Source :- BBC INDIA
कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज में प्रशिक्षु डॉक्टर की बलात्कार के बाद हत्या की घटना ने पूरे राज्य को झकझोर कर रख दिया है, लेकिन चार महीने बाद भी परिवार को इंसाफ़ का इंतज़ार है.
पीड़िता के माता-पिता अपनी बेटी के लिए इंसाफ़ की लड़ाई में हिम्मत नहीं हारे हैं और अदालत-अधिकारियों के दरवाज़े खटखटा रहे हैं, जबकि सड़कों पर धरना-प्रदर्शन और विरोध का सिलसिला भी जारी है.
पीड़िता के पिता का कहना है कि सीबीआई ने अब तक उनकी पत्नी का बयान दर्ज नहीं किया है और अदालत में गवाही भी नहीं हुई है, जिससे वो बेहद आहत हैं.
इसी वजह से पीड़िता के पिता ने एक बार फिर कोलकाता उच्च न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाया है, जहां अदालत ने सीबीआई से जांच की स्टेटस रिपोर्ट मांगी है. अदालत ने उस पर सुनवाई 26 दिसंबर को तय की है.
परिवार को हाई कोर्ट का दरवाज़ा क्यों खटखटाना पड़ा?
बीबीसी से बातचीत में पीड़िता के पिता प्रशासन, नेताओं, सीबीआई और पुलिस के रवैये पर दुख ज़रूर ज़ाहिर करते हैं.
चार महीनों से भी ज़्यादा समय से अदालतों और अधिकारियों का चक्कर लगा रहे पीड़िता के पिता से बीबीसी की फ़ोन पर कई प्रयासों के बाद बातचीत हो पाई, क्योंकि वो हाई कोर्ट में थे. लेकिन बातचीत में उन्होंने स्पष्ट किया कि वो “हिम्मत नहीं हारे हैं.”
पीड़िता के पिता ने एक बार फिर कोलकाता हाई कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया है.
उनका कहना है कि ‘सीबीआई ने इस मामले में अब तक उनकी पत्नी का बयान दर्ज नहीं किया है. न ही अदालत में उनकी गवाही हुई है.’
इससे पहले अगस्त में भी पीड़िता के माता-पिता ने कोलकाता हाई कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था, तब जाकर मामला केंद्रीय जांच ब्यूरो यानी सीबीआई को जांच के लिए सौंपा गया था, लेकिन आरोप पत्र तय सीमा यानी 90 दिनों के अंदर दाख़िल नहीं हो पाया है.
इसलिए आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के तत्कालीन प्रिंसिपल संदीप घोष और मामले में अभियुक्त बनाए गए कोलकाता के टाला पुलिस स्टेशन के प्रभारी अभिजीत मंडल को ज़मानत मिल गई.
कोलकाता हाई कोर्ट ने 13 दिसंबर को इन दोनों को ज़मानत दे दी थी, जबकि मुख्य आरोपी संजय राय के ख़िलाफ़ सीबीआई ने 7 अक्टूबर को ही आरोप पत्र दाख़िल कर दिया था.
इस आरोप पत्र में सीबीआई ने संजय राय को “बलात्कार और हत्या का एकमात्र अभियुक्त” बताया है.
मेडिकल कॉलेज के तत्कालीन प्रिंसिपल संदीप घोष घटना से संबंधित दर्ज किए गए केस में अभियुक्त तो हैं, मगर उन पर और टाला थाना के प्रभारी के ख़िलाफ़ “साक्ष्य मिटाने” के आरोप सीबीआई ने लगाए हैं.
थाना प्रभारी पर माता-पिता को “ग़लत सूचना देने और दबाव बनाने” और “प्राथमिकी देर से दर्ज करने” के आरोप भी हैं.
सीबीआई ने जो मामला दर्ज किया है उसमें कुल 123 गवाहों के नाम हैं. मगर इनमें से अधिकारियों सहित कुल 50 लोगों की अब तक गवाही ही हो पाई है.
दो दिग्गज वकील पीछे हटे
अब पीड़िता के पिता की अपील पर कोलकाता उच्च न्यायालय ने एक बार फिर सीबीआई से जांच की ‘स्टेटस रिपोर्ट’ मांगी है और अदालत ने उस पर सुनवाई 26 दिसंबर को तय की है.
पीड़िता के पिता कहते हैं, “उन्हें क्या लगता है कि हमें इंसाफ़ नहीं मिलेगा तो हम निराश होकर घर बैठ जाएंगे? ऐसा सोचने वालों की ये भूल है. हम इंसाफ़ के लिए लड़ रहे हैं और तब तक लड़ते रहेंगे जब तक हमें इंसाफ़ नहीं मिल जाता.”
