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जगजीत सिंह डल्लेवाल

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पंजाब-हरियाणा की सरहद पर खनौरी में किसान अपनी मांगों को लेकर अरसे से बैठे हुए हैं. 19 दिसंबर को यहां मंच का संचालन अचानक थम गया. पल भर में मंच खाली हो गया.

मेडिकल स्टाफ की टीमों की भागदौड़ से पता चला कि आमरण अनशन पर बैठे किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल की तबीयत ज़्यादा खराब हो गई है. इस दौरान कुछ लोग गुस्से में दिखे तो कुछ जज़्बाती हो गए.

थोड़ी देर बाद मंच से गुरबाणी का जाप शुरू हुआ. वहाँ मौजूद लोग डल्लेवाल के लिए अरदास करने लगे.

दोपहर बाद भारतीय किसान यूनियन (सिद्धूपुर) के प्रदेश महासचिव काका सिंह कोटड़ा ने मंच से कहा कि जगजीत सिंह डल्लेवाल का ब्लड प्रेशर लेवल बहुत ज़्यादा गिर गया था.

उन्होंने आगे कहा कि वह कुछ देर के लिए बेहोशी की हालत में चले गए थे, लेकिन अब उनकी सेहत में कुछ सुधार है.

किसान नेता ने साफ़ किया कि पुलिस अगर डल्लेवाल को जबरन अस्पताल ले जाने की कोशिश करेगी तो वे उसका विरोध करेंगे.

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डल्लेवाल की किसान आंदोलनों की यात्रा

बोहड़ सिंह भारतीय किसान यूनियन सिद्धूपुर के फरीदकोट जिला अध्यक्ष और जगजीत सिंह डल्लेवाल के करीबी सहयोगी हैं.

बीबीसी पंजाबी से बात करते हुए उन्होंने कहा कि जगजीत सिंह डल्लेवाल की पारिवारिक पृष्ठभूमि राजस्थान के जैसलमेर की है, उनका परिवार बाद में फरीदकोट में आकर बस गया था.

जगजीत सिंह डल्लेवाल का जन्म फ़रीदकोट जिले के डल्लेवाल गांव में हुआ था.

उन्होंने अपनी प्रारंभिक पढ़ाई फ़रीदकोट से की और फिर पंजाबी यूनिवर्सिटी से राजनीति विज्ञान में मास्टर डिग्री हासिल की. बोहड़ सिंह का कहना है कि युवावस्था में डल्लेवाल एक छात्र के रूप में सिख स्टूडेंट फेडरेशन की गतिविधियों में भाग लेते रहे हैं.

बोहड़ सिंह कहते हैं, “साल 2000 में जगजीत सिंह डल्लेवाल के बड़े भाई भारतीय किसान यूनियन लक्खोवाल गुट के ब्लॉक कोषाध्यक्ष बने. वह ज़्यादा पढ़े-लिखे नहीं थे, इसलिए सारा हिसाब-किताब जगजीत सिंह की मदद से करते थे. जगजीत सिंह डल्लेवाल अपने भाई की मदद करते हुए खुद भी किसानों के संघर्ष में शामिल होने लगे.”

2001 में, भारतीय किसान यूनियन लक्खोवाल के नेता अजमेर सिंह लक्खोवाल और पिशौरा सिंह सिद्धूपुर के बीच मतभेद हो गए. फिर यूनियन विभाजित हो गई.

इस बीच, जगजीत सिंह डल्लेवाल सिद्धूपुर गुट के साथ चले गए और उन्हें फरीदकोट के सादिक ब्लॉक का अध्यक्ष बनाया गया. फिर वे फ़रीदकोट के ज़िला अध्यक्ष बने और लगभग 15 वर्षों तक इस पद पर कार्य करते रहे.

इस वक्त जगजीत सिंह डल्लेवाल भारतीय किसान यूनियन सिद्धुपुर के प्रदेश अध्यक्ष हैं.

कैंसर से पीड़ित होने के बावजूद 70 वर्षीय जगजीत सिंह डल्लेवाल किसान आंदोलन के एक प्रमुख नेता बनकर उभरे हैं.

