Source :- BBC INDIA
उत्तर प्रदेश में 34 साल से होमगार्ड की नौकरी कर रहे नंदलाल को पुलिस ने एक शिकायत के आधार पर आज़मगढ़ में गिरफ़्तार कर लिया.
पुलिस ने बताया है कि ज़िले के रानी की सराय थाने के रिकॉर्ड्स में उनका नाम 1988 से ही बतौर हिस्ट्रीशीटर दर्ज था
उन पर आरोप है कि उन्होंने अपनी पहचान बदलकर होमगार्ड की नौकरी पाई.
दरअसल नंदलाल का अपने रिश्तेदारों के साथ झगड़ा हो गया था जिसके बाद ये मामला प्रकाश में आया.
पुलिस ने क्या बताया?
नंदलाल का पूर्व नाम नकदू था. ज़िले के रानी की सराय थाने के रिकॉर्ड्स में उनका नाम 1988 से ही बतौर हिस्ट्रीशीटर दर्ज था.
वो एक नए नाम से न केवल जेल के बाहर जीवन जी रहे थे बल्कि वो होमगार्ड की नौकरी पाने में भी सफल रहे.
आज़मगढ़ के पुलिस अधीक्षक हेमराज मीणा ने बताया कि नंदलाल उर्फ नकदू मूल रूप से थाना रानी की सराय के रहने वाले हैं. वो 1990 से थाना मेंहनगर में होमगार्ड के रूप में ड्यूटी भी कर रहे थे.
पुलिस को यह जानकारी मिली थी कि 1984 से लेकर 1989 के बीच उनके ख़िलाफ़ कई मुक़दमे पंजीकृत हुए थे .
हालांकि इस प्रकरण में पुलिस पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं क्योंकि मेंहनगर थाने और रानी के सराय थाने के बीच की दूरी महज़ 15 किलोमीटर ही है.
पुलिस के मुताबिक़, नंदलाल उर्फ नकदू पर गैंगस्टर एक्ट के तहत भी कार्रवाई हुई थी.
‘नंदलाल ही हिस्ट्रीशीटर नकदू हैं’
अभियुक्त नंदलाल की पहचान उजागर होने की कहानी और गिरफ़्तारी भी उतनी ही दिलचस्प है, जितना कि उनका इतने लंबे वर्षों तक पहचान छिपाकर जीना.
34 साल तक यह बात उजागर नहीं हो सकी कि नंदलाल ही हिस्ट्रीशीटर नकदू हैं. लेकिन कुछ अरसा पहले मारपीट की एक घटना के बाद ये मामला प्रकाश में आया.
दरअसल, अभियुक्त के भतीजे ने तत्कालीन डीआईजी वैभव कृष्ण को प्रार्थना पत्र देकर आरोप लगाया था ‘नंदलाल ही हिस्ट्रीशीटर नकदू है.’
डीआईजी के आदेश पर हुई जांच में पुलिस ने आरोपों को सही पाया जिसके बाद अभियुक्त को गिरफ्तार कर लिया गया.
पुलिस ने बताया कि उनकी जांच में ये बात सामने आई कि अभियुक्त ने अपना नाम बदलवा लिया था, बाद में वो दस्तावेज़ों में भी अपना नाम बदलवाने में सफल रहे. साल 1990 में वो होमगार्ड के रूप में भर्ती होने में भी कामयाब रहे और तब से वो लगातार होमगार्ड में ड्यूटी कर रहे थे.
अभियुक्त नंदलाल उर्फ नकदू ने चौथी क्लास तक पढ़ाई की थी. पुलिस अधीक्षक हेमराज मीणा के मुताबिक़, नक़ली डॉक्यूमेंट्स के आधार पर ही अभियुक्त ने नियुक्ति पाई.
पुलिस ने बताया है कि अभियुक्त जेल में है और बाकी जांच जारी है.
पुलिस इस पहलू से भी जांच कर रही है कि इतने लंबे वक्त ड्यूटी करने के दौरान वो कहां-कहां तैनात रहे और कैसे अपनी पहचान छुपाने में भी कामयाब रहे.
पुलिस अधीक्षक के मुताबिक़, इन सभी चीज़ों की जांच की जा रही है, इस प्रकरण में पुलिस विभाग की या होमगार्ड विभाग की किसी तरह की लापरवाही मिलेगी तो इसके लिए ज़िम्मेदार लोगों के ख़िलाफ़ भी जांच होगी.
हेमराज मीणा ने कहा कि जांच के के दौरान जो भी तथ्य सामने आएंगे, उनके अनुसार आगे की कार्रवाई की जाएगी, अभी इनको (अभियुक्त को) निलंबित कर दिया गया है और उनकी बर्खास्तगी के लिए होमगार्ड डिपार्टमेंट को सूचित किया गया है.
