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भारत और पाकिस्तान ने विदेशों में प्रतिनिधिमंडल भेजकर क्या हासिल किया, कितनी असरदार होगी कूटनीति – द लेंस

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Source :- BBC INDIA

शहबाज़ शरीफ़ और नरेंद्र मोदी

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एक घंटा पहले

पहलगाम हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव और गहरा गया और फिर यह सैन्य संघर्ष में बदल गया. भारत ने पाकिस्तान और पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में नौ ठिकानों पर हमला किया. इस अभियान को ‘ऑपरेशन सिंदूर’ नाम दिया गया. अब इस घटना को एक महीना पूरा हो चुका है.

पाकिस्तान की ओर से भी जवाबी कार्रवाई हुई, बयानबाज़ी हुई और एक बार फिर कूटनीति और सैन्य ताकत के बीच की रेखा धुंधली होती चली गई.

इस बीच भारत और पाकिस्तान दोनों ने ही दुनिया के कई देशों में अपने-अपने प्रतिनिधिमंडल भेजे. भारत ने आतंकवाद और सीमा सुरक्षा के सवालों पर समर्थन मांगा, तो वहीं पाकिस्तान ने मानवाधिकारों और क्षेत्रीय अस्थिरता का मुद्दा उठाया.

क्या यह सिर्फ़ कूटनीति की लड़ाई थी या इन दोनों देशों की आंतरिक राजनीति, सेना, सत्ता के समीकरण और मीडिया नैरेटिव ने इसे और उलझा दिया है?

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भारत में इस मुद्दे को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्षी दलों के बीच बहस छिड़ी हुई है. कुछ इसे सुरक्षा का सवाल मानते हैं, तो कुछ इसे राजनीतिक फ़ायदे का ज़रिया मान रहे हैं.

वहीं पाकिस्तान में सरकार और सेना की जुगलबंदी इस पूरे मामले की दिशा तय करती दिखी. तो क्या यह संघर्ष सिर्फ़ सरहद तक सीमित है? या फिर यह कूटनीति, राजनीति और नैरेटिव की कई स्तर वाली लड़ाई बन चुका है?

भारत में मोदी सरकार ने पिछले एक महीने में जो क़दम उठाए हैं उससे जनता का समर्थन हासिल करने में क्या उसे मदद मिली है?

दूसरी तरफ पाकिस्तान के कदम उठाए उससे सेना और सरकार की इमेज पर क्या असर हुआ है? दोनों देशों ने कूटनीति का जो रास्ता अपनाया है, वो कितना और किस तरह असरदार हो सकता है?

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बीबीसी हिन्दी के साप्ताहिक कार्यक्रम, ‘द लेंस’ में कलेक्टिव न्यूज़रूम के डायरेक्टर ऑफ़ जर्नलिज़्म मुकेश शर्मा ने इन्हीं सब सवालों पर चर्चा की.

चर्चा के लिए सीनियर जर्नलिस्ट नीरजा चौधरी, कौटिल्य स्कूल ऑफ़ पब्लिक पॉलिसी में अंतरराष्ट्रीय संबंधों की असिस्टेंट प्रोफ़ेसर कनिका राखरा और बीबीसी न्यूज़ उर्दू के सीनियर न्यूज़ एडिटर आसिफ़ फ़ारुक़ी शामिल हुए.

पहलगाम हमले के बाद भारत में क्या बदला?

नीरजा चौधरी का बयान

भारत में इससे पहले हुई सैन्य कार्रवाई के बाद मौजूदा सरकार ने बड़े बहुमत से वापसी की है, फिर चाहे बात कारगिल की हो या पुलवामा की.

बिहार विधानसभा का चुनाव अभी कुछ दूर है लेकिन भाजपा और मोदी सरकार ने जनसमर्थन हासिल करने की प्रकिया तेज़ कर दी है. इसे कैसे देखा जा सकता है?

इस सवाल के जवाब में वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी कहती हैं, “देश और दुनिया में बहुत आतंकी हमले हुए हैं लेकिन जो बर्बरता इस हादसे में थी, वो कभी नहीं देखी गई है. महिलाओं, बच्चों और परिवारों के सामने 26 पुरुषों को उसी जगह मारकर उन्हें तड़पते हुए छोड़ दिया गया.”

वह कहती हैं, “ये उन परिवारों के ज़ेहन पर चोट तो है लेकिन हिंदुस्तान के ज़ेहन पर जो चोट लगी उसने लोगों को एकजुट कर दिया. मुंबई हमले और कारगिल युद्ध ने भी लोगों को इतना एकजुट नहीं किया था.”

