Source :- BBC INDIA
कुछ दिन पहले इसराइली सरकार ने एक्स पर ‘ग्रेटर इसराइल’ का विवादास्पद नक्शा जारी किया है. सऊदी अरब, फ़लस्तीन, संयुक्त अरब अमीरात और अरब लीग ने इसकी निंदा की है.
छह जनवरी को इसराइल के आधिकारिक सोशल मीडिया अकाउंट पर जारी किया गया नक्शा फ़लस्तीन, सीरिया, लेबनान और जॉर्डन के कुछ हिस्सों को इसराइल के हिस्से के रूप में दिखाता है.
सऊदी अरब ने इसे एक ‘चरमपंथी कदम’ बताया है. सऊदी अरब ने कहा है कि इसराइल का ये क़दम देशों की संप्रभुता पर खुले हमले जारी रखने और अंतरराष्ट्रीय क़ानून का उल्लंघन करने की महत्वाकांक्षा को दिखाता है.
फ़लस्तीनी और जॉर्डन के अधिकारियों ने भी इस विवादास्पद नक्शे की निंदा की है.
सऊदी विदेश मंत्रालय और फ़लस्तीनी अधिकारियों ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से इसराइल को इस तरह के क़दम उठाने से रोकने की अपील की है.
अरब लीग के महासचिव अहमद अबू अल-ग़ैत ने चेतावनी दी है कि इस तरह की ‘उत्तेजक कार्रवाइयों’ से निपटने में अंतरराष्ट्रीय समुदाय की विफलता से ‘चरमपंथ’ बढ़ने का ख़तरा है.
इसराइल ने क्या दावा किया है?
इसराइल के आधिकारिक सोशल मीडिया अकाउंट पर जारी मानचित्र में दावा किया गया है कि इसराइल साम्राज्य की स्थापना लगभग 3,000 साल पहले हुई थी. इसराइल के पहले तीन राजाओं में शाऊल, डेविड और सोलोमन थे. इन तीनों ने कुल 120 सालों तक शासन किया. उनके शासनकाल के दौरान यहूदी संस्कृति, धर्म और अर्थव्यवस्था का विकास हुआ.
पोस्ट में दावा किया गया कि 931 ईसा पूर्व में राजा सोलोमन की मृत्यु के बाद, आंतरिक संघर्षों के कारण साम्राज्य दो भागों में विभाजित हो गया. उत्तर में इसराइली साम्राज्य बना और दक्षिण में यहूदा साम्राज्य.
इसराइल का उत्तरी साम्राज्य 209 साल बाद (722 ईसा पूर्व) अश्शूरियों के हाथों में आ गया और यहूदा का दक्षिणी साम्राज्य 345 साल बाद बेबीलोन के राजा नबूकदनेस्सर (568 ईसा पूर्व) के हाथों में आ गया.
इसराइल ने दावा किया है, “इस विभाजन के कारण सदियों तक राजनीतिक संघर्ष हुआ लेकिन निर्वासन के दौरान यहूदी लोगों ने अपने राज्य को बहाल करने की माँग की. इस माँग के बाद ही साल 1948 में देश के रूप में इसराइल स्थापित किया गया था. इसराइल आज मध्य पूर्व में एकमात्र लोकतांत्रिक देश है.”
ग्रेटर इसराइल का ख़्वाब
ग्रेटर इसराइल की अवधारणा कोई नया विचार नहीं है. लेकिन यह अवधारणा कहाँ से आई और ‘द प्रॉमिस्ड लैंड’ में कौन से इलाक़े शामिल हैं, यह जानने के लिए हमें सैकड़ों साल पीछे जाना होगा.
दरअसल इसराइल में कई यहूदी इस इलाक़े को ‘एरिट्ज़ इसराइल’ या ‘इसराइल की भूमि’ के रूप में जानते हैं और यह इसराइल की वर्तमान सीमाओं की तुलना में बहुत बड़ा भौगोलिक क्षेत्र है.
‘ग्रेटर इसराइल’ की अवधारणा नील नदी से फ़रात नदी तक फैली हुई है.
इस विचार के मुताबिक, “एक दिन आएगा जब हमारी सीमाएँ लेबनान से सऊदी अरब के विशाल रेगिस्तान तक, भूमध्य सागर से फ़रात नदी (इराक़) तक फैल जाएँगी.”
जनवरी 2024 में इसराइली लेखक एवी लिपकिन का एक इंटरव्यू वायरल हुआ था. इसमें उन्होंने ग्रेटर इसराइल की अवधारणा पर चर्चा की थी.
