Source :- BBC INDIA

पहलगाम हमला

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जगह: बैसरन, पहलगाम

दिन: मंगलवार, 22 अप्रैल

हमले का समय: दोपहर 2:15

कश्मीर घाटी के पहलगाम में 22 अप्रैल 2025 को एक चरमपंथी हमला हुआ. यह हमला पहलगाम बाज़ार से क़रीब छह किलोमीटर दूर बैसरन में हुआ. इस हमले में 26 लोग मारे गए, जिनमें 25 पर्यटक थे और एक स्थानीय युवक.

बीते तीन दशक में जम्मू-कश्मीर में यह पहला इतना बड़ा हमला है, जिसमें पर्यटकों को निशाना बनाया गया.

पहलगाम के रहने वाले घोड़ा चालक एसोसिएशन के प्रमुख अब्दुल वहीद वानी ऐसे पहले स्थानीय थे, जो बैसरन में घटनास्थल पर पहुँचे थे. बीबीसी ने उनसे बात की.

वानी का कहना था कि उन्हें पुलिस की तरफ से एक फ़ोन कॉल आया था.

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वे बताते हैं, ”मैं उस समय गनशिबल में था. पुलिस का पहला फ़ोन मुझे दो बजकर 35 मिनट पर आया था. पुलिस ने मुझसे कहा कि बैसरन में कुछ हो गया है. आप वहाँ जाकर देखो. मैंने अपने भाई सज्जाद को साथ लिया और बैसरन की तरफ दौड़ने लगा. मैं क़रीब सवा तीन बजे वहाँ पहुँच गया. उस समय मेरे अलावा वहाँ कोई भी नहीं था. मैंने हर तरफ़ लोगों को ख़ून में लथपथ देखा. पुलिस हमारे बाद वहाँ पहुँची.”

हालाँकि, एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने मुझे बताया कि पुलिस एक घंटे के बाद बैसरन घटनास्थल पर पहुँच गई थी.

एक दूसरे सूत्र ने भी मुझे बताया कि पुलिस कम से कम एक घंटे के बाद घटनास्थल पर पहुँची थी. उनका यह भी कहना था कि पुलिस के घटनास्थल पर पहुँचने के बाद सेना और सीआरपीएफ़ भी पहुँच गई थी.

हमने घटना के बारे में कई पुलिस अधिकारियों और स्थानीय लोगों से बात की. सबने अपनी पहचान ज़ाहिर न करने की शर्त पर ही हमसे बात की.

अमरनाथ यात्रा का रास्ता

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हर साल लाखों श्रद्धालु पहलगाम बाज़ार से होकर अमरनाथ गुफ़ा तक पहुँचते हैं. पहलगाम के नुनवन में यात्रा का बेस कैंप होता है. इसी बेस कैंप से हर दिन यात्री जत्थों की शक़्ल में गुफ़ा के लिए निकलते हैं.

अमरनाथ यात्रा के दौरान पहलगाम से लेकर गुफ़ा तक कड़ी सुरक्षा के इंतज़ाम होते हैं.

बैसरन घाटी पूरे साल पर्यटकों के लिए खुली रहती है. एक स्थानीय सूत्र ने मुझे बताया कि सिर्फ़ साल 2024 में अमरनाथ यात्रा के दौरान बैसरन पार्क को पर्यटकों के लिए बंद किया गया था.

उनका यह भी कहना था कि साल 2015 तक अमरनाथ यात्रा के दौरान बैसरन में सुरक्षाबल तैनात रहते थे. यात्रा से इतर बाक़ी पूरे साल यहाँ सुरक्षाबल तैनात नहीं होते थे. हालाँकि, साल 2015 के बाद बैसरन में सुरक्षाबलों की तैनाती का सिलसिला भी साल 2024 तक बंद रहा.

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आरोप- पार्क में सीसीटीवी कैमरे भी नहीं

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बीबीसी ने बैसरन में सुरक्षा के इंतज़ाम पर पहलगाम के कई स्थानीय लोगों से बात की. इनका कहना था, यह हमला सरासर सुरक्षा की चूक का नतीजा है.

उनका दावा है कि जिस पार्क में इतनी बड़ी संख्या में पर्यटक जाते हों, वहाँ एक सीसीटीवी कैमरा भी नहीं लगा है.

एक दूसरे स्थानीय ने मुझे बताया कि जहाँ दिनभर पर्यटक आते हैं, वहाँ एक भी सुरक्षाकर्मी नहीं रखा गया था.

एक पुलिस अधिकारी ने भी इस बात की पुष्टि की कि बैसरन में सीसीटीवी कैमरे नहीं लगे हैं.

एक दूसरे वरिष्ठ सुरक्षा अधिकारी ने मुझे बताया कि उस दिन बैसरन के ट्रेक पर या बैसरन पार्क के आसपास या पार्क के अंदर कोई भी सुरक्षाकर्मी मौजूद नहीं था.

