Source :- NEWS18

नई दिल्लीः पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है, क्योंकि हर कोई इस हमले में मारे गए लोगों और उनके परिवारों के प्रति दुख व्यक्त कर रहा है. इस घटना की लोगों ने निंदा की है, लेकिन इस घटना ने पाकिस्तानी कलाकारों को भारत में काम करने की अनुमति देने पर सवाल खड़ा कर दिया है. फवाद खान की फिल्म ‘अबीर गुलाल’ 9 मई को सिनेमाघरों में रिलीज होने वाली थी, लेकिन रिपोर्ट्स के मुताबिक अब इसे भारत में रिलीज करने पर रोक लगा दी गई है. इन सबके बीच अब दिग्गज स्क्रिप्ट राइटर जावेद अख्तर ने पाकिस्तानी कलाकारों को हमारे देश में काम करने की परमिशन और बैन दोनों पर अपनी प्रतिक्रिया दी है.

भारत में हमेशा पाकिस्तानियों का स्वागत हुआ है
जावेद अख्तर ने PTI के एक वीडियो में कहा, ‘पहला सवाल यह होना चाहिए कि क्या हमें पाकिस्तानी कलाकारों को यहां आने की अनुमति देनी चाहिए? इसके दो जवाब हैं, दोनों ही समान रूप से तार्किक हैं. यह हमेशा से एक तरफा ही रहा है, नुसरत फतेह अली खान, गुलाम अली, नूरजहां भारत आए, हमने उनका शानदार स्वागत किया… फैज अहमद फैज, जो उपमहाद्वीप के कवि हैं, वे पाकिस्तान में रह रहे थे, जब वे अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकाल में भारत आए, तो उनके साथ एक राष्ट्राध्यक्ष जैसा व्यवहार किया गया, जिस तरह का सम्मान सरकार ने दिया. मुझे डर है, इसका कभी भी बदला नहीं लिया गया, मेरा मतलब है, मुझे पाकिस्तान के लोगों से कोई शिकायत नहीं है.’ लेकिन उनकी ओर से हमारे कलाकारों को रेस्पांस नहीं मिला तो भला ऐसा कब तक चलेगा?

पाकिस्तान में लता मंगेशकर का एक भी कार्यक्रम क्यों नहीं हुआ
उन्होंने आगे सवाल किया कि लता मंगेशकर ने कभी पाकिस्तान में प्रदर्शन क्यों नहीं किया? अख्तर ने कहा, ‘लता मंगेशकर के गीतों के लिए पाकिस्तान के बड़े-बड़े कवियों ने लिखा है. 60 और 70 के दशक में वो भारत और पाकिस्तान की सबसे लोकप्रिय कलाकार थीं, लेकिन पाकिस्तान में लता मंगेशकर का एक भी कार्यक्रम क्यों नहीं हुआ?

जावेद बोले, मैं पाकिस्तान के लोगों ने नहीं करूंगा शिकायत

आगे जावेद अख्तर ने कहा, ‘मैं पाकिस्तान के लोगों से शिकायत नहीं करूंगा, उन्हें प्यार किया जाता था, लेकिन कुछ रुकावटें थीं, रुकावटें सिस्टम की थीं, जो मुझे समझ में नहीं आतीं. यह एकतरफा यातायात है. दूसरा भी उतना ही वैध है, अगर हम पाकिस्तानी कलाकारों को रोकते हैं, तो हम पाकिस्तान में किसे खुश कर रहे हैं? सेना और कट्टरपंथी, यही तो वे चाहते हैं? वे दूरी चाहते हैं, यह उन्हें सूट करता है. ये दोनों सवाल समान रूप से वैध हैं. इस समय, मैं कहूंगा नहीं.’ उनका मतलब ये भी हो सकता है कि बैन करके कहीं न कहीं शायद हम उन्हीं की मदद कर रहे हैं और उन्होंने कहा पहलगाम में जो कुछ भी हुआ. ऐसे मौके पर इस तरह के सवाल नहीं होने चाहिए.

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