Source :- BBC INDIA
- Author, संजय ढकाल
- पदनाम, बीबीसी नेपाली सेवा
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18 जनवरी 2025, 12:54 IST
अपडेटेड 34 मिनट पहले
नेपाल की तराई में बसा लुंबिनी वह ऐतिहासिक स्थान है, जहां बुद्ध का जन्म हुआ था. लुंबिनी को साल 1997 में संयुक्त राष्ट्र संघ की संस्था यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल के तौर पर मान्यता दी.
लेकिन अब यूनेस्को जल्द ही लुंबिनी को संकटग्रस्त विश्व धरोहर स्थल की सूची में शामिल कर सकता है.
माया देवी मंदिर इस तीर्थ स्थान का एक प्रमुख केंद्र है. जहां एक चट्टान उस जगह के बारे में बताती है, जिसके बारे में बौद्धों का मानना है कि जहां लगभग 2,600 साल पहले बुद्ध का जन्म हुआ था.
इसके चारों ओर 14 बौद्ध विहार हैं जिन्हें फ़्रांस और कोरिया सहित अलग-अलग देशों के बौद्धों ने बनवाया है. यह बौद्ध धर्म के व्यापक प्रभाव का प्रमाण भी है.
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सिंगापुर बौद्ध विहार के एक भिक्षु खेनपो फुरपा शेरपा ने बीबीसी नेपाली को बताया, “दुनिया भर से लोग यहां शांतिपूर्ण आनंद की खोज में आते हैं.”
इन समस्याओं से जूझ रहा लुंबिनी
लेकिन वह कहते हैं कि गर्मियों में माया देवी मंदिर में आना चुनौती भरा हो सकता है.
खेनपो फुरपा शेरपा ने बताया, “कोई भी थोड़ी देर से ज़्यादा मंदिर में नहीं रुक सकता, क्योंकि यहां बहुत ज़्यादा गर्मी और उमस हो जाती है, लोगों का दम घुटने लगता है.”
मंदिर के अंदर के इन हालात के कारण ही यूनेस्को ने लुंबिनी को संकटग्रस्त विश्व धरोहर की सूची में रखने जैसा कदम उठाया है. यूनेस्को का कहना है कि मंदिर की विशेषताओं का धीरे-धीरे ख़त्म होना यह बताता है कि मंदिर को संरक्षण की कितनी ज़रूरत है.
यूनेस्को के अनुसार, “वायु प्रदूषण, दुकानों और बाज़ारों का खुलना, औद्योगिक इलाके और कुप्रबंधन लुंबिनी के लिए सबसे बड़े ख़तरे हैं.”
लेकिन यूनेस्को ने इस प्रसिद्ध स्थान के जीर्णोद्धार के लिए नेपाल को और समय देने का फ़ैसला किया है. इसे सहेजने के लिए जो ज़रूरी काम हैं, उन्हें एक फ़रवरी तक पूरा करने के लिए कहा गया है.
टपकती छतें, वायु प्रदूषण और मुरझाए पौधे
हर साल इस पवित्र जगह पर लगभग दस लाख लोग आते हैं. लेकिन कई लोगों ने कहा कि वे पास में कारखाने वाले इलाक़ों से आती प्रदूषित हवा, कूड़े-कचरे की दुर्गंध और पानी से लबालब बगीचों में बेतरतीबी से बढ़ी झाड़ियों की वजह से निराश होते हैं.
भारत से आए एक पर्यटक प्रभाकर राव ने बीबीसी से कहा, “अधिकारियों को पर्यटकों के लिए नक्शे और जानकारी भी मुहैया करानी चाहिए. हम बिना किसी जानकारी के बस एक से दूसरी जगह भाग रहे हैं.
लुंबिनी आने वाले पर्यटक ही यहां हालात बेहतर बनाने की बात नहीं करते. बल्कि यहां टैक्सी चलाने वाले मनोज चौधरी भी इन परिस्थितियों पर चिंता ज़ाहिर करते हैं.
वह बीबीसी से कहते हैं, “मैं यहां की अव्यवस्था से ख़ासा नाराज़ हूं. यहां चारों ओर बिखरे कचरे को देखिए.”
मंदिर की छत से पानी टपकता है और ज़मीन से भी पानी निकलता है. इस वजह से मंदिर की प्राचीन ईंटों पर काई लग गई है. यहां तक कि पिछले साल संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेश ने जो पौधे यहां लगाए थे, वे भी मुरझा चुके हैं.
माया देवी मंदिर के अंदर और इसके आसपास पानी घुसने से यहां का वातावरण नम हो गया है, जिससे इस पुरातात्विक महत्व वाली जगह को नुक़सान पहुंच रहा है. ये वो बड़ा कारण है, जिसे देखते हुए यूनेस्को ने इस जगह को संकटग्रस्त धरोहरों की सूची में डालने का सुझाव दिया था.
