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भारत पाकिस्तान संघर्ष

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भारत और पाकिस्तान के बीच जब भी सैन्य टकराव या इसकी आशंका होती है तो सबसे पहले दोनों देशों के परमाणु हथियार ज़ेहन में आते हैं.

भारत और पाकिस्तान दोनों के पास परमाणु हथियार हैं लेकिन इन हथियारों को लेकर दोनों देशों की नीति अलग-अलग है.

पाकिस्तान अपनी सुरक्षा को ख़तरा होने पर परमाणु हथियार इस्तेमाल करने की नीति पर चलता है. इसे फ़र्स्ट यूज़ पॉलिसी कहते हैं.

वहीं भारत हमेशा से जवाबी कार्रवाई के रूप में परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की बात करता रहा है और यही देश की निर्धारित नीति भी है. भारतीय नेतृत्व पाकिस्तान के पहले परमाणु इस्तेमाल करने की नीति को ‘न्यूक्लियर ब्लैकमेल’ कहता है.

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पीएम मोदी ने क्या कहा

नरेंद्र मोदी का राष्ट्र के नाम संदेश

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब सोमवार शाम पाकिस्तान पर भारत के मिसाइल हमलों और पाकिस्तान के साथ सैन्य टकराव और फिर संघर्ष विराम को लेकर देश को संबोधित किया तो उन्होंने कहा कि भारत ‘न्यूक्लियर ब्लैकमेल’ नहीं सहेगा.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, “भारत पर आतंकी हमला हुआ तो मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा. हम अपने तरीक़े से अपनी शर्तों पर जवाब देकर रहेंगे, हर उस जगह जाकर कठोर कार्रवाई करेंगे जहां से आतंकी जड़ें निकलती हैं, दूसरा कोई भी न्यूक्लियर ब्लैकमेल भारत नहीं सहेगा. न्यूक्लियर ब्लैकमेल की आड़ में पनप रहे आतंकी ठिकानों पर भारत सटीक और निर्णायक प्रहार करेगा. हम आतंक की सरपरस्त सरकार और आतंक के आकाओं को अलग-अलग नहीं देखेंगे.”

ये पहली बार नहीं है जब भारत ने अपनी ज़मीन पर हुए किसी हमले के बाद पाकिस्तान के ख़िलाफ़ सैन्य क़दम उठाया है.

2016 में उरी में हुए हमले के बाद भारत ने सीमा पार सर्जिकल स्ट्राइक का दावा किया था. 2019 में जब पुलवामा में सीआरपीएफ़ के काफ़िले पर हमला हुआ तो भारत ने पाकिस्तान के बालाकोट में ‘टेरर कैंपों’ पर एयरस्ट्राइक का दावा किया.

अब पहलगाम में हुए हमले में 26 लोगों की मौत के बाद भारत ने पाकिस्तान के पंजाब प्रांत और पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में 9 ठिकानों पर हवाई हमले किया.

ऐसे में ये सवाल उठ रहा है कि क्या पाकिस्तान के परमाणु हथियारों का इस्तेमाल करने की चेतावनी असरदार बची है या नहीं.

विश्लेषक क्या कहते हैं?

मुनीर अहमद की राय

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विश्लेषक मानते हैं कि ख़तरा होने पर पहले परमाणु हथियारों के इस्तेमाल पाकिस्तान की नीति सवालों में है.

इंस्टीट्यूट ऑफ़ पीस एंड कंफ्लिक्ट स्टडीज़ में सीनियर रिसर्चर डॉ. मुनीर अहमद कहते हैं, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कहने का मतलब ये था कि पाकिस्तान भारत के ख़िलाफ़ आतंकवाद जैसे ग़ैर-परंपरावादी हमले करता है और फिर भारत के परंपरावादी (सैन्य) हमलों को रोकने के लिए परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की ‘धमकी’ देता है. अब इस तरह का न्यूक्लियर ब्लैकमेल बहुत प्रभावी नहीं है. भारत बालाकोट और अब ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद पाकिस्तान के इस थ्रैशोल्ड को परख चुका है.”

विश्लेषकों का मानना है कि अहम सवाल ये है कि पाकिस्तान का न्यूक्लियर थ्रैशोल्ड क्या है?

