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चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और ईरान के सुप्रीम लीडर अली ख़ामेनेई

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इसराइल और ईरान के बीच शुक्रवार से शुरू हुए संघर्ष और एक दूसरे पर हो रहे हमलों का दायरा बढ़ता जा रहा है, इस बीच चीन ने आरोप लगाया है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इस ‘जंग में घी डालने’ का काम कर रहे हैं.

कनाडा में जी-7 देशों की बैठक थी और ट्रंप इस मीटिंग के बीच ही वॉशिंगटन रवाना हो गए और जाते जाते उन्होंने पत्रकारों से कहा कि ‘सीज़फ़ायर से बड़ी कोई चीज़ होने वाली है, युद्ध विराम नहीं, हमेशा के लिए युद्ध का अंत.’

उनके इस बयान से लोग अनुमान लगा रहे हैं कि ईरान के ख़िलाफ़ अमेरिका शायद अपनी रणनीति में कोई बदलाव लाने पर विचार कर रहा हो.

इससे ठीक पहले ट्रंप ने एक सोशल मीडिया पोस्ट में ईरानी लोगों को तेहरान खाली करने को कहा था. इसराइली सेना ने भी उत्तरी तेहरान को खाली करने का आदेश दिया.

मंगलवार को अमेरिका के उप राष्ट्रपति जेडी वांस ने एक्स पर एक लंबी पोस्ट में हिंट दी कि थी कि अमेरिकी राष्ट्रपति, “अमेरिकी लोगों के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए अमेरिकी सेना का इस्तेमाल करने में दिलचस्पी रखते हैं. और जो भी वो करते हैं, उनका फ़ोकस उसी पर रहता है.”

उधर, बढ़ते तनाव के बीच चीन और रूस ने अपने नागरिकों को तुरंत इसराइल छोड़ने की एडवाइज़री जारी की है.

चीनी दूतावास ने अपने नागरिकों से अपील की है कि वे अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए लैंड बॉर्डर क्रॉसिंग के ज़रिए इसराइल छोड़ दें क्योंकि इसराइली हवाई क्षेत्र बंद है. इसमें कहा गया है कि इसराइल-ईरान संघर्ष बढ़ता जा रहा है, जिससे नागरिक सुविधाओं को नुकसान हो रहा है और नागरिक हताहतों की संख्या बढ़ रही है.

चीन के सरकारी न्यूज़पेपर ग्लोबल टाइम्स ने दूतावास के हवाले से बताया कि जॉर्डन और मिस्र के साथ इसराइल की सीमा खुली रहेगी.

इसराइल-ईरान संघर्ष में चीन का रुख़

ईरान इसराइल संघर्ष

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शुक्रवार को जब इसराइल ने ईरान पर हवाई हमला किया तो चीन ने अपनी पहली प्रतिक्रिया में कहा था कि इसराइल ने ‘रेड लाइन क्रॉस की है.’

इसके एक दिन बाद 14 जून को शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) ने बयान जारी कर ईरान पर इसराइली हमले की निंदा की. एससीओ में चीन सबसे अहम भूमिका में है, हालांकि इस बयान से भारत ने खुद को अलग कर लिया.

एससीओ की स्थापना 2001 में चीन, रूस और सोवियत संघ का हिस्सा रहे चार मध्य एशियाई देशों कज़ाख़स्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और उज़्बेकिस्तान ने मिलकर की थी. वर्तमान में भारत समेत कुल दस देश इसके सदस्य हैं.

चीन के विदेश मंत्री वांग यी (दाएं) और ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अराग़ची (बाएं) (फ़ाइल फ़ोटो)

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15 जून को चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने ईरान के विदेश मंत्री सैयद अब्बास अराग़ची से बात की. चीनी विदेश मंत्रालय की ओर से जारी बयान के अनुसार, “चीन ने इस हमले को ईरान की संप्रभुता, सुरक्षा और क्षेत्र की एकता का उल्लंघन कहा है और चीन ईरानी अधिकारियों को निशाना बनाकर किए गए हमले और आम लोगों की मौत का कड़ा विरोध करता है.”

बयान के अनुसार, “इसराइल की ये हरकतें संयुक्त राष्ट्र के नियमों और अंतरराष्ट्रीय संबंधों के बुनियादी सिद्धांतों के ख़िलाफ़ हैं. ख़ासतौर पर इसराइल का ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमला करना बहुत ख़तरनाक है और इसके गंभीर नतीजे हो सकते हैं.”

