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नूर खान एयरबेस पर भारत के हमले ने न केवल पाकिस्तान की सैन्य और परमाणु ताकत पर गहरी चोट की, बल्कि यह भी साबित किया कि भारत अब आतंकवाद और उकसावे के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई करने में सक्षम है।
22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 26 बेगुनाह पर्यटकों की आतंकी हमले में हत्या ने भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव को चरम पर पहुंचा दिया। इस हमले के जवाब में भारत ने ‘ऑपरेशन सिंदूर‘ के तहत 7 मई को पाकिस्तान के कई आतंकी ठिकानों पर जवाबी कार्रवाई शुरू की। इस कार्रवाई का सबसे बड़ा और चौंकाने वाला हिस्सा था 10 मई को पाकिस्तान के नूर खान एयरबेस पर भारत का सटीक मिसाइल हमला, जिसने न केवल पाकिस्तान की सैन्य ताकत को झकझोर दिया, बल्कि उसके परमाणु हथियारों की सुरक्षा पर भी सवाल खड़े कर दिए। इस हमले के बाद 10 मई की शाम को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मध्यस्थता से दोनों देशों ने सीजफायर की घोषणा की। लेकिन इस सीजफायर के पीछे नूर खान एयरबेस की तबाही और पाकिस्तान के परमाणु कमांड सेंटर पर मंडराते खतरे की कहानी छिपी है।
नूर खान एयरबेस पर हमला: भारत की रणनीतिक चेतावनी
नूर खान एयरबेस को पहले चकला एयरबेस के नाम से जाना जाता था। यह पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद से मात्र 10 किलोमीटर दूर रावलपिंडी में स्थित है। यह पाकिस्तान वायुसेना का एक प्रमुख लॉजिस्टिक हब है, जो वीआईपी मूवमेंट, टोही मिशन, और लंबी दूरी की मिसाइलों के संचालन का केंद्र है। सबसे महत्वपूर्ण बात, यह एयरबेस पाकिस्तान के स्ट्रैटेजिक प्लान्स डिविजन (SPD) और नेशनल कमांड अथॉरिटी (NCA) के मुख्यालय के बेहद करीब है, जो देश के लगभग 170 परमाणु हथियारों की सुरक्षा और संचालन का जिम्मा संभालता है।
10 मई की सुबह भारत ने ब्रह्मोस, हैमर, और स्कैल्प मिसाइलों का इस्तेमाल कर नूर खान एयरबेस पर सटीक हमला किया। न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, यह हमला इतना घातक था कि पाकिस्तान के एयर डिफेंस सिस्टम इसे ट्रैक करने में पूरी तरह नाकाम रहे। हमले में एयरबेस का महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा तबाह हो गया, और पाकिस्तानी सेना में खलबली मच गई। इस हमले ने पाकिस्तान को यह एहसास कराया कि भारत की मिसाइलें उसके सबसे संवेदनशील सैन्य ठिकानों तक पहुंच सकती हैं।
परमाणु कमांड सेंटर पर खतरा
नूर खान एयरबेस से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर स्थित पाकिस्तान का परमाणु कमांड सेंटर इस हमले की जद में आ गया था। न्यूयॉर्क टाइम्स और अन्य रिपोर्ट्स के अनुसार, यह हमला भारत की ओर से एक रणनीतिक संदेश था कि वह पाकिस्तान के परमाणु कमांड को ‘डिकैपिटेट’ (निष्क्रिय) करने की क्षमता रखता है। एक पूर्व अमेरिकी अधिकारी ने कहा, “पाकिस्तान की सबसे बड़ी चिंता यही थी कि भारत उसकी परमाणु कमान को नष्ट न कर दे। नूर खान पर हमला इसी दिशा में पहला कदम हो सकता था।”
रिपोर्टों में ये भी दावा किया गया कि भारत की ब्रह्मोस मिसाइल अगर 1-2 किलोमीटर और सटीक निशाना लगाती, तो पाकिस्तान के परमाणु हथियारों के जखीरे में विस्फोट और रेडिएशन की स्थिति पैदा हो सकती थी। हालांकि, ये दावे स्वतंत्र रूप से सत्यापित नहीं हुए हैं और न ही भारत की ओर से ऐसी कोई पुष्टि की गई है। फिर भी, इस हमले ने पाकिस्तान के सैन्य और राजनीतिक नेतृत्व में दहशत पैदा कर दी। कुछ खबरों की मानें, तो पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने तत्काल NCA की बैठक बुलाई थी, जो परमाणु हथियारों के उपयोग पर निर्णय लेने वाली सर्वोच्च संस्था है। हालांकि बाद में पाकिस्तानी मंत्री ने दावा किया कि ऐसी कोई बैठक नहीं हुई।
पाकिस्तान को बचाने के लिए कूदा अमेरिका और सीजफायर की पहल
नूर खान एयरबेस पर हमले की खबर ने अमेरिका में भी हड़कंप मचा दिया। NYT की रिपोर्ट के अनुसार, एक समय अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उनकी सरकार इस विवाद में हस्तक्षेप करने से हिचकिचा रही, लेकिन परमाणु युद्ध की आशंका ने उन्हें भी मजबूर कर दिया कि वह सक्रिय रूप से मध्यस्थता करें। इसकी सबसे बड़ी वजह यही थी कि भारत सीधे पाकिस्तान के परमाणु हथियारों तक पहुंच गया था। रिपोर्ट के अनुसार, शुक्रवार रात को पाकिस्तान के रावलपिंडी स्थित नूर खान एयरबेस पर विस्फोट होने से स्थिति और नाजुक हो गई। यह बेस न केवल पाकिस्तान की वायु सेना का एक प्रमुख परिवहन केंद्र है, बल्कि यह उसके परमाणु हथियारों की सुरक्षा से जुड़ी ‘स्ट्रेटेजिक प्लान्स डिवीजन’ के मुख्यालय के निकट स्थित है।