मनोहर पर्रिकर इंस्टीट्यूट ऑफ़ डिफेंस स्टडीज़ में सीनियर रिसर्च एसोसिएसट डॉ. राजीव नयन कहते हैं, “उरी के बाद पाकिस्तान में सर्जिकल स्ट्राइक हुईं, फिर 2019 में बालाकोट और अब भारत की मिसाइल स्ट्राइक.”

“ऐसे में ये सवाल है कि पाकिस्तान का न्यूक्लियर थ्रैशोल्ड क्या है, किस स्थिति में वो इन हथियारों का इस्तेमाल करेगा. पाकिस्तान, रूस और कई राष्ट्र कहते हैं कि जब हमारा अस्तित्व दांव पर होगा तब हम इस्तेमाल करेंगे. लेकिन सवाल ये है कि आप किस स्थिति को अस्तित्व पर ख़तरा मानते हैं.”

डॉ. मुनीर कहते हैं, “जब भी भारत की तरफ़ से पाकिस्तान पर कोई पारंपरिक हमला होता है पाकिस्तान फुल स्पेक्ट्रम डेटेरेंस डॉक्ट्रिन (पूर्ण आयामी प्रतिरोधक सिद्धांत) की बात करता है लेकिन मुझे लगता है कि हम अब इससे आगे बढ़ चुके हैं. पाकिस्तान परमाणु हथियारों की बात करता है क्योंकि पारंपरिक सैन्य ताक़त में पाकिस्तान भारत का मुक़ाबला नहीं कर सकता है.”

भारत और पाकिस्तान की परमाणु हथियारों की होड़

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परमाणु हथियारों को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच प्रतिस्पर्धा रही है.

पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो ने साल 1965 में कहा था, “अगर भारत बम बनाता है तो भले ही हमें घास या पत्तियां खानी पड़ें या भूखा रहना पड़े हम अपना बम बनाकर रहेंगे.”

जहां तक परमाणु हथियारों को लेकर भारत का सवाल है. भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 1950 के दशक में कहा था, “हमने परमाणु हथियारों की भर्त्सना की है और उन्हें बनाने से इनकार किया है. लेकिन हमें मजबूर किया गया तो हम अपनी रक्षा के लिए अपने वैज्ञानिक ज्ञान का इस्तेमाल करेंगे.”

भारत और पाकिस्तान दोनों ही 1970 के दशक से परमाणु शक्ति हासिल करने के प्रयास कर रहे थे. भारत ने साल 1974 में ‘स्माइलिंग बुद्धा’ परीक्षण किया और ये संकेत दिए कि वह परमाणु ताक़त हासिल कर सकता है.

लेकिन भारत ने पहले परमाणु हथियारों का परीक्षण ‘ऑपरेशन शक्ति’ के तहत 11 और 13 मई 1998 को किया था.

इसके कुछ ही दिन बाद 28 और 30 मई को पाकिस्तान ने ‘चगई-1’ और ‘चगई-2’ परीक्षण करके संकेत दिए कि उसके पास भी परमाणु हथियार है.

यानी दोनों देशों के पास अधिकारिक रूप से पिछले 27 सालों से परमाणु हथियार हैं. इस दौरान जब-जब भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव की स्थिति बनी, दोनों देशों के परमाणु हथियार चर्चा और चिंता का केंद्र बने.

परमाणु हथियारों को लेकर भारत-पाकिस्तान के नेताओं की बयानबाज़ी

राजीव नयन

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1998 में पाकिस्तान के परमाणु परीक्षण करने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ ने संयुक्त राष्ट्र में कहा था, “पाकिस्तान के परमाणु परीक्षणों का उद्देश्य न तो मौजूदा अप्रसार व्यवस्था को चुनौती देना था, और न ही किसी महाशक्ति बनने की महत्वाकांक्षा को पूरा करना. हमने ये परीक्षण पाकिस्तान के ख़िलाफ़ बल प्रयोग या उसके ख़तरे को रोकने के लिए किए थे. भारत के जवाब में किए गए हमारे इन परीक्षणों ने इस तरह हमारे क्षेत्र में शांति और स्थिरता के उद्देश्य को पूरा किया है.”