पीड़िता के पिता का कहना था, “मेरी बेटी बहुत कुछ जानती थी. वो हमें बताती रहती थी कि मेडिकल कॉलेज में क्या-क्या षड्यंत्र चल रहे हैं. अब हम भी जान चुके हैं कि आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में किस तरह के कृत्य चल रहे थे. बेटी को इन लोगों ने ख़ामोश कर दिया है. हम लड़ेंगे. आख़िरी दम तक लड़ेंगे.”
बता दें कि 9 अगस्त को अपनी इकलौती बेटी की मौत की ख़बर मिलने के बाद से ही परिवार लगातार संघर्ष कर रहा है. पीड़िता के माता-पिता आज भी इंसाफ़ के लिए कभी अस्पताल जाते हैं तो कभी अदालत.
ध्यान देने वाली बात ये है कि पीड़िता के माता-पिता की तरफ़ से पैरवी करने वाले दो दिग्गज वकीलों ने अपने हाथ खींच लिए हैं.
इनमें से सीपीएम के राज्यसभा सांसद और जाने-माने वकील विकास रंजन भट्टाचार्य और वृंदा ग्रोवर के नाम शामिल हैं.
भट्टाचार्य ने आरोप लगाया था कि ‘अभियुक्त सत्ता में बैठे लोगों के साथ मिले हुए हैं’. लेकिन उन्होंने इस केस से क्यों हाथ खींच लिया? इस पर वो कोई टिप्पणी नहीं करना चाहते हैं.
उसी तरह सुनवाई के ठीक एक दिन पहले ही वृंदा ग्रोवर भी पीछे हट गईं और अब मामला, यानी पीड़िता के परिवार की तरफ़ से जो वकील अदालत में पैरवी कर रहे हैं, वो जानी-मानी वकील करुणा नंदी की टीम से जुड़े हैं.
फिर से शुरू होगा बड़ा आंदोलन?
प्रशिक्षु डॉक्टर की हत्या के दिन के बाद से ही कोलकाता में डॉक्टरों का प्रदर्शन शुरू हो गया था.
कोलकाता के इस जाने-माने आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल की घटना के बाद चारों तरफ़ व्यापक आक्रोश फूट पड़ा था.
डॉक्टरों से लेकर समाज के लगभग हर वर्ग के लोग सड़कों पर उतरकर ‘इंसाफ़’ की मांग कर रहे थे.
पूरे पश्चिम बंगाल में चिकित्सा सेवाएं ठप पड़ चुकी थीं. प्रदेश में हर जगह रात और दिन प्रदर्शन हो रहे थे. दिल्ली, बेंगलुरु समेत दूसरे शहरों में भी प्रदर्शन हुआ.
21 दिसंबर को कोलकाता में शनिवार से जूनियर डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों ने एक बार फिर सड़कों पर उतरकर आंदोलन शुरू कर दिया है.
उनका आरोप है कि राज्य की पुलिस और उसके बाद सीबीआई – कोई भी पीड़िता और परिवार के लिए इंसाफ़ सुनिश्चित करवाता हुआ नज़र नहीं आ रहा है.
आरजी कर मेडिकल कॉलेज के पूर्व छात्र डॉक्टर शम्स मुसाफिर ने बीबीसी से बात करते हुए कहा कि डॉक्टरों के इतने प्रदर्शन और राज्य सरकार के आश्वासनों के बाद भी इंसाफ़ मिलता हुआ नज़र नहीं आ रहा है.
मुसाफिर कहते हैं, “अब हम पीड़िता के माता-पिता से आंख मिलाने की हिम्मत नहीं कर पा रहे हैं. क्या चेहरा लेकर उनके सामने जाएं जब हम कुछ नहीं कर सके.”
वहीं जूनियर डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों के संगठन के डॉक्टर मृदुल सिन्हा का कहना है, “चार महीनों में पुलिस और देश की सर्वोच्च जांच एजेंसी ये पता लगाने में नाकाम रही हैं कि घटना के पीछे मंशा क्या रही होगी.”
उनका कहना था, “इसमें सबने निराश किया है – सीबीआई, कोलकाता पुलिस, राज्य और केंद्र की सरकारों ने.”
उन्होंने कहा, “जिन जूनियर डॉक्टरों को मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल के साथ मिलकर दूसरे छात्रों को आतंकित करने का आरोप था और जिन्हें इन आरोपों की वजह से निलंबित कर दिया गया था, वो अब वापस आ गए हैं.”
उन्होंने हैरानी जताते हुए कहा, “इन जूनियर डॉक्टरों पर आरोप थे लेकिन अदालत में इनकी पैरवी सरकारी वकील कर रहे थे, जो अविश्वसनीय है.”
लेकिन इतना सब कुछ होने के बावजूद पीड़िता के पिता नाउम्मीद नहीं हुए हैं. उन्हें अब भी भरोसा है कि “एक दिन सबका पर्दाफ़ाश होगा” और उनको “इंसाफ़ ज़रूर मिलेगा.”
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SOURCE : BBC NEWS