चीन और पश्चिम एशियाई मामलों के जानकारों का कहना है कि ईरान के साथ चीन के आर्थिक और रणनीतिक संबंध हैं और वह हर हाल में ईरान को ढहते हुए नहीं देखना चाहेगा.

फ़ाइनेंशियल टाइम्स की मंगलवार की एक रिपोर्ट में सूत्रों का हवाला देते हुए कहा गया कि पश्चिम एशिया में संघर्ष के बीच चीन के दो कार्गो विमान ईरान पहुंचे.

रिपोर्ट में चीनी मामलों की जानकार पत्रकार जेनिफ़र जेंग के हवाले से कहा गया है कि ‘इन दोनों ही कार्गो विमानों ने ईरानी वायु सीमा में प्रवेश करते ही अपने ट्रांसपोंडर्स ऑफ़ कर लिए थे ताकि ईरान पर लगे प्रतिबंधों से बचने के लिए अपनी शिनाख़्त से बचा जा सके.’

हालांकि इस पर चीनी सरकार की कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है और ना ही किसी अन्य स्रोत से इसकी पुष्टि हुई है.

ताज़ा तनाव के शुरू होने से एक हफ़्ते पहले वॉल स्ट्रीट जर्नल ने भी एक रिपोर्ट प्रकाशित की जिसमें दावा किया गया था कि ईरान ने बैलिस्टिक मिसाइल के ईंधन में इस्तेमाल होने वाले अमोनियम परक्लोरेट के कई टन की खेप के लिए चीन को ऑर्डर दिए थे जिसकी अगले कुछ महीनों में डिलिवरी होने वाली है.

ये ख़बर भी सूत्रों के हवाले से है और इसकी स्वतंत्र पुष्टि नहीं की जा सकती लेकिन जानकार बताते हैं कि चीन ईरान को तकनीकी और अन्य कई मामलों में सालों से मदद करता रहा है, ये कोई नई बात नहीं है.

चीन और ईरान में सहयोग

चीन और ईरान के विदेश मंत्री

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अरविंद येलेरी जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के चायनीज़ स्टडी सेंटर में एसोसिएट प्रोफ़ेसर हैं.

उन्होंने बीबीसी से कहा, “बहुत पहले से ईरान को बैलिस्टिक मिसाइल के पार्ट्स या ईंधन की सप्लाई चीन से होती रही है. दरअसल बैलिस्टिक मिसाइल की टेक्नोलॉजी में भी चीन ने मदद की है. जबकि हथियार प्रसार रोधी प्रतिबंधों में सिर्फ परमाणु ही नहीं बल्कि बैलिस्टिक मिसाइलें भी आती हैं.”

वो कहते हैं, “बैलिस्टिक मिसाइलों में बहुत ऊंचाई पर रॉकेट की गर्मी को सहने की क्षमता वाला धातु ईरान को चीन से ही सप्लाई होता है. ईरान में इसे बनाने की क्षमता नहीं है. और ट्रांसपोंडर्स भी चीन से ही आते हैं और अलग अलग पुर्ज़ों में आते हैं. ये पहले भी तमाम रास्तों से होकर ईरान पहुंचते रहे हैं.”

ईरान की न्यूज़ एजेंसी तस्नीम न्यूज़ के अनुसार, पिछले महीने 25 मई को ही चीन से पहली मालगाड़ी ईरान के ड्राई पोर्ट पर पहुंची.

दरअसल साल 2021 में चीन और ईरान के बीच बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) के तहत 400 अरब डॉलर का समझौता हुआ था और चीन ईरान रेल कॉरिडोर उसी का हिस्सा बताया जाता है.

इस फ़्रेट कॉरिडोर के मार्फ़त प्रतिबंधों से परेशान ईरान को पश्चिमी नज़रों से बचते हुए चीन को तेल बेचने और वहां से सामान आयात करने में बड़ी सहूलियत होने वाली है.

ईरान से तेल ख़रीदने पर अमेरिका और पश्चिमी देशों ने प्रतिबंध लगा रखा है. जबकि चीन इस मौके का फायदा उठाते हुए सस्ते दरों पर ईरान के तेल का बड़े पैमाने पर आयात करता है.

यही कारण है कि प्रतिबंधों के बावजूद, ईरान का तेल निर्यात 2024 की पहली तिमाही के दौरान 35.8 अरब डॉलर के सबसे उच्चतम स्तर पर रहा. ये बात खुद ईरान के कस्टम प्रमुख ने बताई थी.