नवाज़ शरीफ़ ने भले ही देश की रक्षा और क्षेत्र में शांति और स्थिरता के लिए परमाणु हथियार बनाने की बात की हो लेकिन पाकिस्तान का नेतृत्व समय- समय पर अपने परमाणु बमों के इस्तेमाल की ‘धमकी’ देता रहा है.

साल 2000 में पाकिस्तान के तत्कालीन विदेश मंत्री शमशाद अहमद ने कहा था, “अगर पाकिस्तान पर कभी आक्रमण हुआ या हमला हुआ तो पाकिस्तान अपने पास मौजूद हर हथियार का इस्तेमाल अपनी रक्षा के लिए करेगा.”

पाकिस्तान का सैन्य नेतृत्व भी अपने परमाणु हथियारों को लेकर बयान देता रहा है. पाकिस्तान के रिटायर्ड लेफ़्टिनेंट जनरल और पाकिस्तान के स्ट्रेटेजिक प्लान्स डिवीज़न के पूर्व महानिदेशक ख़ालिद किदवई ने इस्लामाबाद के इंस्टीट्यूट ऑफ़ स्ट्रेटेजिक स्टडीज़ में एक भाषण में कहा था, “पाकिस्तान के पास तीन श्रेणियों में परमाणु हथियारों का पूरा स्पेक्ट्रम मौजूद है: स्ट्रेटेजिक, ऑपरेशनल और टेक्टिकल. पाकिस्तान के ये हथियार भारत के विशाल भूभाग और उसके बाहरी क्षेत्रों को पूरी तरह से कवर करते हैं, भारत के स्ट्रेटेजिक हथियारों के छिपने के लिए कोई जगह नहीं है.”

एक और बयान में जनरल ख़ालिद किदवई ने कहा था, “पाकिस्तान की परमाणु प्रतिरोधक (न्यूक्लियर डिटेरेंट) क्षमता वास्तविक, मज़बूत और सुरक्षित है. इसे हर घंटे, हर दिन, साल के हर दिन पूरी तरह से संचालन योग्य बनाया गया है. इसका उद्देश्य वही है जिसके लिए इसे विकसित किया गया है यानी आक्रामकता को रोकना.”

जनरल ख़ालिद ने ही 2013 में पाकिस्तान का फुल स्पेक्ट्रम डिटेरेंस सिद्धांत दिया था. इसके तहत पाकिस्तान ने स्ट्रेटेजिक, ऑपरेशन और टेक्टिकल हथियार विकसित किए हैं और दावा है कि वे 60 किलोमीटर से लेकर 3000 किलोमीटर तक मार कर सकते हैं.

इसका दूसरा मतलब ये है कि पाकिस्तान ये दावा करता है कि वो भारत के किसी भी हिस्से में परमाणु हमला कर सकता है.

कुछ दिन पहले पाकिस्तान के विदेश मंत्री ख़्वाजा आसिफ़ ने एक साक्षात्कार में पाकिस्तान की परमाणु क्षमता का ज़िक्र करते हुए कहा था, “अस्तित्व को सीधा ख़तरा होने की स्थिति में ही पाकिस्तान अपने परमाणु हथियारों का इस्तेमाल करेगा.”

इसी साल अप्रैल में पाकिस्तान के रेल मंत्री मोहम्मद हनीफ़ अब्बासी ने कहा था, “पाकिस्तान की परमाणु मिसाइलें सजावट के लिए नहीं हैं. इन्हें भारत के लिए ही बनाया गया था. हमने ग़ौरी, शाहीन और गज़नवी जैसी मिसाइलें और 130 परमाणु हथियार ख़ासतौर पर भारत के लिए ही रखे हैं.”

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पाकिस्तान के नेतृत्व के बयानों में परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की ‘धमकी’ झलकती रही है. भारतीय नेताओं ने भी समय-समय पर परमाणु हथियारों को लेकर बयान दिए हैं.

मई 1974 में पोखरण परमाणु परीक्षण के बाद इंदिरा गांधी ने कहा था, “पोखरण परीक्षण शांतिपूर्ण परमाणु विस्फोट था. ये परमाणु शक्ति का इस्तेमाल विकास के लिए करने के लिए किया गया वैज्ञानिक परीक्षण था.”

