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एक ऐसा बैंक जो नहीं करता पैसों का लेनदेन। इस बैंक का नाम श्रीराम बैंक है। यह श्रद्धालुओं को प्रभु राम का नाम लिखने का लोन देने वाला बैंक बताया जा रहा है। अब तक यहां से करोड़ों राम नाम लिखने का ऋण भी प्रदान किया जा चुका है। यहां जमा करने से अधिक ऋण लेने के लिए लोगों की भीड़ लगी हुई रहती है। इतना ही नहीं इस बैंक की शाखा मेला क्षेत्र के सेक्टर 6 में 22 दिसंबर के दिन शुरू की गई थी। इसके कर्ताधर्ता आशुतोष वार्ष्णेय का कहना है कि यह बैंक तकरीबन 150 साल पुराना है। इसकी EMI यानि कि मासिक किस्त  भी वसूल की जाती है। इसका लेखा-जोखा भी बहुत ही खास ढंग से संजोया जाता है।

आशुतोष का इस बारें में कहना है कि न्यूनतम ऋण डेढ़ लाख का ही होता है। इसके आगे कितना ऋण लेना है, यह श्रद्धालु पर डिपेंड करता है। राम नाम लिखन के लिए छपी-छपाई मुफ्त कॉपियां भी प्रदान की जाती है। इतना ही नहीं इनके रिक्त खानों में ही राम का नाम लिखना होता है। बुकलेट के हर पेज पर राम नाम की गणना भी दर्ज की जाती है। खबरों की माने तो कॉपियां भर जाने के पश्चात श्रद्धालु उन्हें राम बैंक में जमा कर देते है। बाद में यही कॉपियां दूसरे के लिए ऋण के रूप में भी काम आती है। किसी श्रद्धालु को 1.5 लाख राम नाम का ऋण प्रदान किया जाता है तो इसे वह किस्त के रूप में लिखकर रिटर्न करता है। अब तक 25 से ज्यादा लोग करोड़ों राम नाम लिखने का ऋण उठा चुके है। महाकुंभ के पश्चात इसका आधिकारिक डाटा भी जारी किया जाने वाला है।

इतना ही नहीं कुछ रिपोर्ट्स में तो ये भी कहा जा रहा है कि राम नाम का लेखन हिंदी के साथ अंग्रेजी, उर्दू और बांग्ला में भी कर पाएंगे। यह बैंक 6 से लेकर 80 वर्ष तक के लोगों को ऋण प्रदान किया जाता है। शर्त यह है कि इसे लिखने वाले को मांस-मदिरा के साथ लहसुन-प्याज का सेवन भी छोड़ना पड़ जाता है। वहीं ये भी कहा जा रहा है कि मेला शाखा के प्रचारक राजकुमार इस बारें में बोलते है कि ऋण लेने के लिए लाभार्थी के पास केवल अपना एक तस्वीर होना चाहिए, जिससे उसकी पहचान भी की जा सके। 

नीदरलैंड के इस व्यक्ति ने लिया है एक करोड़ राम नाम का ऋण: हैरान कर देने वाली बात तो ये है कि राम नाम का ऋण लेने वालों में कई विदेशी श्रद्धालु का नाम भी शामिल है। इन्हीं में हैं, नीदरलैंड के हैंक केल्मैन और अमेरिका में प्रवास कर रहीं सोनल सिंह। इन्होंने एक-एक करोड़ का ऋण उठाया है। हैंक अब रामकृष्ण दास बन चुके है।

बही खातों से ई-राम तक आ चुका है ये बैंक: मीडिया रिपोर्ट्स का कहना है कि बैंक की शुरुआत को लेकर आशुतोष वार्ष्णेय इस बारें में बोलते है कि यह उनकी 5वीं पीढ़ी है जो इस बैंक को चला रही है। चौक के व्यापारियों ने इस बैंक की शुरुआत की थी। वे अपनी कमाई का 10 प्रतिशत सामाजिक कार्यों में लगा देते थे। इसी से राम नाम लेखन को शुरू किया गया। पहले उनके बही खातों में लिख दिया जाता था। फिर, बुकलेट आ गई। अब ई-राम भी आ चुका है। E-राम सोशल मीडिया अकाउंट के माध्यम लेनदेन के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

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