उनके बेटे गुरपिंदर सिंह डल्लेवाल ने बीबीसी संवाददाता अवतार सिंह को बताया कि उनके पिता पिछले चालीस साल से किसान आंदोलन से जुड़े हुए हैं. गुरपिंदर सिंह ने कहा कि जगजीत सिंह डल्लेवाल ने किसान आंदोलन के लिए जो कुछ किया है वह पूरी दुनिया के सामने है और उनका संघर्ष जारी है.

जगजीत सिंह डल्लेवाल ने राष्ट्रीय स्तर पर भी कई संघर्षों में अहम भूमिका निभाई है. करीब 17 एकड़ जमीन के मालिक डल्लेवाल किसान संघर्ष के दौरान कई बार जेल जा चुके हैं. इस साल 27 जनवरी को उनकी पत्नी का निधन हो गया.

कृषि कानूनों के ख़िलाफ़ आंदोलन में डल्लेवाल की भूमिका

शंभू बॉर्डर पर आंदोलन कर रहे किसान

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तीन कृषि कानूनों के ख़िलाफ़ दिल्ली की सीमाओं पर हुए किसान आंदोलन के दौरान जगजीत सिंह डल्लेवाल राष्ट्रीय स्तर पर एक महत्वपूर्ण किसान नेता के रूप में उभरे.

इस आंदोलन के दौरान कई किसान नेता किसी न किसी रूप में विवादों में भी फंसे, लेकिन डल्लेवाल उन नेताओं में से रहे, जिन्होंने आंदोलन के दौरान विनम्रता का साथ नहीं छोड़ा.

डल्लेवाल ने पिछला पंजाब विधानसभा चुनाव लड़ने वाले किसान नेताओं का सार्वजनिक तौर पर विरोध किया था.

डल्लेवाल के आमरण अनशन ने कैसे किसानों के संघर्ष को दी जान

जगजीत सिंह डल्लेवाल (बीच में)

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किसान मज़दूर मोर्चा और संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) ने किसानों की मांगों को लेकर 13 फरवरी 2024 को दिल्ली जाने की घोषणा की थी.

लेकिन किसानों के इस कारवां को पंजाब और हरियाणा की सीमाओं पर रोक दिया गया. तभी से किसान शम्भू और खनौरी बॉर्डर पर जमे हुए हैं.

21 फरवरी को शंभू और खनौरी बॉर्डर पर आंदोलन कर रहे किसानों ने दिल्ली की ओर बढ़ने की कोशिश की थी, लेकिन खनौरी बॉर्डर पर किसानों और पुलिस के बीच हुई झड़प में युवा किसान शुभकरण सिंह की मौत हो गई. इस दौरान कई किसान घायल भी हुए.

पिछले 9 महीनों से चल रहा यह संघर्ष अब 26 नवंबर से किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल की भूख हड़ताल के कारण एक बार फिर चर्चा का केंद्र बिंदु बन गया है.

सामाजिक कार्यकर्ता बलदेव सिंह सिरसा का कहना है कि जगजीत सिंह डल्लेवाल के आमरण अनशन ने आंदोलन में नई जान फूंक दी है.

उनके मुताबिक यह अनशन का ही असर है कि राज्य की बड़ी पार्टियों के नेताओं समेत धार्मिक नेता इस आंदोलन को समर्थन देने आ रहे हैं.

किसान नेता सतनाम सिंह बहिरू के मुताबिक, डल्लेवाल के कारण लोग इस हद तक इस आंदोलन से जुड़ गए हैं कि कई जगहों पर लोगों ने रेल रोकने के आह्वान पर अमल किया है.

