Source :- BBC INDIA
अपडेटेड 7 घंटे पहले
बांग्लादेश ने भारत से शेख़ हसीना के प्रत्यर्पण की मांग की है. बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय के सलाहकार मोहम्मद तौहिद हुसैन ने सोमवार को कहा कि उन्होंने भारत को सूचित किया है कि न्यायिक प्रक्रिया में शामिल होने के लिए शेख़ हसीना को वापस भेजा जाए.
बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख़ हसीना पाँच अगस्त से भारत में हैं. सोमवार को बांग्लादेश के गृह मंत्रालय के सलाहकार लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) मोहम्मद जहांगीर आलम चौधरी ने कहा कि शेख़ हसीना के प्रत्यर्पण के लिए भारत के विदेश मंत्रालय को एक पत्र भेजा गया है.
बांग्लादेश की इस मांग की पुष्टि करते हुए भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने सोमवार को कहा था, ”हमें बांग्लादेश के उच्चायोग से एक प्रत्यर्पण का अनुरोध मिला है. हम इस मामले में कुछ भी प्रतिक्रिया नहीं देना चाहते हैं.”
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार की ओर से शेख़ हसीना के प्रत्यर्पण की मांग को उसके तल्ख़ रवैये के रूप में देखा जा रहा है. शेख़ हसीना के सत्ता से बेदख़ल होने के बाद बांग्लादेश और भारत के संबंधों में भरोसा अब तक नहीं लौट पाया है.
बांग्लादेश ने क्यों की मांग?
भारत के विदेश सचिव विक्रम मिसरी पिछले महीने बांग्लादेश गए थे. उम्मीद की जा रही थी कि दोनों देशों के रिश्तों में पिछले कुछ समय चल रहा खिंचाव कुछ कम होगा, लेकिन ऐसा होता नहीं दिख रहा है.
बांग्लादेश की यह मांग भारत के लिए असहज करने वाली है. शेख़ हसीना भारत की दोस्त मानी जाती हैं और भारत उन्हें बांग्लादेश भेजने का जोखिम शायद ही उठाए, जब वहां राजनीतिक प्रतिशोध का माहौल है.
भारत के पूर्व डिप्लोमैट राजीव डोगरा मानते हैं कि बांग्लादेश शेख़ हसीना के प्रत्यर्पण की मांग इसलिए कर रहा है क्योंकि हसीना लोकतांत्रिक बांग्लादेश की प्रतीक थीं.
डोगरा ने समाचार एजेंसी पीटीआई से कहा, ”पाकिस्तान के ख़िलाफ़ जो विद्रोह हुआ था, हसीना उसकी भी प्रतीक हैं क्योंकि उनके पिता शेख़ मुजीब-उर रहमान ने इस विद्रोह का नेतृत्व किया था. अब लगता है कि चीज़ें उलटी दिशा में जा रही हैं. अब बांग्लादेश के नए शासक पाकिस्तान से दोस्ती चाहते हैं.”
“बांग्लादेश के मौजूदा शासन के ख़िलाफ़ शेख़ हसीना प्रतीक बनी हैं. बांग्लादेश की अंतरिम सरकार का मक़सद यही है कि शेख़ हसीना उनके क़ब्ज़े में आ जाएं और जेल में बंद कर मार डालें. शेख़ हसीना को बांग्लादेश भेजना एक निर्दोष को हथियारों से लैस लोगों के बीच सौंप देना है.”
सामरिक मामलों के विशेषज्ञ ब्रह्मा चेलानी ने शेख़ हसीना के प्रत्यर्पण की मांग पर सवाल उठाया है.
चेलानी ने एक्स पर लिखा, ”बांग्लादेश में एक ऐसी सरकार है जो हिंसक भीड़ के दम पर सत्ता में है. इस सरकार की कोई संवैधानिक मान्यता नहीं है. ऐसे में उसे भारत से शेख़ हसीना के प्रत्यर्पण की मांग करने का अधिकार नहीं है.”
क्या भारत करेगा प्रत्यर्पण?
भारत के पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल ने लिखा है, ”भारत शेख़ हसीना का प्रत्यर्पण नहीं कर सकता है. बांग्लादेश ने भारत से ऐसी मांग राजनीतिक कारणों से की है. भारत और बांग्लादेश के बीच जो प्रत्यर्पण संधि है, उसमें राजनीतिक प्रत्यर्पण शामिल नहीं है.”
“ऐसा लग रहा है कि बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने भारत से टकराव बढ़ाने का मन बना लिया है. बांग्लादेश का यह रुख़ किसी की ग़लत सलाह पर आधारित है. बांग्लादेश के इस्लामी नेता भारत से अच्छे संबंध नहीं चाहते हैं और वहां की अंतरिम सरकार इन नेताओं के दबाव में काम कर रही है.”
थिंक टैंक विल्सन सेंटर में साउथ एशिया इंस्टिट्यूट के निदेशक माइकल कुगलमैन का कहना है कि भारत कभी शेख़ हसीना को वापस नहीं भेजेगा.
कुगलमैन ने लिखा है, ”भारत से शेख़ हसीना के प्रत्यर्पण की मांग मुझे कोई बड़ा मुद्दा नहीं लग रहा है. भारत को पता था कि इस तरह की मांग कभी न कभी आएगी. बांग्लादेश को भी पता होगा कि भारत इसके लिए तैयार नहीं होगा. यह महज़ औपचारिकता से ज़्यादा कुछ भी नहीं है. मुझे नहीं लगता है कि इस मांग से दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों पर कोई असर पड़ेगा.”