उस इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, “फ़रात (नदी) के दूसरी तरफ कुर्द हैं. ये हमारे दोस्त हैं. हमारे पीछे भूमध्य सागर है और हमारे सामने कुर्दिस्तान है. मुझे यकीन है कि हम मक्का, मदीना और सिनाई पर भी कब्ज़ा कर लेंगे और इन जगहों को ‘पवित्र’ कर देंगे.”
ग़ज़ा युद्ध के बाद इसराइल ने लेबनान में मिलिट्री ऑपरेशन किया. इसके बाद से ही सोशल मीडिया पर एक बार फिर ‘ग्रेटर इसराइल’ की अवधारणा गूंजी.
इसका एक कारण ग़ज़ा में ज़मीनी ऑपरेशन के दौरान कुछ सोशल मीडिया पोस्ट में किया गया दावा था. इसमें कहा गया कि कुछ इसराइली सैनिक अपनी वर्दी पर ‘ग्रेटर इसराइल’ के नक्शे वाला बैज पहने हुए हैं.
अतीत में धुर दक्षिणपंथी इसराइली मंत्रियों ने भी इस अवधारणा का उल्लेख किया है.
सोशल मीडिया पर अरब यूज़रों ने इस पर चिंता व्यक्त की, क्योंकि ‘द प्रॉमिस्ड लैंड’ के मानचित्र में जॉर्डन, फ़लस्तीन, लेबनान, सीरिया, इराक़ और मिस्र के कुछ हिस्से शामिल थे. सात अक्टूबर 2023 को हमास के इसराइल पर हमले के बाद पड़ोसी देशों में इसराइली कार्रवाई बढ़ गई है.
पिछले कुछ महीनों के दौरान, इसराइली सेना ने ईरान, सीरिया और लेबनान में भी हमले किए हैं.
यहूदी राष्ट्रवाद (ज़ायोनिज़्म) के संस्थापक, थियोडोर हर्ज़ल के अनुसार, ‘प्रॉमिस्ड लैंड’ या ग्रेटर इसराइल के मानचित्र में मिस्र में नील नदी से लेकर इराक में फ़रात नदी तक का क्षेत्र शामिल है. उनके अनुसार फ़लस्तीन, लेबनान, जॉर्डन, इराक़, ईरान, सीरिया, मिस्र, तुर्की और सऊदी अरब भी ग्रेटर इसराइल का हिस्सा होंगे.
1947 में, संयुक्त राष्ट्र ने फ़लस्तीन को दो अलग-अलग यहूदी और अरब राज्यों में विभाजित करने की मंजूरी दी थी और यरूशलम को एक ‘अंतरराष्ट्रीय शहर’ घोषित किया था.
इसके बाद इसराइली राजनेता और पूर्व प्रधानमंत्री मेनाकेम बेगिन ने कहा था, “फ़लस्तीन का बंटवारा गैरक़ानूनी है. यरूशलम हमारी राजधानी थी और हमेशा रहेगी. ग्रेटर इसराइल की सीमाएँ हमेशा के लिए बहाल की जाएँगी.”
‘नदी से समुद्र तक’
‘ज़ियोनिज़्म 2.0: थीम्स एंड प्रपोज़ल्स ऑफ़ रिशेपिंग वर्ल्ड सिविलाइज़ेशन इन द टाइम्स ऑफ़ इसराइल’ के लेखक एड्रिएन स्टीन लिखते हैं कि ग्रेटर इसराइल का अलग-अलग समूहों के लिए अलग-अलग अर्थ है.
स्टीन ने अपनी किताब में लिखा है कि यहूदियों के लिए ग्रेटर इसराइल शब्द का तात्पर्य वेस्ट बैंक (जॉर्डन नदी) तक इसराइली संप्रभुता की स्थापना से है. इसमें बाइबिल आधारित यहूदिया, सामरिया और संभवतः वे क्षेत्र शामिल हैं जिन पर 1948 के युद्ध के बाद कब्जा कर लिया गया था. इसमें सिनाई, उत्तरी इसराइल और गोलान हाइट्स भी शामिल हैं.
वाशिंगटन स्थित राजनीतिक विश्लेषक तक़ी नसीरत मध्य पूर्व की स्थिति पर करीब से नज़र रखती हैं. उनका कहना है कि ग्रेटर इसराइल की अवधारणा इसराइली समाज में अंतर्निहित है और सरकार से लेकर सेना तक इसराइली समाज के कई तत्व इसका समर्थन करते हैं.
