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पेरिमेनोपॉज़

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पेरिमेनोपॉज़ दुनियाभर में करोड़ों महिलाओं को प्रभावित करती है लेकिन फिर भी इसको लेकर बहुत कम चर्चा होती है. कई देशों और समुदायों में आज भी इसे ‘टैबू’ माना जाता है.

पेरिमेनोपॉज़ दरअसल धीरे-धीरे मेनोपॉज की तरफ बढ़ने वाली अवधि है. इस दौरान महिलाओं में हार्मोन का स्तर बदलने लगता है और प्रजनन क्षमता धीरे-धीरे कम होती जाती है.

इस परिवर्तन के दौरान हार्मोन स्तर में उतार-चढ़ाव होते हैं. इनमें प्रमुख रूप से एस्ट्रोजन, प्रोजेस्टेरोन, फॉलिकल-स्टिमुलेटिंग हार्मोन (एफ़एसएच), ल्यूटिनाइजिंग हार्मोन (एलएच) और टेस्टोस्टेरोन शामिल हैं.

इस बदलाव की वजह से महिलाओं में शारीरिक और भावनात्मक रूप से काफ़ी बदलाव आते हैं और रोजमर्रा का उनका जीवन प्रभावित होता है.

ब्रिटेन के नेशनल हेल्थ सर्विस (एनएचएस) के अनुसार इसके लक्षण कुछ इस तरह से हो सकते हैं-

  • अनियमित पीरियड्स
  • अचानक बेहद गर्मी का एहसास होना और रात में पसीना आना
  • किसी भी काम में ध्यान न लगना
  • चिंता या घबराहट
  • नींद ना आना
  • यौन इच्छा की कमी
  • वेजाइनल ड्राइनेस

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, पेरिमेनोपॉज़ के लक्षण महिलाओं में धीरे-धीरे 37-40 साल के बीच शुरू हो सकते हैं. वहीं अधिकतर महिलाएं 45 साल की उम्र आते-आते इस फ़ेज़ में पहुंच जाती हैं.

इस अवस्था में शरीर में क्या बदलाव हो रहा है, इसको समझना और इसके लिए ख़ुद को तैयार करने से कई चीजें आसान हो सकती हैं.

इससे निपटने में हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी (एचआरटी) एक विकल्प हो सकता है लेकिन कई महिलाएं जीवनशैली में स्वस्थ बदलाव लाकर भी बेहतर महसूस कर सकती हैं.

यहां हम आपको कुछ ऐसे तरीके बता रहे हैं जो पेरिमेनोपॉज़ के लक्षणों से निपटने में मददगार साबित हो सकते हैं.

1. हार्मोन संतुलन में मदद करने वाला आहार लें

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संतुलित आहार से पोषक तत्व तो मिलते ही हैं, हार्मोन को संतुलित रखने में भी मदद मिलती है. अगर खाने में पोषक तत्वों की कमी होगी तो ये असंतुलन बढ़ सकता है और इससे मूड, एनर्जी, मेटाबॉलिज्म समेत पूरे स्वास्थ्य पर असर पड़ सकता है.

खाने में क्या शामिल करें:

  • फाइटोएस्ट्रोजन युक्त खाद्य पदार्थ – ये अलसी, सोयाबीन और दाल में पाए जाते हैं.
  • फल और सब्जियाँ- ये एंटीऑक्सीडेंट सूजन से लड़ने में मदद करते हैं.
  • साबुत अनाज- ये मेटाब़ॉलिज्म और एनर्जी के स्तर को बढ़ाता है.
  • लीन प्रोटीन – यह मांसपेशियों की ताक़त बनाए रखता है.
  • हेल्दी फैट – ये एवोकाडो, नट्स और सीड्स हार्मोन बनाने में सहायक होते हैं.

2. नियमित व्यायाम

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शारीरिक गतिविधि दिमाग़ में डोपामाइन का स्तर बढ़ाकर आपके दिलोदिमाग़ की स्थिति को ठीक रखते हैं.

