Source :- BBC INDIA
कहानी ज़िंदगी की: महेश भट्ट ने किस बात पर कहा, ‘सच पर झुर्रियां नहीं पड़तीं’
मुंबई स्टूडियो में 28 मार्च 2025 की वह एक खुशनुमा दोपहर थी, जब फ़िल्मकार महेश भट्ट अपनी ज़िंदगी की कहानी सुनाने हमारे पास आए.
76 साल की उम्र पार कर रहे महेश भट्ट तरोताज़ा अपनी मर्सिडीज़ से जब उतरे तो गले लग गए और उन्होंने बताया कि सोनी राज़दान ने उनसे ज़ोर देकर कहा कि इस शो में उन्हें ज़रूर जाना चाहिए.
वो बोले कि आमतौर पर सोनी इस तरह किसी की वकालत नहीं करती इसलिए तो और भी मुझे यहां आने का शौक़ पैदा हुआ.
मैंने अपने कॉलेज के दिनों में उनकी ‘सारांश’ सिनेमा हॉल में चार बार देखी थी और हर बार यह एक रोमांचक अनुभव था.
उसके लगभग 40 साल बाद आज मैं उसी सारांश के रचयिता से एक लंबी बातचीत करने वाला हूं. यह एक यादगार मौक़ा था.
“इरफ़ान भाई मैंने अपने आप को कभी फ़िल्ममेकर नहीं समझा. मैं तो रोज़गार की तलाश में निकला था. जैसे हर ज़िम्मेदार बेटे का फ़र्ज़ होता है कि अगर घर पर कोई तकलीफ आए तो वह कुछ करके, पैसा कमा के घर में फूड लाए. और कुछ तो आता नहीं था. किस्से कहानियां सुनाने की एक स्किल थी और इमोशनली बहुत ही पोटेंट मेरी एक सोच थी. मैं तो रोज़गार की तलाश में आया. और जब मैं डायरेक्टर बना तो इस उम्मीद के साथ मैंने काम नहीं किया कि हमारे हिंदी सिनेमा में बहुत कोई कमी है और मेरे आने से उसमें चार चांद लग जाएंगे. ऐसी कोई गलतफ़हमी नहीं थी मुझे.”
कला, विवाद और पैशन का दूसरा नाम महेश भट्ट
महेश भट्ट एक ऐसे फ़िल्मकार हैं, जो आज कला, विवाद और पैशन का दूसरा नाम हैं. 20 सितंबर 1948 को मुंबई में जन्मे महेश भट्ट ने अपने पांच दशक लंबे करियर में करीब 80 फ़िल्मों का निर्देशन और निर्माण किया, साथ ही 100 से अधिक फ़िल्मों में लेखक के रूप में योगदान दिया.
उनकी फ़िल्में ना सिर्फ़ मनोरंजन का साधन रहीं, बल्कि समाज के जटिल मुद्दों, मानवीय संवेदनाओं और निजी अनुभवों का आईना भी बनीं.
महेश भट्ट की सिनेमाई यात्रा उनकी पहली फ़िल्म मंज़िलें और भी हैं (1974) से शुरू हुई, लेकिन उन्हें असली पहचान मिली अर्थ (1982), सारांश (1984), और ज़ख़्म (1998) जैसी फ़िल्मों से, जिनमें उन्होंने अपने जीवन के दर्द और दर्शन को पर्दे पर उतारा.
30-31 साल की उम्र में ‘अर्थ’ बनाकर महेश भट्ट ने एक ऑटोबायोग्रफ़िकल ईडियम ढूंढ लिया था, जिसने उन्हें एक क्वांटम लीप दिया.
खुद उन्हीं के शब्दों में “तब तक मैं वो सब कर चुका था, जो बाज़ार बोलता था यानी ये करो वो करो एक्शन डालो. लेकिन फिर मैंने कहा वो बनाओ जो आपने डायरेक्टली एक्सपीरिएंस किया है. एक डायरेक्ट एक्सपीरिएंस जो होता है, उसे जब आप ट्रांसलेट करते हैं स्क्रीन पर, तो उसकी तड़प, उसकी गूंज, उसकी महक कुछ और ही होती है.”
आज 40-41 साल बाद जब ‘अर्थ’ को रिवाइव करके MAMI में दिखाया गया तो 19-20 साल के लड़के-लड़कियों में भी इस फ़िल्म के लिए गहरा शौक़ देखकर शबाना आज़मी खुशी से भर उठीं.
