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जर्मनी में कर्मचारियों के बीच जलवायु परिवर्तन को लेकर चिंता कम हो गई है। हालिया सर्वेक्षण में केवल 10 प्रतिशत लोग इसे प्राथमिकता मानते हैं, जबकि सामाजिक असमानता और रोजगार सुरक्षा जैसी चिंताएं बढ़ी…

डॉयचे वेले दिल्लीSat, 26 April 2025 08:51 PM
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जर्मनी में अब जलवायु नहीं है सबसे बड़ी चिंता

दो साल पहले जर्मनी में काम करने वाले लोगों के लिए जलवायु परिवर्तन एक बड़ा मुद्दा था लेकिन ताजा सर्वेक्षण बताते हैं कि यह स्थिति बदल गई है.जर्मनी के कर्मचारियों के बीच जलवायु संकट को लेकर चिंता अब पहले की तुलना में काफी कम हो गई है.विटेनबर्ग सेंटर फॉर ग्लोबल एथिक्स द्वारा किए गए एक ताजा सर्वेक्षण में सामने आया है कि अब केवल 10 प्रतिशत कर्मचारी जलवायु संरक्षण को सबसे अहम मुद्दा मानते हैं.यह सर्वेक्षण ऊर्जा कंपनी ई डॉट ओएन की कॉरपोरेट फाउंडेशन के लिए कराया गया था और इसमें 2,000 से अधिक मौजूदा व भावी कर्मचारियों से फरवरी 2025 में सवाल पूछे गए थे.2022 की तुलना में कर्मचारियों के नजरिए में साफ बदलाव देखा गया है.दो साल पहले, 20 फीसदी कर्मचारियों ने जलवायु संरक्षण को सबसे बड़ी प्राथमिकता बताया था.वहीं, अब यह आंकड़ा घटकर लगभग आधा रह गया है.

दूसरी ओर, सामाजिक असमानता को कम करना (17 फीसदी), रोजगार सुरक्षा (15 फीसदी) और भू-राजनीतिक संघर्षों का समाधान (14 फीसदी) जैसी चिंताएं कर्मचारियों के लिए कहीं ज्यादा अहम हो गई हैं.सेंटर के प्रमुख मार्टिन फोन ब्रूक ने कहा, “लोग अब आर्थिक स्थिरता पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं, और पर्यावरणीय स्थिरता के सवाल थोड़े पीछे छूटते जा रहे हैं” उनके अनुसार, जलवायु संकट को पूरी तरह नजरअंदाज नहीं किया जा रहा है, लेकिन अब कर्मचारी चाहते हैं कि सरकारें और कंपनियां पर्यावरण के लक्ष्यों को आर्थिक अवसरों के साथ आगे बढ़ाएं.जलवायु संरक्षण पर बंटी रायरिपोर्ट के मुताबिक, लगभग आधे कर्मचारी अभी भी चाहते हैं कि जलवायु के अनुकूल औद्योगिक परिवर्तन को और तेज किया जाए.वहीं 30 फीसदी कर्मचारियों का मानना है कि वर्तमान गति काफी है.हालांकि 20 फीसदी लोग अब कहते हैं कि इस बदलाव की गति को धीमा कर देना चाहिए.ये आंकड़े संकेत देते हैं कि जलवायु परिवर्तन के प्रति उत्साह में निश्चित रूप से कमी आई है, लेकिन पूरी तरह से समर्थन खत्म नहीं हुआ है.2022 में “प्रतिस्पर्धा बनी रहे” इसे प्रमुख सामाजिक मुद्दा मानने वालों की संख्या भी अपेक्षाकृत कम थी.

लेकिन 2025 में यह संख्या तीन गुना बढ़ गई है.रिपोर्ट यह भी उजागर करती है कि जलवायु संरक्षण के लिए व्यक्तिगत स्तर पर समझौते करने की इच्छा सीमित है.62 फीसदी कर्मचारी नए स्किल सीखने के लिए तैयार हैं, लेकिन केवल 15 फीसदी लोग ही इसके लिए कम वेतन वाली नौकरी स्वीकार करने को तैयार हुए.सिर्फ 20 फीसदी कर्मचारी किसी अन्य स्थान पर तबादले के लिए सहमत हैं.आर्थिक असुरक्षा ने बदली प्राथमिकताविशेषज्ञों का मानना है कि यह बदलाव कोविड-19 महामारी, ऊर्जा संकट और हालिया भू-राजनीतिक तनावों के बाद पैदा हुई आर्थिक अनिश्चितताओं का नतीजा है.कर्मचारियों का ध्यान अब ज्यादा ठोस और तात्कालिक चिंताओं, जैसे सामाजिक समानता, नौकरी की सुरक्षा और आर्थिक प्रतिस्पर्धा पर केंद्रित हो गया है.डेर श्पीगल पत्रिका की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में 42 फीसदी कर्मचारियों को विश्वास था कि जलवायु के अनुकूल बदलाव उनके रोजगार के लिए सकारात्मक रहेंगे.

लेकिन 2025 में यह भरोसा गिरकर 37 फीसदी रह गया है.वहीं, बदलाव के नकारात्मक प्रभावों की आशंका रखने वालों की संख्या 14 फीसदी से बढ़कर 18 फीसदी हो गई है.जर्मनी में कर्मचारी अब भी जलवायु संकट को महत्व देते हैं, लेकिन आर्थिक सुरक्षा और सामाजिक न्याय के सवाल उनके लिए कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण बन चुके हैं.विशेषज्ञ कहते हैं कि अब नीति-निर्माताओं के लिए यह जरूरी हो गया है कि वे जलवायु परिवर्तन की दिशा में तेजी से काम करते हुए कर्मचारियों की आजीविका और सामाजिक स्थिरता सुनिश्चित करने पर भी ध्यान दें.मार्टिन फोन ब्रूक के शब्दों में, “लोग जलवायु तटस्थता को अवसर के रूप में देखते हैं, बाधा के रूप में नहीं.लेकिन वे चाहते हैं कि सरकारें बेहतर प्रोत्साहन दें, ना कि केवल अपेक्षाएं बढ़ाएं”.

SOURCE : LIVE HINDUSTAN