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Last Updated:January 20, 2025, 01:42 IST

Explainer- हर व्यक्ति शॉपिंग करता है. लेकिन कुछ लोग जरूरत से ज्यादा खरीदारी करना पसंद करते हैं और हर समय उनका मन शॉपिंग करने का ही करता है. यह एक मेंटल डिसऑर्डर है जिसका इलाज होना बेहद जरूरी है. कहीं ना कहीं यह बीमारी स्ट्रेस…और पढ़ें

ओनियोमेनिया को कंट्रोल करने के लिए हमेशा दोस्त या घरवालों के साथ शॉपिंग करनी चाहिए (Image-Canva)

हर इंसान कभी ना कभी कपड़े, जूते, हैंडबैग समेत कई चीजों की शॉपिंग जरूर करता है. कुछ इस तरह की शॉपिंग 3 महीने में तो कोई 6 महीने में करते हैं. लेकिन हर दिन शॉपिंग करने का मन करे और तुरंत कुछ खरीद लिया जाए तो यह सामान्य बात नहीं है. यह ओनियोमेनिया नाम की बीमारी है जिसमें व्यक्ति हमेशा खरीदारी के बारे में सोचता है और जरूरत से ज्यादा शॉपिंग कर लेता है. 

युवाओं में सबसे ज्यादा बढ़ रही लत
शॉपिंग करने में कोई बुराई नहीं है लेकिन अगर यह लत बन जाए तो जल्दी मेंटल डिसऑर्डर में बदल जाती है. 2016 में हुई स्टडी “Compulsive Buying Behavior: Clinical Comparison with Other Behavioral Addictions” के अनुसार युवाओं में कंपल्सिव बाइंग बिहेवियर (CBB) लगातार 4.9% से बढ़ रहा है. इसमें 18 से 30 साल के युवा ज्यादा हैं. वहीं ओनियोमेनिया की शिकार महिलाएं ज्यादा हैं. मनोचिकित्सक प्रियंका श्रीवास्तव कहती हैं कि ओनियोमेनिया कंपल्सिव बाइंग डिसऑर्डर है. इसमें व्यक्ति को शॉपिंग करने की लत लग जाती है और बेवजह हर समय शॉपिंग करता है. ऐसा तनाव, एंग्जाइटी, अकेलेन, आत्मविश्वास की कमी समेत कई वजहों से हो सकता है.

लड़कियों को भाते कपड़े और मेकअप
1915 में जर्मन मनोचिकित्सक एमिल क्रेपेलिन ने शॉपिंग की लत को ओनियोमेनिया नाम दिया. ग्रीक में ओनियोस का मतलब सेल होता है और मेनिया का मतलब पागलपन. यह शब्द 1980 के बाद ज्यादा प्रचलन में आया. ओनियोमेनिया पर एक सर्वे हुआ जिसमें सामने आया कि जिन लड़कियों को शॉपिंग की लत होती है, वह सबसे ज्यादा अपनी लुक पर पैसा खर्च करती हैं. उन्हें कपड़े, जूते, हैंडबैग, मेकअप जैसी चीजें खरीदनी होती हैं. ऐसा करके वह अपने कम होते सेल्फ एस्टीम, उदासी और तनाव को दूर करने की कोशिश करती हैं. वहीं पुरुष सबसे ज्यादा खेल के सामान, कार एक्सेसरीज और इलेक्ट्रॉनिक आइटम्स पर खर्च करते हैं. वहीं कुछ लोगों को ग्रोसरी करने की भी लत होती है.

क्रेडिट कार्ड को बंद करा दें, इससे काफी हद तक शॉपिंग रुक जाएगी (Image-Canva)

ओनियोमेनिया के लक्षण
ओनियोमेनिया के शिकार लोग हमेशा शॉपिंग की इच्छा रखते हैं. वह खुद को शॉपिंग से बिजी रखना चाहते हैं. अगर वह ऐसा ना करें तो परेशान हो जाते हैं. वह हद से ज्यादा चीजें खरीद बैठते हैं. शॉपिंग करने से उन्हें खुशी मिलती है, वह चाहकर भी खुद पर कंट्रोल नहीं कर पाते हैं. ऐसे लोग कभी बजट बनाकर शॉपिंग नहीं करते. 

