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58 मिनट पहले
कनाडा के प्रधानमंत्री मार्क कार्नी की ओर से जी-7 शिखर सम्मेलन का न्योता मिलने के एक हफ़्ते बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कनाडा के लिए रवाना हो चुके हैं.
पीएम मोदी के कनाडा पहुंचने से पहले वहां कुछ सिख अलगाववादी संगठन उनके ख़िलाफ़ प्रदर्शन की तैयारी कर रहे हैं. वो पीएम मोदी को दिए गए न्योते का विरोध कर रहे हैं.
इससे पहले शनिवार को ओटावा में सिख समुदाय से जुड़े कुछ लोगों ने पार्लियामेंट के सामने विरोध प्रदर्शन किया.
लेकिन जानकारों का मानना है कि मोदी के इस दौरे से भारत और कनाडा के रिश्तों में सुधार आ सकता है और दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार संबंध बेहतर होने की भी संभावना है.
कनाडा पहुंचने से पहले पीएम मोदी 15 और 16 जून को साइप्रस में रहेंगे. इसके बाद मोदी कनाडा के अल्बर्टा प्रांत में मौजूद कैनेनास्किस जाएंगे. यहां वो जी-7 शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेंगे और फिर 18 जून को क्रोएशिया के लिए रवाना होंगे.
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भारत जी-7 का सदस्य नहीं है, जिसमें ब्रिटेन, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैं. लेकिन 2019 से भारत को जी-7 के शिखर सम्मेलनों में आमंत्रित किया जाता रहा है.
साल 2015 के बाद प्रधानमंत्री मोदी की यह पहली कनाडा यात्रा होगी. माना जा रहा है कि मोदी के साथ-साथ ये मार्क कार्नी की भी कूटनीतिक परीक्षा होगी.
2015 से लेकर अब तक, दस साल में भारत-कनाडा के बीच काफ़ी कुछ बदल चुका है. 2023 में कनाडा में खालिस्तान समर्थक हरदीप सिंह निज्जर की हत्या हुई थी.
कनाडा के तत्कालीन प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने इसमें भारत की संलिप्तता का आरोप लगाया. इसके बाद से दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ गया.
अब कनाडा में जस्टिन ट्रूडो की विदाई हो चुकी है. हालांकि, ट्रूडो की पार्टी सत्ता में है और इस साल के आम चुनाव के बाद मार्क कार्नी ने कनाडा की सत्ता संभाली है.

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कनाडा में सिख संगठनों का विरोध
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जी-7 का न्योता मिलने के बाद कनाडा के कुछ सिख संगठन नाराज़गी ज़ाहिर कर रहे हैं.
स्थानीय मीडिया ओटावा सिटिज़न के अनुसार, शनिवार को सिख समुदाय से जुड़े लोगों ने पार्लियामेंट हिल में विरोध जताया. इनमें से कई लोगों के हाथों में खालिस्तान समर्थन वाले झंडे थे.
बीते हफ़्ते इन सिख संगठनों ने मार्क कार्नी से प्रधानमंत्री मोदी के दिए गए जी-7 के न्योते को वापस लेने की अपील की थी.
वर्ल्ड सिख ऑर्गेनाइजे़शन कनाडा और सिख फे़डरेशन कनाडा जैसे समूहों के प्रतिनिधियों का कहना है कि जब तक भारत निज्जर मामले में चल रही जांच में सहयोग नहीं करता और कनाडा के मामलों में हस्तक्षेप करना और कनाडा में सिखों को निशाना बनाना बंद करने का वादा नहीं करता, तब तक मोदी को दिया गया निमंत्रण वापस ले लिया जाना चाहिए.
हालांकि, भारत सरकार ने अतीत में इस तरह के आरोपों से लगातार इनकार किया है.
कनाडा के भारत के साथ संबंध तब तनावपूर्ण हो गए, जब 2023 में पूर्व कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने भारत सरकार पर कनाडा में सिख अलगाववादी नेता हरदीप सिंह निज्जर की 18 जून, 2023 को हुई हत्या में शामिल होने का आरोप लगाया.
