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गर्मी कितनी भीषण होती जा रही है, ये कोई जटिल तकनीकी ज्ञान नहीं है.इसे सब महसूस कर रहे हैं.जिन गरीबों के पास साधन नहीं है, उनका क्या हाल है? अहमदाबाद में स्मार्टवॉच और रंगी छतों का एक प्रयोग शायद कुछ मदद कर सके.गुजरात के अहमदाबाद शहर में रहने वालीं सपनाबेन चुनारा तीन बच्चों की मां हैं.वह अहमदाबाद के वंजारा वास इलाके में रहती हैं.ये कम आयवर्ग वाली रिहाइश है, जहां करीब 800 परिवार रहते हैं.इन लोगों का जीवन कैसा है, इसे सपनाबेन के उदाहरण से समझा जा सकता है.भयंकर गर्मी से ऐसे बचाएगी सफेद छतसुबह धूप तेज होने से पहले ही वह घर के कामकाज निपटा लेती हैं.फिर एक नीम के पेड़ की छांव में पूरा दिन बिताती हैं.वजह ये कि उनके घर की छत टीन की है, जो धूप में तप जाती है.तपते टीन के नीचे घर में रहना दूभर हो जाता है.तापमान 40 डिग्री सेल्सियस के पार हो, तो बाहर की तुलना में घर ज्यादा गर्म हो जाता है.हर साल और ज्यादा प्रचंड गर्मीकुछ साल पहले तक तापमान का इतना बढ़ना आम नहीं था.जलवायु परिवर्तन के बीच अब गर्मी का मौसम हर साल नए कीर्तिमान बना रहा है.हर नया साल बीते सालों से ज्यादा गर्म होता जा रहा है.मसलन, बीते सालों से तुलना करें तो 2025 में करीब तीन हफ्ते में ही तापमान प्रचंड होने लगा.अप्रैल की शुरुआत में ही पारा 43 डिग्री सेल्सियस पर पहुंच गया.देश के कई हिस्सों में मार्च के दूसरे पखवाड़े तक हीटवेव शुरू हो चुकी थी.भारतीय मौसम विभाग के अनुसार, 13 से 18 मार्च के बीच देश के पूर्व-मध्य और पश्चिमी इलाकों में लू व प्रचंड लू की घटनाएं दर्ज की गईं.प्रभावित इलाकों में दक्षिण-पश्चिम राजस्थान, कोंकण (महाराष्ट्र), गुजरात, झारखंड, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल और उत्तरी तेलंगाना शामिल थे.मध्य, पश्चिम और पूर्वी भारत के कई इलाकों में तापमान का औसत सामान्य के मुकाबले दो से चार डिग्री सेल्सियस तक ज्यादा रहा.ये हाल मार्च का है, जिसे बसंत का महीना माना जाता रहा है.गरीबों पर गर्मी का कैसा असरजिनके पास गर्मी का सामना करने के समुचित साधन और संसाधन नहीं हैं, वे बेहद संवेदनशील स्थिति में हैं.जैसा कि सपनाबेन चुनारा ने समाचार एजेंसी एपी को बताया, “कभी-कभी तो इतनी गर्मी हो जाती है कि मैं ठीक से सोच नहीं पाती हूं”ग्लोबल वॉर्मिंग के बीच भविष्य की तकरीबन तमाम तस्वीरें ऐसी दुनिया की संभावना जताती हैं, जहां गर्मी असहनशील स्तर पर पहुंच जाएगी.ऐसे में यह जानना जरूरी है कि चरम गर्मी लोगों पर कैसा असर करती है, खासकर उन लोगों पर जो अपनी वंचित और संवेदनशील स्थिति के कारण ज्यादा जोखिम में हैं. यह मापने के लिए दुनियाभर में कई अध्ययन चल रहे हैं.अहमदाबाद के वंजारा वास इलाके में भी स्मार्टवॉच की मदद से ऐसी ही एक स्टडी की जा रही है.इसके प्रतिभागियों में सपनाबेन समेत वंजारा वास के 204 निवासियों को शामिल किया गया है.इन सभी लोगों को स्मॉर्टवॉच दिए गए हैं.ये स्मार्ट घड़ियां प्रतिभागियों के दिल की धड़कन और नब्ज मापती हैं.वे कितने घंटे सोये और कितनी गहरी नींद सो पाए, यह भी दर्ज करती हैं.हर हफ्ते प्रतिभागियों का ब्लड प्रेशर भी जांचा जाता है.इस अध्ययन की अवधि एक साल है.अध्ययन के अंतर्गत कुछ प्रतिभागियों को स्मॉर्टवॉच दी गई है, तो कुछ के घरों में टीन की छत को रोशनी परावर्तित करने वाले पेंट से रंगा गया है.यह उपाय कितना असरदार है, यही जानने के लिए इनकी तुलना उन घरों से की जाएगी जिनकी छतों पर पेंट नहीं है.