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बेटे के पैरेंट्स हैं, तो उसकी परवरिश का खास ध्यान रखने की जरूरत है। जानें-अनजाने में की गई कुछ गलतियां ना सिर्फ उसकी मेंटल हेल्थ पर नेगेटिव असर डाल सकती हैं बल्कि आपके साथ उसके बॉन्ड को भी इफेक्ट कर सकती हैं।

पेरेंटिंग एक बहुत ही खूबसूरत लेकिन जिम्मेदारी वाला सफर है, जिसमें हर दिन कुछ नया सिखाने और सीखने का मौका मिलता है। खासतौर से जब बात बेटे की परवरिश की हो तो ये सफर और भी सेंसिटिव हो जाता है। दरअसल बेटे को बचपन में जो प्यार, सपोर्ट और मार्गदर्शन दिया जाता है, उसी से आगे चलकर उसकी सोच, आत्मविश्वास और रिश्तों की नींव बनती है। माता-पिता के हर शब्द, हर व्यवहार और हर फैसले का सीधा असर उसके व्यक्तित्व पर पड़ता है। बहुत बार पेरेंट्स अच्छे इरादों से कुछ ऐसा कर जाते हैं जो बच्चे के मानसिक विकास को नुकसान पहुँचा सकता है। इसलिए जरूरी है कि परवरिश के दौरान कुछ बेसिक गलतियों को करने से बचा जाए, जिससे बेटे का फ्यूचर अच्छा हो। तो चलिए जानते हैं बेटे की परवरिश करते समय किन गलतियों को करने से बचना चाहिए।

बेटे के इमोशन को दबाना

बच्चों को इमोशनली स्ट्रांग बनाना गलत नहीं है लेकिन उनकी भावनाओं को दबाना गलत है। अक्सर लड़कों को यह सिखाया जाता है कि लड़के रोते नहीं हैं या कमजोर नहीं पड़ते। लेकिन कई बार ये बातें बच्चे के मन पर गहरा इफेक्ट डालने लगती हैं। जब बार-बार उन्हें अपने इमोशंस को छुपाने के लिए कहा जाता है, तो वो अंदर ही अंदर टूटने लगते हैं। इसलिए बेटे को यह कहने के बजाय कि लड़के रोते नहीं है, ये समझाएं कि दुख, डर और आंसू ह्यूमन इमोशंस हैं और इन्हें जाहिर करना कमजोरी नहीं बल्कि ताकत की निशानी है।

हर बात पर डांटना या किसी से तुलना करना

कई पेरेंट्स की आदत होती है कि वे अपने बच्चों की तुलना दूसरे बच्चे से करने लगते हैं। जैसे अगर पड़ोसी का बच्चा क्लास में फर्स्ट आ गया तो उसकी तुलना अपने बच्चे से करना। यूं तो पेरेंट्स ये तुलना अपने बच्चे को समझाने के लिए कर रहे होते हैं, लेकिन जाने-अनजाने में अपने इस बिहेवियर से वो अपने बच्चे के आत्म सम्मान को गहरी चोट पहुंचा देते हैं। छोटी-छोटी पर डांटने से या किसी और से तुलना करने पर बच्चे का आत्मविश्वास तो कमजोर होता है साथ ही वो चिड़चिड़े स्वभाव का भी हो जाता है। इसलिए अपने बच्चों की तुलना किसी और से करने के बजाय उसकी काबिलियत को पहचान कर पॉजिटिवली उसे मोटिवेट करें।

बच्चे की बात ना सुनना, सिर्फ अपनी बात मनवाना

कई पेरेंट्स की आदत होती है कि वो बच्चे की बात को नजर अंदाज कर देते हैं या अगर बच्चा कुछ कह रहा होता है तो उसे बीच में ही टोक देते हैं। बच्चे की बात को सुनने के बजाय सिर्फ अपनी बात ही मनवाने में लगे रहते है। पेरेंट्स की इस आदत का बच्चों के दिल और दिमाग पर बहुत ही गहरा असर पड़ता है। इससे बच्चे का आत्मविश्वास डगमगाने लगता है। इसलिए बच्चा जब भी कुछ कहे तो उसकी बात को ध्यान से सुनें। इससे बच्चे का आत्मविश्वास बढ़ेगा और उसके सोचने और समझने की शक्ति भी मजबूत होगी।

लड़कों से ‘मर्द’ जैसी उम्मीद करना

कई घरों में बचपन से ही लड़के को ये कहना शुरू कर देते हैं कि तू तो लड़का है, तुझे तो सब सहना चाहिए, मर्द बनो, वगैरह वगैरह। इन सब बातों का बेटे के दिमाग पर एक अनहेल्दी प्रेशर पड़ता है। इससे बच्चा अपने अंदर की नाजुकता, इमोशन और सहानुभूति को छुपाने लगता है, जो एक अच्छे इंसान के लिए बेहद जरूरी भावनाएँ हैं। बेटे को अच्छे इंसान के रूप में बड़ा कीजिए, ना कि मर्द बनाने की होड़ में उसके अंदर की इंसानियत को खत्म कीजिए।

बेटे को अपना समय ना देना

कई घरों में ऐसा देखा जाता है कि बड़े होने के बाद बच्चों की माता-पिता से कोई खास बॉन्डिंग नहीं रहती। दरअसल यह उनकी परवरिश का असर है। अक्सर माता-पिता बेटे को सिर्फ अच्छी शिक्षा देने में लगे रहते हैं और अपना समय देना जरूरी नहीं समझते। इसका असर ये होता है कि बच्चा धीरे-धीरे अपने पेरेंट्स से इमोशनली डिटैच होने लगता है और आगे चलकर पेरेंट्स के साथ उसका कोई खास बॉन्ड नहीं रह जाता। इसलिए बच्चे को पढ़ाने- लिखाने के साथ, उसके साथ टाइम भी स्पेंड करें।

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