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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पद संभालते ही ऐक्शन में आ गए हैं। उन्होंने कई एग्जीक्यूटिव ऑर्डर्स पर साइन किए हैं। इनमें से एक फैसला डब्लूचएचओ से हटने का भी है। खास बात यह है कि ट्रंप ने चीन पर हमला बोलते हुए डब्लूएचओ से अमेरिका के हटने का फैसला किया है। उन्होंने कहा है कि चीन की आबादी अमेरिका से कहीं ज्यादा है। इसके बावजूद वह काफी कम फंडिंग कर रहे हैं। कहीं न कहीं ट्रंप का निशाना पिछले कुछ वक्त में चीन से फैल रही बीमारियों और वायरसों पर भी रहा। बता दें कि डोनाल्ड ट्रंप पहले भी डब्लूएचओ को भी आड़े हाथों लेते रहे हैं। साल 2020 में कोरोना वायरस फैलने के समय भी ट्रंप ने डब्लूएचओ की खुलकर आलोचना की थी। इसके अलावा ट्रंप विभिन्न मुद्दों को लेकर चीन के ऊपर भी हमलावर रहे हैं।

गिना डाली रकम
राष्ट्रपति बनने के बाद ट्रंप ने कहाकि हमने डब्लूएचओ को 500 मिलियन डॉलर की रकम दी है। वहीं, चीन ने 1.4 बिलियन की आबादी के बावजूद मात्र 39 मिलियन डॉलर दिया। उन्होंने कहाकि मुझे लगता है कि यह थोड़ा अनफेयर लगता है। गौरतलब है कि ट्रंप ने राष्ट्रपति बनने के बाद पहले ही दिन कई बड़े फैसले लिए हैं। उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडेन के तमाम फैसलों को पलट दिया है।

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गौरतलब है कि डब्ल्यूएचओ का कुल सालाना बजट करीब 6.8 बिलियन डॉलर का है। इसमें एक बड़े हिस्से का योगदान अमेरिका की तरफ से आता है। यूनाइटेड नेशंस की एजेंसी डब्लूएचओ अमेरिका की मदद से 1948 में स्थापित हुआ था। यह दुनिया भर में स्वास्थ्य चुनौतियों से निपटता है। इसके अलावा महामारियों पर भी नजर रखना इसके काम में शुमार है। युद्धग्रस्त क्षेत्रों में भी डब्लूएचओ मदद मुहैया कराता है।

हालांकि डब्लूएचओ से हटने के फैसले को लेकर ट्रंप की आलोचना भी हो रही है। अमेरिका के स्वास्थ्य कानून विशेषज्ञों का कहना है कि यह फैसला अमेरिका के लिए ठीक नहीं होगा। इससे आम लोगों के साथ-साथ राष्ट्रीय सुरक्षा को भी आघात पहुंचेगा।

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