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बेट द्वारका में अवैध निर्माण के ख़िलाफ़ प्रशासन की कार्रवाई के बाद वहां कई घरों को तोड़ दिया गया है.

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सड़क पर आने और जाने वाले रास्तों पर बैरिकेड्स, लगातार काम करती जेसीबी मशीनें और गिरते ढांचे, लोगों की एंट्री पर रोक और चौबीसों घंटे स्थिति पर नज़र रखते पुलिस कर्मी.

बीते आठ दिनों ने बेट द्वारका में यही नज़ारा देखने को मिल रहा है. ये एक छोटा-सा द्वीप है जो गुजरात के द्वारका शहर के 35 किलोमीटर दूर में है.

इस अभियान के तहत प्रशासन घरों और धार्मिक स्थलों को गिरा रहा है. सरकार का कहना है कि अभियान के तहत बेट द्वारका में उन घरों और पूजा स्थलों को निशाना बनाया जा रहा है जो अवैध हैं.

वहीं बेट द्वारका के स्थानीय लोगों का कहना है कि वो सालों से यहां रह रहे थे, घर छिन जाने के बाद अब उनके पास कोई ठौर-ठिकाना नहीं बचा है

लाल लकीर
लाल लकीर

क्या है पूरा मामला?

प्रशासन का कहना है कि उन्होंने बेट द्वारका में बुलडोज़र से केवल अवैध निर्माण गिराए हैं.

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गुजरात के दक्षिणपश्चिमी छोर पर मौजूद बेट द्वारका एक छोटा-सा द्वीप है. यहां लोग तीर्थ करने आते हैं.

गांधीनगर से 500 किलोमीटर की दूरी पर मौजूद इस द्वीप तक पहले केवल नाव के ज़रिए ही पहुंचा जा सकता था. लेकिन मौजूदा दौर में इसे सुदर्शन सेतु के ज़रिए गुजरात की मुख्यभूमि से जोड़ा गया है.

इस इलाक़े में अवैध ढांचों को गिराने का काम शुरू करने से चार दिन पहले प्रशासन ने 11 जनवरी 2025 को सुदर्शन सेतु को बाहर से आने वाले तीर्थयात्रियों और पर्यटकों के लिए बंद कर दिया.

अधिकारियों का कहना था कि स्थिति तनावपूर्ण न हो जाए इसलिए उन्होंने पुल को बंद किया है.

इन चार दिनों में यहां के बालापार में कई दिनों तक बुलडोज़र चलाए जाते रहे और यहां मौजूद 300 घरों को तोड़ दिया गया. ये घर मुख्य तौर पर अल्पसंख्यक समुदाय के मछुआरों के थे. वहीं 16 जनवरी तक यहां कई धार्मिक ढांचों को भी तोड़ा गया.

15 जनवरी से यहां पर्यटकों को आने की अनुमति दे दी गई लेकिन इसके साथ अवैध ढांचों को गिराने का काम जारी रहा. यहां के भीमसार इलाक़े में ये कार्रवाई दो दिनों तक चली.

सरकार का कहना था कि बालापार इलाक़े में बने घर “सरकारी ज़मीन पर अवैध तरीके से बनाए गए ढांचे” थे इसलिए उन्हें बुलडोज़र और दूसरी मशीनरी के ज़रिए तोड़ दिया गया है.

18 जनवरी 2025 तक बेट द्वारका, द्वारका शहर और ओखा में कुल 525 अवैध ढांचों को गिराया गया. इनमें नौ धार्मिक स्थल और तीन कमर्शियल इमारतें शामिल थीं.

अधिकारियों के अनुसार ये 1,27,968 वर्ग मीटर का कुल इलाक़ा है जिसकी बाज़ार में अनुमानित क़ीमत 73.55 करोड़ रुपये है.

जिनके घर गिरे उनका क्या कहना है?

इस्माइलभाई रेंकड़ीवाला

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गुरुवार को बीबीसी गुजराती की टीम बेट द्वारका पहुंची. टीम ने पाया कि यहां के लोग मलबे में अपना बचा-खुचा सामान खोज रहे हैं.

69 साल के इस्माइलभाई रेंकड़ीवाला कहते हैं कि उनके बेटे ईसा और बेटी ज़रीना के घर के साथ-साथ उनका घर भी तोड़ दिया गया है. वो हालात पर हताशा जताते हैं.