इस तुलना से यह समझने में मदद मिलेगी कि विशेष पेंट से छत को पोतना गरीब परिवारों को गर्मी से कितनी सुरक्षा दे सकता है.सपनाबेन के घर की छत पर पेंटिंग भले ना की गई हो, लेकिन वह अध्ययन का हिस्सा बनकर खुश हैं.उन्हें यकीन है कि उनके परिवार को भी मदद मिलेगी.वह कहती हैं, “वे शायद मेरी छत भी रंग दें और शायद कुछ ऐसा कर पाएं, जिससे इस इलाके में हम सभी को गर्मी का बेहतर तरीके से सामना करने में मदद मिले”कितनी गर्मी बर्दाश्त कर सकते हैं लोग?ऐसा नहीं कि अहमदाबाद ठंडा शहर हो.यह भारत के उन हिस्सों में है, जहां गर्मियां हमेशा से तपती रही हैं.बदलाव यह है कि अब गर्मी इंसानी सहनशक्ति की अधिकतम सीमा के नजदीक बढ़ रही है.ऐसे स्तर की गर्मी में कुछ घंटे ही बाहर रहना जानलेवा हो सकता है.और ऐसा नहीं कि गर्मी से लोग मर ना रहे हों.इंसान गर्म खून वाला एक स्तनधारी जीव है.इंसानों के शरीर का तापमान करीब 37 डिग्री सेल्सियस होता है.समझिए कि यह तापमान शरीर के लिए आदर्श स्थिति है, जिसमें वह सही से काम करता है.चरम गर्मी या चरम ठंड, दोनों स्थितियां शरीर का संतुलन बिगाड़ देती हैं.अतिशय ठंड में शरीर का कोर टेम्परेचर बहुत तेजी से गिर जाना, या चरम गर्मी में शरीर को पर्याप्त ठंडा ना कर पाना दोनों ही घातक हो सकते हैं.मौजूदा संदर्भ में यह समझना जरूरी है कि गर्मी में शरीर खुद को ठंडा कैसे करता है.शरीर पसीना बहाता है और पसीने का वाष्पीकरण हमें ठंडा करता है. बाहर बहुत ज्यादा आर्द्रता हो, तो पसीना त्वचा से वाष्पीकृत नहीं होगा.अगर आबोहवा बेहद गर्म और शुष्क है, तो शरीर पसीना निकालता रहेगा और वो वाष्पीकृत होता चला जाएगा.लेकिन इस चक्र में शरीर को पर्याप्त ठंडा होने के लिए नामुमकिन दर पर पसीना बहाने की जरूरत होगी.शरीर उतना पसीना निकाल ही नहीं पाएगा.वैज्ञानिकों का मानना है कि 35 डिग्री सेल्सियस “वेट बल्ब टेम्परेचर” वो सीमा है, जहां पहुंचकर कोई भी इंसान छह घंटे से ज्यादा जिंदा नहीं रह सकता.यह सैद्धांतिक तौर पर तापमान के साथ सामंजस्य बिठाने या उसके मुताबिक ढलने (अडैप्टबिलिटी) की मानव की शारीरिक सीमा मानी जाती है.”वेट बल्ब टेम्परेचर” दो परिस्थितियों का ऐसा मेल है, जिसकी अतिशय अवस्था बर्दाश्त करना इंसानी क्षमता से बाहर है.ये दोनों परिस्थितियां हैं: हवा का तापमान यानी गर्मी, और हवा में मौजूद नमी.35सेल्सियस के वेट-बल्ब टेम्परेचर का मतलब है हवा का तापमान 35 डिग्री सेल्सियस है और आर्द्रता 100 प्रतिशत.अतिशय गर्मी इंसान का क्या हाल करती है?यह समझने के लिए यूनिवर्सिटी ऑफ सिडनी के “हीट एंड हेल्थ रिसर्च सेंटर” में रिसर्च फेलो जेम फेंग ने एक प्रयोग किया.प्रयोग का मकसद यह जानना था कि किस स्तर पर पहुंचकर गर्मी जान ले सकती है.ऑस्ट्रेलिया के “एबीसी” न्यूज के मुताबिक, यह अपनी तरह का दुनिया का पहला अध्ययन था.भीषण गर्मी का सेहत और जीवन पर क्या असर होता हैइस स्टडी के लिए एक खास क्लाइमेट चैंबर बनाया गया.चैंबर का तापमान 54 डिग्री सेल्सियस और हवा में आर्द्रता 26 प्रतिशत रखी गई.माना जाता है कि अगर आबोहवा में ये मेल हो, तो छह घंटे के बाद मौत हो जाएगी.ओवेन डिलन नाम के एक शख्स को इस चैंबर में रखा गया.ओवेन ने अपनी इच्छा से प्रयोग में भाग लिया था.तीन घंटे के प्रयोग में आधा समय ही बीता था कि ओवेन के शरीर का तापमान 38.4 डिग्री सेल्सियस (कोर टेम्परेचर) पर पहुंच गया.यह तापमान 40.5 डिग्री पर पहुंच जाए, तो हीट स्ट्रोक का खतरा बेहद बढ़ जाता है.अगर शरीर का कोर टेम्परेचर 43 डिग्री सेल्सियस पर चला जाए, तो उसका मरना पूरी तरह से तय है.