Source :- BBC INDIA

रोज़ाना इस्तेमाल होने वाले तौलिये भी हमारी सेहत पर बड़ा असर डालते हैं

इमेज स्रोत, Getty Images

नहाने के बाद जिस तौलिये से हम खुद को सुखाते हैं, उसका पहले से कई बार इस्तेमाल हो चुका होता है. इस दौरान उसमें कई सारे बैक्टीरिया भी जमा होते रहते हैं. लेकिन हमें तौलिये को कितने दिनों के बाद धोना चाहिए?

आपने शायद आज भी तौलिया इस्तेमाल किया होगा, लेकिन आपने जो तौलिया इस्तेमाल किया वह कितना साफ़ था? हम में से बहुत से लोग हफ़्ते में एक बार अपना तौलिया धोते हैं.

सीएबीआई डिजिटल लाइब्रेरी ने इसे लेकर 100 लोगों पर एक स्टडी की थी. इसके मुताबिक़ इनमें से लगभग एक तिहाई लोगों ने अपना तौलिया महीने में सिर्फ़ एक बार ही साफ किया था.

रेड लाइन

बीबीसी हिंदी के व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें

रेड लाइन

इससे पहले, ब्रिटेन में हुए एक सर्वे के मुताबिक़, “कुछ लोगों ने यह स्वीकार किया कि वह साल में केवल एक बार ही अपना तौलिया धोते हैं.”

भले ही आपके तौलिये देखने में गंदे न लगें, लेकिन उनमें कई सारे बैक्टीरिया जमा होते रहते हैं.

ये भी पढ़ें

सेहत को कैसे प्रभावित करता है तौलिया

कई बार तौलियों पर बहुत से बैक्टीरिया चिपके रह जाते हैं

इमेज स्रोत, Getty Images

अध्ययन बताते हैं कि तौलिये ना सिर्फ़ हमारी त्वचा पर पाए जाने वाले बैक्टीरिया की वजह से तेज़ी से गंदे या दूषित होते हैं, बल्कि हमारे पेट में पाए जाने वाले बैक्टीरिया से भी दूषित होते हैं.

नहाने के बाद भी हमारे शरीर पर बैक्टीरिया या वायरस रह जाते हैं, और इसमे कोई हैरानी वाली बात नहीं है कि जब हम तौलिये से खुद को पोछते हैं, तो इनमें से कई सारे बैक्टीरिया या वायरस तौलिये पर चिपक जाते हैं.

लेकिन हमारे तौलियों में मौजूद बैक्टीरिया किसी और जगह से भी आ सकते हैं. जैसे कि जब तौलियों को सूखने के लिए लटकाया जाता है, हवा में उड़ने वाले फफूंद और बैक्टीरिया उनसे चिपक सकते हैं.

कुछ बैक्टीरिया तौलिये को धोने वाले पानी से भी उसपर जमा हो सकते हैं.

जापान में कुछ घरों में कपड़े धोने के लिए नहाने से बचे हुए पानी का इस्तेमाल किया जाता है. तोकुशिमा विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने एक रिसर्च में पाया कि भले ही इससे पानी की बचत होती है, लेकिन इससे पानी में मौजूद कई बैक्टीरिया तौलिये और कपड़ों में जम जाते हैं.

वह लोग जो अपने तौलिये को बाथरूम में ही छोड़ना पसंद करते हैं, उनके लिए और भी बुरी ख़बर है.

क्योंकि हर बार फ्लश करने पर, टॉयलेट के बैक्टीरिया और परिवार वालों के शरीर पर मौजूद गंदगी बाथरूम में रखे तौलिये पर चिपक जाती है.

समय के साथ-साथ बैक्टीरिया हमारे तौलियों पर एक परत भी बना लेते हैं, जिससे तौलियों का रंग या स्वरूप भी बदल जाता है.

भले ही आप तौलियों को नियमित रूप से धोते हों लेकिन दो महीने के बाद सूती तौलियों के रेशों पर मौजूद बैक्टीरिया कपड़े के रंग को धुंधला कर देते हैं.