नीरजा चौधरी बताती हैं, “अनुच्छेद 370 जब हटाया गया तो कश्मीर में उसका जबरदस्त विरोध हुआ, लेकिन वही कश्मीर आज पूरे देश के साथ खड़ा रहा. हिंदू और मुस्लिम को लेकर कोई विवाद नहीं हुआ.”

वह कहती हैं कि इस मसले को लेकर विपक्ष लड़ेगा और संसद सत्र होगा. राजनीति, कूटनीति सब चलेगी. किसी भी लोकतांत्रिक देश में यह होगा ही, लेकिन इस घटना के बाद विपक्ष ने एकजुटता दिखाई है, और वो एक स्वर में 33 देशों में जाकर बोल रहे हैं.

नीरजा चौधरी का कहना है, “विपक्ष के लोगों ने जिस तरह से विदेशों में जाकर भारत का पक्ष रखा, वैसा पक्ष के लोग भी नहीं कर पाए. इससे एक नई लीडरशिप सामने आ रही है. यह सकारात्मक चीज़ हुई है.”

सैन्य संघर्ष के बाद पाकिस्तान में क्या बदला?

पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर

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भारत और पाकिस्तान के बीच हुए संघर्ष से राजनीति में उथल-पुथल तेज़ थी और जनता सेना की छवि को लेकर भी बातें कर रही थी. अब इस संघर्ष के बाद पाकिस्तान में क्या बदलाव दिखाई दे रहा है?

बीबीसी न्यूज़ उर्दू के सीनियर न्यूज़ एडिटर आसिफ़ फ़ारुक़ी का कहना है कि पाकिस्तान में सरकार और सैन्य नेतृत्व की स्वीकार्यता को लेकर काफ़ी बड़ा बदलाव आया है.

आसिफ़ फ़ारुक़ी कहते हैं, “पिछले दो-तीन सालों से इमरान ख़ान के जेल में बंद होने के बाद से उनकी पार्टी सरकार और सैन्य नेतृत्व के ख़िलाफ़ लोगों को इकट्ठा कर रही थी. सोशल मीडिया और राजनीतिक मंचों पर उनकी निंदा हो रही थी. दिन-ब-दिन उनकी मुश्किलें बढ़ रही थीं लेकिन इस संघर्ष ने चीज़ों को उलट दिया है.”

वह कहते हैं कि संघर्ष के बाद सरकार और सेना को जो समर्थन मिल रहा है वह ऐतिहासिक है. इतनी ज़्यादा और इतनी तेज़ी से पक्ष में बदलाव चौंकाने करने वाला है.

उन्होंने कहा, “जहां तक बात नैरेटिव को लेकर है तो राजनीति और सेना दोनों के लिहाज़ से यह एक विजयी पल है.”

आसिफ़ फ़ारुक़ी का बयान

कैसे रही दुनिया की कूटनीतिक प्रतिक्रिया?

 पहलगाम

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पहलगाम हमले की पूरी दुनिया ने निंदा की लेकिन जब भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष हुआ तो दुनिया के देशों की कूटनीतिक प्रतिक्रिया कैसी रही?

कौटिल्य स्कूल ऑफ़ पब्लिक पॉलिसी में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर कनिका राखरा कहती हैं, “भारत के ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को भी समर्थन मिला है. रिपब्लिकन नेता निक्की हेली ने एक्स पर लिखा कि हर देश को अपनी सुरक्षा का हक़ है. ऐसे कई लोगों ने भारत का समर्थन किया जो अलग-अलग देशों की सरकार में काम कर चुके हैं.”

राखरा कहती हैं, “मुझे ऐसा नहीं दिखाई दिया कि लोग कम समर्थन कर रहे हैं. हां, ये बात और है कि पाकिस्तान भी एक देश है तो हर देश को एक संतुलन बिठाना तो होता ही है.”

वह कहती हैं कि दुनिया में हर जगह से भारत को ज़्यादा समर्थन मिला. किसी ने खुलकर तो किसी ने दबी ज़ुबान में समर्थन किया.

प्रोफ़ेसर राखरा कहती हैं, “भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने उन देशों (जहां-जहां प्रतिनिधिमंडल गया) की समस्याओं के साथ जोड़ते हुए अपनी बात रखी. इससे वह यह समझाने में सफल रहे कि इसका उन पर आने वाले दिनों में क्या असर पड़ेगा.”

कूटनीति में राजनीति

कांग्रेस सांसद शशि थरूर

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विदेश गए भारत के सात प्रतिनिधिमंडल में से एक में कांग्रेस नेता शशि थरूर के शामिल होने से लेकर और बाद में थरूर के बयानों पर कमेंट करने तक, क्या कांग्रेस ने इस स्थिति को सही से संभाला?

