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इंदौर: मध्य प्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर में आयोजित राष्ट्रीय देवी अहिल्या पुरस्कार वितरण समारोह के दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत ने एक बार फिर एक ऐसा बयान दिया है, जो चर्चा का विषय बन गया है। उन्होंने कहा कि पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के कार्यकाल के दौरान यदि संघ की ओर से ‘घर वापसी’ अभियान नहीं चलाया गया होता, तो आदिवासी समुदाय का एक हिस्सा राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों में शामिल हो सकता था।
RSS के संदर्भ में ‘घर वापसी’ का मतलब उन मुसलमानों और ईसाइयों को हिंदू धर्म में वापस लाने से है, जिनके पूर्वज हिंदू थे। भागवत के इस बयान पर कैथोलिक बिशप्स कॉन्फ्रेंस ऑफ इंडिया (CBCI) ने आपत्ति जताई है। संस्था ने इसे चौंकाने वाला बताते हुए पूछा कि प्रणब मुखर्जी के जीवित रहते हुए यह बात क्यों नहीं कही गई। साथ ही, CBCI ने यह भी कहा कि भारत में ईसाई समुदाय की आबादी केवल 2.3% है और ऐसे बयान उनके लिए आहतकारी हैं।
मोहन भागवत ने अपने बयान में स्पष्ट किया कि यदि धर्म परिवर्तन आंतरिक आध्यात्मिकता के कारण हो, तो इसे गलत नहीं कहा जा सकता। हालांकि, उन्होंने जोर देकर कहा कि लालच या प्रलोभन देकर धर्म परिवर्तन कराना अनुचित है। उनके अनुसार, ऐसा करने से यह संदेह पैदा होता है कि इसके पीछे आध्यात्मिकता फैलाने की मंशा नहीं, बल्कि सत्ता या प्रभाव बढ़ाने का उद्देश्य है। हालाँकि, यह सवाल लंबे समय से चर्चा का विषय है। आदिवासी इलाकों में ईसाई धर्मांतरण की खबरें अक्सर सुर्खियों में रहती हैं। लेकिन इसके साथ ही यह भी देखा गया है कि कुछ मामलों में धर्म परिवर्तन के बाद लोगों के राष्ट्र के प्रति विचारों में बदलाव आ सकता है। उदाहरण के लिए, पिछले वर्ष पकड़े गए हिज्ब उत-तहरीर के आतंकियों में कई ऐसे थे, जो पहले हिंदू थे। पहले उन्हें इस्लाम में धर्मांतरित किया गया और फिर आतंकी बनाया गया और आज वे आतंकी भारत में ही खून की नदियाँ बहाना चाहते हैं।
यह घटनाएं यह सवाल खड़ा करती हैं कि क्या धर्म परिवर्तन की आड़ में राष्ट्र-विरोधी मानसिकता को बढ़ावा दिया जा रहा है। क्या धर्म परिवर्तन के साथ ही ‘राष्ट्रांतरण’ का खतरा भी मंडराता है? यदि किसी व्यक्ति का धर्म परिवर्तन उसे अपने ही देश के खिलाफ खड़ा कर देता है, तो यह न केवल समाज, बल्कि पूरे देश की सुरक्षा के लिए खतरा बन सकता है।
मोहन भागवत का बयान इस विषय पर बहस को फिर से जीवित कर देता है कि धर्म परिवर्तन और राष्ट्र-हित के बीच संतुलन कैसे बनाया जाए। हालांकि, यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि हर धर्म और समुदाय को उसकी आस्था और पहचान के साथ स्वतंत्रता मिले। लेकिन इसके साथ ही, यह भी जरूरी है कि किसी भी प्रकार के धर्म परिवर्तन से देश की अखंडता और एकता प्रभावित न हो। धर्म व्यक्तिगत आस्था का विषय है, लेकिन यदि इसका उपयोग किसी राजनीतिक या राष्ट्र-विरोधी एजेंडे के लिए किया जाता है, तो इसे रोकने के लिए सख्त कदम उठाने की जरूरत है।
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