लेकिन यह चौंकने वाली बात नहीं है कि बैक्टीरिया की मात्रा और प्रकार कपड़े धोने की आदतों पर निर्भर करती है.

लेकिन असल में सवाल यह है कि क्या आपको अपने तौलिये पर मौजूद बैक्टीरिया के बारे में कितनी चिंता करने की ज़रूरत है?

ये भी पढ़ें

क्या तौलिये से फ़ैलता है बैक्टीरिया

तौलिया बैक्टीरिया फ़ैलने का एक प्रमुख ज़रिया भी हो सकता है

इमेज स्रोत, Getty Images

भले ही तौलिया धोना मामूली बात लग सकती है. लेकिन प्रोफ़ेसर एलिज़ाबेथ स्कॉट बताती हैं कि यह घर में बैक्टीरिया को कैसे फ़ैला सकता है?

प्रोफ़ेसर एलिज़ाबेथ स्कॉट अमेरिका में बोस्टन की सिमन्स यूनिवर्सिटी में बॉयोलॉजी (जीवविज्ञान) की प्रोफ़ेसर और हाइजीन एंड हेल्थ सेंटर की को-डायरेक्टर हैं.

प्रोफ़ेसर एलिज़ाबेथ स्कॉट कहती हैं, “बैक्टीरिया आपके तौलिये पर ही नहीं बैठे रहते हैं.बैक्टीरिया स्वाभाविक रूप से तौलिये पर ही नहीं बैठे रहते. तौलिये पर मौजूद जो भी बैक्टीरिया हमें नुकसान पहुंचा सकते हैं, वह भी शायद किसी इंसान से ही आए हों.

दरअसल हमारी त्वचा पर कई हज़ार से भी ज़्यादा अलग-अलग तरह के वायरस, फ़ंगस और बैक्टीरिया पाए जाते हैं.

तौलियों पर बैक्टीरिया हमारे शरीर पर आते हैं

वास्तव में उनमें से ज़्यादातर सूक्ष्मजीव हमारे लिए अच्छे होते हैं. वह हमें हानिकारक बैक्टीरिया से होने वाले संक्रमण से बचाने में मदद करते हैं.

वह रोज़मर्रा की जिंदगी में संपर्क में आने वाले केमिकल के असर को कम करते हैं और हमारे इम्यून सिस्टम को बनाए रखने में अहम होते हैं.

तौलियों पर पाए जाने वाले ज़्यादातर बैक्टीरिया वही होते हैं जो न सिर्फ़ हमारी त्वचा पर पाए जाते हैं. बल्कि हमारे आस-पास भी मौजूद होते हैं.

इनमें स्टैफ़िलोकोकस बैक्टीरिया और एस्चेरिचिया कोली जैसे बैक्टीरिया हैं जो सामान्य तौर पर मनुष्यों के पेट में पाए जाते हैं. इनमें साल्मोनेला और शिगेला बैक्टीरिया भी होते हैं, जो आम तौर पर खाने से होने वाली बीमारियों और डायरिया की वजह बनते हैं.

लेकिन इनमें से कुछ बैक्टीरिया मौकापरस्त भी होते हैं. यानी कि यह तब तक नुकसान नहीं पहुंचाते जब कि यह किसी ऐसी जगह ना पहुंच जाएं, जहां वो ज़्यादा नुकसान कर सकें. जैसे कि किसी घाव को विषैला करना या कमज़ोर इम्यून सिस्टम वालों को संक्रमित करना.

जितने ज़्यादा समय तक हम तौलियों को इस्तेमाल करते हैं और वह जितना ज़्यादा वक़्त तक नम रहते हैं. उतना ही ज़्यादा वह बैक्टीरिया जैसे सूक्ष्म जीवों के लिए अनुकूल होते जाते हैं.