यूएस हाउस फ़ाइनेंशियल कमिटी की पिछले साल की रिपोर्ट के अनुसार, ईरान का 80 फीसदी तेल निर्यात चीन को जाता है और वह ईरान से 15 लाख बैरल तेल प्रतिदिन खरीदता है.

अरविंद येलेरी

अरविंद येलेरी का कहना है कि ईरान के साथ हाल के दिनों में चीन ने व्यापार और आर्थिक संबंध तो बढ़ाए ही हैं लेकिन इसके पीछे उसकी रणनीतिक मंशा ज़्यादा है.

वो कहते हैं, “शी जिनपिंग ने 2010 के दशक की शुरुआत में ईरान से ईंधन और व्यापार के ज़रिए रिश्ते बनाए. ये रिश्ते आज की तारीख़ में आगे बढ़कर चीन की रणनीतिक महत्वाकांक्षा को पूरा करने तक गए हैं. चीन ने पश्चिमी एशिया में जो रणनीतिक आधारभूत ढांचे में निवेश किया है, वो उल्लेखनीय है.”

“पश्चिमी एशिया में तेल का भंडार है, उसे खरीदार चाहिए. चीन सिर्फ खरीदार ही नहीं है बल्कि वह तेल के खनन, रिफ़ाइनिंग आदि का काम सालों से करता आया है. इसके अलावा परिवहन और एक पूरा कंज्यूमर मार्केट का इकोसिस्टम चीन ने बनाया है.”

अरविंद येलरी के मुताबिक़, पश्चिम एशिया में चीन के रणनीतिक दबदबे की आकांक्षा में ईरान की एक अहम भूमिका है. चीन ईरान रेल कॉरिडोर इसका उदाहरण है.

तस्नीमन्यूज़ की रिपोर्ट में कहा गया था कि मध्य एशिया को यूरोप से जोड़ने वाले रेलवे नेटवर्क के लिए छह देशों- ईरान, कज़ाखस्तान, चीन, उज़्बेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और तुर्की के रेल मंत्रियों के बीच पिछले महीने 12 मई को चर्चा हुई थी. इस रिपोर्ट में रेल नेटवर्क से जुड़े टैरिफ़ और अन्य बातों पर रज़ामंदी का भी दावा किया गया था.

अरविंद येलेरी कहते हैं ईरान-चीन संबंध को चीन की रणनीतिक महत्वाकांक्षा के नज़रिए से देखना ज़रूरी है.

पश्चिम एशिया में चीन का हित और ईरान की ज़रूरत

आयातुल्लाह अली ख़ामेनेई (फाइल फोटो)

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चीन के लिए मध्य एशिया और पश्चिमी एशिया तक अपनी व्यापारिक पहुंच बनाने के वास्ते ईरान का लैंड रूट बहुत अहम है.

अरविंद येलेरी के अनुसार, पश्चिम के प्रतिबंधों को चीन एक अवसर की तरह लेता है और इसीलिए लीबिया, सीरिया, ईरान जैसे देशों को चीन आंख मूंद कर सपोर्ट करता है. लेकिन ये सिर्फ आर्थिक हित नहीं हो सकता, ये राजनीतिक और भू राजनीतिक हित हैं और चीन की मंशा इसे आगे ले जाने की है.

वो कहते हैं, “और इसीलिए ईरान पर सैन्य कार्रवाई की सूरत में चीन अपने व्यापक राजनीतिक हितों को देखते हुए ये नुकसान सहने के लिए तैयार होगा और ये भी संभावना है कि सहयोगियों के रूप में भारी नुकसान झेलने के बावजूद चीन का इस क्षेत्र में सबसे अधिक निवेश बना रहे.”

वो कहते हैं, “ये सही है कि ईरान की मौजूदा सरकार का पतन चीन के लिए एक बड़ा झटका हो सकता है लेकिन उसने पश्चिम एशिया में जितना निवेश कर रखा है, इतना किसी ओर क्षेत्र में नहीं किया, अफ़्रीका में भी नहीं.”

चीन अरब और प्रशांत सागर के समुद्री मार्ग को बायपास करने के लिए मध्य एशिया से यूरोप तक लैंड रूट को बनाने की कोशिश में है. इससे समय और लागत में भी कमी आएगी.

चीन ईरान रेल कॉरिडोर, एशिया को यूरोप से जोड़ने वाली चीन की महत्वाकांक्षी परियोजना ईस्ट वेस्ट कॉरिडोर का ही एक हिस्सा है और पश्चिम एशिया में कोई अस्थिरता उसकी योजना में बाधक होगी.

