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अमृतसर: यह बेहद चिंताजनक है कि भारत जैसे लोकतांत्रिक और संवैधानिक देश में एक व्यक्ति, जो खुलेआम खालिस्तान जैसे अलग देश की मांग करता है, न केवल लोकसभा चुनाव जीतकर सांसद बन जाता है बल्कि जेल में रहते हुए अपनी पार्टी का ऐलान भी कर देता है। असम की डिब्रूगढ़ जेल में बंद अमृतपाल सिंह, जो खालिस्तान समर्थक और पंजाब के खडूर साहिब से निर्दलीय सांसद हैं, ने हाल ही में अपनी नई पार्टी ‘अकाली दल वारिस पंजाब दे’ का गठन किया है। इस पार्टी का ऐलान पंजाब के मुक्तसर में माघी मेले के दौरान किया गया।  

एक ऐसा व्यक्ति जो भारत की अखंडता पर सवाल उठाता हो, खालिस्तान जैसे अलगाववादी विचारधारा का समर्थन करता हो, वह लोकतांत्रिक प्रक्रिया का इस्तेमाल कर सांसद बनता है। यह सवाल उठता है कि क्या हमारा लोकतंत्र और संविधान इतना लचीला है कि वह देश के खिलाफ काम करने वाले लोगों को भी संवैधानिक पदों तक पहुंचने का मौका दे सकता है?  अमृतपाल सिंह पर केवल अलगाववादी विचारधारा का ही नहीं, बल्कि गंभीर आपराधिक आरोप भी हैं। गुरप्रीत सिंह हत्याकांड में उनकी कथित संलिप्तता के चलते उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA) के तहत जेल भेजा गया है। इस हत्याकांड में अमृतपाल और विदेश में बैठे गैंगस्टर अर्श डल्ला का नाम भी शामिल है।  

लोकसभा चुनावों में खडूर साहिब से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में खड़े होकर अमृतपाल सिंह ने 4 लाख से अधिक वोट हासिल किए थे और कांग्रेस उम्मीदवार को भारी अंतर से हराया था। यह चौंकाने वाली बात है कि जिस व्यक्ति पर देश की सुरक्षा को खतरे में डालने का आरोप है, उसे जनता का इतना बड़ा समर्थन कैसे मिल सकता है? अब, जेल में रहते हुए उन्होंने अपनी पार्टी ‘अकाली दल वारिस पंजाब दे’ का गठन किया है और इसे चलाने के लिए एक कमेटी का गठन भी कर दिया है। यह सब उस समय हो रहा है जब वे गंभीर आरोपों में जेल की सजा काट रहे हैं। क्या यह भारतीय लोकतंत्र और संविधान के मूलभूत सिद्धांतों के लिए एक खतरे की घंटी नहीं है?  

यह भी ध्यान देने वाली बात है कि अमृतपाल सिंह जैसे लोग न केवल खालिस्तान की मांग करते हैं, बल्कि अपने उद्देश्यों को पूरा करने के लिए हिंसा और आपराधिक गतिविधियों का सहारा लेते हैं। गुरप्रीत सिंह, जो पहले ‘वारिस पंजाब दे’ संगठन के वित्त सचिव थे, उनकी हत्या अमृतपाल और उनके सहयोगियों द्वारा करवाई गई थी। इसके बावजूद अमृतपाल सिंह का जेल में बैठकर पार्टी बनाना और इसे जनता के बीच स्वीकार्यता दिलाना गंभीर सवाल खड़े करता है। क्या यह संकेत नहीं देता कि अलगाववादी विचारधारा वाले लोग भारतीय लोकतंत्र का दुरुपयोग कर रहे हैं?  

भारत का लोकतंत्र दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और यह अपनी विविधता और सहिष्णुता के लिए जाना जाता है। लेकिन जब यह सहिष्णुता उन लोगों के लिए भी जगह बना देती है, जो देश की अखंडता के लिए खतरा बन सकते हैं, तो यह सोचने की जरूरत है कि हमारी प्रणाली में क्या खामियां हैं। अमृतपाल सिंह जैसे व्यक्तियों का सांसद बनना, जेल में रहते हुए पार्टी का गठन करना, और खालिस्तान जैसे मुद्दों को खुलकर समर्थन देना भारतीय संविधान और लोकतंत्र के सिद्धांतों पर सवाल खड़ा करता है। यह समय है कि हम इन खतरों को पहचानें और लोकतंत्र की मर्यादा को बनाए रखने के लिए सख्त कदम उठाएं।  

भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि संविधान और लोकतांत्रिक प्रक्रिया का दुरुपयोग कर देश विरोधी गतिविधियों को बढ़ावा न दिया जा सके। क्या हमारा लोकतंत्र इतना लचीला हो सकता है कि वह अपनी ही नींव को कमजोर करने वाले तत्वों को जगह दे? यह सवाल हर भारतीय नागरिक के मन में उठना चाहिए।  

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