कई तरह की शॉपिंग की लत
इस बीमारी के शिकार लोग एक-दूसरे से बहुत अलग होते हैं. कुछ फ्लैशी शॉपाहोलिक होते हैं. यानी वह लोगों से अटेंशन पाने के लिए महंगे और फैशनेबल आइटम खरीदते हैं ताकि उनका स्टेटस बढ़े. दरअसल वह लोगों को इम्प्रेस करना चाहते हैं. कुछ कम्पलसिव शॉपाहोलिक होते हैं. वह हद से ज्यादा शॉपिंग इसलिए करते हैं ताकि वह खुश रह सकें. यह एक तरह से इमोशनल शॉपिंग होती है. कुछ लोग बार्गेन सीकर होते हैं. डिस्काउंट और सेल देखकर वह तुरंत पैसा खर्च करने लगते हैं जबकि उन्हें उन चीजों की जरूरत भी नहीं होती. कुछ बूलिमिक शॉपर होते हैं. यह एक साथ भारी मात्रा में आइटम खरीद लेते हैं. ऐसे लोग अपना गिल्ट दूर करने के लिए शॉपिंग करते हैं.  

सोशल मीडिया और क्रेडिट कार्ड ने बढ़ाई बीमारी
ओनियोमेनिया को कई सोशल और इकोनॉमिकल कारक भी प्रभावित करते हैं. हाईवैल ऐप की स्टडी के अनुसार आजकल लोग सोशल मीडिया से बहुत प्रभावित हैं. सोशल मीडिया इंफ्लूएंसर को देख उनका मन भी करता है कि वह रोज नई-नई चीजें खरीदकर ट्राई करें. वहीं ई-कॉमर्स साइट्स भी बार-बार नोटिफिकेशन देकर या सोशल मीडिया पर प्रॉडक्ट्स को दिखाकर लोगों को शॉपिंग करने के लिए ललचाती हैं. इसके अलावा लोगों को इस बीमारी का शिकार क्रेडिट कार्ड ने भी बनाया है. इससे लोगों को खर्च करते वक्त पैसों की चिंता नहीं करनी पड़ती. लेकिन बिना प्लान और बिना बजट की शॉपिंग लोगों को फाइनेंशियली कमजोर करने के साथ ही मानसिक तौर पर भी कमजोर कर देती है. 

फोन से सभी शॉपिंग ऐप को डिलीट कर दें (Image-Canva)

बोरियत को दूर करने के लिए शॉपिंग
2020 में कोरोना ने दुनिया को परेशान कर दिया था लेकिन इसी बीच मिलेनियल्स, जेन Z और जनरेशन X के बीच शॉपिंग की लत तेज हुई. यूरोप में हुई एक रिसर्च में सामने आया कि मिलेनियल्स में ऐसा ज्यादा देखने को मिला. इन लोगों ने सबसे ज्यादा ऑनलाइन शॉपिंग की. दरअसल बोरियत को दूर करने के लिए युवा ई-कॉमर्स वेबसाइट्स से शॉपिंग करने लगे थे. 

थेरेपी से होता इलाज
ओनियोमेनिया एक मेंटल डिसऑर्डर है जिसके लिए थेरेपी ली जाती हैं. यह बीमारी कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी और मेडिसिन से ठीक हो सकती है. कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी में मरीज से बातचीत की जाती है और यह समस्या क्यों है, इसका पता लगाया जाता है. अगर व्यक्ति को किसी बात की चिंता है, कोई अवसाद है तो उसे पहचान कर उस पर काबू किया जाता है. ताकि उसके मन से नेगेटिव विचार दूर हों. अगर थेरेपी से मरीज ठीक नहीं हो पाता तो उसे मेडिसिन भी दी जाती हैं. 

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