Source :- BBC INDIA
38 मिनट पहले
पाकिस्तानी मीडिया में भारत और तालिबान के बढ़ते संपर्क को लेकर ख़ूब बहस हो रही है.
पाकिस्तानी विश्लेषकों का कहना है कि जो भारत तालिबान का विरोध करता था, अब उसे गले लगाने के लिए तैयार हो गया है.
पाकिस्तानी एक्सपर्ट इस बात की चिंता जता रहे हैं कि अफ़ग़ानिस्तान में भारत एक बार फिर से अपना पाँव जमा सकता है.
भारत के विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने आठ जनवरी को दुबई में तालिबान के कार्यकारी विदेश मंत्री आमिर ख़ान मुत्ताक़ी से मुलाक़ात की थी.
तालिबान के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि अफ़ग़ानिस्तान भारत को अहम क्षेत्रीय और आर्थिक साझेदार के रूप में देखता है.
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पाकिस्तानी विशेषज्ञ क्या कह रहे हैं?
पाकिस्तान की रक्षा विश्लेषक आयशा सिद्दीक़ा ने नया दौर टीवी के रज़ा रूमी से भारत और तालिबान के बीच बढ़ते संपर्क पर कहा, ”अफ़ग़ानिस्तान में जब तालिबान आया तो भारत सरकार सोच रही थी कि उसने तो कभी तालिबान से बात ही नहीं की. भारत को लगा कि बात नहीं करने से कोई फ़ायदा तो हो नहीं रहा है. लिहाजा बातचीत शुरू की जाए.”
आयशा सिद्दीक़ा ने कहा, ”अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान के बीच इस समय जो विवाद बढ़ रहा है, उसे देखते हुए भारत को लगा कि ये तालिबान सरकार से रिश्ते आगे बढ़ाने का सही समय है. भारत ने ये क़दम अफ़ग़ानिस्तान में पाकिस्तान के असर को कम करने के लिए उठाया है.”
उन्होंने कहा, ”अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान के बीच इस समय जो विवाद बढ़ रहा है, भारत उसका फ़ायदा उठाना चाहता है.”
आयशा सिद्दीक़ा ने कहा, ”भारत ये मानता है कि अफ़ग़ानिस्तान से उसके ऐतिहासिक संबंध रहे हैं, इसलिए क्यों न इसका इस्तेमाल तालिबान सरकार से संबंध बढ़ाने में किया जाए. अफ़ग़ानिस्तान की तालिबान सरकार से भारत की बातचीत की ये पहल काफ़ी व्यावहारिक और विचारधारा से अलग हट कर उठाया गया क़दम है. ”
अफ़ग़ानिस्तान में हामिद करज़ई और अशरफ़ ग़नी सरकार के समय में भारत और अफ़ग़ानिस्तान के बीच रिश्ते काफ़ी अच्छे थे.
भारत ने उस दौरान अफ़ग़ानिस्तान में काफी निवेश किया था. भारत ने वहां अस्पताल, सड़कें और पुल के अलावा दूसरे अहम इन्फ्रास्ट्रक्चर खड़ा करने के लिए काफी निवेश किया था.
आयशा सिद्दीक़ा ने भारत के निवेश की चर्चा करते हुए कहा,” भारत का अफ़ग़ानिस्तान में बड़ा निवेश है. भारत ने अफ़ग़ानिस्तान में लगभग एक अरब डॉलर का निवेश किया है. भारत वहां डैम बना चुका है. सड़कें बना चुका है. इसलिए बातचीत उसके मुफ़ीद बैठेगी. इसके साथ ही अफ़ग़ानिस्तान मध्य एशिया के बाज़ार तक पहुंचने का भी एक अहम रास्ता है. भारत इस संभावना को तलाशने की कोशिश कर रहा है. ”
‘ग्रेट गेम की तैयारी’
आयशा सिद्दीक़ा ने पाकिस्तान और तालिबान के बीच बिगड़ते रिश्तों पर भी बात की.