लेकिन उन्हें ये भी चिंता है कि इससे यहां की बड़ी परियोजनाओं और व्यापक स्तर पर होने वाले पर्यटन पर असर होगा, जिससे मंदिर भी प्रभावित हो सकता है.
साल 2022 में माया देवी मंदिर से केवल दो किलोमीटर दूर पांच हज़ार लोगों की क्षमता वाला एक ध्यान केंद्र और मेमोरियल हॉल खुला है.
यूनेस्को ने इस प्रोजेक्ट से माया देवी मंदिर की आउट स्टैंडिंग वैल्यू (ओयूवी) पर बुरा प्रभाव पड़ने की आशंका व्यक्त की है.
ओयूवी किसी ऐसी जगह के सांस्कृतिक या प्राकृतिक महत्व के लिए इस्तेमाल होता है जो पूरी मानवता के लिए अहम हो. इसी के आधार पर किसी जगह को विश्व धरोहर की सूची में भी शामिल किया जाता है.
साल 2014 में नेपाल सरकार ने लुंबिनी के लिए एक और महत्वाकांक्षी योजना का एलान किया था. जिसके तहत 76 करोड़ से भी ज़्यादा के विदेशी निवेश से लुंबिनी को ‘वर्ल्ड पीस सिटी’ के तौर पर विकसित किया जाना था.
लेकिन यूनेस्को सहित कई अन्य पक्षों के भारी विरोध की वजह से इस योजना को चुपचाप वापस ले लिया गया.
यूनेस्को ने 2022 में अपनी रिपोर्ट में कहा था, “ऐसी चिंताएं है कि ‘लुंबिनी वर्ल्ड पीस सिटी परियोजना’ से साइट की ‘आउट स्टैंडिंग वैल्यू (ओयूवी)’ पर बुरा प्रभाव पड़ सकता था.
विश्व धरोहर स्थल क्या है
लुंबिनी यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थल की सूची में शामिल 1000 से भी ज़्यादा स्थलों में से एक है. इसमें पूर्वी अफ़्रीका का सेरेंगेटी क्षेत्र, मिस्र के पिरामिड, ऑस्ट्रेलिया की ग्रेट बैरियर रीफ़ (विशाल प्रवाल भित्ति) और लैटिन अमेरिका के ग्रेट कैथेड्रल चर्च जैसे अनेक और अनोखे प्राकृतिक और सांस्कृतिक स्थल शामिल हैं.
यूनेस्को उन स्थानों को विश्व धरोहर स्थलों के तौर पर मान्यता देता है जो मानवता के लिए व्यापक महत्व रखते हैं. इन्हें भविष्य की पीढ़ियों के लिए संरक्षित करने के उद्देश्य से सूचीबद्ध किया जाता है. ताकि भविष्य की पीढ़ियां भी इन जगहों के महत्व को समझ सकें और लुत्फ़ उठा सकें.
संकटग्रस्त विश्व धरोहर स्थल की सूची का उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय समुदाय को उन स्थितियों की जानकारी देना है जो किसी स्थान की उन विशेषताओं को ख़तरे में डालती हैं, जिसकी वजह से उसे विश्व धरोहर स्थल की सूची में शामिल किया गया था.
इसका उद्देश्य यह भी है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय उन स्थानों के लिए सुधार से जुड़े कदम उठा सकें. साल 2024 तक 50 से भी ज़्यादा जगहों को संकटग्रस्त विश्व धरोहर स्थलों की सूची में शामिल किया जा चुका है.
बीबीसी को दिए गए एक लिखित बयान में यूनेस्को ने बताया कि किसी जगह को संकटग्रस्त धरोहर स्थल के तौर पर इसलिए नामित किया जाता है ताकि उसके संरक्षण के लिए काम शुरू हो.
यूनेस्को का कहना है, “इससे संबंधित स्थल के विकास कार्य की योजना को गति मिलती है. साथ ही यूनेस्को और उसके सहयोगियों से वित्तीय सहायता के रास्ते भी खुलते हैं. एक बार ख़तरों का समाधान होने के बाद संबंधित स्थल को संकटग्रस्त वाली सूची से हटाया जा सकता है.”
लुंबिनी परिसर के भीतर राजकीय बौद्ध मठ के मुख्य पुजारी सागर धम्मा के अनुसार लुंबिनी को संकटग्रस्त विश्व धरोहर स्थल की सूची में डालना “सबसे ख़राब स्थिति” होगी.
सागर धम्मा ने बीबीसी से कहा, “यह दुनिया भर के 50 करोड़ से भी ज़्यादा बौद्धों के लिए शर्मनाक होगा कि उनके आध्यात्मिक गुरु की जन्मभूमि को संकटग्रस्त धरोहर स्थल की सूची में शामिल कर दिया जाए.”