ये भी पढ़ें

त्वचा को कैसे नुकसान पहुंचा सकता है तौलिया

कई बार तौलिया हमारी त्वचा को भी नुकसान पहुंचा सकता है

इमेज स्रोत, Getty Images

हमारी त्वचा भी प्राकृतिक तौर पर संक्रमण को रोकती है. यह बैक्टीरिया और दूसरे कीटाणुओं के ख़िलाफ़ हमारी पहली ढाल होती है. इसीलिए तौलिये से हमारी त्वचा पर आने वाले बैक्टीरिया के बारे में हमें ज़्यादा चिंता नहीं करनी चाहिए.

लेकिन कुछ मौकों पर खुद को सुखाने के लिए तौलिये से रगड़ना हमारी त्वचा की सुरक्षा ढाल को नुक़सान भी पहुंचा सकता है.

लेकिन बड़ा ख़तरा तब होता है, जब हम तौलिये से हाथ पोछते हैं और हानिकारक बैक्टीरिया को अपने हाथों पर चिपका लेते हैं और फ़िर मुंह, नाक या आंखों को छूते हैं.

इसका यह मतलब है कि जिन तौलियों को अक्सर हम अपने हाथ पोछने के लिए इस्तेमाल करते हैं उनपर ज़्यादा ध्यान देने की ज़रूरत है.

किचन के तौलिये, जिनका इस्तेमाल बर्तनों, सतहों और हाथों को पोछने में होता है, वह पेट के या खाने-पीने से होने वाली बीमारियों की बैक्टीरिया के फ़ैलने की एक वजह है

प्रोफ़ेसर एलिज़ाबेथ स्कॉट के मुताबिक़, “साल्मोनेला, नॉरोवायरस और ई. कोलाई जैसे पेट और आंत के संक्रमण तौलियों के ज़रिए फ़ैल सकते हैं.”

अध्ययनों में यह भी पाया गया है कि कोविड-19 जैसे वायरस सूती तौलियों पर 24 घंटों तक ज़िंदा रह सकते हैं.

हालांकि संक्रमित सतहों को छूने से होने वाला संक्रमण वायरस फ़ैलने की अहम वजह नहीं हो सकता.

संपर्क में आकर फ़ैलने वाले दूसरे वायरस जैसे कि एमपॉक्स से ज़्यादा ख़तरा हो सकता है. ऐसे मामलों में स्वास्थ्य विभागों से जुड़े अधिकारी भी संक्रमित लोगों के साथ तौलिया या चादर साझा न करने की सलाह देते हैं.

रिसर्च यह भी कहती है कि ह्यूमन पैपिलोमावायरस जो कि मुहांसों और मस्सों की वजह होते हैं, वह भी साझा किए गए तौलियों से फ़ैल सकते हैं.

दोबारा इस्तेमाल करने वाले हाथ पोछने के तौलियों से फ़ैलने वाले संक्रमणों के ख़तरों के चलते ही अस्पतालों और पब्लिक टॉयलेट में अब डिस्पोज़ेबल पेपर टॉवेल और एयर ड्रायर का इस्तेमाल होता है. हालांकि इस बात के पुख़्ता प्रमाण नहीं मिले हैं कि कौन सा विकल्प ज़्यादा बेहतर है.

इससे यह साफ़ है कि जितना ज़्यादा हम तौलिये का इस्तेमाल करते हैं, उतने ही ज़्यादा देर तक वह गीले होते हैं. और उतना ही ज़्यादा उनमें बैक्टीरिया के पनपने और बढ़ने का ख़तरा बरकरार रहता है.

प्रोफ़ेसर एलिज़ाबेथ स्कॉट और उनके सहयोगियों के अनुसार, “तौलिये की सफ़ाई पर ध्यान देने से दुनिया भर की एक बड़ी स्वास्थ्य समस्या एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस बैक्टीरिया जैसे की मार्स (एमआरएएस) से निपटने में मदद मिल सकती है. यह संक्रमित वस्तुओं के संपर्क में आने से फ़ैल सकते हैं.”

