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उमर अब्दुल्लाह और महबूबा मुफ्ती में जिस तुलबुल प्रोजेक्ट पर छिड़ी बहस, वो क्या है?

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Source :- BBC INDIA

जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती और मौजूदा मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्लाह

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20 मिनट पहले

जम्मू कश्मीर के मौजूदा मुख्यमंत्री के एक बयान और पूर्व मुख्यमंत्री के इसका विरोध करने के बाद उत्तर कश्मीर का तुलबुल बैराज चर्चा में आ गया है.

दरअसल इसी गुरुवार जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्लाह ने एक उत्तर कश्मीर के वुलार झील का एक वीडियो ट्वीट किया और लिखा कि सिंधु जल समझौते के तहत इस बैराज का काम अधूरा छोड़ दिया गया था, जिसे अब पूरा कर लिया जाना चाहिए.

जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने इसका विरोध करते हुए उमर अब्दुल्लाह के बयान को ग़ैर-ज़िम्मेदाराना बताया. साथ ही उन्होंने इसे ख़तरनाक रूप से उकसावे वाला बयान भी कहा.

पहलगाम में चरमपंथी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्ते अपने न्यूनतम स्तर पर हैं. सीज़फ़ायर की घोषणा के बाद भी भारत ने सिंधु जल समझौते निलंबित रखा है. ताज़ा विवाद इस समझौते से जुड़ी तुलबुल परियोजना के बारे में है.

उमर अब्दुल्लाह ने क्या कहा था?

उमर अब्दुल्लाह

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इसी गुरुवार उमर अब्दुल्लाह ने 30 सेकेंड का एक वीडियो सोशल मीडिया पर पोस्ट किया.

उन्होंने लिखा, “वीडियो में जो दिख रहा है वो तुलबुल नेविगेशन बैराज है. इस पर 1980 के दशक की शुरुआत में काम शुरू हुआ था लेकिन पाकिस्तान के सिंधु जल समझौते का हवाला देते हुए दबाव डालने के बाद यहां काम बंद कर दिया गया.”

“अब जब सिंधु जल समझौते को ‘अस्थायी रूप से निलंबित’ कर दिया गया है, मैं सोच रहा हूं कि क्या हम इस परियोजना को फिर से शुरू कर पाएंगे. इससे हम झेलम का इस्तेमाल नेविगेशन के लिए कर सकेंगे. इससे नदी के बहाव के निचले हिस्से में बनी बिजली परियोजनाओं के बिजली उत्पादन में भी सुधार होगा, खासकर सर्दियों के दिनों में.”

महबूबा मुफ्ती ने जताई आपत्ति

महबूबा मुफ्ती

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जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने शुक्रवार को इस वीडियो को रीट्वीट किया और मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्लाह के बयान को “बेहद दुर्भाग्यपूर्ण” बताया.

उन्होंने लिखा, “भारत और पाकिस्तान के बीच चल रहे तनाव के बीच जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री की तुलबुल नेविगेशन प्रोजेक्ट पर फिर से काम शुरू करने की अपील बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है.”

“ऐसे वक्त जब दोनों देशों के बीच युद्ध बस होते-होते रुक गया, जिसमें जम्मू-कश्मीर के मासूम लोगों को जान का नुक़सान हुआ, व्यापक विनाश और पीड़ा हुई, ऐसे वक्त ये बयान न केवल गै़र-ज़िम्मेदाराना है, बल्कि ख़तरनाक रूप से उकसावे वाला भी है.”

उन्होंने लिखा कि देश में किसी भी अन्य व्यक्ति की तरह जम्मू-कश्मीर के लोग भी शांति के हकदार हैं.

उन्होंने लिखा, “पानी जैसी ज़रूरी और जीवन देने वाली चीज़ को हथियार बनाना न केवल अमानवीय है, बल्कि इसमें एक द्विपक्षीय मामले को अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बनाने का जोखिम भी है.”

सोशल मीडिया पर छिड़ी बहस

सिंधु जल संधि

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लेकिन बात इन दो ट्वीट के साथ ख़त्म हो गई ऐसा नहीं है, महबूबा मुफ्ती के ट्वीट का जवाब उमर अब्दुल्लाह ने दिया.

उन्होंने लिखा, “दरअसल दुर्भाग्यपूर्ण ये है कि सस्ती पब्लिसिटी की अंधी कोशिश और सीमापार बैठे कुछ लोगों को खुश करने की कोशिश में आप ये बात समझने से इनकार कर रही हैं कि सिंधु जल समझौता जम्मू-कश्मीर के लोगों के हितों के साथ ऐतिहासिक रूप से किया गया सबसे बड़ा विश्वासघात है.”

उमर अब्दुल्लाह ने लिखा कि वो हमेशा से इस समझौते का विरोध करते रहे हैं.