मई 1998 में पोखरण-2 परीक्षण के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था, “भारत अब परमाणु हथियार संपन्न राष्ट्र है. हमारे परमाणु हथियार आत्मरक्षा के लिए हैं. ये सुनिश्चित करने के लिए कि भारत को परमाणु हथियारों या किसी और तरह की ‘धमकी’ ना दी जा सके.”

इसके बाद इसी साल संयुक्त राष्ट्र महासभा में बोलते हुए अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि भारत की परमाणु ताक़त आक्रामकता रोकने के लिए है और भारत पहले इस्तेमाल ना करने के सिद्धांत पर चलेगा.

प्रधानमंत्री वाजपेयी ने कहा था कि भारत परमाणु हथियार रहित दुनिया चाहता है लेकिन आक्रामकता रोकने के लिए हम न्यूनतम परमाणु हथियार रखेंगे.

परमाणु हथियारों को लेकर भारत और पाकिस्तान की नीतियां

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भारत ने साल 1999 में अपनी पहली परमाणु हथियार नीति बनाई थी. ये पहले परमाणु हथिायर इस्तेमाल ना करने पर आधारित है.

साल 2011 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इसे दोहराते हुए कहा था, “भारत की परमाणु नीति पहले इस्तेमाल ना करने और परमाणु हमला होने पर पूरी ताक़त से जवाब देने पर आधारित है. हमारा न्यूक्लियर डिटेरेंट भरोसेमंद और प्रभावशाली है.”

वहीं मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2019 में दिए एक बयान में कहा था, “भारत की परमाणु नीति स्पष्ट है. पहले इस्तेमाल ना करना. लेकिन जो हम पर परमाणु से हमला करेंगे उन्हें छोड़ा नहीं जाएगा. हमारी परमाणु क्षमता हमारी संप्रभुता को सुनिश्चित करती है.”

हालांकि साल 2019 में भारत के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने इस नीति में स्थिति के हिसाब से बदलाव के संकेत देते हुए कहा था, “भारत पहले इस्तेमाल ना करने की नीति पर प्रतिबद्ध है लेकिन भविष्य में क्या होगा ये परिस्थितियों पर निर्भर करेगा.”

वहीं पाकिस्तान की कोई लिखित या स्पष्ट परमाणु नीति नहीं है. विश्लेषक मानते हैं कि इसका मुख्य कारण है कि वह भारत की ‘परंपरागत सैन्य प्रभुत्व’ या कन्वेंशनल मिलिट्री सुपिरियरिटी को रोकना करना चाहता है.

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मनोहर पर्रिकर इंस्टीट्यूट ऑफ़ डिफेंस स्टडीज़ से जुड़े और रक्षा और परमाणु मामलों के विशेषज्ञ राजीव नयन कहते हैं कि जिस किसी की भी फ़र्स्ट यूज़ पॉलिसी है उसमें बहुत अस्पष्टता है.

राजीव नयन कहते हैं, “फ़र्स्ट यूज़ नीति की सबसे बड़ी अस्पष्टता ये है कि किस स्थिति में परमाणु बम का इस्तेमाल किया जाएगा. पाकिस्तान ये तो कहता है कि हम परमाणु बम का इस्तेमाल कर सकते हैं लेकिन ये कभी स्पष्ट नहीं किया है कि इसे इस्तेमाल करने का थ्रैशोल्ड या सीमा क्या होगी. ये भी स्पष्ट नहीं है कि शुरुआत किस तरह के हथियार के इस्तेमाल से की जाएगी. क्या छोटा वेपन इस्तेमाल किया जाएगा जिसे बैटलफ़ील्ड वेपन कहा जाता है या फिर स्ट्रेटेजिक वेपन इस्तेमाल किया जाएगा.”

अभी दुनिया में परमाणु हथियारों के इस्तेमाल को लेकर कोई समझौता नहीं है. लेकिन परमाणु हथियारों को लेकर एक डर और इनके इस्तेमाल को लेकर एक झिझक है.

1945 में जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर गिराए गए अमेरिकी परमाणु बमों के बाद से दुनिया में कहीं भी परमाणु हथियारों को इस्तेमाल नहीं किया गया है.