उन्होंने कहा, ”भारत तालिबान सरकार के साथ रिश्ते मज़बूत करने करने की कितनी भी कोशिश कर ले लेकिन उसकी एक सीमा है. वहीं पाकिस्तान को उसके मुक़ाबले काफी फ़ायदा है क्योंकि आपसी संबंध बेहतर करने के मामले में सीमा साझा करने वाले देशों को बढ़त हासिल रहती है. लेकिन अफ़सोस पाकिस्तान इस मौक़े को दोनों हाथ से खो रहा है.”
पाकिस्तान के वरिष्ठ पत्रकार नजम सेठी ने ‘समा टीवी‘ के एक कार्यक्रम में भारत और अफ़ग़ानिस्तान की तालिबान सरकार के बीच आपसी रिश्ते मज़बूत करने की कोशिशों पर बात की.
उनसे पूछा गया कि क्या तालिबान और भारत के बीच बातचीत से दोनों देशों बीच दोस्ती के अच्छे दिन दोबारा लौट सकते हैं. क्या ये दोस्ती हामिद करज़ई और अब्दुल्ला अब्दुल्ला के दौर जैसी होगी?
इस पर सेठी ने कहा, ”तालिबान ने जब अफ़ग़ानिस्तान पर कब्जा किया था तो पाकिस्तान ने उसका समर्थन किया था. लेकिन अब दिक्क़तें सामने आ रही हैं. तालिबान को लग रहा है कि तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान और आईएस मिलकर उसके ख़िलाफ़ युद्ध न छेड़ दें. इससे अफ़ग़ानिस्तान में गृह युद्ध हो सकता है. इसलिए वो पाकिस्तान को काबू में रखने की कोशिश कर रहा है.”
उन्होंने कहा, ”पाकिस्तान और तालिबान के बीच इस विवाद में भारत को लोहा गरम लग रहा है. लिहाजा भारत तालिबान से संबंध मज़बूत करने पहुंच गया. भारत और तालिबान दोनों ‘दुश्मन का दुश्मन’ दोस्त होता है की रणनीति पर चल रहे हैं. भारत तालिबान को आर्थिक मदद देने के लिए पूरी तरह से तैयार है. इसलिए तालिबान भी बेफ़िक्र होकर भारत के साथ रिश्ते मज़बूत करने की कोशिश में लगा है. अफ़ग़ानिस्तान में अब ‘ग्रेट गेम’ की तैयारी शुरू हो चुकी है.”
नजम सेठी का कहना था कि अफ़ग़ानिस्तान से भारत पूरी तरह वापस नहीं गया है. वहाँ उसका वाणिज्यिक दूतावास है और दूसरी एजेंसियां भी हैं. अगर तालिबान और भारत के रिश्ते मज़बूत हुए तो पाकिस्तान को मुश्किलें आ सकती हैं.
पाकिस्तान अफ़ग़ानिस्तान में सत्ता चला रहे तालिबान का शुरू से समर्थन करता रहा है. पाँच अगस्त 2021 को जब तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान को अपने नियंत्रण में लिया तो पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने कहा था कि अफ़ग़ानिस्तान के लोगों ने ग़ुलामी की ज़ंजीरें तोड़ दी हैं.
तालिबान दबाव स्वीकार नहीं करेगा
‘समा पॉडकास्ट‘ के ही एक कार्यक्रम में विदेश मामलों के विशेषज्ञ अबसार आलम ने कहा कि तालिबान जब अफ़ग़ानिस्तान आया था तो पाकिस्तान के अंदर काफ़ी ख़ुशी थी. लेकिन अब हालात उलट गए हैं.
भारत के विदेश मंत्रालय में अतिरिक्त सचिव जे.पी. सिंह लगातार तालिबानी नेताओं से मिलते रहे हैं. अब विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने तालिबान के कार्यवाहक विदेश मंत्री आमिर ख़ान मुत्ताकी से मुलाकात की है.
