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ट्रंप

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6 मिनट पहले

राष्ट्रपति की कमान संभालने के बाद डोनाल्ड ट्रंप से ओवल ऑफिस में एक पत्रकार ने पूछा, हम नेटो (नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइज़ेशन) के उन सदस्य देशों को लेकर क्या उम्मीद करें जो बहुत कम ख़र्च करते हैं. जैसे स्पेन का नेटो के बजट में पाँच प्रतिशत से भी कम योगदान है.

ट्रंप ने इस सवाल के जवाब में कहा, स्पेन बहुत कम खर्च करता है. क्या यह ब्रिक्स (BRICS) का सदस्य है?

रिपोर्टर ने जवाब में कहा- क्या?

ट्रंप ने कहा- ये ब्रिक्स के सदस्य हैं. स्पेन. आपको पता है कि ब्रिक्स का सदस्य देश क्या है? आप पता करना. ब्रिक्स देशों ने अगर डॉलर की जगह कोई और करेंसी लाने की कोशिश की तो अमेरिका के साथ कारोबार में 100 प्रतिशत टैक्स लगेगा.

ज़ाहिर है कि स्पेन ब्रिक्स का सदस्य देश नहीं है. ब्रिक्स में एस साउथ अफ़्रीका के लिए है, जो 2010 में शामिल हुआ था. इससे पहले यह ब्रिक था- जिसमें ब्राज़ील, रूस, इंडिया और चीन थे.

ट्रंप ने भले स्पेन को ब्रिक्स का सदस्य बताया, लेकिन ब्रिक्स देशों को लेकर पहले भी वह टैरिफ की धमकी दे चुके हैं.

ब्रिक्स देशों के बीच अमेरिकी मुद्रा डॉलर के बदले किसी और मुद्रा में व्यापार की बात उठती रही है. ट्रंप को लगता है कि ब्रिक्स देश डॉलर को कमज़ोर करने में लगे हैं.

ट्रंप चीन

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ट्रंप की धमकी

दिसंबर में ट्रंप ने एक्स पर लिखी एक पोस्ट में कहा था, ”ब्रिक्स देशों से हमें यह वादा चाहिए कि न तो वे नई मुद्रा बना सकते हैं और न ही डॉलर की ताक़त को कम करने के लिए किसी और मुद्रा को समर्थन दे सकते हैं. अगर ऐसा करेंगे तो इन्हें 100 फ़ीसदी टैरिफ का सामना करना पड़ेगा. इन देशों को अमेरिका की शानदार अर्थव्यवस्था से बाहर होना पड़ेगा.”

दुनिया भर देशों में डॉलर से निर्भरता कम करने की बात होती रहती है. कई देशों को यह चिंता सताती है कि अमेरिका के दबदबे वाली वैश्विक वित्तीय व्यवस्था पर निर्भरता भविष्य में संकट ला सकती है. रूस को अमेरिका ने वर्ल्डवाइड इंटरबैंक फ़ाइनेंशियल टेलिकम्युनिकेशन यानी स्विफ्ट से बाहर कर दिया है. अंतरराष्ट्रीय वित्तीय लेन-देन में स्विफ्ट काफ़ी अहम है.

ईरान को भी अमेरिका ने स्विफ्ट से 2012 में ही अलग कर दिया था. इसके बाद 2015 में ईरान अमेरिका से बातचीत के लिए तैयार हुआ था. 2018 में जब ट्रंप राष्ट्रपति बने तो फिर से ईरान पर प्रतिबंध लगाने का फ़ैसला किया और स्विफ्ट से निलंबित कर दिया था.

2023 में दक्षिण अफ़्रीका के जोहानिसबर्ग में ब्रिक्स समिट हुआ था. इस समिट में ब्राज़ील के राष्ट्रपति लूला डा सिल्वा ने कहा था, ”ब्रिक्स की नई मुद्रा बनने से भुगतान के लिए नए विकल्प बनेंगे और मुश्किल घड़ी में हमारे लिए चीज़ें आसान होंगी.”

पिछले साल अक्तूबर में रूस के कज़ान में ब्रिक्स समिट हुआ था. इस समिट में रूस के राष्ट्रपति ने कहा था, ”डॉलर का इस्तेमाल एक हथियार के रूप में हो रहा है. हम वाक़ई ऐसा होता देख रहे हैं. मुझे लगता है कि जो भी ऐसा कर रहे हैं, वे भारी ग़लती कर रहे हैं.”