उन्होंने बीबीसी को बताया, “इसराइली मानते हैं कि न केवल ‘नदी से समुद्र’ तक बल्कि ‘नदी से नदी’ तक फैली ज़मीनों पर इसराइल का ऐतिहासिक अधिकार है. यानी फ़रात नदी से नील नदी तक और बीच के सभी क्षेत्र.”
वह कहती हैं, “आज के इसराइल में अधिक यथार्थवादी दृष्टिकोण भी है. इसके मुताबिक जो क्षेत्र इस वक्त इसराइल के कब्ज़े में हैं, उन पर उसका अधिकार है. इनमें वेस्ट बैंक, ग़ज़ा और गोलान हाइट्स शामिल हैं.”
हालाँकि, यूनाइटेड किंगडम में बर्मिंघम विश्वविद्यालय में मध्य पूर्व मामलों के विशेषज्ञ और किंग फैसल सेंटर फॉर रिसर्च एंड इस्लामिक स्टडीज के एसोसिएट फेलो उमर करीम ग्रेटर इसराइल को ‘महज एक मिथक’ मानते हैं.
बीबीसी से बात करते हुए उमर करीम ने कहा कि यहूदी धर्म के अनुसार, ग्रेटर इसराइल की अवधारणा में मध्य पूर्व के उन सभी प्राचीन क्षेत्रों को शामिल किया जाता है जो ओटोमन साम्राज्य का हिस्सा थे और जहाँ यहूदी रहते थे.
उमर का मानना है कि ग्रेटर इसराइल एक कल्पना है, जो व्यावहारिक नहीं है.
उन्होंने बीबीसी को बताया, “लेकिन यहूदीवाद (ज़ायोनिज़्म) की राजनीति में इसका अधिक उल्लेख किया गया है. यह केवल एक ‘कल्पना’ है कि ग्रेटर इसराइल में आज के सऊदी अरब, इराक, जॉर्डन और मिस्र भी शामिल हैं.”
उमर को लगता है कि ग्रेटर इसराइल एक व्यवाहारिक विचार नहीं है और इसका मतलब अब सिर्फ़ कब्जे वाले क्षेत्रों से है. इसमें वेस्ट बैंक, गोलान हाइट्स और ग़ज़ा शामिल है.”
फिर से क्यों छिड़ी बहस, क्या इसराइल ‘ग्रेटर इसराइल’ योजना पर काम कर रहा है?
तक़ी नसीरत 2023 में दक्षिणपंथी इसराइली मंत्री बेजेलेल स्मुट्रिच द्वारा प्रस्तुत ‘ग्रेटर इसराइल’ मानचित्र का ज़िक्र करती हैं. इस नक्शे में जॉर्डन भी शामिल था. इसकी वजह से एक राजनयिक विवाद हो गया था.
पेरिस में एक भाषण के दौरान इसराइली मंत्री ने ग्रेटर इसराइल का एक नक्शा पेश किया था. इसमें जॉर्डन और कब्जे वाले वेस्ट बैंक को इसराइल के हिस्से के रूप में दिखाया गया था. जॉर्डन ने बेजलेल पर दोनों देशों के बीच शांति समझौते का उल्लंघन करने का आरोप लगाते हुए इसका कड़ा विरोध किया था.
तक़ी नसीरत कहती हैं, “हक़ीक़त यह है कि चाहे वह स्मूट्रिच हों या बेन गूर, जिन लोगों का वे प्रतिनिधित्व करते हैं, वे इस अवधारणा को इसराइल के वैध भविष्य के रूप में देखते हैं.”
वह कहती हैं कि उन्होंने नेतन्याहू की वर्तमान सरकार के तहत अवैध यहूदी निवासियों को हथियार, समर्थन और सुरक्षा देकर ग्रेटर इसराइल की अवधारणा को बल दिया है.
नसीरत का कहना है कि ये अवैध इसराइली फ़लस्तीनियों के जैतून के पेड़ों को जबरन जला रहे हैं और उन्हें विस्थापित कर रहे हैं. यहूदी बाशिंदे उन्हें डरा-धमका कर भागने पर मजबूर कर रहे हैं और वेस्ट बैंक में नई बस्तियाँ क़ायम कर रहे हैं.