उन्होंने लिखा, “इसका खुले तौर पर विरोध करना किसी भी सूरत में युद्धोन्माद नहीं है, ये एक ऐतिहासिक अन्याय को सुधारने जैसा है जिससे जम्मू-कश्मीर के लोगों का अपने पानी के इस्तेमाल का हक़ उनसे छिन गया.”

उमर अब्दुल्लाह के इस ट्वीट का जवाब महबूबा मुफ्ती ने दिया और उमर अब्दुल्लाह के परिवार के एक सदस्य का नाम लेते हुए लिखा, “आपको ये याद करने की ज़रूरत है कि आपके आदरणीय दादाजी, शेख़ साहब ने सत्ता खोने के बाद दो दशकों से ज़्यादा समय तक पाकिस्तान में विलय की वकालत की थी. लेकिन मुख्यमंत्री के रूप में फिर से बहाल होने के बाद उन्होंने अचानक भारत के पक्ष में रुख़ कर लिया.”

महबूबा मुफ्ती ने लिखा, “इससे विपरीत पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) ने लगातार अपने विश्वास और प्रतिबद्धता को बरकरार रखा है. ये आपकी पार्टी से अलग है जिसकी वफ़ादारी राजनीतिक सुविधा के अनुसार बदल गई है.”

उन्होंने तंज़ कसते हुए लिखा, “अपना समर्पण दिखाने के लिए हमें न तो तनाव बढ़ाने और न ही युद्धोन्मादी बयानबाज़ी करने की ज़रूरत है. हमारा काम सब बयां कर देता है.”

प्लेबैक आपके उपकरण पर नहीं हो पा रहा

इधर महबूबा मुफ्ती के इस पोस्ट के कुछ देर बाद जम्मू-कश्मीर पीडीपी (महबूबा मुफ्ती की पार्टी) ने अपनी मासिक पार्टी मैगज़ीन में युद्ध और पानी के मुद्दे पर विस्तार से लिखा.

इसकी कॉपी महबूबा मुफ्ती ने और पीडीपी ने सोशल मीडिया पर अपने आधिकारिक हैंडल पर पोस्ट की.

इसमें लिखा गया है कि तुलबुल नेविगेशन प्रोजेक्ट और सीमापार जाने वाले पानी के नियंत्रण के बारे में दी गई उमर अब्दुल्ला की टिप्पणी न केवल ग़लत समय पर की गई है, बल्कि बेहद गै़र-ज़िम्मेदाराना है.

महबूबा मुफ्ती का ट्वीट, जिसमें उन्होंने सीएम उमर अब्दुल्लाह के दादा के नाम का ज़िक्र किया था, उसका जवाब उमर अब्दुल्लाह ने दिया.

उन्होंने लिखा, “क्या यह वाकई बेस्ट है जो आप कर सकते हैं? एक ऐसे व्यक्ति पर सस्ते हमले करना जिसे आपने खुद कश्मीर का सबसे बड़ा नेता कहा है.”

उमर अब्दुल्लाह ने लिखा, “स्वर्गीय मुफ्ती साहब का नाम और ‘अन्य कई बातों को’ इससे बाहर रखकर आप इस चर्चा को जिस गटर में ले जाना चाहती हैं, मैं उससे बाहर निकल रहा हूं.”

उन्होंने लिखा, “आप जिस किसी के भी हितों की वकालत करना चाहती हैं, करिए और मैं जम्मू-कश्मीर के लोगों के हितों की बात करता रहूंगा ताकि हम अपनी नदियों का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए कर सकें. मैं पानी नहीं रोकने वाला हूं, बस अपने लिए इसका अधिक इस्तेमाल करूंगा.”

इसके बाद महबूबा मुफ्ती ने एक और सोशल मीडिया पोस्ट किया जिसमें उन्होंने जम्मू-कश्मीर में चिनाब घाटी की परियोजनाओं के बारे में लिखा कि इनमें नेशनल हाइड्रो पावर कॉर्पोरेशन (एनएचपीसी) की और जम्मू कश्मीर पावर डिवेलपमेन्ट कॉर्पोरेशन के बीच 49 फीसदी ही हिस्सेदारी थी. लेकिन फ़ारुख़ अब्दुल्ला के मुख्यमंत्री रहते साल 2000 में इन परियोजनाओं की पूरी हिस्सेदारी एनएचपीसी के ज़रिए केंद्र सरकार को दे दी गई.

उन्होंने लिखा, “पीडीपी ने लगातार उन बिजली परियोजनाओं को वापस करने की मांग की है, जिन्हें नेशनल कॉन्फ्रेंस (उमर अब्दुल्लाह की पार्टी) ने थाल में परोस कर सौंप दिया था. पीडीपी-बीजेपी गठबंधन (2015 में गठबंधन सरकार बनी थी) के एजेंडे में भी सहमति बनी थी कि सिंधु जल संधि से हुए नुक़सान की भरपाई के लिए दो परियोजनाएं जम्मू और कश्मीर को लौटाई जाएंगी.”