नीरजा चौधरी कहती हैं, “ये सरकारी प्रतिनिधिमंडल हैं न कि संसदीय प्रतिनिधिमंडल. ये ग़लतफ़हमी इसलिए हुई क्यों​कि संसदीय कार्यमंत्री किरेन रिजिजू ने मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी से बात करके नाम मांगे. उन्होंने चार नाम दिए. उन्होंने आनंद शर्मा को छोड़ तीन नाम हटा दिए. बाक़ी अन्य को प्रतिनिधिमंडल में शामिल किया.”

वह कहती हैं, “कांग्रेस मानती है कि ये वो लोग हैं जिनका पार्टी नेतृत्व से मनमुटाव था. जैसे शशि थरूर, जो कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए मल्लिकार्जुन खड़गे के ख़िलाफ़ खड़े हुए थे, उससे मतभेद पैदा हुआ.”

नीरजा चौधरी कहती हैं, “अगर कांग्रेस मानती है कि बीजेपी जानबूझकर ये दिखाना चाह रही थी कि कांग्रेस के अंदर बहुत मतभेद है, अगर वह सही भी है तो भी कांग्रेस को स्थिति की ज़रूरत समझकर काम करना चाहिए था.”

नीरजा चौधरी का मानना है, “अनुभवी नेताओं ने दिखाया कि ऐसे मामलों में कैसे बातचीत करनी चाहिए? कांग्रेस क्रेडिट लेने की बजाय इसमें फंस गई कि बीजेपी क्या कह रही है? हालांकि, इतना सब होने के बाद भी सभी नेता एक ही स्वर में बोले.”

नीरजा चौधरी का बयान

पाकिस्तान प्रतिनिधिमंडल में इमरान ख़ान की पार्टी नहीं

भारतीय प्रतिनिधिमंडल को लेकर देश की राजनीति में कई चर्चाएं हैं. पाकिस्तान ने भी अपने प्रतिनिधिमंडल कई देशों में भेजे हैं. क्या पाकिस्तान की कूटनीति का असर वहां की राजनीति पर भी पड़ेगा?

आसिफ़ फ़ारुक़ी कहते हैं, “पाकिस्तान में इसे लेकर बहुत ही महत्वपूर्ण चर्चा चल रही है. पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल में पूर्व प्रधानमंत्री और जेल में बंद इमरान ख़ान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक़-ए-इंसाफ़ (पीटीआई) के लोग शामिल नहीं है और सरकार के लिए यह एक बड़ी अड़चन है.”

फ़ारुक़ी कहते हैं, “शशि थरूर और अन्य लोगों की मिसाल दी जा रही है जो कि भारत की आवाज़ बुलंद कर रहे हैं. लोग कह रहे हैं कि पाकिस्तान प्रतिनिधिमंडल में विपक्ष शामिल होता तो इसका प्रभाव अलग होता.”

फ़ारुक़ी का मानना है कि पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल जिस तरह से विदेशों में अपनी बातें रख रहा है, उस पर सकारात्मक प्र​तिक्रिया देखने को मिल रही है. ये बात ज़रूर है कि इसमें पीटीआई की कमी महसूस की जा रही है.

प्रोफ़ेसर कनिका राखरा

कितने प्रभावी होते हैं ऐसे प्रतिनिधिमंडल?

इस तरह के प्रतिनिधिमंडल दूसरे देशों का रुख़ बदलने में कितने प्रभावी होते हैं? क्या ये वास्तव में उन देशों की सरकारों का समर्थन हासिल करने में कारगर होते हैं?

इस सवाल के जवाब में प्रोफ़ेसर कनिका राखरा कहती हैं, “इसमें दो तरह की बात है. एक जो दोस्त हैं और एक जो नहीं हैं. जब आप दोस्त के पास जाते हैं तो आपके रिश्ते और मज़बूत होते हैं और हम इनसे मदद मांगते हैं.”

“दूसरा है, जहां पर हमें ये दिखता है कि रिश्ते पाकिस्तान की तरफ़ ज़्यादा झुके हुए हैं, जैसे मलेशिया. हालांकि, इस मामले पर मलेशिया ने कहा कि भारत की बात भी हम उतने ही ध्यान से सुनेंगे जितना कि पाकिस्तान की सुन रहे हैं.”

प्रोफ़ेसर राखरा ब्राज़ील का उदाहरण देते हुए कहती हैं, “ब्राज़ील में शशि थरूर गए और कहा कि आपके चीन से अच्छे संबंध हैं लेकिन देखिए हमारे साथ क्या हो रहा है?”