उनसे यह बात महेश भट्ट ने सुनी जिस पर उनका कहना है “अर्थ की रेलेवेंस आज भी है. क्योंकि सच पर झुर्रियां नहीं पड़तीं.”
भट्ट की फ़िल्मों पर माता-पिता के रिश्तों का असर

इमेज स्रोत, Getty Images
महेश भट्ट का बचपन और पारिवारिक पृष्ठभूमि उनके व्यक्तित्व को समझने की कुंजी है. उनके पिता नानाभाई भट्ट एक गुजराती ब्राह्मण और मां शिरीन मोहम्मद अली एक गुजराती शिया मुस्लिम थीं.
इस मिले जुले सांस्कृतिक माहौल ने उन पर सांप्रदायिक सद्भाव और मानवता के प्रति गहरी छाप छोड़ी. हालांकि, माता-पिता के “स्ट्रेंज रिश्तों” ने उनके भीतर एक भावनात्मक उथल-पुथल भी पैदा की, जिसका असर उनकी फ़िल्मों में साफ़ दिखता है.
स्कूल के दिनों में ही, डॉन बॉस्को हाई स्कूल, माटुंगा में पढ़ते हुए, उन्होंने छिटपुट नौकरियां शुरू कीं और विज्ञापनों के लिए काम किया. यहां से फ़िल्म निर्देशक राज खोसला के सहायक के रूप में उनकी सिनेमाई पारी शुरू हुई.
महेश भट्ट की फ़िल्में उनकी निजी ज़िंदगी का प्रतिबिंब रही हैं. अर्थ में परवीन बॉबी के साथ उनके रिश्ते की झलक थी, तो सारांश में उन्होंने सत्ता और शक्ति के विरुद्ध व्यक्ति के संघर्ष और अकेलेपन के द्वंद्व को उभारा.
आशिकी (1990) और दिल है कि मानता नहीं (1991) जैसी रोमांटिक हिट फ़िल्मों ने उन्हें व्यवसायिक सफलता दी, लेकिन ज़ख़्म में मां के साथ उनके रिश्ते और सांप्रदायिक सद्भाव की बात ने दर्शकों को झकझोर दिया.
उनकी फ़िल्मों में दार्शनिक खोजें भी साफ झलकती हैं- जीवन का अर्थ, नैतिकता की सीमाएं और रिश्तों की उलझनें. अपने भाई मुकेश भट्ट के साथ मिलकर बनाई कंपनी विशेष फ़िल्म्स ने नई प्रतिभाओं को मौका दिया.
महेश भट्ट ने यू जी कृष्णमूर्ति के साथ के अपने अनुभवों और उन पर केंद्रित अपनी किताबों की भी चर्चा बड़े शौक़ से की.
महेश भट्ट की ज़िंदगी भी फ़िल्मी कहानी जैसी

इमेज स्रोत, Getty Images
महेश भट्ट का निजी जीवन भी उनकी फ़िल्मों जितना ही चर्चित रहा है. पहली पत्नी किरन (लॉरेन ब्राइट) से उनकी बेटी पूजा भट्ट और बेटा राहुल भट्ट हैं. परवीन बॉबी के साथ अफेयर और बाद में सोनी राज़दान से शादी ने उनकी जिंदगी में कई मोड़ लाए.
सोनी राज़दान के साथ उनकी दो बेटियां शाहीन और आलिया भट्ट हैं. ये रिश्ते उनकी फ़िल्मों में अलग-अलग रूपों में नज़र आए.
महेश भट्ट ने अपनी असफलताओं और सफलताओं पर हमारे साथ खुलकर बातें की हैं, जो उनकी बेबाक शख्सियत का सबूत हैं.
ज़िंदगी की इस कहानी में देश में बिगड़ते सांप्रदायिक सद्भाव पर महेश भट्ट का गुस्सा साफ झलका.
उन्होंने अपने शुरुआती संघर्ष, छिटपुट नौकरियों और जीवन के अनछुए पहलुओं को दिल से साझा किया. उनकी दार्शनिक खोजें, निजी रिश्तों की पेचीदगियां और सफलता की ऊंचाइयां इस बातचीत में उभरकर सामने आईं.
ये इंटरव्यू ना सिर्फ एक फ़िल्मकार की ज़िंदगी की कहानी है, बल्कि स्वाधीन भारत में एक रचनाकार की यात्रा, उसके द्वंद्वों और निश्चयों का जीवंत दस्तावेज़ भी है.
‘कहानी ज़िंदगी की’ आप सुनिए हर शुक्रवार, पूरी तसल्ली और इत्मीनान से इरफ़ान के साथ.
SOURCE : BBC NEWS