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खनौरी बॉर्डर संघर्ष का मुख्य केंद्र बन गया

जगजीत सिंह डल्लेवाल

किसान आंदोलन के दूसरे चरण के शुरुआती दिनों में शंभू बॉर्डर संघर्ष का केंद्र बिंदु बना रहा. लेकिन जगजीत सिंह डल्लेवाल की भूख हड़ताल के बाद खनौरी बॉर्डर चर्चा में आ गया

खनौरी बॉर्डर से महज 6 किलोमीटर दूर रहने वाले किसान हरजीत सिंह कहते हैं कि जिस दिन से डल्लेवाल आमरण अनशन पर बैठे हैं, तब से कारवां इतना बढ़ रहा है कि 4-5 किलोमीटर तक किसानों की ट्रॉलियां खड़ी हैं.

इन्हीं ट्रालियों पर सवार युवाओं ने बताया कि वे डल्लेवाल के आमरण अनशन से प्रभावित होकर खनौरी बॉर्डर पहुंचे हैं.

पटियाला से आए सुखचैन सिंह ने कहा, “हम इस बात से प्रभावित हैं कि अगर इतनी उम्र के बूढ़े व्यक्ति ने आमरण अनशन किया है तो हम युवा होने के नाते कुछ क्यों नहीं कर सकते.”

खनौरी बॉर्डर पर डटे किसानों को क्या है डर?

 जगजीत सिंह डल्लेवाल से पंजाब के डीजीपी गौरव यादव मिलने पहुंचे थे

खनौरी बॉर्डर पर डटे किसानों को डर है कि सरकार जगजीत सिंह डल्लेवाल को किसान मोर्चे से उठाकर अस्पताल में भर्ती करा सकती है, जहां उन्हें ड्रिप लगाई जा सकती है.

अधिकांश मामलों में आमरण अनशन पर बैठे व्यक्ति को पुलिस ही अस्पताल में भर्ती करवाती है.

इससे पहले 26 नवंबर को पुलिस ने डल्लेवाल को इसी मोर्चे से जबरन उठाकर लुधियाना के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया था, हालांकि किसानों के दबाव के चलते पुलिस ने डल्लेवाल को रिहा कर दिया था.

2015 में सिख कैदियों की रिहाई के लिए आमरण अनशन करने वाले सूरत सिंह खालसा को करीब 8 साल तक लुधियाना के एक निजी अस्पताल में रखा गया था. सूरत सिंह खालसा का कहना था कि कई ऐसे सिख कैदी हैं जिन्हें उनकी सजा काटने के बाद भी जेलों में रखा गया है.

किसान नेता बलदेव सिंह सिरसा के मुताबिक, वह किसी भी हालत में जगजीत सिंह डल्लेवाल को जबरन उठाने नहीं देंगे.

इतिहास में आमरण अनशन के उदाहरण

यह पहली बार नहीं है कि किसी आंदोलन के नेता ने अपनी मांगों को लेकर आमरण अनशन किया हो. इतिहास में ऐसे कई उदाहरण हैं जब कोई नेता मांगों को लेकर भूख हड़ताल पर बैठे हों.

1920 के दशक में, किसान मुद्दों के लिए संघर्ष करने वाले प्रजा मंडल आंदोलन के नेता सेवा सिंह ठीकरीवाला जेल में मरने तक भूख हड़ताल पर रहे. प्रजा मंडल पार्टी की कुछ प्रमुख मांगें मध्यम वर्ग के किसानों के मुद्दों से संबंधित थीं.

20 जनवरी, 1935 को आधी रात को भूख हड़ताल के दौरान सेवा सिंह ठीकरीवाला की मृत्यु हो गई.

क्रांतिकारी भगत सिंह के साथी जतिन दास की 63 दिन की भूख हड़ताल के बाद लाहौर जेल में मौत हो गई.

पंजाब के एक महत्वपूर्ण सिख नेता दर्शन सिंह फेरुमान ने पंजाबी सूबे की मांग के लिए 15 अगस्त, 1969 को भूख हड़ताल शुरू की. 27 अक्टूबर, 1969 को उनका निधन हो गया.

हालांकि, इतिहास में ऐसे कई उदाहरण हैं जब किसी संगठन के नेता ने आमरण अनशन शुरू किया और सरकार ने दबाव में आकर माँगें मान लीं.

SOURCE : BBC NEWS