अरविंद येलेरी के अनुसार, “इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने ताज़ा हमले के बाद ईरान में सरकार बदलने का अपना संकल्प दोहराया है लेकिन चीन किसी भी हालत में नहीं चाहेगा कि ईरान का पतन हो. “

जंग भड़कने की स्थिति में चीन क्या क्या कर सकता है?

डोनाल्ड ट्रंप

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जी-7 की बैठक के बीच में ही उठकर वॉशिंगटन रवाना होने के बाद ट्रंप ने एक के बाद एक कई सोशल मीडिया पोस्ट किए.

ट्रंप ने ट्रुथ सोशल पर लिखा, “बिना शर्त सरेंडर.” एक अन्य पोस्ट में उन्होंने लिखा, “हमें पता है कि ईरानी सुप्रीम लीडर कहां हैं, वह एक आसान निशाना हैं, लेकिन फ़िलहाल वहां सुरक्षित हैं.”

लगभग अपने कड़े इरादे ज़ाहिर करते हुए उन्होंने एक पोस्ट में लिखा, “ईरान के आसमान पर अब हमारा पूर्ण नियंत्रण है. ईरान के पास अच्छे स्काई ट्रैकर्स और अन्य रक्षा उपकरण थे और बड़ी मात्रा में थे, लेकिन वे अमेरिका में बने, डिज़ाइन किए और तैयार किए गए उपकरणों की बराबरी नहीं कर सकते.”

ऐसे में सबसे बड़ा सवाल है कि जंग के और भड़कने की स्थिति में चीन की क्या प्रतिक्रिया रहने वाली है.

इंडियान काउंसिल ऑफ़ वर्ल्ड अफ़ेयर में सीनियर रिसर्च फेलो डॉ. फ़ज़्ज़ुर रहमान सिद्दीक़ी का मानना है कि चीन सिर्फ़ कड़े बयान देने के अलावा पश्चिम एशिया के संघर्ष में बहुत कुछ करने की स्थिति में नहीं है.

उन्होंने बीबीसी से कहा, “पश्चिम एशिया में चीन की मौजूदगी लगभग डेढ़ दशक की है जबकि अमेरिका वहां प्रत्यक्ष रूप से 1945 से ही है. पश्चिम एशिया की भू राजनीति में अभी भी इसराइल और अमेरिका ही ड्राइविंग सीट पर हैं.”

डॉ. फ़ज़्ज़ुर रहमान सिद्दीक़ी कहते हैं, “चीन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थाई सदस्य है लेकिन उसने पश्चिम एशिया के किसी मामले में पहली बार रूस के साथ मिलकर वीटो किया सीरिया के तत्कालीन राष्ट्रपति बशर अल असद के मामले में, जब उन पर युद्ध अपराध के आरोप में प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव आया था. और एक-डेढ़ दशक पहले चीन ने खाड़ी के देशों में दिलचस्पी लेनी शुरू की है. इससे अंदाज़ा लग सकता है कि उसकी सीमाएं क्या हैं.”

उनके अनुसार, “चीन अभी भी उस क्षेत्र में बिना रूस के बहुत अच्छी स्थिति में नहीं है. अमेरिका के पास इस क्षेत्र का एक लंबा तज़ुर्बा है, प्रभावशाली सैन्य मौजूदगी है जिनमें कई अमेरिकी सैन्य अड्डे शामिल हैं. लेकिन चीन के डिजाइन में ईरान की उतनी अहमियत नहीं है, सिवाय आर्थिक पक्ष को छोड़ कर.”

हालांकि अरविंद येलेरी कहते हैं, “चीन ईरान को मेडिकल या अन्य मदद कर सकता है. और संभावना है कि वह आपूर्ति जारी रखेगा.”

वो कहते हैं, “बीते 20 सालों में चीन ने रेडक्रॉस या संयुक्त राष्ट्र पीस कीपिंग फ़ोर्स के ज़रिए दुनिया में सबसे अधिक तैनाती पश्चिम एशिया में की है. और सबसे पहले चीन जो करेगा वो ये कि संयुक्त राष्ट्र में बात करके ईरान को आपूर्ति जारी रखी जाए.”

अरविंद येलेरी कहते हैं, “चीन की यह रणनीति रही है कि जहां ज़रूरत होती है वह सप्लाई लाइन के मार्फत मदद करता है, रूस यूक्रेन युद्ध इसका एक उदाहरण है. वह सैन्य झड़प में सीधे तौर पर शामिल नहीं होता.”

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

SOURCE : BBC NEWS