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गाजीपुर: शहर के पुराने इलाके में एक खास जगह है- छवलका इनार. ये कुआं केवल पानी के लिए ही नहीं, बल्कि अपनी मिठास के लिए भी जाना जाता है. इसी कुंए के पास एक 150 साल पुरानी जलेबी की दुकान है, जो किसी नाम से नहीं, बल्कि अपने स्वाद से मशहूर है. दुकान पर कोई बड़ा साइनबोर्ड नहीं लगा है, बस पीले रंग का टेंट है, जिसके नीचे एक स्वाद से भरी दुनिया छिपी है.

दुकान के मालिक संजय यादव हैं. वे बताते हैं, “यह दुकान मेरे दादा ने शुरू की थी और अब मैं पिछले 30 सालों से इसे चला रहा हूं.” इस दुकान की जलेबी बाकी जगहों से अलग है. यह लाल रंग की मोटी-मोटी जलेबियां होती हैं, जिनमें चंपा बूंदी का रंग और इलायची-केसर वाली चाशनी मिलती है. यही चीज इसे खास बनाती है.

सुबह की मिठास, खुशबू से भर देता है माहौल
सुबह 7 बजे जब यहां से गुजरिए, तो जलेबी की खुशबू हवा में घुली होती है. लोकल 18 की टीम जब वहां पहुंची, तब ताजगी से भरी गरमागरम जलेबियां छानी जा रही थीं. एक जलेबी इतनी बड़ी थी कि देखने में किसी गोल पापड़ जैसी लग रही थी. संजय यादव हंसते हुए बोले, “हमारी जलेबी बड़ी होती है, एक जलेबी चार लोग खा सकते हैं.”

दुकान पर भीड़ ही भीड़
सुबह 9 बजे तक यहां भीड़ लग जाती है. हर कोई गरमा-गरम जलेबी के साथ दिन की शुरुआत करना चाहता है. दुकान के सामने का नज़ारा किसी पुराने बनारस जैसा लगता है. लोग कहते हैं, “गाजीपुर को छोटी काशी कहा जाता है, तो यहां का स्वाद भी वैसा ही होना चाहिए.”

जलेबी से जुड़ी है गाजीपुर की पहचान
यह दुकान केवल मिठाई बेचने की जगह नहीं, बल्कि गाजीपुर की संस्कृति और यादों का हिस्सा बन चुकी है. एक ग्राहक ने बताया, “मैं पिछले 5-6 सालों से यहां जलेबी खा रहा हूं. इसकी खस्ता परत और गर्म चाशनी का स्वाद कहीं और नहीं मिलता.”

 दिल को भी सुकून
लोग कहते हैं, “अगर गाजीपुर आए और इनार वाली जलेबी नहीं खाई, तो कुछ भी नहीं खाया.” यहां की जलेबी न सिर्फ पेट भरती है, बल्कि दिल को भी सुकून देती है. यह मिठाई पुरानी रेसिपी और गाजीपुर की परंपरा को आज भी जिंदा रखे हुए है. सुबह-सुबह कचौड़ी के साथ जलेबी खाना अब गाजीपुर के लोगों की रोज़मर्रा की आदत बन चुकी है. यह सिर्फ एक मिठाई नहीं, बल्कि शहर की मीठी याद बन चुकी है.

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