भारत सरकार ने निज्जर की हत्या में अपनी संलिप्तता से इनकार किया है.
भारत कनाडा पर सिख अलगाववादियों को सुरक्षित पनाहगाह देने का आरोप लगाता रहा है. भारत ने 2020 में हरदीप सिंह निज्जर को ‘आतंकवादी’ घोषित किया था.

समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक़, सिख फेडरेशन कनाडा के प्रवक्ता मोनिंदर सिंह का कहना है कि पीएम मोदी के निमंत्रण पर कुछ शर्तें होनी चाहिए.
उनका कहना है, “उनके साथ कोई भी मीटिंग इन शर्तों पर होनी चाहिए कि वो और उनकी सरकार अब तक जो सामने आया है क्या उसकी ज़िम्मेदारी लेंगे, जो कि अब तक नहीं ली गई है.”
ब्रिटिश कोलंबिया के सरे में मौजूद गुरुद्वारे के सदस्यों ने प्रधानमंत्री कार्नी को पत्र लिखकर कनाडा सरकार से अनुरोध किया है कि वह भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को आगामी जी-7 शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए दिए गए निमंत्रण को रद्द कर दें.
गुरु नानक सिख गुरुद्वारा, जहां 2023 में हरदीप सिंह निज्जर की हत्या कर दी गई थी, ने कहा कि वे इस निमंत्रण से निराश और चिंतित हैं.
उनके पत्र में कहा गया है, “सिख समुदाय इस कूटनीतिक कार्रवाई को न्याय, नागरिक सुरक्षा और राष्ट्रीय संप्रभुता के प्रति कनाडा की प्रतिबद्धता को कमज़ोर करने वाला मानता है, जो संभवतः राज्य प्रायोजित हिंसा और विदेशी हस्तक्षेप के प्रति सहिष्णुता का संकेत देता है.”
कनाडा के समय के अनुसार यहां रविवार को लोग और एक्टविस्ट विरोध प्रदर्शन की योजना बना रहे हैं.
कनाडा के सरकारी न्यूज़ चैनल सीबीसी के अनुसार, शनिवार को अल्बर्टा के कैलेगरी शहर में सामाजिक कार्यकर्ता जुटे और रविवार को होने वाले प्रदर्शनों के लिए ‘पीपुल्स फोरम’ आयोजित किया.
कनाडा सिख फेडरेशन के प्रवक्ता मोनिंदर सिंह ने कहा, “चर्चा का विषय यह रहा है कि जब तक पीएम मोदी देश से बाहर नहीं चले जाते, तब तक विरोध जारी रखा जाए.”
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‘मोदी की यात्रा विश्वास बहाली का अवसर’
कनाडा के प्रधानमंत्री मार्क कार्नी द्वारा प्रधानमंत्री मोदी को दिए गए निमंत्रण को कई लोग एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक पहल और भारत-कनाडा संबंधों में एक नई संभावना के रूप में देख रहे हैं.
मॉन्ट्रियल स्थित इंडिया कनाडा ऑर्गनाइजे़शन (आईसीओ) के उपाध्यक्ष हरजीत सिंह संधू ने कहा, “हम आपका (मोदी) कनाडा में हार्दिक स्वागत करते हैं और आशा करते हैं कि आपके आने से भारत और कनाडा के बीच संबंध और भी मज़बूत और समृद्ध होंगे.”
हरप्रीत सिंह का कहना है, “हमारे प्रधानमंत्री मार्क कार्नी ने प्रधानमंत्री मोदी को आमंत्रित किया है, जो एक स्वागत योग्य कदम है. पिछले कुछ सालों में भारत और कनाडा के बीच कुछ मुद्दे रहे हैं, और मुझे उम्मीद है कि इस बैठक के दौरान चीजें सुलझ जाएंगी और एक नया रास्ता चुना जाएगा, जहां दोनों देश विकसित और समृद्ध होंगे. हमें व्यापार, टेक्नोलॉजी और निवेश में बेहतर संबंध बनाने की ज़रूरत है. इससे भारत और कनाडा दोनों समृद्ध हो सकते हैं.”