सीआरपीएफ़ के एक वरिष्ठ अधिकारी ने मुझे बताया कि सीआरपीएफ़ को कहीं भी तैनात करने से पहले या तो पुलिस की इजाज़त लेनी पड़ती है या सेना की.

टूरिस्ट असिस्टेंट गाइड क्या करते हैं

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जम्मू -कश्मीर पर्यटन विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि हमले के दिन हमने उस इलाक़े में तीन टूरिस्ट असिस्टेंट गाइड (टीएजी) तैनात किए थे. वे बैसरन पार्क के बाहर थे.

उन्होंने बताया कि टीएजी का काम पर्यटक को रास्ता दिखाना होता है. या अगर कोई उनसे धोखाधड़ी करने की कोशिश करे तो उस पर नज़र रखनी होती है. सुरक्षा व्यवस्था के साथ इनका कोई लेना-देना नहीं होता है. उनका यह भी कहना था कि उनके पास किसी तरह के हथियार नहीं होते हैं.

यह गाइड स्पेशल पुलिस अफ़सर के तौर पर पुलिस विभाग में भर्ती किए गए हैं. इनकी तनख़्वाह बारह हज़ार रुपए होती है. पहलगाम में ऐसे टूरिस्ट असिस्टेंट गाइड की संख्या क़रीब तीस है.

बीबीसी को यह भी जानकारी मिली कि ये टूरिस्ट गाइड साल 2015 में भर्ती हुए थे. यही नहीं, आज तक इनको कोई सुरक्षा से जुड़ी कोई भी ट्रेनिंग नहीं दी गई है.

हालाँकि, एक दूसरे स्थानीय व्यक्ति ने हमें बताया कि बैसरन पार्क के ट्रेक पर कभी-कभार सेना गश्त करती है.

पहलगाम में कितने सुरक्षाबल?

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पहलगाम में सीआरपीएफ़ की एक कंपनी हमेशा तैनात रहती है. इसके अलावा सेना के जवान भी पहलगाम में तैनात रहते हैं. हालाँकि, सेना की संख्या ज़्यादा नहीं है.

पहलगाम बाजार से सेना की यह टुकड़ी कम से कम छह किलोमीटर की दूरी पर है. इसका मतलब है कि सेना घटनास्थल से कम से कम बारह किलोमीटर दूरी पर थी. दूसरी ओर, सीआरपीएफ की कंपनी घटनास्थल से छह किलोमीटर की दूरी पर पहलगाम बाजार में तैनात थी.

पहलगाम में पुलिस का एक थाना भी है. थाना के अलावा वहाँ विशेष टास्क फ़ोर्स भी है. कुल मिलाकर पुलिस के कम से कम चालीस लोग हैं.

पहलगाम की 50 साल की एक महिला ने बताया कि मैं कुछ साल पहले तक बैसरन के रास्ते लकड़ी लाने के लिए जंगल जाती थी. मैंने कभी इस इलाक़े में सुरक्षाकर्मी नहीं देखे.

एक पुलिस अधिकारी ने मुझे बताया कि पहलगाम बीते कई सालों से शांत रहा है. यही वजह है कि पुलिस या सुरक्षाबलों को अंदाज़ा नहीं था कि ऐसा भी हो सकता है.

उनका यह भी कहना था कि सुरक्षाबलों को अति आत्मविश्वास रहा कि पहलगाम में कोई चरमपंथी घटना नहीं घट सकती है.

एक सूत्र ने बताया, बैसरन में हमले से पहले वहाँ 1092 पर्यटक थे. हमले के वक़्त क़रीब 250 से 300 पर्यटक मौजूद थे. उनके मुताबिक, हमले से पहले तक हर दिन क़रीब 2500 पर्यटक बैसरन आते थे.

पहलगाम बाजार से बैसरन तक का रास्ता पथरीली पहाड़ियों और घने जंगलों से होकर जाता है. वहाँ जाने वाले पर्यटक या तो घोड़े पर बैठ कर जाते हैं या फिर पैदल.

कितना बड़ा हमला

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पहलगाम में पर्यटकों पर हमला बीते तीन दशकों में सबसे बड़ा हमला है. किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि कश्मीर में पर्यटकों पर इस तरह का हमला हो सकता है.

साल 2019 में नरेंद्र मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद- 370 हटाया था. उस वक़्त बताया गया था कि चरमपंथ ख़त्म करने में यह अनुच्छेद बड़ी रुकावट था.

लेकिन, इस अनुच्छेद के हटने के बाद भी जम्मू -कश्मीर में चरमपंथी घटनाएँ रुकी नहीं. यही नहीं, चरमपंथ की घटनाओं का दायरा जम्मू के उन इलाकों तक फैल गया, जहाँ बीते बीस वर्षों से शांति थी.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

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