Source :- LIVE HINDUSTAN
प्रोफेसर इश्तियाक अहमद ने एक और सवाल आसिम मुनीर से पूछा कि क्या उन्हें याद है कि पाकिस्तान को नाम देने वाले शख्स चौधरी रहमत अली को यहां दफनाने तक की अनुमति नहीं मिली। उनके अवशेषों को 2017 में पाक में लाने की मांग भी उठी थी और इस संबंध में लंदन में केस भी दायर हुआ, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकल सका।
पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर ने पिछले दिनों टू नेशन थ्योरी की बात की थी। हिंदुओं और मुसलमानों को बहुत ही तीखे लहजे में उन्होंने अलग बताया था। इसके बाद जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में आतंकी हमला हुआ तो सीधे तौर पर उनके बयान से इसे जोड़ा गया। पाकिस्तानी मूल के प्रोफेसर इश्तियाक अहमद ने भी इसके लिए मुनीर को जिम्मेदार ठहराया था। यही नहीं उन्होंने एक और सवाल आसिम मुनीर से पूछा है कि क्या उन्हें याद है कि पाकिस्तान को नाम देने वाले शख्स चौधरी रहमत अली को यहां दफनाने तक की अनुमति नहीं मिली। उनके अवशेषों को 2017 में पाकिस्तान में लाने की मांग भी उठी थी और इस संबंध में लंदन में केस भी दायर हुआ, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकल सका।
इश्तियाक अहमद ने कहा, ‘जनरल आसिम मुनीर टू नेशन थ्योरी की बात कर रहे हैं। लेकिन इसका इतिहास देखें तो 1857 के बाद से ही ऐसी स्थिति पैदा होने लगी थी। कुछ लोगों के ऐसे विचार थे, लेकिन किसी संगठन या समुदाय में सामूहिक तौर पर कभी देश विभाजन की मांग नहीं रही। इलाहाबाद में अल्लामा इकबाल ने एक स्पीच दी थी और इसे पाकिस्तान का आइडिया माना गया था। यहां तक कि तब उनके प्रस्ताव में कोई नहीं था और इलाहाबाद में मुसलमान कारोबारियों को पकड़कर लाया गया और उन्हें बहला-फुसलाकर वोट डाला गया।’ इश्तियाक अहमद ने कहा कि पाकिस्तान नाम तो चौधरी रहमत अली ने दिया था, जो भारतीय पंजाब के होशियारपुर जिले के रहने वाले थे। गुर्जर बिरादरी से उनका परिवार ताल्लुक रखता था और वह खुद तमाम प्रयासों के बाद भी एलएलबी पास नहीं कर पाए थे।
प्रोफेसर इश्तियाक अहमद ने कहा कि 1934 में एक पर्चा उन्होंने छपवाया था, जिसमें लिखा था कि अभी नहीं तो कभी नहीं। चौधरी रहमत अली ने PAKISTAN नाम जो दिया था, उसके तहत P से पंजाब, A से अफगानिया यानी खैबर पख्तूनख्वा, K से कश्मीर में, ISTAN का अर्थ सिंध और बलूचिस्तान से था। फिर भी उन्हें क्रेडिट नहीं मिला और यह श्रेय अल्लामा इकबाल और मोहम्मद अली जिन्ना ले गए। इश्तियाक अहमद कहते हैं कि रहमत अली ने जिस पाकिस्तान की तुलना की थी, उससे बड़े पैमाने पर मुसलमान छूट गए। हिंदुस्तान में रहने वाले ज्यादातर मुसलमान तो इसके खिलाफ ही थे और पंजाब में भी लोग बंटवारा नहीं चाहते थे।
पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर ने पिछले दिनों टू नेशन थ्योरी की बात की थी। हिंदुओं और मुसलमानों को बहुत ही तीखे लहजे में उन्होंने अलग बताया था। इसके बाद जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में आतंकी हमला हुआ तो सीधे तौर पर उनके बयान से इसे जोड़ा गया। पाकिस्तानी मूल के प्रोफेसर इश्तियाक अहमद ने भी इसके लिए मुनीर को जिम्मेदार ठहराया था। यही नहीं उन्होंने एक और सवाल आसिम मुनीर से पूछा है कि क्या उन्हें याद है कि पाकिस्तान को नाम देने वाले शख्स चौधरी रहमत अली को यहां दफनाने तक की अनुमति नहीं मिली। उनके अवशेषों को 2017 में पाकिस्तान में लाने की मांग भी उठी थी और इस संबंध में लंदन में केस भी दायर हुआ, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकल सका।
इश्तियाक अहमद ने कहा, ‘जनरल आसिम मुनीर टू नेशन थ्योरी की बात कर रहे हैं। लेकिन इसका इतिहास देखें तो 1857 के बाद से ही ऐसी स्थिति पैदा होने लगी थी। कुछ लोगों के ऐसे विचार थे, लेकिन किसी संगठन या समुदाय में सामूहिक तौर पर कभी देश विभाजन की मांग नहीं रही। इलाहाबाद में अल्लामा इकबाल ने एक स्पीच दी थी और इसे पाकिस्तान का आइडिया माना गया था। यहां तक कि तब उनके प्रस्ताव में कोई नहीं था और इलाहाबाद में मुसलमान कारोबारियों को पकड़कर लाया गया और उन्हें बहला-फुसलाकर वोट डाला गया।’ इश्तियाक अहमद ने कहा कि पाकिस्तान नाम तो चौधरी रहमत अली ने दिया था, जो भारतीय पंजाब के होशियारपुर जिले के रहने वाले थे। गुर्जर बिरादरी से उनका परिवार ताल्लुक रखता था और वह खुद तमाम प्रयासों के बाद भी एलएलबी पास नहीं कर पाए थे।
प्रोफेसर इश्तियाक अहमद ने कहा कि 1934 में एक पर्चा उन्होंने छपवाया था, जिसमें लिखा था कि अभी नहीं तो कभी नहीं। चौधरी रहमत अली ने PAKISTAN नाम जो दिया था, उसके तहत P से पंजाब, A से अफगानिया यानी खैबर पख्तूनख्वा, K से कश्मीर में, ISTAN का अर्थ सिंध और बलूचिस्तान से था। फिर भी उन्हें क्रेडिट नहीं मिला और यह श्रेय अल्लामा इकबाल और मोहम्मद अली जिन्ना ले गए। इश्तियाक अहमद कहते हैं कि रहमत अली ने जिस पाकिस्तान की तुलना की थी, उससे बड़े पैमाने पर मुसलमान छूट गए। हिंदुस्तान में रहने वाले ज्यादातर मुसलमान तो इसके खिलाफ ही थे और पंजाब में भी लोग बंटवारा नहीं चाहते थे।
कैसे जिन्ना ने चुरा लिया रहमत अली का आइडिया, पर कभी नहीं दिया क्रेडिट
उन्होंने कहा कि मोहम्मद अली जिन्ना ने हमेशा चौधरी रहमत अली की बातों को ही इस्तेमाल किया, लेकिन कभी उन्हें क्रेडिट भी नहीं दिया। 1940 से 1947 तक रहमत अली की बातों का ही इस्तेमाल किया। उन्होंने कहा कि रहमत अली की हालत तो यह रही कि जब वह रहने के लिए पाकिस्तान पहुंचे तो उन्हें रहने नहीं दिया गया। अंत में वह कैम्ब्रिज ही चले गए। वहीं उनकी हो गई और उनके परिजन चाहते थे कि रहमत अली के अवशेषों को पाकिस्तान में दफनाया जाए, लेकिन उसकी परमिशन नहीं मिली। रहमत अली की 3 फरवरी, 1951 में कैम्ब्रिज में मौत हो गई थी और फिर वहीं उन्हें अस्थायी तौर पर दफनाया गया था, लेकिन उनके शव को फिर पाकिस्तान लाने ही नहीं दिया गया।
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