जीन-यवेस मैलार्ड कार्डिफ़ यूनिवर्सिटी में फॉर्मास्यूटिकल माइक्रोबाइलोजी के प्रोफ़ेसर हैं.

प्रोफ़ेसर जीन-यवेस मैलार्ड कहते हैं, “तौलिये को नियमित रूप से धोने की आदतें बैक्टीरिया से होने वाले संक्रमण को कम कर सकती हैं. इससे एंटीबायोटिक्स दवाओं का इस्तेमाल कर घटाया जा सकता है. घर की साफ़ सफ़ाई का मतलब है, रोगों से रोकथाम और रोकथाम इलाज से बेहतर है.”

ये भी पढ़ें

तौलियों को कितनी बार धोना चाहिए

एक बड़ा सवाल यह भी है कि तौलियों को कितने दिनों में धोना चाहिए?

इमेज स्रोत, Getty Images

प्रोफ़ेसर एलिज़ाबेथ स्कॉट हफ़्ते में एक बार तौलिये को धोने की सलाह देती हैं. हालांकि यह कोई तय नियम नही हैं.

प्रोफ़ेसर एलिज़ाबेथ स्कॉट कहती हैं, “अगर कोई बीमार है, तो उसे उल्टी या दस्त हो सकता है. उसके पास अपना तौलिया होना चाहिए और उसे रोज़ धोना चाहिए.”

इसे हम टार्गेटेड हाईजीन कहते हैं. यानी ख़तरों के हिसाब से उनसे निपटना.

भारत में हुए एक अध्ययन में हिस्सा लेने वाले 20 फ़ीसदी लोगों ने बताया कि वह हफ़्ते में दो बार तौलियों को धोते थे.

“डिटर्जेंट कपड़ों पर बैक्टीरिया को चिपकने से रोकने और वायरस को निष्क्रिय करने में मदद कर सकते हैं.”

टार्गेटेड हाईजीन जोख़िमों को कम करने का एक तरीका है. इसे ग्लोबल हाइजीन काउंसिल और इंटरनेशनल साइंटिफिक फोरम ऑन होम हाइजीन से जुड़े शोधकर्ता विकसित कर रहे हैं.

जहां साफ़-सफ़ाई यानी हाईजीन हर वक़्त ज़रूरी होती है. टार्गेटेड हाईजीन उन समय और स्थान के बारे में जहां इसकी प्रैक्टिस करना ज़रूरी है.

प्रोफ़ेसर एलिज़ाबेथ स्कॉट कहती हैं, तौलियों को ज़्यादातर घरेलू कपड़ों की तुलना में ज़्यादा गर्म पानी (40-60 डिग्री सेल्सियस या 104-140 फॉरेनहाइट तापमान) और लंबे समय तक धोने की ज़रूरत होती है. इनमें अक्सर एंटीमाइक्रोबल डिटर्जेंट भी मिलाया जाता है.

लेकिन बार-बार ग़र्म पानी से कपड़े धोने पर पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचता है. लेकिन ठंडे पानी से धुलाई के दौरान एंजाइम या ब्लीच मिलाने से तौलिये पर मौजूद बैक्टीरिया को हटाया जा सकता है.

प्रोफ़ेसर एलिज़ाबेथ स्कॉट घर की साफ़-सफ़ाई को वैक्सीनेशन जितना ही ज़रूरी मानती हैं. खुद की सुरक्षा के लिए आप जो भी छोटी-छोटी चीजें करते हैं उससे आप अपने आसपास के लोगों को भी सुरक्षित रखते हैं.

एलीज़ाबेथ स्कॉट कहती हैं, “हम इसे स्विस चीज़ मॉडल कहते हैं. हम इन सभी आदतों को साफ़-सफ़ाई के छोटे-छोटे प्रयास मानते हैं. इससे बैक्टीरिया के जोख़िम कम होते हैं.”

तौलिये भी भले ही मामूली हों, लेकिन उनके साथ भी निश्चित तौर पर जोखिम होता है और उनसे निपटना आसान है.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.

SOURCE : BBC NEWS