Source :- BBC INDIA
चेतावनीः इस कहानी में यौन उत्पीड़न की कुछ विवरण हैं.
गुरुवार को समाप्त हुए पेलीको बलात्कार के मुक़दमे में मेरी जानकारी में आने वाली सभी महिलाओं की गहरी दिलचस्पी थी. कोर्ट में सुनवाई के दौरान मैंने ख़ुद को हर भयानक विवरण पर ग़ौर करते पाया.
मैंने अपनी महिला दोस्तों, अपनी बेटियों, सहकर्मियों और स्थानीय बुक क्लब की महिलाओं से इस बारे में चर्चा की, मानों जो कुछ हुआ उसे हम समझने की कोशिश कर रहे थे.
क़रीब एक दशक तक ज़ीज़ेल पेलीको के पति उन्हें गुपचुप तरीक़े से ड्रग्स देते थे और उनके साथ सेक्स करने के लिए इंटरनेट पर संपर्क में आए पुरुषों को आमंत्रित करते थे और इसका वीडियो बनाते थे.
इन अजनबी लोगों की उम्र 22 साल से 70 साल तक की थी और इनमें दमकलकर्मी, नर्स, पत्रकार, जेल वॉर्डन और सैनिक तक शामिल थे और इन्होंने डॉमिनिक पेलीको के निर्देशों का पालन किया.
वश में की गई एक महिला के शरीर में प्रवेश करने की उनकी इच्छा इतनी तीव्र थी कि उन्होंने एक सेवानिवृत्त दादी के साथ बिना अपराधबोध के यौन संबंध बनाए, जिसका ड्रग्स से मदहोश शरीर चिथड़े की एक गुड़िया जैसा दिखता था.
कोर्ट में 50 पुरुष मौजूद थे. ये सभी दक्षिणी फ़्रांस के एक छोटे से क़स्बे मज़ान में पेलीको के घर से महज़ 50 किलोमीटर के दायरे मे रहते थे. ऊपरी तौर पर वे ‘किसी सामान्य व्यक्ति’ की तरह ही थे.
एक युवा महिला ने मुझे बताया, “इस बारे में जब मैंने पहली बार पढ़ा, कम से कम एक हफ़्ते तक मैं पुरुषों से मिलना नहीं चाहती थी, यहां तक कि अपने मंगेतर से भी. इसने मुझे बिल्कुल डरा दिया था.”
पेलीको की ही उम्र की एक अन्य उम्रदराज़ महिला ये सोचने से ख़ुद को रोक नहीं पा रही थी कि पुरुषों के दिमाग़ में क्या कुछ चल सकता है, यहां तक कि अपने पति और बेटों के बारे में भी.
उस महिला ने कहा, “क्या यह उस विशाल समस्या का एक छोटा सा सिरा है?”
जिस दिन अदालत ने फ़ैसला दिया, उस दिन 61 साल की एक लेखिका और थेरेपिस्ट डॉ. स्टेला डफ़ी ने अपने इंस्टाग्राम पर लिखा, “मैं उम्मीद करती हूं और विश्वास करने की कोशिश करती हूं कि सभी पुरुष ऐसे नहीं हैं, लेकिन मैं कल्पना करती हूं कि ज़ीज़ेल पेलीको के गांव में रहने वाली पत्नियां, महिला मित्र, बेटियां और माएं भी ऐसा सोचती थीं. और अब उनका नज़रिया बदल गया होगा. जितनी भी महिलाओं से मैंने बात की उन्होंने यही कहा कि पुरुषों के बारे में अब उनकी सोच बदल गई है. उम्मीद है कि इसने पुरुषों के प्रति पुरुषों के नज़रिए को भी बदल दिया हो.”
अब जबकि इंसाफ़ हो चुका है, हम इस भयानक मामले से परे भी देख सकते हैं और पूछ सकते हैं किः पुरुषों में संवेदनहीनता और हिंसक व्यवहार कहां से आता है? क्या वे नहीं देख सकते कि बिना सहमति के सेक्स बलात्कार है?
लेकिन एक बड़ा सवाल भी है. एक छोटे से इलाक़े में रहने वाले इतने सारे पुरुष, एक महिला पर चरम दबंगई वाली इस फ़ैंटेसी को साझा करते हैं, ये पुरुषों की इच्छा के बारे में क्या बताता है?
इंटरनेट ने कैसे बदल दी मान्यता
जिस पैमाने पर मिस पेलीको को सुनियोजित बलात्कारों और यौन हिंसा का निशाना बनाया गया, इंटनेट की ग़ैरमौजूदगी में इसकी कल्पना करना भी मुश्किल है.