मलबे के ढेर पर बैठे इस्माइलभाई कहते हैं, “हम तो अनपढ़ हैं. तीस साल पहले जब मैंने यहां अपना घर बनाया था उस वक्त मुझे नहीं पता था कि इसके लिए आपको ज़मीन खरीदनी होती है. अगर मुझे ये बात पता होती, तब भी मेरी आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि मैं ज़मीन खरीद सकूं.”

“मेरी उम्र अब ज़्यादा नहीं बची और मेरे घर अब तबाह हो चुके हैं. मुझे चिंता है मेरे बच्चों और नाती-पोतों का क्या होगा.”

वो कहते हैं, “मैंने पूरी उम्र किसी के सामने कभी हाथ नहीं फैलाया, लेकिन आज सरकार ने मेरा घर तोड़ दिया. अब मैं कहां जाऊंगा?”

इस्माइलभाई का कहना है कि सुदर्शन सेतु बनने से पहले वो तीर्थयात्रियों को नाव में बैठाकर द्वीप पर बने कृष्ण के मंदिर तक ले जाते थे, यही उनकी कमाई हुआ करती थी.

उनके दोनों बेटे मछुआरे हैं.

अज़ीज़ाबेन

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पास ही अपने घर के मलबे के पास अज़ीज़ाबेन खड़ी थीं. उनके हाथों में स्कूल की दो क़िताबें थीं.

वो बताती हैं कि उनका दो कमरों का पक्का घर था जिसे प्रशासन ने तोड़ दिया है.

वो बताती हैं कि एक कमरे में उनके बेटे रहा करते थे. वहीं दूसरे कमरे में उनकी बेटी मरियम जडेजा अपने परिवार के साथ रहती थीं.

अज़ीज़ाबेन और उनके पति पास बने एक कच्चे घर में रहते थे. दोनों मछली पकड़ने का जाल बनाने का काम करते थे.

ये तीनों अब बेघर हो चुके हैं.

अज़ीज़ाबेन कहती हैं उनकी बेटी पर ये दोहरी मार है. वो बताती हैं कि द्वीप तक जब रास्ता बनाया जा रहा था उस वक्त उनकी पाज इलाक़े में स्थित उनकी बेटी का घर तोड़ दिया गया था. ये बात अक्तूबर 2022 की है.

वो कहती हैं, “मरियम के पास घर नहीं था. वो दो बच्चों की मां है. वो अपने परिवार के साथ हमारे पार बालापार आ गई, अब ये घर भी तोड़ दिया गया है.”

उनके चेहरे पर नाराज़गी और गुस्सा साफ़ दिखता है. वो प्रशासन के इस अभियान पर सवाल उठाती हैं.

वो कहती हैं, “मैं मानती हूं कि हमने अपना घर सरकारी ज़मीन पर बनाया था. लेकिन हम 20 सालों से यहां रह रहे हैं और अगर हमारा घर अवैध था तो सरकार ने हमें बिजली पानी का कनेक्शन क्यों दिया? हम टैक्स भी देते हैं. लेकिन अब हमारे पास जाने को कोई जगह नहीं है.”

प्रशासन पर आरोप

प्रशासन पर आरोप हैं कि उन्होंने सरकार की आवंटित ज़मीनों पर बनाए घर भी तोड़ दिए हैं.

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कुछ लोगों का कहना है कि सरकार ने 1982 में आवंटित आवासीय भूखंडों पर बने मकानों को तोड़ दिया है.

हेम्भा वड़ेर बेट द्वारका के पूर्व सरपंच हैं. उनका कहना है कि 1982 में सरकार ने 40 से अधिक लोगों को आवासीय भूखंड आवंटित किए थे. इन ज़मीनों पर कई लोगों ने इंदिरा आवास योजना के तहत मकान भी बनाए थे.

हेम्भा वड़ेर कहते हैं, “जब मैं तालुका पंचायत का सदस्य था, उस वक्त मैंने ज़मीनों का आवंटन देखा था.”

हालांकि कुछ निर्माण अवैध तरीके से किए गए थे और प्रशासन ने उन्हें नोटिस भी भेजा था.

वो कहते हैं, “इंदिरा आवास योजना के लिए ज़मीनों का आवंटन क़ानूनी रूप से किया गया था, लेकिन कुछ लोगों ने बिना उचित अनुमति के और ज़रूरी नियमों का उल्लंघन करते हुए उन पर मकान बना लिए, इसलिए उन्हें भी अब हटा दिया गया है.”

