका है.

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जब साइबर हमले के निशाने पर रहा ईरान
किम ज़ेटर अपनी किताब में लिखते हैं कि साल 2008 में जब ईरान यूरेनियम संवर्धन की दिशा में कामयाबी के क़दम बढ़ा रहा था, उस वक़्त स्टक्सनेट 0.5 काम करने के लिए तैयार हो रहा था.
इस मैलवेयर ने ईरान में 400 से अधिक कंप्यूटर्स को इन्फेक्ट किया था. इसे दुनिया का पहला साइबर हथियार माना गया था.
रिसर्चर्स ने दावा किया कि ईरान के परमाणु कार्यक्रम को निशाना बनाने के लिए अमेरिका और इसराइल ने इस साझा प्रोजेक्ट पर काम किया था.
ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर अमेरिका बार-बार चिंता जताता रहा है. 2002 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति को लेकर कहा था, “हमारे सामने सबसे बड़ा ख़तरा कट्टरपंथ और तकनीक के मोड़ को लेकर है. हमारे दुश्मनों ने खुलकर कहा है कि वो सामूहिक विनाश के हथियार की तलाश कर रहे हैं. अमेरिका इन कोशिशों को कामयाब नहीं होने देगा.”
किम ज़ेटर लिखते हैं कि जर्मनी की सिक्योरिटी कंपनी जीएसएमके के चीफ़ टेक्नोलॉजी ऑफ़िसर फ्रैंक रीगर का कहना था कि इन साइबर हथियारों से ईरान के परमाणु कार्यक्रम को निशाना बनाया गया. हालांकि वो कहते हैं कि इसका संभावित निशाना बुशहर से कई सौ किलोमीटर दूर नतांज़ था.
ईरान ने इस बात को स्वीकार तो किया कि स्टक्सनेट से उसके सेंट्रीफ़्यूज़ प्रभावित हुए, लेकिन उसने ये मानने से इनकार किया कि स्टक्सनेट ने नतांज़ को प्रभावित किया था.
स्टक्सनेट के बाद कैस्परस्की कंप्यूटर सिक्योरिटी कंपनी के विशेषज्ञों ने डुकु नाम के एक वायरस का पता लगाया, जिसे कंपनी ने स्टक्सनेट का सौतेला भाई कहा.
2015 में कंपनी ने इसके बारे में बताया, “2014-2015 में डुकु ने कई ऐसे सिस्टम्स को इन्फे़क्ट किया जो ईरान के साथ परमाणु समझौते पर बातचीत से जुड़ी जगहों से जुड़े थे. ऐसा लगता है कि इसे अंजाम देने वालों का इरादा उच्च स्तरीय बातचीत की जगहों पर साइबर हमला था.”
बाद में सिमान्टेक नाम की कंपनी ने कैस्परस्की के दावे की पुष्टि की और कहा कि ये बेहद जटिल साइबर हमला था जिसे बनाने के लिए काफ़ी पैसा ख़र्च किया गया होगा.
इसी साल वॉल स्ट्रीट जर्नल ने एक अमेरिकी अधिकारी के हवाले से एक रिपोर्ट छापी जिसमें कहा गया कि अमेरिका के साथ हो रही ईरान की बातचीत की इसराइल ने जासूसी की थी.
इसराइल ने इसका खंडन किया. तत्कालीन विदेश मंत्री एविग्डोर लिबरमैन ने कहा, “बातचीत के नतीजे में इसराइल की दिलचस्पी है क्योंकि वो ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर प्रतिबंध चाहता है, लेकिन इसराइली ख़ुफ़िया एजेंसी ने अमेरिका की जासूसी नहीं की.”
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SOURCE : BBC NEWS