जिस प्लेटफ़ॉर्म पर डॉमिनिक पेलीको अपनी पत्नी का बलात्कार करने के लिए पुरुषों को आमंत्रित करने का विज्ञापन करते थे वह एक फ़्रेंच वेबसाइट थी, जिसने एक जैसी यौन इच्छाएं रखने वालों की मुलाक़ात को आसान बनाया, अब यह बंद हो चुकी है. लेकिन इंटरनेट से पहले के ज़माने में ऐसा संभव होना मुश्किल था.
ज़ीज़ेल पेलीको की पैरवी कर रहे एक वकील ने इस वेबसाइट को ‘हत्या के हथियार’ जैसा बताया था और कोर्ट से कहा कि ‘इसके बिना यह मामला इतना बड़ा कभी नहीं बन पाता.’
सहमति और ग़ैर उत्पीड़न वाले सेक्स के प्रति धीरे धीरे बदलते व्यवहार में इंटरनेट ने एक भूमिका निभाई है और उन चीज़ों को सामान्य बना दिया है जिनके बारे में पहले सोचा भी नहीं जा सकता था.
पुराने ज़माने की अश्लील मैग्ज़ीन और ब्लू फ़िल्मों से लेकर आधुनिक ज़माने में पोर्नहब जैसी वेबसाइटों तक हुए बदलाव ने पोर्न की सीमाओं को काफ़ी फैला दिया है. जनवरी 2024 में अकेले इस वेबसाइट को वैश्विक स्तर पर 11.4 अरब लोगों ने देखा.
जनवरी 2024 में ब्रिटेन में ऑनलाइन यूज़र्स पर एक सर्वे हुआ था जिसमें 25 से 49 के बीच हर दस में से एक व्यक्ति ने अधिकांश दिन पोर्न देखने की बात स्वीकार की थी, जिनमें अधिकांश संख्या पुरुषों की थी.
24 साल की एक यूनिवर्सिटी ग्रेजुएट डेज़ी ने मुझे बताया था कि वह जितने लोगों को जानती हैं, वे सभी पोर्न देखते हैं और वह ख़ुद भी देखती हैं.
वह फ़ेमिनिस्ट वेबसाइट पर जाना पसंद करती हैं जिसके फ़िल्टर में ‘पैशनेट’ और ‘सेंसुअल’ के साथ साथ ‘रफ़’ भी शामिल हो.
लेकिन डेज़ी के कुछ पुरुष दोस्तों का कहना है कि उन्होंने पोर्न देखना बंद कर दिया है क्योंकि बचपन में इतना पोर्न देखा है कि अब सेक्स के दौरान वे अच्छा समय नहीं बिता पाते.
ब्रिटेन में 2023 में, इंग्लैंड के चिल्ड्रेन्स कमिश्नर डेम राचेल डिसूज़ा के लिए किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि 16 से 21 साल के लोगों ने इंटरनेट पर पहली बार पोर्न अपने प्राइमरी स्कूल के दौरान ही देख लिया था.
मिस डिसूज़ा ने कहा, “अपनी नौजवानी में माता पिता ने जिन वयस्क सामग्रियों को देखा होगा, आज के पोर्नोग्राफ़ी दुनिया के मुकाबले उन्हें पुराने ढंग का माना जा सकता है.”
क्या पोर्न वाक़ई व्यवहार में बदलाव लाता है?
यौन रूप से सक्रिय होने से पहले मोबाइल पर नियमित रूप से पोर्न देखने वाले बच्चे निश्चित तौर पर 20वीं सदी में प्लेब्वॉय देखकर बड़े हुए वयस्कों की तुलना में अलग यौन उम्मीदों के साथ बड़े होते हैं.
हालांकि व्यवहार को लेकर कोई सीधा संबंध तो नहीं पाया गया है, लेकिन पोर्नोग्राफ़ी के इस्तेमाल और महिलाओं के प्रति नुक़सान पहुंचाने वाले यौन व्यवहार और बर्ताव के बीच जुड़ाव के पर्याप्त सबूत हैं.
कोविड-19 महामारी के पहले किए गए एक सरकारी शोध के अनुसार, “इस बात के सबूत हैं कि पोर्नोग्राफ़ी का इस्तेमाल, पोर्न में देखे गए कृत्यों में शामिल होने या चाहने की इच्छा की अधिक संभावना से जुड़ा है और यह बात मान लेने की प्रवृत्ति की अधिक संभावना है कि इन विशेष कृत्यों में महिलाएं भी शामिल होना चाहती हैं.”
इस तरह के कुछ कृत्यों में आक्रामकता, हावी होना जैसे थप्पड़ मारना, गला घोंटना या थूकना शामिल है.
