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लखनऊ: उत्तर प्रदेश के अमेठी जिले के मुसाफिरखाना थाना क्षेत्र के औरंगाबाद गांव में 120 साल पुराने पंच शिखर शिव मंदिर को लेकर विवाद सामने आया है। ग्रामीणों का आरोप है कि विशेष समुदाय के लोगों ने इस ऐतिहासिक मंदिर पर कब्जा कर लिया है और पिछले 20 वर्षों से यहां पूजा-अर्चना पर रोक लगी हुई है। 20 साल पहले यानी, 2014 में, जब राहुल गांधी इस क्षेत्र से लोकसभा सांसद हुआ करते थे।  

रिपोर्ट के अनुसार, स्थानीय ग्रामीणों का दावा है कि यह मंदिर लगभग 120 साल पहले गांव के एक दलित परिवार द्वारा स्थापित किया गया था और यह क्षेत्र के लोगों के लिए आस्था और सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक रहा है। लेकिन, आरोप है कि एक विशेष समुदाय के लोगों ने इस मंदिर पर कब्जा कर लिया, जिससे हिंदू समुदाय के लोगों की पूजा-अर्चना की आज़ादी छिन गई। ग्रामीणों के अनुसार, पिछले दो दशकों से इस मंदिर में पूजा नहीं हो रही है और मंदिर की हालत भी बदतर होती जा रही है। इस स्थिति ने गांव के लोगों में गुस्सा और आक्रोश पैदा कर दिया है।

उल्लेखनीय है कि, अमेठी को गांधी परिवार का गढ़ माना जाता है। संजय गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी और राहुल गांधी कई बार यहां से सांसद रह चुके हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या उन्हें इस ऐतिहासिक मंदिर के हालात की जानकारी नहीं थी? या फिर ग्रामीण इतने डरे हुए थे कि वे अब तक यह मामला किसी के सामने उठा ही नहीं पाए? 

अब स्थानीय ग्रामीणों ने भाजपा के जिला महामंत्री अतुल सिंह के नेतृत्व में SDM प्रीति तिवारी को शिकायती पत्र सौंपा है। उन्होंने मांग की है कि मंदिर पर से कब्जा हटाया जाए और वहां पूजा-अर्चना फिर से शुरू कराई जाए। साथ ही मंदिर की सुरक्षा सुनिश्चित करने और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की मांग की गई। SDM प्रीति तिवारी ने मामले की जांच कराने का भरोसा दिया है। तहसीलदार को निर्देश दिए गए हैं कि वे इस मामले की पूरी रिपोर्ट तैयार करें। प्रशासन ने यह भी कहा है कि विवाद को शांतिपूर्ण तरीके से हल करने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाएंगे।

इस विवाद ने न केवल स्थानीय प्रशासन बल्कि अमेठी के राजनैतिक नेतृत्व पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या गांधी परिवार को इस मामले की जानकारी नहीं थी, या फिर उन्होंने इस पर ध्यान नहीं दिया? क्या ग्रामीण इतने डरे हुए थे कि वे अपनी आवाज उठाने से भी कतरा रहे थे? अमेठी में इस विवाद ने धार्मिक स्वतंत्रता और सांप्रदायिक सौहार्द पर एक नई बहस छेड़ दी है। अब देखना यह होगा कि प्रशासन कितनी जल्दी और कितनी पारदर्शिता के साथ इस मुद्दे का समाधान करता है।

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