नियमित व्यायाम से डोपामाइन का स्तर शरीर में बढ़ता है. यह न्यूरोकेमिकल दिल और दिमाग़ दोनों को स्वस्थ रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.

एक्सेटर विश्वविद्यालय के एक अध्ययन में पाया गया है कि मेनोपॉज़ मांसपेशियों के निर्माण में बाधा नहीं डालती है. शारीरिक व्यायाम से कूल्हे की कार्यक्षमता, लचीलापन और संतुलन में वृद्धि होती है.

  • स्ट्रेंथ ट्रेनिंग: इससे मांसपेशियों का निर्माण होता है और बोन डेन्सिटी बनाए रखने में मदद मिलती है.
  • योग और स्ट्रेचिंग: तनाव कम करने और फ्लेक्सिबल होने में मदद मिलती है.
  • एरोबिक व्यायाम: हृदय को बेहतर रखने और नींद नियमित रखने में सहायक.

3. ध्यान केंद्रित कर तनाव से बचें

पेरिमेनोपॉज़ में तनाव काफ़ी बढ़ सकता है. इसकी वजह से अचानक मूड स्विंग्स, घबराहट और नींद से जुड़ी दिक्कतें हो सकती हैं. इससे बचाव के लिए कुछ उपाय किए जा सकते हैं. जैसे;

  • ध्यान लगाना: इससे ध्यान केंद्रित करने की क्षमता में सुधार होता है.
  • गहरी साँस लेना: यह तंत्रिका तंत्र को शांत करता है.
  • रोज़ाना लेखन: नियमित रूप से लिखने से भावनात्मक स्पष्टता आती है और राहत मिलती है.

4. नींद को प्राथमिकता दें

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पेरिमेनोपॉज़ के दौरान नींद की दिक्कतों को ठीक करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है. हार्मोन में उतार चढ़ाव के कारण इसे नियंत्रित करना काफ़ी कठिन है.

एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन नींद को नियमित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. यह जब अप्रत्याशित रूप से कम होते हैं तो इनका विकल्प खोजना मुश्किल हो जाता है.

इसके अलावा रात में पसीना आना, चिंता और मूड में उतार-चढ़ाव जैसे लक्षण तेज हो जाते हैं. इसके लिए जीवनशैली में बदलाव, हार्मोन थेरेपी या इलाज तक की आवश्यकता होती है.

उम्र बढ़ने के साथ नींद के क्रम में गड़बड़ी स्लीप एपनिया (एक ऐसी स्थिति जब नींद के दौरान सांस रुक जाती है या नींद का बार-बार टूटना) का ख़तरा बढ़ा सकता है.

इसका मतलब है कि नींद में सुधार लाने के लिए कई तरह के प्रयोग आपको ख़ुद भी करने पड़ सकते हैं.

अच्छी नींद के लिए ये करें:

  • बिस्तर की चादरें: सूती और नमी सोखने वाले कपड़े शरीर को ठंडा रखने में मदद करते हैं, जबकि कुछ गद्दे गर्म होते हैं जिससे आपको सोने में परेशानी हो सकती है.
  • तय समय पर सोना: इससे शरीर का बॉडी क्लॉक बना रहता है.
  • सोने से पहले कैफीन और स्क्रीन से दूर रहें: ऐसा करने से आप रिलैक्स रहेंगे.
  • शांत और अंधेरा: गहरी नींद में जाने में मदद मिलती है.

5. हर्बल उपचार

यदि आप हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी (एचआरटी) के साथ-साथ हर्बल उपचार पर विचार कर रहे हैं, तो इसके बारे में जानना जरूरी है.

हर्बल उत्पाद, जैसे कि इवनिंग प्रिमरोज़ ऑयल, सोया, रेड क्लोवर, ब्लैक कोहोश और जिनसेंग, आमतौर पर पेरिमेनोपॉज़ के लक्षणों को कम करने के लिए उपयोग किए जाते हैं.

हालांकि, स्वास्थ्य विशेषज्ञ आगाह करते हैं कि इस बारे में गहन क्लीनिकल टेस्टिंग की कमी है इसलिए इसके प्रभावी और सुरक्षित होने को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है.