कनाडा के विपक्षी न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी की नेता और वैंकूवर ईस्ट से सांसद जेनी क्वान ने कार्नी सरकार के फ़ैसले की आलोचना की है.
जेनी क्वान ने एक्स पर लिखा, “मोदी के लिए रेड कार्पेट बिछाना सही नहीं है क्योंकि भारत कनाडा के अधिकारियों के साथ सहयोग करने से इनकार करता है और हत्याओं के लिए ज़िम्मेदारी से इनकार करता है. यह कदम हमारे देश में हस्तक्षेप और हिंसा के लिए विदेशी शक्तियों को जवाबदेह ठहराने के प्रयासों को कमजोर करता है.”
न्यू जर्सी में, ग्लोबल इंडियन डायस्पोरा एलायंस के अध्यक्ष एचएस पनेसर ने इस यात्रा की सराहना करते हुए इसे “भारत-कनाडाई संबंधों को फिर से स्थापित करने और पुनर्निर्माण करने का एक महत्वपूर्ण क्षण” बताया.
पनेसर ने एएनआई को बताया, “जून 2025 तक, प्रधानमंत्री मोदी की जी7 शिखर सम्मेलन में भागीदारी को भारतीय प्रवासी और द्विपक्षीय संबंधों में हाल ही में आए तनाव को दूर करने और सुधारने के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर के रूप में देखा जा रहा है.”
मोदी के दौरे से कई उम्मीदें
पिछले महीने भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर और कनाडा की विदेश मंत्री अनीता आनंद ने फ़ोन पर बात की थी.
दोनों के बीच द्विपक्षीय आर्थिक सहयोग को गहरा करने और साझा प्राथमिकताओं को आगे बढ़ाने के तरीकों पर चर्चा हुई थी.
भारत और कनाडा के प्रधानमंत्रियों की जी-7 कनाडा शिखर सम्मेलन के दौरान मुलाक़ात पर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल का बयान भी सामने आया है.
प्रेस ब्रीफ़िंग में रणधीर जायसवाल ने कहा, “दोनों नेताओं के बीच आगामी बैठक से आपसी सम्मान, साझा हितों और एक-दूसरे की चिंताओं के प्रति संवेदनशीलता के आधार पर संबंधों को फिर से स्थापित करने के रास्ते तलाशने में मदद मिलेगी.’
ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, भारत और कनाडा ने आतंकवाद, अपराध पर ख़ुफ़िया जानकारी साझा करने के लिए समझौता किया है.
रिपोर्ट के मुताबिक़, “कनाडा और भारत की सरकारें सीमा पार अपराधों के बारे में सूचना साझा करने के लिए एक नई व्यवस्था बनाने जा रही हैं. यह संबंधों को फिर से मज़बूत करने की दिशा में ताज़ा क़दम है.”
इस रिपोर्ट ने पहचान उजागर न करने की शर्त पर अधिकारियों के हवाले से बताया कि “नई व्यवस्था, जिसमें दोनों देशों की क़ानून प्रवर्तन एजेंसियां शामिल हैं, उन्हें अंतरराष्ट्रीय अपराध और सिंडिकेट, आतंकवाद और चरमपंथी गतिविधियों पर ख़ुफ़िया जानकारी साझा करने की अनुमति देगी.”

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क्या भारत-कनाडा के रिश्ते सुधरेंगे?
हालिया जी-7 शिखर सम्मेलन को भारत और कनाडा के बीच संबंधों को सुधारने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है लेकिन निज्जर की हत्या की जांच की गुत्थी अभी भी पूरी तरह से सुलझी नहीं है.
भारत के बाद दुनिया में दूसरी सबसे बड़ी सिख आबादी कनाडा में रहती है. यहां लगभग आठ लाख सिख रहते हैं जो कुल आबादी का 2.1 फ़ीसद हैं. 2021 की जनगणना के अनुसार सिख धर्म कनाडा में चौथा सबसे बड़ा धर्म है.