वह कहती हैं, “ब्राज़ील भारत का तुरंत समर्थक नहीं बन जाएगा लेकिन ये ज़रूरी है कि उसके कान में बात गई . महत्वपूर्ण बात यह है कि अस्थायी सुरक्षा परिषद में जो देश आएंगे. उन देशों में भी हमारे प्रतिनिधिमंडल गए हैं. ऐसे में यह ज़रूरी है.”

प्रोफ़ेसर कनिका राखरा ने बताया, “पाकिस्तान भी दो साल के लिए अस्थायी सुरक्षा परिषद का सदस्य होगा. इसका नकारात्मक प्रभाव न पड़े, हम उसी अनुसार अपनी कोशिशें कर रहे हैं.”

पाकिस्तान में क्या चर्चा हो रही है?

बिलावल भुट्टो ज़रदारी

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पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल जिन देशों में गया उसे लेकर पा​किस्तान के भीतर क्या चर्चा चल रही है?

आसिफ़ फ़ारुक़ी कहते हैं, “पाकिस्तान में इसे बहुत सकारात्मक तौर पर देखा जा रहा है. बिलावल भुट्टो ज़रदारी जो बातें रख रहे हैं उसे पाकिस्तान में बहुत सकारात्मक रूप दिया जा रहा है.”

फ़ारुक़ी के मुताबिक़, “जिन नेताओं से प्रतिनिधिमंडल मिला, पीएम मोदी के बारे में बातें कीं. पाकिस्तान जिस तरह से अपनी बात वैश्विक बिरादरी से सामने रख रहा है, उस पर सरकारी अमलों में उसे शाबाशी मिल रही है.”

बकौल आसिफ़ फ़ारुक़ी, “कूटनीति में आप अपनी बात किस तरह से रखते हैं, यह बहुत महत्वपूर्ण बात होती है. बिलावल भुट्टो ज़रदारी जहां-जहां गए हैं और जिस तरह से पाकिस्तान की बात दुनिया के सामने रखी है, उसके लिए बिलावल भुट्टो ज़रदारी की बहुत सराहना की जा रही है.”

क्या बिहार चुनाव तक बना रहेगा ये मुद्दा?

भारत में विपक्षी दल यह आरोप लगा रहे हैं कि सरकार बिहार चुनाव तक इस मुद्दे को जिंदा रखना चाहती है. क्या यह मुद्दा इसी प्रभाव के साथ चुनाव तक बना रहेगा?

वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी कहती हैं, “ये जो सात प्रतिनिधिमंडल गए हैं उनके ज़रिए राष्ट्रवाद अब विपक्ष का भी मुद्दा बन गया है. लोग कह रहे हैं कि ये भी उतने ही राष्ट्रवादी थे, इन्होंने अपने मतभेदों को भुलाकर देश की आवाज़ बुलंद की है. अगर पाकिस्तान के साथ तनाव जारी रहता है तो यह मुद्दा तो रहेगा.”

क्या बिहार का चुनाव इस मुद्दे से प्रभावित होगा?

इस पर नीरजा चौधरी कहती हैं, “बिहार में होता ये है कि ज़्यादा क्षेत्रीय मुद्दे सामने आएंगे. हो सकता है कि ये भी थोड़ा बहुत हो क्योंकि विपक्ष ने भी इसमें जगह बना ली है.”

क्या कश्मीर मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण हो रहा है?


श्रीनगर में पहलगाम हमले की ख़िलाफ प्रदर्शन करते हुए स्थानीय नागरिक की तस्वीर

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भारत शुरूआत से कहता रहा है कि कश्मीर के मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण नहीं होना चाहिए. क्या न चाहते हुए भी कश्मीर के मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण हो रहा है?

प्रोफ़ेसर कनिका राखरा कहती हैं, “भारत ने जिस तरह से पक्ष रखा है उसका केंद्र ही पाकिस्तान रहा है और भारत पर हमला रहा है.”

राखरा के अनुसार, “हम समाचारों में जो देख, पढ़ और सुन रहे हैं, किसी भी प्रतिनिधिमंडल ने कश्मीर को लेकर बात नहीं की है और करनी भी नहीं चाहिए.”

वह कहती हैं, “भारत की तरफ से कश्मीर मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण नहीं हो रहा है. पाकिस्तान जिस तरह से बचाव में लगा हुआ है ऐसे में कश्मीर पर दुनिया का ध्यान कम होता हुआ दिखाई दे रहा है.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

SOURCE : BBC NEWS