ऐसे में एचआरटी के साथ इन हर्बल उपायों को जोड़ने से पहले किसी डॉक्टर की सलाह ज़रूर लें.

मेनोपॉज विशेषज्ञ कैथी एबरनेथी कहती हैं कि कई महिलाएं सप्लीमेंट्स का सहारा लेती हैं, लेकिन इन सबके मजबूत वैज्ञानिक प्रमाण नहीं होते हैं.

वे इस बात पर जोर देती हैं कि संतुलित आहार आवश्यक पोषक तत्व प्राप्त करने का सबसे अच्छा तरीका है, हालांकि सर्दियों के महीनों में विटामिन डी और कैल्शियम के सप्लीमेंट्स उपयोगी हो सकते हैं.

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6. भावनात्मक सपोर्ट सिस्टम तैयार करें

पेरिमेनोपॉज़ बहुत ज़्यादा परेशान करने वाला हो सकता है, आप अकेला महसूस कर सकती हैं लेकिन आपको इससे अकेले नहीं लड़ना चाहिए.

विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि इस दौरान आपको अपने दोस्तों और पार्टनर से बात करनी चाहिए. सपोर्ट ग्रुप से जुड़ना चाहिए या किसी डॉक्टर से पेशेवर सहायता लेनी चाहिए ताकि आपको राहत मिल सके.

यह कब तक चलता है?

पेरिमेनोपॉज़ आमतौर पर कई सालों तक रहता है. कुछ विशेषज्ञों का अनुमान है कि यह चार से 10 साल के बीच तक रह सकता है. हालांकि, इसकी अवधि आनुवंशिकी, जीवनशैली और संपूर्ण स्वास्थ्य जैसे कारकों से प्रभावित होती है.

वहीं, मेनोपॉज तब होता है जब लगातार किसी महिला को 12 महीने तक पीरियड्स नहीं आते हैं.

रिश्तों पर प्रभाव

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लंदन के साइकोसेक्सुअल और रिलेशनशिप थेरेपिस्ट शाहरज़ाद पौरबदुल्लाह ने बीबीसी को बताया कि पेरिमेनोपॉज़ के लक्षण न सिर्फ पार्टनर के साथ रिश्ते ख़राब कर सकते हैं बल्कि बच्चों के साथ संबंध पर भी असर डाल सकते हैं.

दरअसल सही से बातचीत न होना और पार्टनर के साथ खुशनुमा पलों की कमी भावनात्मक दूरी बढ़ा सकती है. लेकिन जागरूकता, धैर्य और आपसी समझ से चीजें बेहतर की जा सकती हैं.

पेरिमेनोपॉज़ के कुछ लक्षण थायरॉइड डिसऑर्डर, एंग्जाइटी और क्रोनिक सिंड्रोंम से भी मेल खा सकते हैं.

उदाहरण के तौर पर अनियमित पीरियड्स और मूड में उतार-चढ़ाव संभावित रूप से हार्मोन में बदलाव या थायरॉइड असंतुलन का भी संकेत हो सकता है.

थकान और दिमाग़ी भ्रम को पेरिमेनोपॉज़ या विटामिन की कमी से जोड़ा जा सकता है, जबकि जोड़ों के दर्द और सिरदर्द अन्य शारीरिक दिक्कतों से जुड़ी हुई हो सकती हैं.

ऐसे में किसी ऐप या डायरी का उपयोग करके लक्षणों को ट्रैक करना और डॉक्टर से परामर्श करना, ये तय करने में मदद कर सकता है कि पेरिमेनोपॉज या कोई अन्य स्वास्थ्य समस्या इसकी वजह है या नहीं.

खून की जांच से इसका बेहतर पता चल सकता है लेकिन हार्मोन में उतार-चढ़ाव के कारण यह रिपोर्ट भी प्रभावित हो सकती है.

ऐसे में सही कारण जानने के लिए इसके लक्षणों पर नज़र रखना और ख़ुद की मेडिकल हिस्ट्री की विस्तृत जानकारी रखना सबसे बेहतर तरीका है.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

SOURCE : BBC NEWS