सिख के इस समुदाय में खालिस्तान समर्थक एक्टिविस्ट भी शामिल हैं, जो भारत से अलग होकर एक सिख बहुल खालिस्तान की मांग करते हैं.
भारत ने इस मांग का समर्थन करने वालों पर सख़्त कार्रवाई की मांग की है. वहीं, कनाडा ने भारत पर कनाडा की धरती पर सिख कार्यकर्ताओं को निशाना बनाकर व्यापक अभियान चलाने का आरोप लगाया है.
डेविड मैकिनन ने जर्मन ब्रॉडकास्टर डीडब्ल्यू से कहा, “कनाडा में और ख़ासकर लिबरल पार्टी के भीतर इस फै़सले की राजनीति आसान नहीं थी, लेकिन कार्नी ने सही फै़सला किया. यह भी ध्यान दिलाना ज़रूरी है कि विपक्ष के नेता पियरे पोलीवियरे ने तुरंत इसका स्वागत किया.”
हालांकि, मैकिनन ने कहा कि यह कहना अभी जल्दबाज़ी होगी कि दोनों पक्षों के बीच सब कुछ सामान्य हो गया है.
कनाडा के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री उज्जल दोसांझ का मानना है कि जी-7 भारत और कनाडा के तनावपूर्ण संबंधों को फिर से स्थापित करने का एक बहुत ज़रूरी अवसर प्रदान करता है, विशेष रूप से खालिस्तान से जुड़े मुद्दे को लेकर चले आ रहे लंबे तनाव के कारण.
समाचार एजेंसी एएनआई से बातचीत में दोसांझ कहते हैं, “नेताओं को पता है कि किसी देश के साथ समस्या होने पर भी उसके महत्व को नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता है. वे आपस में संबंध बहाल करने के तरीक़े खोज लेते हैं. ऐसा लगता है कि कार्नी भी यही तरीक़ा अपना रहे हैं.”
विदेश नीति विश्लेषक माइकल कुगलमैन का कहना है कि द्विपक्षीय संबंधों की बेहतरी से ही खालिस्तान के मुद्दे को संभाला जा सकता है.
फॉरेन पॉलिसी मैगज़ीन के लिए लिखे लेख में माइकल कुगलमैन कहते हैं, “खालिस्तान का मुद्दा निश्चित रूप से एक नासूर बना हुआ है, और अगर सिख कार्यकर्ता विरोध प्रदर्शनों के ज़रिए मोदी की यात्रा को ख़राब करने की कोशिश करते हैं, तो यह फिर से भड़क सकता है. लेकिन अगर दूसरे क्षेत्रों में द्विपक्षीय संबंध बेहतर होते हैं, तो इसे संभालना आसान हो सकता है.”
कुगलमैन का मानना है कि दोनों देशों के पास द्विपक्षीय व्यापार संबंध को बढ़ाने के लिए मज़बूत वजह है क्योंकि अमेरिका की टैरिफ़ नीतियां भारत और कनाडा दोनों को प्रभावित कर सकती हैं.
स्वस्ति राव, अंतरराष्ट्रीय संबंधों की विशेषज्ञ हैं और मनोहर पर्रिकर इंस्टीट्यूट ऑफ़ डिफ़ेंस स्टडीज़ से जुड़ी हैं.
जी-7 और कनाडा से संबंधों को लेकर बीबीसी से बातचीत में स्वस्ति राव ने कहा था, “जस्टिन ट्रूडो घरेलू राजनीति में उलझे हुए थे, अब मार्क कार्नी आ गए हैं. वह एक बात बहुत बेहतर तरीके़ से जानते हैं कि भारत के बिना दुनिया में किसी बड़ी आर्थिक योजना को आकार नहीं दिया जा सकता है.”
“मार्क कार्नी एकदम से सब कुछ नहीं बदल देंगे. वह भी घरेलू राजनीति को देखते हुए क़दम उठाएंगे लेकिन भारत के लिहाज़ से भी यह बेहतर अवसर है. हम भी धीरे-धीरे संबंधों को बढ़ाते हुए बातचीत का क्रम स्थापित करेंगे.”
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