गर्मी और आर्द्रता, दोनों का प्रचंड मेल जानलेवाजर्नल “नेचर क्लाइमेट चेंज” में 2017 में छपे एक अध्ययन के लिए वैज्ञानिकों ने दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में चरम गर्मी की सैकड़ों घटनाओं का विश्लेषण किया.उन्होंने जांच की कि गर्मी और आर्द्रता के वे कौन-कौन से मेल हैं, जो जानलेवा हो सकते हैं और इनमें से कौन से मेल भविष्य में संभावित हैं.खौलती गर्मियों के लिए कितनी तैयार है दुनियाउन्होंने पाया कि वैश्विक आबादी का लगभग 30 फीसदी साल में कम-से-कम 20 दिन ऐसी आबोहवा का सामना कर रही है, जहां गर्मी (हवा का तापमान) और आर्द्रता का मेल जानलेवा स्तर पर होता है. अगर हम ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन बहुत कम भी कर दें, तो साल 2100 आते-आते दुनिया की करीब 50 फीसदी आबादी ऐसी जानलेवा परिस्थितियों में रह रही होगी.गर्मी से मौत भविष्य काल का अनुमान नहीं, वर्तमान हैऐसा नहीं कि इन स्थितियों में पहुंचकर ही लोग गर्मी से मरेंगे.मौतें अब भी हो रही हैं.विश्व स्वास्थ्य संगठन की 2024 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2000 से 2019 के बीच हर साल दुनियाभर में करीब 4,89,000 मौतों की वजह गर्मी से जुड़ी थी.2023 में हुए एक शोध के मुताबिक, अगर पृथ्वी पर तापमान वृद्धि को दो डिग्री सेल्सियस तक भी सीमित कर लिया गया, तब भी गर्मी के कारण होने वाली मौतों में अनुमानित 370 प्रतिशत की वृद्धि आ सकती है.इनमें सबसे ज्यादा प्रभावित इलाके दक्षिण एशिया, दक्षिणपूर्वी एशिया और अफ्रीका होंगे.गरीब और वंचित लोगों पर जोखिम ज्यादा है, क्योंकि उनके पास संसाधनों की कमी है.उनकी जीवनचर्या और रोजगार भी चरम मौसमी स्थितियों में सुरक्षित बैठने की सहूलियत नहीं देता.दुनिया में 1.1 अरब से ज्यादा लोग अनियमित बसाहटों, जैसे कि झुग्गियों और गरीब इलाकों में रहते हैं.अदिति बुनकर, “यूनिवर्सिटी ऑफ ऑकलैंड” में पर्यावरण स्वास्थ्य विषय की शोधकर्ता हैं.उन्होंने समाचार एजेंसी एपी से बातचीत में कहा, “जलवायु परिवर्तन और गर्मी आबादियों पर विनाश ढा रही है.और अब सवाल उठता है कि इससे निपटने के लिए हम क्या कर रहे हैं?” अहमदाबाद में हो रहा अध्ययन इसी “क्या कर रहे हैं” का एक जवाब है.क्या कारगर और किफायती साबित होंगी “ठंडी छतें”इस अध्ययन में अदिति बुनकर के अलावा “इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ गांधीनगर” और अहमदाबाद नगर पालिका भी शामिल हैं.ये सभी जरूरी स्वास्थ्य आंकड़े जमा कर रहे हैं.अगर अध्ययन के नतीजों ने साबित किया कि छतों को रंगकर घर के अंदर का ताप घटाया जा सकता है, तो सभी घरों की छतों को रंगने की योजना है.शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि “ठंडी छत” जैसे उपाय आर्थिक रूप से वंचित लोगों की मदद कर सकते हैं.हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि इतने समाधान काफी नहीं हैं.उधर, अहमदाबाद के वंजारा वास की सपनाबेन चुनारा और उनकी पड़ोसी शांताबेन वंजारा कहती हैं कि जो भी मदद मिलती हो, वो लेंगी.शांताबेन को डायबिटीज है.उनका कहना है कि गर्मी ने उनके डायबिटीज को बदतर कर दिया है.वह बताती हैं, “गर्मी के कारण हम सो भी नहीं पाते हैं.छत की रंगाई के बाद हम कम-से-कम रात में कुछ घंटे सो तो पाएंगे”सपनाबेन को भी मौसम के अप्रत्याशित होने की शिकायत है.वह कहती हैं, “अब हम नहीं जानते हैं कि कब या क्या होगा.बस एक ही चीज पक्के से पता है कि गर्मी हर साल बदतर होती जा रही है”.
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