रिश्तेदारों के झगड़े से खुला राज़
दरअसल नकदू उर्फ नंदलाल की गांव में ही अक्तूबर में रिश्तेदारों के बीच लड़ाई हुई थी.
नकदू के भतीजे नंदलाल ने पुलिस को उनके बारे में शिकायत दी, जिसके बाद दूसरे रिश्तेदारों ने भी शिकायत की.
शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि नकदू नाम का व्यक्ति अपना नाम बदलकर पुलिस की आंखों में 34 सालों से धूल झोंक होमगार्ड की नौकरी कर रहा है.
अभियुक्त के खिलाफ़ 1984 में हत्या का एक मुकदमा दर्ज हुआ था. कई और अपराध में नाम आने के बाद 1988 में उन पर गैंगस्टर एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज हुआ.
आज़मगढ़ के थाना रानी की सराय में अभियुक्त का हिस्ट्रीशीट भी 1988 में खुला था. इसकी संख्या 52 ए है, जिसका सत्यापन भी 1988 से होता रहा है.
व्यक्ति के ख़िलाफ़ पहचान छुपाने और धोखाधड़ी के मामले में 2024 में भारतीय न्याय संहिता की धारा 319 (2) और भारतीय न्याय संहिता की धारा 318 (4) के तहत मामला दर्ज किया गया है.
1990 से होमगार्ड की नौकरी
पुलिस अधीक्षक हेमराज मीणा के मुताबिक़, अभियुक्त ने 1984 में आपसी रंजिश में एक व्यक्ति की गोली मारकर हत्या कर दी थी.
इस अपराध के बाद अभियुक्त का नाम डकैती समेत कई अन्य अपराधिक गतिविधियों में आया था.
1988-89 में अभियुक्त पुलिस रडार से गायब हो गया और बाद में फ़र्ज़ी दस्तावेज़ के आधार पर होमगार्ड की नौकरी प्राप्त कर ली थी.
रिकॉर्ड्स के मुताबिक़ चौथी कक्षा तक पढ़े अभियुक्त ने नौकरी के लिए आठवीं की मार्क्सशीट जमा की है, जिसमें उसका नाम नंदलाल पुत्र लोकई यादव दर्ज है.
पुलिस अब उन अफसरों की भी जांच कर रही है जिन्होंने इसको चरित्र प्रमाणपत्र देने में मदद की या फिर सही से जांच नहीं की थी.
अभियुक्त की उम्र अब 57 साल है और जल्दी ही रिटायर होने वाले हैं, तभी इसका भंडाफोड़ हो गया था.
यूपी पुलिस क्राइम और मुठभेड़
साल 2021 में पूरे राज्य में 29 पुलिस वालों के ख़िलाफ़ रंगदारी, झूठे केस में फंसाने से लेकर हत्या का मुकदमा दर्ज किया गया था.
साल 2024 में एसओ समेत 18 पुलिस वालों को सरकार ने रंगदारी के आरोप में निलंबित किया था. ये सभी बलिया में तैनात थे.
हालांकि साल 2020 में कानपुर के बिकरू में गैंगस्टर विकास दुबे के साथ मुठभेड़ में एक डिप्टी एसपी समेत आठ पुलिस कर्मियों की जान चली गयी थी लेकिन इस मामले में कई पुलिसकर्मियों पर लापरवाही के आरोप भी लगे थे.
कुछ पुलिस कर्मियों के खिलाफ गैंगस्टर विकास दुबे को मदद पहुंचाने के आरोपों की भी जांच की गयी थी. उस वक्त कानपुर के चौबेपुर पुलिस स्टेशन के सभी पुलिस कर्मियों का तबादला भी कर दिया गया था.
उत्तर प्रदेश में साल 2017 से बीजेपी नेता योगी आदित्यनाथ की अगुवाई वाली बीजेपी सरकार है.
पुलिस के मुताबिक़, यूपी में मार्च 2017 से सितंबर 2024 तक तक़रीबन 12 हज़ार 964 पुलिस एनकाउंटर हुए हैं जिनमें 207 लोगों की मौत हुई है.
इस दौरान 27 हज़ार 117 अपराधी पकड़े गए हैं और 6 हज़ार लोग घायल हुए हैं. इसी अवधि में1601 पुलिसवाले घायल हुए हैं और 17 की मौत हुई है जिसमें बिकरू कांड में मारे गए आठ पुलिसकर्मी भी शामिल हैं.
एसटीएफ़ के एडीजी अमिताभ यश के मुताबिक़, पिछले साढ़े सात वर्षों में एसटीएफ़ ने 7 हज़ार अपराधियों को पकड़ा है, जिनमें 49 लोगों की मौत मुठभेड़ में हुई है.
इन अपराधियों के ऊपर 10 हज़ार से लेकर 5 लाख रुपये तक का इनाम घोषित था.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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