9 मई की देर रात अमेरिका को “खतरनाक खुफिया जानकारी” मिली, जिसने दक्षिण एशिया में परमाणु संघर्ष की आशंका को बढ़ा दिया। अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने पहले कहा था कि “इस युद्ध में पड़ना अमेरिका का काम नहीं है।” उन्होंने तुरंत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से फोन पर बात की और तनाव कम करने के लिए सीजफायर की पहल की।
पाकिस्तान ने भी हमले के बाद तुरंत अमेरिका से संपर्क किया। पाकिस्तानी सेना प्रमुख आसिम मुनीर और अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो के बीच बातचीत को सीजफायर की दिशा में पहला कदम माना गया। 10 मई की शाम 5 बजे, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत-पाकिस्तान के बीच सीजफायर की घोषणा की, जिसे दोनों देशों ने स्वीकार कर लिया।
अमेरिका की त्वरित कूटनीतिक पहल
एक वरिष्ठ अमेरिकी अधिकारी ने बताया कि अगर तुरंत हस्तक्षेप नहीं होता, तो हालात पूर्ण युद्ध की ओर बढ़ सकते थे। पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने भी माना कि अमेरिका के हस्तक्षेप, खासकर रुबियो की भूमिका, ने संघर्ष को थामने में निर्णायक भूमिका निभाई। पाक प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने ‘एक्स’ पर लिखा, “हम क्षेत्र में शांति लाने में अमेरिका और राष्ट्रपति ट्रंप की नेतृत्व क्षमता की सराहना करते हैं।” भारत की ओर से हालांकि अमेरिकी प्रयासों की कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं की गई।
पाकिस्तानी अधिकारियों ने यह भी आरोप लगाया कि भारत जानबूझकर उसे जवाबी कार्रवाई में एफ-16 लड़ाकू विमान इस्तेमाल करने के लिए उकसा रहा था, ताकि भारत उसे मार गिराकर अमेरिका के साथ पाकिस्तान के रक्षा संबंधों को प्रभावित कर सके। उल्लेखनीय है कि एफ-16 अमेरिका द्वारा पाकिस्तान को उसकी “मेजर नॉन-नाटो एलाय” की स्थिति के तहत दिए गए थे।
ऑपरेशन सिंदूर: भारत की रणनीतिक जीत
ऑपरेशन सिंदूर के तहत भारत ने नूर खान के अलावा चकवाल में मुरीद, शोरकोट में रफीकी, और रहीम यार खान जैसे अन्य एयरबेसों पर भी हमले किए। इन हमलों में भारत ने आतंकी ठिकानों, जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा के शिविरों को भी नष्ट किया। भारतीय सेना के डीजीएमओ लेफ्टिनेंट जनरल राजीव घई ने दावा किया कि इन हमलों में 100 से अधिक आतंकी मारे गए।
भारत ने यह भी स्पष्ट किया कि कोई भी आतंकी हमला अब ‘एक्ट ऑफ वॉर’ माना जाएगा, जिससे भविष्य में ऐसी कार्रवाइयां और सख्त हो सकती हैं। रक्षा मंत्रालय की प्रेस कॉन्फ्रेंस में कर्नल सोफिया कुरैशी ने पाकिस्तान के दुष्प्रचार को खारिज करते हुए भारत की कार्रवाई को आतंकवाद के खिलाफ सटीक और जायज ठहराया।
पाकिस्तान की प्रतिक्रिया और कमजोरियां
पाकिस्तान ने जवाबी कार्रवाई में भारतीय हवाई क्षेत्र में 400 ड्रोन भेजने की कोशिश की, लेकिन भारतीय वायुसेना ने इन्हें नाकाम कर दिया। पाकिस्तान का एयर डिफेंस सिस्टम भारत की मिसाइलों को रोकने में पूरी तरह विफल रहा, जिसने उसकी सैन्य कमजोरियों को उजागर किया। इसके अलावा, नूर खान एयरबेस की तबाही ने पाकिस्तान को आर्थिक और कूटनीतिक रूप से भी बैकफुट पर ला दिया। भारत ने सिंधु जल समझौते को निलंबित करने की धमकी दी, जो पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा झटका हो सकता है।
परमाणु हथियारों की स्थिति
स्वीडन के थिंक टैंक SIPRI की 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के पास 172 परमाणु वॉरहेड हैं, जबकि पाकिस्तान के पास 170 हैं। पाकिस्तान ने ‘फर्स्ट यूज’ नीति अपनाई है, यानी वह जरूरत पड़ने पर पहले परमाणु हमला कर सकता है, जबकि भारत की ‘नो फर्स्ट यूज’ नीति केवल आत्मरक्षा के लिए परमाणु हथियारों के उपयोग की अनुमति देती है। नूर खान पर हमले ने यह साबित कर दिया कि भारत पाकिस्तान के परमाणु हथियारों को निष्क्रिय करने की क्षमता रखता है, जिसने पाकिस्तान की धमकियों को खोखला कर दिया।
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