भारत भी अंतरराष्ट्रीय व्यापार में स्थानीय मुद्राओं को बढ़ावा देने की बात करता रहा है ताकि डॉलर से निर्भरता कम हो सके.

रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया ने रूस के साथ व्यापार में रुपए से भुगतान की अनुमति भी दे रखी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कहा था कि भारत ब्रिक्स देशों के बीच वित्तीय एकीकरण का समर्थन करता है. पीएम मोदी ने कहा था कि स्थानीय मुद्रा में व्यापार से आर्थिक सहयोग को मज़बूती मिलेगी.

अक्तूबर 2024 में भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा था कि अमेरिकी नीतियों से अक्सर कुछ देशों के कारोबार जटिल हो जाते हैं. एस जयशंकर ने कहा था कि भारत अपने कारोबारी हितों की बात कर रहा है और इसका मक़सद डॉलर को टारगेट करना नहीं है.

ट्रंप-मोदी

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ट्रंप का आना भारत के लिए कैसा होगा?

ट्रंप ने शपथ लेने के बाद भाषण दिया और उसमें उन्होंने बताया कि उनकी दिशा क्या रहेगी. ट्रंप ने शपथ से पहले कई देशों पर टैरिफ लगाने की चेतावनी दी थी, लेकिन शपथ के बाद के भाषण में किसी भी देश का नाम नहीं लिया. ट्रंप ने अपने भाषण में इसकी घोषणा कर दी कि गल्फ ऑफ़ मेक्सिको का नाम अब गल्फ़ ऑफ़ अमेरिका रहेगा.

पिछले दो दशक में अमेरिका से भारत के संबंध मज़बूत हुए हैं, लेकिन ट्रंप की अमेरिका फ़र्स्ट नीति से परेशानी बढ़ सकती है. ट्रंप इस बार अमेरिका फर्स्ट नीति को लेकर ज़्यादा आक्रामक हैं. माना जा रहा है कि भारत को इमिग्रेशन और ट्रेड के मसले पर ट्रंप प्रशासन से चुनौती मिलेगी.

थिंक टैंक रैंड कॉर्पोरेशन में इंडो पैसिफिक एनलिस्ट डेरेक ग्रॉसमैन ने लिखा है कि ट्रंप की इंडो-पैसिफिक नीति बाइडन की तुलना में बिल्कुल अलग होगी.

डेरेक ने लिखा है, ”ट्रंप ने जेडी वांस को उपराष्ट्रपति बनाया है और वांस चीन को लेकर काफ़ी आक्रामक रहते हैं. लेकिन ट्रंप ने पिछले हफ़्ते कहा था कि ताइवान को अपनी सुरक्षा के लिए हमें भुगतान करना चाहिए. ट्रंप कुछ भी ऐसा करने से बचेंगे, जो अमेरिका के फ़ायदे में नहीं होगा. ट्रंप के सत्ता में आने के बाद यूरोप में भी डर है क्योंकि उन्होंने यूक्रेन की मदद पर भी सवाल उठाया है.”

ट्रंप अतीत में भारत की कई बार आलोचना कर चुके हैं. ख़ास कर अमेरिका में बेरोज़गारी को लेकर. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को डोनाल्ड ट्रंप दोस्त कहते हैं.

ग्रॉसमैन ने लिखा है, ”चीन के साथ पूर्वी लद्दाख में 2020 में जब भारतीय सैनिकों की झड़प हुई थी, तब अमेरिका ने भारत को ख़ुफ़िया स्तर पर मदद की थी. ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में पाकिस्तान को सबसे ज़्यादा नुक़सान होगा. ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में पाकिस्तान को धोखेबाज़ और आतंकवादियों को पनाह देने वाला मुल्क कहा था. 2018 में ट्रंप ने पाकिस्तान को दी जाने वाली रक्षा मदद को रद्द कर दिया था. ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में भी भारत के साथ संबंध मज़बूत होंगे और पाकिस्तान से दूरियां बढ़ेंगी.”

चीन को लेकर ट्रंप की नीति भारत की बढ़ाएगी चिंता?

ट्रंप-मोदी

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अमेरिकी अख़बार वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट के अनुसार, राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने सलाहकारों से कहा है कि वह शपथ लेने के बाद चीन जाना चाहते हैं.