डेज़ी ने मुझे बताया, “गला घोंटना… गर्दन पर चुंबन जैसा ही सामान्य, नियमित और इच्छित हो चुका है. पिछली बार जिस व्यक्ति से मैं मिली थी, मैंने पहले ही कह दिया था कि गला दबाना पसंद नहीं, और वह मान गया था.”
लेकिन उनका मानना है कि सभी महिलाएं नहीं बोलेंगी, “और मेरा अनुभव है कि अधिकांश पुरुष नहीं चाहते कि महिलाएं बेडरूम में उन पर हावी हों. और यहीं पर वो हावी होना चाहते हैं.”
डेज़ी से चालीस साल बड़ी सुज़ेन नोबल ने अपने यौन अनुभवों के बारे में लिखा है और अब वो सेक्स एडवाइस फ़ॉर सीनियर्स नाम की एक वेबसाइट और पॉडकास्ट चलाती हैं.
उनका मानना है कि ऐसे पोर्न जिसमें रेप फ़ैंटेसी को एक ऐसे सामान्य कृत्य के रूप में दिखाया जाता है, उसकी जड़ में हिंसा है और रेप को एक ऐसे कृत्य के रूप में दिखाता है जिसके लिए महिलाएं ख़ुद बेक़रार हैं.
वो कहती हैं, “छद्म रेप वाले फ़ैंटेसी की नक़ल करने और पूरी तरह ग़ैर सहमति वाले सेक्स के बीच अंतर को लेकर बहुत जागरूकता नहीं है.”
असली ज़िंदगी
जिस तरह इंटरनेट ने बेडरूम तक पोर्न को ला दिया है, इसने असली ज़िंदगी में भी इन कृत्यों की नक़ल को आसान बना दिया है. पहले लोग एक दूसरे से जुड़ने के लिए मेल की बजाय पोस्ट ऑफ़िस बॉक्स का इस्तेमाल करते थे. यह बहुत धीमी प्रक्रिया होती थी. अब ऐसे ग्रुपों को ऑनलाइन जोड़ना और व्यक्तिगत रूप से मिलना कहीं आसान हो गया है.
ब्रिटेन में डेटिंग ऐप से प्यार और रिश्ते तलाशना बहुत आम हो गया है और ख़ास यौन इच्छा पूरा करने की चाहत रखने वालों से जुड़ना भी आसान हो गया है. इसके लिए कई सोशल ऐप्स मौजूद हैं, जैसे फ़ील्ड, जिसे ग़ैर परंपरागत इच्छाएं आज़माने की चाहत रखने वाले पुरुषों के लिए बनाया गया है. इसकी ऑनलाइन शब्दावली में 31 इच्छाएं शामिल हैं.
ऑनलाइन साइकोसेक्शुअल थेरेपिस्ट अल्बर्टिना फ़िशर कहती हैं, “यौन फ़ैंटेसी रखने में कुछ भी ग़लत नहीं है. दिक़्क़त तब होती है जब यह ग़ैर सहमति वाले व्यवहार में बदल जाए.”
उन्होंने मुझे बताया कि महिलाओं और पुरुषों की फ़ैंटेसी अलग अलग होती है, “मुख्य बात ये है कि कोई ख़ास कृत्य सुरक्षित, समझदारी भरा और सहमति से हो. दो लोग एक साथ जो भी करना चाहते हैं उसमें कोई दिक़्क़त नहीं.”
लेकिन ये सब ज़ीज़ेल पेलीको के मामले से अलग है. वो कहती हैं, “यह यौन हिंसा है. सबसे विचलित करने वाली बात है कि यह सब एक ऐसे रिश्ते में हो सकता है जो प्यार वाला दिखता है. बिना सहमति के फ़ैंटेसी को अंजाम देना नार्सिसिज़्म (ऊंचे दर्जे का अहंकार) है.”
चाहत से जुड़े सवाल
फ़ैंटेसी के मामले में सबसे दिक़्क़त तलब बात है इच्छा या चाहत. फ़्रायड के बाद के समय में यह सत्य बन गया है कि इच्छा को दबाया नहीं जाना चाहिए. 1960 के दशक के अधिकांश मुक्ति सिद्धांत यौन इच्छा की प्राप्ति के माध्यम से ख़ुद को जानने पर ज़ोर देते हैं.
लेकिन पुरुष इच्छा तेज़ी से एक विवादित अवधारणा बन गई है, सिर्फ़ इसलिए नहीं कि सत्ता और वर्चस्व के सवाल इसमें मौजूद हैं.