उन्होंने लिखा, “मैं स्पष्ट कहना चाहती हूं कि हम कभी इस समझौते को रद्द करने के समर्थन में नहीं है. इससे तनाव बढ़ सकता है और एक बार फिर जम्मू-कश्मीर संघर्ष के केंद्र में आ सकता है.”

“पानी जैसे हमारे संसाधन का इस्तेमाल जीवन के लिए होना चहिए, न कि हथियार की तरह. सिंधु जल समझौते को अभी रद्द करना, संघर्षविराम को पटरी से उतारने की एक लापरवाही भरी चाल है. अस्थिरता बढ़ाना किसी भी तरीके से देशभक्ति नहीं है.”

तुलबुल प्रोजेक्ट क्या है?

उरी के पास झेलम नदी की एक तस्वीर

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भारत और पाकिस्तान के बीच जल बंटवारे को लेकर नौ साल तक वार्ता चली जिसके बाद पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति अयूब ख़ान और भारत के पहले प्रधानमंत्री रहे जवाहरलाल नेहरू के बीच सितंबर 1960 में सिंधु जल समझौता हुआ.

इस संधि के तहत सिंधु बेसिन की तीन पूर्वी नदियों रावी, ब्यास और सतलुज का पानी भारत को आवंटित किया गया. वहीं तीन पश्चिमी नदियों सिंधु, झेलम और चिनाब के जल का 80 फ़ीसदी हिस्सा पाकिस्तान को आवंटित किया गया.

सिंधु जल संधि के मुताबिक़, भारत पूर्वी नदियों के पानी का, कुछ अपवादों को छोड़कर, बेरोकटोक इस्तेमाल कर सकता है. वहीं पश्चिमी नदियों के पानी के इस्तेमाल का कुछ सीमित अधिकार भारत को भी दिया गया था. जैसे बिजली बनाना, कृषि के लिए सीमित पानी.

जम्मू कश्मीर के बांदीपोरा में मौजूद वुलार झील से झेलम नदी में जाने वाले पानी को रेगुलेट करने के लिए भारत ने वुलार झील परियोजना शुरू की गई.

वो लिखते हैं, “ये झील श्रीनगर से 13 मील उत्तर की तरफ झेलम नदी पर है. नदी दक्षिण की तरफ से झील में मिलती है और पश्चिम की तरफ बह जाती है और झील के कारण पानी का प्रवाह बाधित होता है.”

इस बैराज पर काम 1984 में शुरू किया गया था. सरकार का कहना है कि इसका उद्देश्य सर्दियों के दिनों में झील से नदी में जाने वाले पानी के बहाव को रेगुलेट करना था.

सिंधु जल समझौता

2006 अगस्त में इस पर सचिव स्तर की बातचीत हुई. सरकार के बयान के अनुसार पाकिस्तान का मानना था कि इस बैराज में 30 करोड़ क्यूबिक मीटर पानी जमा रखा जा सकता है. पाकिस्तान ने ये कहते हुए इसका विरोध किया कि झेलम की मुख्य धारा में इस तरह की स्टोरेज फेसिलिटी बनाने की भारत को इजाज़त नहीं है.

वहीं भारत का कहना था कि ये स्टोरेज फेसिलिटी नहीं बल्कि नेविगेशन फेसिलिटी है जो पानी के बहाव को रेगुलेट करेगा और ये सिंधु जल समझौते के तहत है.

ऑबज़र्वर रीसर्च फाउंडेशन के अनुसार समझौते के अनुसार बाढ़ की रोकथाम के मद्देनज़र दस हज़ार एकड़ फीट तक पानी रखने के लिए नदी पर स्टोरेज बनाया जा सकता है, हालांकि स्टोरेज का उद्देश्य पानी को रोकना नहीं होना चाहिए.

2011 में जब इस पर बात हुई तो पाकिस्तान ने भारत से कहा वो ये सुनिश्चित करे कि इसके ज़रिए पानी रोका नहीं जाएगा. भारत ने इस बात पर हामी भरी थी.

बाद में 2014 में संसद में इससे जुड़े एक सवाल के उत्तर में तत्कालीन जल संसाधन मंत्री पी विश्वनाथ ने बताया था, “भारत ने सुझाव दिया कि इस मुद्दे को सिंधु जल संधि के प्रावधानों के तहत द्विपक्षीय रूप से हल किया जाना चाहिए. हालांकि सद्भभावना दिखाते हुए इस परियोजना पर काम दो अक्टूबर, 1987 से निलंबित कर दिया गया.”

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

SOURCE : BBC NEWS