राजीव नयन कहते हैं, “भले ही परमाणु हथियारों को रोकने के लिए कोई क़ानून ना हो लेकिन हर परमाणु संपन्न राष्ट्र में इन्हें लेकर नैतिकता है. सवाल ये उठेगा कि जब पाकिस्तान के ख़िलाफ़ परमाणु बम इस्तेमाल नहीं हो रहा है तब वो किस तरह से अपने पहले परमाणु बम के इस्तेमाल को तर्कसंगत ठहराएगा.”

इसी कारण से पाकिस्तान पर न्यूक्लियर ब्लैकमेल का आरोप लगता रहा है क्योंकि भारत ने कभी भी पहले परमाणु बम के इस्तेमाल की ‘धमकी’ नहीं दी है लेकिन पाकिस्तान ऐसी ‘धमकी’देता रहा है.

पाकिस्तान और भारत के पास कितने परमाणु हथियार

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पाकिस्तान या भारत के पास कितने परमाणु हथियार हैं इसका अधिकारिक आंकड़ा नहीं हैं. हालांकि स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (सिपरी) और अमेरिकन फ़ेडरेशन ऑफ़ साइंटिस्ट्स परमाणु हथियारों की संख्या का आकलन करते हैं.

सिपरी के साल 2024 के आकलन के मुताबिक़ भारत के पास 172 और पाकिस्तान के पास 170 परमाणु हथियार हैं.

वहीं विश्लेषक मानते हैं कि सवाल ये है कि ये आंकड़े कितने विश्वसनीय हैं और परमाणु हथियारों के मामले में संख्या का कोई महत्व है भी या नहीं.

डॉ. मुनीर अहमद कहते हैं, “अमेरिकन फ़ेडरेशन ऑफ़ साइंटिस्ट्स ने ताज़ा आकलन में भारत के पास 180 और पाकिस्तान के पास 170 परमाणु हथियारों का अनुमान लगाया है. लेकिन वास्तविकता में परमाणु हथियारों के मामलों में संख्या बहुत मायने नहीं रखती है. अगर बात इनके इस्तेमाल तक पहुंची तो बहुत कम हथियारों से ही बहुत भारी तबाही की जा सकती है.”

राजीव नयन का भी यही मानना है. वह कहते हैं, “परमाणु हथियार इतने विनाशकारी होते हैं कि संख्या बहुत अधिक मायने नहीं रखती है क्योंकि एक छोटा परमाणु हथियार भी भारी तबाही मचा सकता है.”

दोनों देशों में परमाणु हथियारों को लेकर क्या है चेन ऑफ़ कमांड?

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भारत और पाकिस्तान में परमाणु हथियारों को लेकर चेन ऑफ़ कमांड यानी अगर इस्तेमाल करने की स्थिति आई तो इसे लेकर भी अलग-अलग व्यवस्था है.

डॉ. राजीव नयन के अनुसार, भारत में एक न्यूक्लियर कमांड अथॉरिटी (एनसीए) है. इसकी एक राजनीतिक परिषद है जिसके अध्यक्ष प्रधानमंत्री होते हैं.

इसमें सीसीएस यानी सुरक्षा मामलों की कैबिनेट कमेटी है जिसमें रक्षा मंत्री, गृह मंत्री, विदेश मंत्री, वित्त मंत्री और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार होते हैं.

इसके बाद एक कार्यकारी परिषद है जिसकी अध्यक्षता राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) करते हैं. इसमें सभी सेनाओं के प्रमुख, चीफ़ ऑफ़ डिफ़ेंस स्टाफ़, डिफ़ेंस इंटेलिजेंस के महानिदेशक, परमाणु ऊर्जा एजेंसी (डीईए) के शीर्ष अधिकारी और डीआरडीओ के अधिकारी शामिल होते हैं.

वहीं परमाणु हथियारों के रखरखाव, देखभाल और ऑपरेशनल डिप्लायमेंट यानी संचालन के लिए स्ट्रेटेजिक फ़ोर्सेज कमांड (एसएफ़सी) है जो चीफ़ ऑफ़ डिफ़ेंस स्टॉफ़ को रिपोर्ट करती है.

डॉ. राजीव नयन कहते हैं, “भारत में परमाणु हथियारों के इस्तेमाल का निर्णय राजनीतिक होगा और अंतिम फ़ैसला देश का नागरिक नेतृत्व करेगा. सैन्य बलों और परमाणु वैज्ञानिकों से सलाह लेने के लिए एनसीए के पास विशेषज्ञ सलाहकार हैं.”