नसीरत का मानना है कि ये अवैध सशस्त्र इसराइली बाशिंदे, सात अक्टूबर को इसराइल पर हमास के हमलों के बाद और ताक़तवर हुए हैं. वे इसराइली सेना (आईडीएफ) और सरकार के संरक्षण में इस एजेंडे पर काम कर रहे हैं.
वह कहती हैं कि उन्हें अक्सर ‘नॉन-स्टेट एक्टर’ कहा जाता है लेकिन आप उन्हें जो भी कहें, तथ्य यह है कि उन्हें प्रधानमंत्री नेतन्याहू का प्रत्यक्ष समर्थन है.
उमर करीम का मानना है कि ”किसी भी देश में चरमपंथियों के सपने वही होते हैं जो इसराइल में धुर दक्षिणपंथी के हैं.”
उनका कहना है कि इसराइल राज्य की स्थापना के बाद यहूदियों में एक ‘धार्मिक राज्य की अवधारणा’ फिर से आ गई क्योंकि यहूदी या तो अल्पसंख्यक थे या फिर उन देशों के नागरिक थे जहाँ वे बसे थे.
उनका कहना है कि पहली बार उन्हें पाकिस्तान की तरह इसराइल के रूप में एक धार्मिक राज्य की अवधारणा मिली है, जहाँ आपका धर्म आपकी राष्ट्रीयता का आधार है.
उमर करीम का कहना है कि राजनीतिक और व्यवहारिक तौर पर ग्रेटर इसराइल की स्थापना की बात सिर्फ एक कल्पना है. इसराइल में गंभीर राजनेता और विश्लेषक कभी भी इस बारे में बात नहीं करते हैं. लेकिन यह कल्पना उन वर्गों के बीच जरूर मौजूद है जो दुनिया भर में यहूदियों के पुनर्जागरण की कल्पना करते हैं.
अगर इसराइल ग्रेटर इसराइल की योजना लागू करना चाहता है तो पश्चिम की प्रतिक्रिया क्या होगी?
इस संबंध में तक़ी नसीरत का कहना है कि अब तक पश्चिम, विशेषकर अमेरिका ने जमीनी हकीकत में बदलाव और इसराइली बस्तियों के विस्तार पर ख़ास प्रतिक्रिया नहीं दी है.
वह कहती हैं, इस साल की शुरुआत में, जब इसराइल ने कुछ हिंसक निवासियों को बस्तियाँ स्थापित करने की अनुमति दी, तो ‘बाइडन प्रशासन ने उनकी बहुत स्पष्ट रूप से निंदा की थी.’
इसके अलावा पश्चिम में इसराइल का समर्थन करने वाले देशों की ओर से इस पर कोई गंभीर प्रतिक्रिया नहीं हुई है.
नसीरत मानती हैं कि “ग्रेटर इसराइल के मंसूबों को ख़ारिज न करके, एक तरह से पश्चिमी देश इसराइल के सपने को पूरा करने में मदद कर रहे हैं.”
हालाँकि, उमर करीम का कहना है कि ग्रेटर इसराइल की स्थापना पश्चिम या पश्चिम में रहने वाले यहूदियों को स्वीकार्य नहीं होगी.
उनका कहना है कि जब 1947 में यहूदियों के लिए इस राज्य की स्थापना की गई थी, उस समय यह सोचा गया था कि वे पूरी दुनिया में शोषण का सामना कर रहे हैं, इसलिए उन्हें एक अलग देश ढूंढना चाहिए.
संयुक्त राष्ट्र चार्टर अभी भी वेस्ट बैंक और ग़ज़ा को कब्जे वाले क्षेत्र कहता है. अमेरिका और ब्रिटेन इसी चार्टर को मान्यता देते हैं.
उमर करीम का मानना है कि ‘ग्रेटर इसराइल’ की अवधारणा का क़ानूनी पहलू नहीं है, न ही इसराइल के पास भविष्य में ऐसी योजना को अंजाम देने की सैन्य क्षमता है.
उमर करीम कहते हैं, “लेकिन मान लीजिए कि अगर इसराइल ने ऐसा प्रयास किया, तो पश्चिम की अनुमति और सैन्य समर्थन के बिना यह संभव नहीं हो सकता.”
उनका मानना है कि यह महज एक कल्पना है, जो यहूदी चरमपंथी समूहों के लिए ‘राजनीतिक लाइफ़ लाइन’ के रूप में काम करती है. ये ठीक वैसे ही है जैसे पाकिस्तान में कुछ लोग ख़िलाफ़त के विचार के पक्षधर हैं.
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SOURCE : BBC NEWS