उन्होंने कहा, “वो (शेख़ हसीना) प्रधानमंत्री थीं और क़ानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए ज़िम्मेदार थीं. कार्यपालिका का प्रमुख होने के नाते नेता कुछ ऐसे आदेश देते हैं जो पुलिस अत्याचार तक जाता है और इस तरह की चीज़ें हो सकती हैं. लेकिन इन मामलों में आप राजनेताओं को ही ज़िम्मेदार नहीं ठहरा सकते जब तक कि कोई व्यक्तिगत प्रतिशोध का मामला न हो.”
“इसी वजह से प्रत्यर्पण में राजनीतिक अनुच्छेद का प्रावधान भी एक छूट के तौर पर मौजूद है, इसी वजह से राजनीतिक काम को एक अपराध के तौर पर नहीं माना जाता है. दूसरा सवाल यह भी कि क्या शेख़ हसीना को बांग्लादेश में न्याय मिलने की संभावना है. लोगों के पास यह मानने के लिए पर्याप्त कारण हैं कि जो अनुरोध किया गया है वह वास्तविक अनुरोध नहीं है क्योंकि उन्हें वहां न्याय मिलने की संभावना नहीं है.”
पूर्व राजनयिक दिलीप सिन्हा ने कहा कि यह याद रखना चाहिए कि तख़्तापलट के बाद मुख्य न्यायाधीश और पांच दूसरे जजों को भीड़ की वजह से पद छोड़ना पड़ा था, इसका मतलब ये है कि वो डरे हुए थे
उन्होंने कहा, “वहां कोई प्रेस की स्वतंत्रता नहीं है, न्यायपालिका पर हमला हुआ है, आधे पुलिसकर्मियों ने पुलिस बल छोड़ दिया है और अधिकतर पुलिसकर्मियों पर हमले हुए हैं. भारत सरकार को बांग्लादेश सरकार के निवेदन को देखने या स्वीकार करने से पहले इन सभी चीज़ों को ध्यान में रखना चाहिए.”
लगातार बढ़ती तनातनी
पिछले हफ़्ते ही बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस के सलाहकार महफ़ूज़ आलम की फ़ेसबुक पोस्ट को लेकर विवाद हुआ था. महफ़ूज़ आलम की फ़ेसबुक पोस्ट के स्क्रीनशॉट में बांग्लादेश का एक नक़्शा लगा था, जिसमें भारत के तीन राज्यों त्रिपुरा, पश्चिम बंगाल और असम को शामिल किया गया था. विवाद बढ़ने के बाद आलम ने इस पोस्ट को डिलीट कर दिया था.
सामरिक मामलों के विशेषज्ञ ब्रह्मा चेलानी ने महफ़ूज़ आलम की फ़ेसबुक पोस्ट के स्क्रीनशॉट को शेयर करते हुए लिखा था, ”इसी महफ़ूज़ आलम को अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की मौजूदगी में मोहम्मद यूनुस ने हसीना सरकार को गिराने के पीछे का दिमाग़ बताया था. अब यह इस्लामी छात्र नेता ग्रेटर बांग्लादेश चाहता है, जिसमें भारत के हिस्से को भी शामिल करना चाह रहा है. आलम को मोहम्मद यूनुस की सरकार में मंत्री का दर्जा मिला है.”
पिछले हफ़्ते भारत के विदेश मंत्रालय ने महफ़ूज़ आलम की पोस्ट को लेकर कहा था, ”जहाँ तक हमें पता है कि वह फ़ेसबुक पोस्ट को डिलीट कर दिया गया था. हम आगाह करना चाहते हैं कि ऐसी टिप्पणियों को लेकर सतर्क रहें.”
यह कोई पहली बार नहीं है, जब शेख़ हसीना भारत में निर्वासित ज़िंदगी जी रही हैं. इससे पहले 1975 में वह भारत में निर्वासित ज़िंदगी जी चुकी हैं. तब उनके पिता शेख़ मुजीब-उर रहमान की हत्या हुई थी. वह दौर भी हसीना के लिए त्रासदियों से भरा था.
उस दौरान भी बांग्लादेश की सेना और पाकिस्तान में क़रीबी बढ़ने की बात सामने आई थी. ऐसे में हसीना के लिए वहां की व्यवस्था पर भरोसा करना आसान नहीं था. शेख़ मुजीब-उर रहमान ने अवामी लीग का गठन किया था और हमेशा से लीग की क़रीबी भारत से रही.
हसीना और भारत की क़रीबी का फ़ायदा दोनों देशों को मिलता रहा है. पहली बार 1996 में हसीना सत्ता में आईं तो कुछ ही महीनों के भीतर भारत से 30 सालों के लिए पानी को लेकर समझौता हुआ था.
बांग्लादेश को नदियों का देश कहा जाता है लेकिन ज़्यादातर नदियां भारत से होकर बांग्लादेश पहुँचती हैं. कुछ लोग आरोप लगाते हैं कि इन नदियों पर कंट्रोल भारत का है. ऐसा नहीं है कि 1996 में बांग्लादेश और भारत के बीच पानी को लेकर जो समझौता हुआ था, उस पर कोई विवाद नहीं था. बांग्लादेश के कई लोगों का मानना था कि यह भारत के पक्ष में है. इसके बावजूद हसीना जब भी सत्ता में रहीं भारत से संबंध स्थिर रहे.
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SOURCE : BBC NEWS