हालांकि द्वारका के डिप्टी कलेक्टर और सब डिविज़नल मजिस्ट्रेट अमोल अवाटे इन आरोपों से इनकार करते हैं.

उनका कहना है, “वैध तरीके से बनाए वैध ढांचों को तोड़ने के आरोप निराधार हैं. अभियान के दौरान एक भी घर जो वैध तरीके से बनाया गया था उसे छुआ तक नहीं गया, केवल वही घर तोड़े गए जो अवैध निर्माण थे.”

उन्होंने कहा, “वैध ढांचों और उन धार्मिक ढांचों को भी अभियान से बाहर रखा गया, जहां हाईकोर्ट ने तोड़फोड़ पर रोक लगाई है.”

“कुछ घर सरकार की आवंटित ज़मीनों पर बनाए गए थे. उन्हें इसलिए तोड़ा गया है क्योंकि उन्होंने ज़रूरी नियमों का पालन नहीं किया था उन्होंने या फिर आसपास की भूमि पर अतिक्रमण किया था.”

सरकार की योजना

मौजूदा वक्त में बेट-द्वारका में एक कॉरिडोर बनाने की योजना है और माना जा रहा है कि इसी के लिए यहां सरकार ने ये अभियान चलाया था.

बीबीसी से बात करते हुए द्वारका के विधायक ने इसकी पुष्टि की. उन्होंने कहा, “द्वारका कॉरिडोर फिलहाल योजना के चरण में है और अभी यहां मैपिंग का काम चल रहा है. शुरुआती नक्शे ग़लत थे, इसलिए उन्हें फिर से तैयार किया जा रहा है.”

प्रशासन के अभियान के संबंध में सवाल पूछा जाने पर उन्होंने कहा कि, “कॉरिडोर बनाने और विकास के लिए हमें सड़क जैसी सुविधाएं बनाने की ज़रूरत है. ज़मीन सीमित है और बिना अनुमति के ज़मीन पर बने मकानों को विकास के काम के लिए हटाया जा रहा है.”

‘पहले जीविका गई, अब घर तोड़े गए’

यकुभाई चांगड़ा

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बेट द्वारका एक द्वीप होने के कारण यहां पहले केवल नाव की मदद से ही पहुंचा जा सकता था. सुदर्शन सेतु खुलने के बाद से गाड़ियों के ज़रिए यहां तक लोगों का पहुंचना संभव हुआ.

लेकिन इसका एक नुक़सान यहां नाव चलाने वालों को हुआ, इस कारण उनका काम ठप हो गया और उनकी जीविका छिन गई.

60 साल के यकुभाई चांगड़ा दावा करते हैं कि उन्होंने माफ्तिया में 12-13 साल पहले अपना घर बनाया था.

वो कहते हैं कि वो ओखा और बेट द्वारका के बीच नाव चलाने का काम करते थे, और यही उनकी जीविका का स्रोत था.

वो कहते हैं कि पुल बनने के बाद से उनका काम ठप हो गया है. वो कहते हैं, “पहले नाव चलना बंद होने से हमारी आजीविका का साधन ख़त्म हो गया और अब हमारा घर भी ढहा दिया गया. हम अनपढ़ हैं और कुछ नहीं कर सकते. मुझे अपने बच्चों की चिंता है.”

बात करते-करते उनकी आंखों से आंसू बहने लगते हैं. वो कहते हैं, “मेरे बेटे के बच्चे छोटे हैं. सरकार ने उनके लिए करोड़ों रुपये खर्च कर के स्कूल और आंगनवाड़ी बनवाए, लेकिन अब इसका क्या फायदा? यहां बुलडोज़र चला दिए गए और अब यहां सिर्फ़ मलबा बचा है. उन्हें गड्ढा खोदकर हमें भी इस मलबे के नीचे दफ़ना देना चाहिए.”

बालापुर में एक गुरुद्वारे के सामने सड़क पर 60 साल की सकीनाबेन पलानी अपना बचाखुचा सामान लिए बैठी हैं. उनके साथ उनकी बेटी और दामाद,अयूबभाई भी हैं. उनके बेटी के चार बचेचों में से एक इसी स्कूल में पढ़ता था.

अयूबभाई कहते हैं, “मेरे घर का कोई दस्तावेज़ सबूत के तौर पर नहीं था, लेकिन हम सालों से यहीं रहते थे. मकान गिराए जाने के बाद हम रात को रिश्तेदारों के घर पर रह रहे हैं और फिर दिन में अपने घर के मलबे के पास आ रहे हैं. अब हमने मीठापुर में एक घर किराए पर ले लिया है और वहीं शिफ्ट होने की योजना बना रहे हैं.”