पाकिस्तान में परमाणु हथियारों के इस्तेमाल के लिए जो चेन ऑफ़ कमांड है उसमें सबसे ऊपर नेशनल कमांड अथॉरिटी (एनसीए) है. इसका ढांचा भी लगभग भारत जैसा ही है.

इसके चेयरमैन प्रधानमंत्री होते हैं और इसमें राष्ट्रपति, विदेश मंत्री, रक्षा मंत्री, चेयरमैन ऑफ़ ज्वाइंट चीफ़ ऑफ़ स्टाफ़ (सीजेसीएससी), सेना, वायुसेना और नौसेना के प्रमुख और स्ट्रेटेजिक प्लान्स डिवीज़न के महानिदेशक होते हैं.

एनसीए के तहत स्ट्रेटेजिक प्लान्स डिवीज़न है जिसका मुख्य काम परमाणु एसेट का प्रबंधन और एनसीए को तकनीकी और ऑपरेशनल सलाह देना है.

वहीं स्ट्रेटेजिक फ़ोर्सेज़ कमांड सीजेसीएससी के नीचे काम करती है और इसका काम परमाणु हथियारों को लांच करना है.

ये वॉरहेड ले जाने में सक्ष्म मिसाइलों जैसे शाहीन और नस्र मिसाइलों का प्रबंधन करती है और एनसीए से आदेश मिलने पर परमाणु हथियार दाग सकती है.

भारत के साथ हालिया तनाव के दौरान भी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के नेशनल कमांड अथॉरिटी की बैठक बुलाने की रिपोर्टें आईं थीं. हालांकि भारत के साथ संघर्ष विराम की घोषणा के बाद कहा गया था कि पाकिस्तान ने ऐसी बैठक नहीं बुलाई.

राजीव नयन कहते हैं, “पाकिस्तान में जिस तरह से सेना का प्रभाव है उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि पाकिस्तान में ये निर्णय सेना ही लेगी.”

एयर डिफ़ेंस क्या रोक पाएगा परमाणु हमले को?

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भारत और पाकिस्तान दोनों ही देश अपने परमाणु हथियारों को सुरक्षित ठिकानों पर तैयार स्थिति में रखते हैं. परमाणु हथियार के दो हिस्से होते हैं. एक विस्फोटक (वॉरहेड) और दूसरा डिलीवरी सिस्टम यानी मिसाइल.

भारत शांति की स्थिति में अधिकतर वॉरहेड और मिसाइल को अलग-अलग रखता है. कुछ को दागने के लिए तैयार यानी रेडी टू डिप्लायमेंट स्थिति में रखा जाता है. वहीं पाकिस्तान की नीति भी ऐसी ही है.

हालांकि विश्लेषक मानते हैं कि भारत और पाकिस्तान के बीच दूरी इतनी कम है कि परमाणु हथियारों के मामले में ये बहुत अधिक मायने नहीं रखता है कि हथियार कैसे रखे जाते हैं.

डॉ. राजीव नयन कहते हैं, “भारत और पाकिस्तान के बीच दूरी इतनी कम है कि अगर परमाणु हथियार करने का निर्णय हो गया तो इससे पीछे हटना या फिर हथियार को हवा में एयर डिफ़ेंस से नष्ट करना बेहद मुश्किल होगा.”

डॉ. नयन कहते हैं, “बहुत एडवांस एयर डिफ़ेंस सिस्टम थ्योरी में तो बैलिस्टिक मिसाइल को रोक सकते हैं लेकिन व्यावहारिक तौर पर ऐसा मुश्किल होगा. मामूली चूक भी भारी विनाश का कारण बन सकती है. यही वजह है कि परमाणु हथियारों के इस्तेमाल का विचार ही विनाशकारी है.”

वहीं डॉ. मुनीर अहमद कहते हैं, “अगर भारत और पाकिस्तान के बीच कभी परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की नौबत आती है, जिसकी आशंका बेहद ही कम है, तो इसका मतलब ये होगा कि दोनों ही देश पारस्परिक विनाश की तरफ़ आगे बढ़ चुके हैं.”

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

SOURCE : BBC NEWS