लेकिन संकटग्रस्त धरोहर स्थल की सूची में शामिल होने का यह मतलब नहीं है कि लुंबिनी को विश्व धरोहर स्थल की सूची से हटा दिया जाएगा.
यूनेस्को ने लिखित बयान में बीबीसी से कहा, “किसी स्थल को तभी विश्व धरोहर स्थल की सूची से हटाया जाता है जब उसकी आउट स्टैंडिंग वैल्यू (ओयूवी) ख़त्म हो जाती है. हालांकि यह एक बहुत दुर्लभ स्थिति है. 1972 के बाद केवल तीन स्थानों के साथ ऐसा किया गया है.”
लुंबिनी में स्थितियां कैसे बिगड़ीं
साल 1978 में संयुक्त राष्ट्र और नेपाल सरकार ने लुंबिनी के विकास की योजना को मंज़ूरी दी थी. जिसमें माया देवी मंदिर का जीर्णोद्धार, मठों के संचालन के लिए अलग क्षेत्र का निर्माण और पास में एक नए गांव को बसाना शामिल था.
इस योजना का उद्देश्य “अध्यात्म, शांति, भाईचारे और अहिंसा” का माहौल बनाना था.
दो असफल प्रयासों के बाद साल 1997 में लुंबिनी विश्व धरोहर स्थल की सूची में शामिल हुआ.
लुंबिनी के पूर्व चीफ़ आर्कियोलॉजिस्ट बसंत बिदारी कहते हैं, “जब हम माया देवी मंदिर का जीर्णोद्धार कर रहे थे तब हमने यूनेस्को के संपर्क में थे.”
नेपाल के पुरातत्त्व विभाग के पूर्व प्रमुख कोश प्रसाद आचार्य भी लुंबिनी को धरोहर स्थल की मान्यता दिलाने के प्रयासों में शामिल थे.
उन्होंने बीबीसी को बताया, “मुझे लगता है कि विश्व धरोहर बनने के बाद हम इसके रखरखाव और मरम्मत के बारे में गंभीर या संवेदनशील नहीं रहे. यह केवल फंड की कमी की वजह से नहीं था बल्कि हमारा रवैया भी ऐसा था.”
नेपाल सरकार ने यूनेस्को को लुंबिनी को संकटग्रस्त धरोहर की सूची में डालने से रोकने के लिए कूटनीतिक स्तर पर प्रयास किए हैं. लेकिन इस पर कोश प्रसाद आचार्य का कहना है कि फ़रवरी की समय सीमा से पहले उन्हें “यूनेस्को की चिंताओं को हल करने के लिए आवश्यक गंभीरता” नहीं दिखाई देती.
इसके अलावा राजनीतिक स्तर पर भी बुनियादी समस्या हो सकती है.
नेपाल के पूर्व संस्कृति मंत्री और सांसद दीपकुमार उपाध्याय ने बीबीसी से कहा, “लुंबिनी का रखरखाव करने वाली लुंबिनी डेवलपमेंट ट्रस्ट (एलडीटी) के लिए एक्सपर्ट और काबिल लोगों को रखने की बजाय सरकार ऐसी नियुक्तियों पर ज़ोर दे रही है जो इस धरोहर का संरक्षण करने में सक्षम नहीं है.”
नेपाल के संस्कृति मंत्री बद्री प्रसाद पांडे ने बीबीसी से कहा कि वह आलोचनाओं को समझते हैं. उन्होंने कहा, “यह एक पवित्र स्थल है. हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इसकी पवित्रता हर तरह से संरक्षित रहे. ऐसे पवित्र स्थलों में भ्रष्टाचार को रोकने में विशेष सावधानी बरतनी चाहिए.”
उन्होंने कहा, “हम सभी समस्याओं को हल करने के लिए प्रतिबद्ध हैं क्योंकि यह देश की प्रतिष्ठा से जुड़ा है.”
लुंबीनी मैनेजिंग अथॉरिटी (एलडीटी) कुछ समस्याओं को हल करने के लिए यूनेस्को के साथ काम कर रहा है.
एलडीटी के कार्यकारी प्रमुख लहारक्याल लामा ने कहा कि उन्होंने प्राचीन ईंटों के कैमिकल ट्रीटमेंट के लिए यूनेस्को के विशेषज्ञों को आमंत्रित किया था ताकि ईंटों को काई से बचाया जा सके.
लामा ने बीबीसी को बताया कि, हमने मंदिर में पानी के रिसाव को रोकने के लिए बाड़ लगाने का पहला चरण पूरा कर लिया है.
लुंबिनी के संरक्षण के लिए चार दशकों से काम कर रहे मिदारी आंख़ों में आंसू लिए बीबीसी से कहते हैं, “लुंबिनी को किसी भी कीमत पर संरक्षित किया जाना चाहिए. वरना ये असहनीय हो जाएगा .”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.
SOURCE : BBC NEWS