Source :- BBC INDIA
साल 2024 के दिसंबर में संसद का शीतकालीन सत्र चल रहा था. केंद्र सरकार से सवाल पूछा गया कि क्या बजट से पहले आठवें वेतन आयोग की घोषणा हो सकती है? सरकार ने लिखित में जवाब दिया- नहीं.
इस जवाब के एक महीने बाद केंद्र सरकार ने आठवें वेतन आयोग के गठन की घोषणा की है.
यह फ़ैसला गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में लिया गया.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक़, आठवें वेतन आयोग के दायरे में क़रीब 50 लाख केंद्रीय कर्मचारी और लगभग 65 लाख पेंशनधारक आएंगे.
केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव का कहना है कि आयोग के चेयरमैन और दो सदस्य जल्द ही नियुक्त किए जाएंगे.
साल 2016 में केंद्र सरकार ने सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू किया था. इसका कार्यकाल दिसंबर, 2025 में ख़त्म हो रहा है.
एक साल पहले आयोग के गठन की घोषणा पर अश्विनी वैष्णव ने कहा, “2025 में नए वेतन आयोग के गठन की घोषणा यह सुनिश्चित करेगी कि सातवें वेतन आयोग का कार्यकाल पूरा होने से पहले इसकी सिफारिशें मिल जाएं.”
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने आठवें वेतन आयोग को मंज़ूरी 2025 के बजट की घोषणा से कुछ ही दिन पहले की है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक्स पर लिखा, “हम सभी को उन सभी सरकारी कर्मचारियों के प्रयासों पर गर्व है, जो एक विकसित भारत के निर्माण के लिए काम करते हैं. आठवें वेतन आयोग पर कैबिनेट के फैसले से जीवन की गुणवत्ता में सुधार होगा और उपभोग को बढ़ावा मिलेगा.”
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वेतन आयोग का सैलरी पर असर
वेतन आयोग एक ऐसी व्यवस्था है जो केंद्र सरकार के लाखों कर्मचारियों के वेतन, भत्ते और लाभों को तय करने में अहम भूमिका निभाती है.
यह आयोग एक अंतराल पर मौजूदा आर्थिक परिस्थितियों का आकलन करता है. इसके बाद सरकारी कर्मचारियों के लिए सैलरी में उचित संशोधन की सिफारिश करता है.
सरकार के लिए वेतन आयोग की सिफारिशों को मानना अनिवार्य नहीं है. सरकार चाहे तो आयोग की सिफारिशों को अस्वीकार भी कर सकती है.
वेतन आयोग वित्त मंत्रालय के अंतर्गत काम करता है. आमतौर पर इसका गठन हर दस साल में किया जाता है. साल 1946 में पहला वेतन आयोग बनाया गया था. तब से लेकर अब तक सात वेतन आयोग बनाए जा चुके हैं.
सातवें वेतन आयोग के तहत कर्मचारी यूनियनों ने कर्मचारियों के वेतन संशोधन के लिए 3.68 का फिटमेंट फैक्टर मांगा था, लेकिन सरकार ने फिटमेंट फैक्टर 2.57 निर्धारित किया.
फिटमेंट फैक्टर एक कैल्कुलेशन है जिसका इस्तेमाल सरकारी कर्मचारियों और रिटायर्ड कर्मचारियों के वेतन और पेंशन को बढ़ाने के लिए किया जाता है. हालांकि, इसमें भत्तों को नहीं जोड़ा जाता है.
सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने के बाद केंद्रीय कर्मचारियों का न्यूनतम मूल वेतन सात हज़ार रुपए प्रति महीने से बढ़कर 18 हज़ार रुपए प्रति महीना हो गया था.
न्यूनतम पेंशन को साढ़े तीन हज़ार से बढ़ाकर नौ हज़ार रुपये कर दिया गया था. अधिकतम सैलरी 2.5 लाख रुपये और अधिकतम पेंशन 1.25 लाख तय की गई थी.
आयोग ने तब मूल वेतन में 14.27 फ़ीसदी वृद्धि की सिफारिश की थी जो अब तक के सभी आयोगों की सिफारिशों में सबसे कम है.
सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें मंज़ूर होने के बाद वित्त वर्ष 2016-17 के लिए सरकार के ख़र्चे में एक लाख करोड़ रुपये की बढ़ोतरी देखी गई थी.
दिल्ली चुनाव से पहले क्यों की घोषणा?
साल 2011 के आंकड़ों के मुताबिक़- देश भर में केंद्र सरकार के कर्मचारियों की संख्या लगभग 31 लाख थी. इसमें लगभग दो लाख से ज़्यादा कर्मचारी अकेले दिल्ली में थे यानी लगभग सात फ़ीसदी.
यह डाटा 14 साल पुराना है. आज के 50 लाख केंद्रीय कर्मचारियों की संख्या का सात प्रतिशत चार लाख के आस-पास पहुंचता है. इसके अलावा कई पेंशनधारक भी दिल्ली में रहते हैं.
दिल्ली में दिल्ली नगर निगम, दिल्ली विकास प्राधिकरण, दिल्ली पुलिस और डिफेंस के साथ कई ऐसे विभाग हैं जो केंद्र सरकार के अंतर्गत आते हैं.
राजनीतिक विश्लेषक अभय दुबे इसे दिल्ली चुनाव के साथ केंद्रीय कर्मचारियों की नाराज़गी से जोड़कर देखते हैं.
बीबीसी से बातचीत में अभय दुबे कहते हैं, “चुनाव के बीच में यह घोषणा हुई है इसलिए इसका चुनाव से कनेक्शन जोड़ा जा सकता है. लोकसभा चुनाव में भले ही बीजेपी सातों सीटें जीत गई थी लेकिन सरकारी कर्मचारियों के प्रभाव वाली विधानसभाओं में बीजेपी पिछड़ गई थी.”
नई दिल्ली लोकसभा सीट पर बीजेपी की बांसुरी स्वराज चुनाव जीती थीं. लेकिन नई दिल्ली, दिल्ली कैंट और आरके पुरम जैसी विधानसभा सीटों पर आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी सोमनाथ भारती आगे थे. इन सीटों पर सरकारी कर्मचारी और पेंशनधारक बड़ी संख्या में रहते हैं.
लेकिन क्या इतनी बड़ी घोषणा सिर्फ़ दिल्ली चुनाव को ध्यान में रखते हुए की जा सकती है?
अभय दुबे का कहना है, “असल में केंद्र सरकार के कर्मचारियों की नाराज़गी बड़ा मुद्दा है. पूरे देश में केंद्र सरकार के कर्मचारी हैं. इसके साथ-साथ विश्वविद्यालयों और राज्य सरकार के कर्मचारियों के वेतन पर भी इससे असर पड़ता है. सरकारी कर्मचारियों की नाराज़गी दिल्ली चुनाव से बड़ा मामला है.”
दिल्ली की लगभग 20 विधानसभा सीटों में सरकारी कर्मचारी और पेंशनर रहते हैं. इनमें नई दिल्ली, दिल्ली कैंट, आरके पुरम, जंगपुरा, मालवीय नगर और राजेंद्र नगर जैसी सीटें शामिल हैं.
SOURCE : BBC NEWS