पेलीको मामले की सुनवाई के दौरान कटघरे में खड़े पुरुष ख़ुद को अपराधी के रूप में नहीं देख पा रहे थे. कुछ ने तर्क दिया कि उन्होंने मान लिया था कि ज़ीज़ेल पेलीको ने सहमति दी थी, या वे किसी किस्म के सेक्स गेम में हिस्सा ले रहे थे. जैसा बहुतों ने देखा, वे बस अपनी इच्छाएं पूरी कर रहे थे.
हिट्रोसेक्शुअल पुरुष इच्छा के सामूहिक कृत्य में बदल जाने में बहुत धूमिल रेखा है, जहां महिला की चाहत के प्रति बहुत कम परवाह है.
शायद यह इस बात को समझाता है कि क्यों ओनली फ़ैंस की लिली फिलिप्स ने जब हाल ही में एक दिन में 100 पुरुषों से सेक्स करने की इच्छा ज़ाहिर की तो प्रतिभागियों की लंबी क़तार लग गई.
महिलाओं को वस्तु समझने की प्रवृत्ति, कुछ मामलों में महिलाओं की इच्छा के पूरे सवाल को ख़त्म करने की चाहत में बदल जाती है.
स्वाभाविक रूप से पुरुष इच्छा कई रूप लेती है, इनमें अधिकांश स्वस्थ प्रकृति के होते हैं, लेकिन पारंपरिक रूप से यह सांस्कृतिक सीमाओं से बंधा होता है.
अब ये सीमाएं ब्रिटेन और पश्चिम में हर जगह थोड़ी खिसक गई हैं और इसमें धारणा अंतर्निहित है कि इच्छा प्राप्ति खुद की मुक्ति की एक क्रिया है.
एंड्रयू टेट जैसे लोगों से अपील
लंदन के साउथ केनसिंग्टन में रहने वाले थेरेपिस्ट एंद्रे डी ट्रिशैटू ने एक स्वघोषित ‘महिला विरोधी’ एंड्रयू टेट जैसे मर्दाना सोच वाले इनफ़्लूएंसरों के लिए एक अपील की है. एंड्रयू टेट के एक्स पर एक करोड़ से अधिक फ़ॉलोवर हैं.
एंद्रे डी ट्रिशैटू कहते हैं कि वह कई ऐसे पुरुषों से मिल चुके हैं जो स्त्रीवाद के उभार से परेशान हैं.
वह कहते हैं, “पुरुषों की सामाजिक परवरिश दबदबा क़ायम करने के रूप में होती है, लेकिन उनसे भावनात्मक होने और अपनी कमज़ोरी दिखाने की भी उम्मीद की जाती है.”
“यह भ्रम ग़ुस्से को जन्म देता है और स्त्रीवादी आंदोलन पर यह ग़ुस्सा निकलता है. जैसे कि टेट का मामला है.”
ट्रिशैटू के 60% क्लाइंट पुरुष हैं और वो कहते हैं, “समाज में ताक़त और दबदबे को पुरुष की पहचान से जोड़ कर देखा जाता है.”
पेलीको के मामले में वह कहते हैं, “इस तरह का व्यवहार शक्ति हीनता और अक्षमता से पलायन है. यह बहुत विचलित करने वाला मामला है और दिखाता है कि लोग किस हद तक जा सकते हैं.”
“ग्रुप में आपकी स्वीकार्यता होती है. आपके विचारों को वैधता मिलती है. एक व्यक्ति कहता है कि ठीक है और बाकी सभी उसके पीछे हो लेते हैं.”
पेलीको मामले के बाद से इस बात पर बहस शुरू हो गई है कि सहमति और ग़ैर सहमति वाले सेक्स में क्या अंतर है और क्या इसे क़ानून में और स्पष्ट किया जा सकता है. लेकिन समस्या यह है कि सहमति क्या है, यह एक जटिल सवाल है.
24 साल की डेज़ी कहती हैं कि उनकी उम्र की कुछ महिलाएं अपनी इच्छा जो भी हो, पुरुष साथी की यौन इच्छा को मान लेती हैं, “अगर साथी पुरुष किसी चीज़ को आकर्षक बताता है तो वे भी उसे वैसा ही मान लेती हैं.”
अंत में, पेलीको मामले के ख़त्म होने के साथ ही आमतौर पर राहत की सांस ली जा रही है और माना जा रहा है कि इंसाफ़ हुआ, लेकिन इसने अपने पीछे और सवाल छोड़ दिए हैं, जिन पर शायद सबसे अच्छी चर्चा खुले तौर पर हो सकती है.
(यह लेख बीबीसी इंडेप्थ का है और मूल लेख को यहां पढ़ा जा सकता है.)
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SOURCE : BBC NEWS