अख़बार के मुताबिक़ ट्रंप ने कहा है कि वह चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के संबंध गहरा करना चाहते हैं. इससे पहले ट्रंप ने चुनाव जीतने के बाद चीन के ख़िलाफ़ टैरिफ लगाने की धमकी दी थी.

ट्रंप अपने पहले कार्यकाल में एक साल के भीतर ही 2017 में चीन के दौरे पर गए थे. डब्ल्यूएसजे ने लिखा है कि ट्रंप कमान संभालने के बाद 100 दिनों के भीतर ही चीन जाना चाहते हैं.

नवंबर में चुनाव जीतने के बाद ट्रंप ने शु्क्रवार को पहली बार शी जिनपिंग से बात की थी. ट्रंप ने शी जिनपिंग से बातचीत के बाद कहा था कि दोनों देश साथ मिलकर कई समस्याओं का समाधान खोज सकते हैं. ट्रंप ने अपने शपथ ग्रहण समारोह में शी जिनपिंग को आमंत्रित किया था, लेकिन चीन ने अपने उपराष्ट्रपति को भेजा.

समारिक मामलों के विशेषज्ञ ब्रह्मा चेलानी ने लिखा है कि चीन के तानाशाह के प्रति ट्रंप की बढ़ती उदारता का असर अमेरिका से भारत और जापान के संबंधों पर पड़ेगा.

ट्रंप ने अपने दूसरे कार्यकाल में चीन के प्रति नरमी दिखाई है. ट्रंप ने टिक टॉक पर प्रतिबंध को भी टाल दिया है. पूर्व डिप्लोमैट जयंत प्रसाद ने क़तर के न्यूज़ नेटवर्क अल-जज़ीरा से कहा, ”ट्रंप की यह प्रवृत्ति रही है कि दुश्मनों की ख़ुशामदी करो और दोस्तों को बेचैन.”

ट्रंप ने चीन के स्वामित्व वाले सोशल मीडिया ऐप टिक टॉक पर प्रतिबंध की बात कही थी, लेकिन अब इसे बचा रहे हैं. ट्रंप ने शी जिनपिंग को शपथ ग्रहण समारोह में आने का न्योता दिया.

चीन ने न तो इसे आधिकारिक रूप से स्वीकार किया और न ही नकारा है. ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह में भारत के प्रधानमंत्री को इस तरह से आने का कोई औपचारिक न्योता नहीं मिला था. इसे लेकर मोदी विरोधी सोशल मीडिया पर काफ़ी सक्रिय दिखे और सरकार पर तंज़ कसते रहे.

यूनिवर्सिटी ऑफ अल्बनी में राजनीतिक विज्ञान के प्रोफ़ेसर क्रिस्टोफर क्लैरी ने अल-जज़ीरा से कहा, ”दूसरे कार्यकाल में ट्रंप भारत के लिए दो तरह से ख़तरा हैं. ट्रंप और उनकी टीम भारत को लेकर ज़्यादा आक्रामक रहेंगे. ख़ास कर ट्रेड और निवेश के मसले पर.”

मोदी उम्मीद कर रहे हैं कि क्वॉड समिट में ट्रंप इस साल भारत आएंगे. क्वॉड में अमेरिका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया हैं. दूसरी तरफ़ चीन इस साल शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइज़ेशन यानी एससीओ समिट का आयोजन करने जा रहा है. मोदी समिट में शामिल होने के लिए चीन जा सकते हैं.

2022 में भारत और अमेरिका का द्विपक्षीय व्यापार 191.8 अरब डॉलर का था. भारत ने 118 अरब डॉलर का निर्यात किया था और आयात 73 अरब डॉलर का था. यानी भारत का 2022 में 45.7 अरब डॉलर सरप्लस व्यापार था.

लेकिन ट्रंप ने अमेरिका फर्स्ट पॉलिसी के तहत भारत के ख़िलाफ़ टैरिफ लगाया तो चीज़ें बदलेंगी. ट्रंप चाहते हैं कि ट्रेड सरप्लस अमेरिका के पक्ष में रहे न कि भारत के पक्ष में.

1972 में चीन और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय व्यापार महज 10 करोड़ डॉलर का था जो 2022 में 758.4 अरब डॉलर का हो गया. कहा जाता है कि चीन और अमेरिका दोनों एक-दूसरे की ज़रूरत हैं और दोनों एक-दूसरे से अलग होकर नहीं रह सकते हैं.

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SOURCE : BBC NEWS