सकीनाबेन का दावा है कि उनका घर यहां 1980 के दशक से था जब इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री हुआ करती थीं.

उन्होंने कहा, “हमारे पास जाने के लिए और कोई जगह नहीं है. सरकार को ही हमारे लिए कुछ व्यवस्था करनी होगी.”

आम लोगों के दावों के बारे में सवाल पूछा जाने पर स्थानीय विधायक पबुभा माणिक कहते हैं, “जब विकास कार्य चल रहा है और किसी ने सड़क के पास घर बना लिया है, तो काम शुरू होने पर वो अपने साथ अन्याय होने का दावा करते हैं.”

वहीं द्वारका के डिप्टी कलेक्टर अमोल अवाटे कहते हैं, “इस अभियान में किसी विशेष वर्ग को निशाना नहीं बनाया जा रहा है. अन्य समुदायों के भी लगभग 20 घर और ढांचे भी तोड़े गए हैं. बात ये है कि बेट द्वारका की 85 प्रतिशत आबादी एक ही समुदाय की है. इसलिए ये स्वाभाविक है कि इस समुदाय के घर ज़्यादा होंगे और इस अभियान में ऐसे घरों की संख्या भी ज़्यादा होगी.”

स्कूल जब बन गए पुलिस कैंप

प्रशासन की कार्रवाई के बाद इलाक़े का नज़ारा

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बेट द्वारका में सप्ताह भर तक चले प्रशासन के इस अभियान के दौरान राज्य सरकार के बालापार (बेट) प्राइमरी स्कूल पुलिस छावनी में तब्दील हो गया था. इस स्कूल में 537 छात्र पढ़ते हैं.

16 जनवरी को जब बीबीसी की टीम ने स्कूल का दौरा किया, वहां कोई छात्र नहीं था.

स्कूल में पुलिसकर्मियों की मौजूदगी के बावजूद शिक्षक लगातार अभिभावकों को फ़ोन कर रहे थे और उनसे कह रहे थे कि वो अपने बच्चों को स्कूल भेजें.

स्कूल के प्रिंसिपल दीपक खिमसूर्या कहते हैं, “आम तौर पर हम स्कूल में 80 फीसदी तक उपस्थिति दर्ज करते हैं. लेकिन 11 जनवरी को केवल 17 छात्र स्कूल आए. उसके बाद से एक भी छात्र स्कूल नहीं आया. हमारे टीचर्स अभिभावकों को फ़ोन करके उन्हें अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए मनाने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन, इन दिनों परिवारों की पहली प्राथमिकता अपने और अपने बच्चों के लिए रहने का ठिकाना खोजना है. इसके अलावा बच्चे भी स्कूल में पुलिसकर्मियों की मौजूदगी से डरते हैं.”

कहां है बेट द्वारका?

गुजरात के देवभूमि द्वारका जिले में बसे शहर द्वारका में जानामाना द्वारकाधीश मंदिर है. हिंदुओं में इस मंदिर का काफी मान्यता है.

द्वारका शहर से क़रीब 35 किलोमीटर दूर बसे बेट द्वारका में द्वारकाधीशजी मुख्य मंदिर है, जिसका भी काफी धार्मिक महत्व माना जाता है.

बेट द्वारका की आबादी क़रीब दस हज़ार है. ये द्वीप 24 फरवरी, 2024 में उस वक्त चर्चा में आया था जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यहां सुदर्शन सेतु का उद्घाटन किया था. ये देश का सबसे बड़ा केबल ब्रिज है और चार किलोमीटर लंबा है. मुख्य भूमि से इस द्वीप को सड़क मार्ग से केवल ये एक पुल जोड़ता है.

इससे पहले यहां तक देवभूमि द्वारका के ओखा से होते हुए नाव के ज़रिए पहुंचा जाता था, जो यहां से क़रीब तीन किलोमीटर दूर है.

यहां के स्थानीय लोगों का कहना है कि पुल के निर्माण के बाद यहां तीर्थयात्रियों की संख्या कई गुना बढ़ गई है. वहीं बताया जा रहा है कि सरकार यहां द्वारका और बेट द्वारका के बीच कॉरिडोर बनाने की योजना पर विचार कर रही है.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

SOURCE : BBC NEWS