उन्होंने कहा, ”दोनों के बीच टीटीपी का मामला उठा. चाबहार का मुद्दा भी उठा. भारत ने तालिबान को पूरी मदद का वादा दिया है. भारत ऐसे भी अफ़ग़ानिस्तान को मेडिकल और राशन पहुंचाकर मदद करता आ रहा है. भारत ने तालिबान को कहा है कि चाबहार पोर्ट के ज़रिये कारोबार में वो अफ़ग़ानिस्तान की पूरी मदद करेगा.”
उन्होंने कहा कि ये विडंबना है कि भारत का विदेश सचिव उस देश (यूएई) में तालिबान के कार्यवाहक विदेश मंत्री से बात कर रहा है, जहां पाकिस्तानियों का वीज़ा बंद है. पाकिस्तान ने अपने संबंध यूएई से ख़राब कर लिए हैं.
संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान की स्थायी प्रतिनिधि रहीं मलीहा लोधी ने समा टीवी से कहा, ”पाकिस्तानी की विदेश नीति की चुनौतियां बढ़ रही हैं. पाकिस्तान अब तीन फ्रंट से जूझ रहा है. पाकिस्तान के प्रति भारत की बहुत ही आक्रामक नीति है. पाकिस्तान ने अफ़ग़ानिस्तान में हवाई हमले किए हैं और इससे पता चलता है कि काबुल से भी हमारा संबंध ठीक नहीं है. ईरान से भी हमारा संबंध ठीक नहीं है. यानी तीन मोर्चे से चुनौतियों का हम सामना नहीं कर सकते हैं.”
मलीहा लोधी ने कहा, ”भारत के साथ गुंजाइश बहुत ही कम है. भारत ने तो कश्मीर पर बात करने से साफ़ इनकार कर दिया है. अफ़ग़ानिस्तान के साथ नीति फिर से बनाने की ज़रूरत है. पाकिस्तान को पुरानी नीति से अफ़ग़ानिस्तान के मामले में कुछ भी हासिल नहीं हुआ है. मेरा मानना है कि ईरान के साथ स्पेस है लेकिन पाकिस्तान ठीक से इस्तेमाल नहीं कर पा रहा है.”
मलीहा लोधी ने कहा, ”हर तरफ़ आप हार्डलाइन पर नहीं चल सकते हैं. ईरान को हमें ठीक से डील करने की ज़रूरत है. दबाव से तालिबान नहीं मानेगा. तालिबान ने तो अमेरिका के दबाव को नकार दिया तो हम क्या हैं. हमें रणनीति के तहत ही तालिबान के साथ पेश आना होगा.”
पाकिस्तान अख़बार डॉन के यूट्यूब प्रोग्राम ‘जरा हटके’ में तालिबान और भारत के बीच बातचीत पर चर्चा हुई.
इस कार्यक्रम में शामिल एक विशेषज्ञ ने कहा, ”2021 में जब अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान दोबारा सत्ता में आया तो भारत ने उसका समर्थन नहीं किया. हालांकि अभी तक किसी भी देश ने तालिबान को मान्यता नहीं दी है. लेकिन भारत ने शुरुआती चुप्पी के बाद वहां अपना दूतावास फिर खोल दिया. एक हद तक तालिबान और भारत के रिश्ते बहाल होने शुरू हो गए हैं.”
कार्यक्रम में भारत और अफ़ग़ानिस्तान की तालिबान सरकार के बीच पिछले तीन साल के दौरान आपसी रिश्तों को आगे बढ़ाने की कोशिश का ज़िक्र करते हुए कहा कि विक्रम मिस्री और तालिबान के कार्यवाहक विदेश मंत्री की मुलाक़ात इसका ठोस सुबूत है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़ रूम की ओर से प्रकाशित
SOURCE : BBC NEWS