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पूर्व आर्मी कमांडर ले. जनरल आरपी कलिता
गुवाहाटी: क्या भारत और पाकिस्तान के बीच चल रहे तनाव के बीच चीन की एंट्री हो सकती है? क्या चीन पाकिस्तान की मदद के लिए आगे आ सकता है? भारतीय सेना के एक पूर्व कमांडर ने कहा है कि वर्तमान भू-राजनीतिक परिदृश्य और शुल्क (टैरिफ) संबंधी ‘‘जटिलताओं’’ के कारण, पहलगाम आतंकवादी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच ‘‘अस्थिरता’’ में चीन के सीधे तौर पर शामिल होने की संभावना नहीं है। हालांकि, उन्होंने यह कहा कि पाकिस्तान के साथ चीन की मित्रता जगजाहिर है।
गलवान के बाद चीन के साथ काफी चर्चा हुई
पूर्वी कमान के पूर्व प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) राणा प्रताप कलिता ने कहा, “गलवान 2020 की घटना के बाद, दोनों देशों के बीच काफी विचार-विमर्श हुआ और टकराव के अंतिम बिंदु पर गतिरोध को हल कर लिया गया है।” उन्होंने कहा कि संघर्ष के अंतिम क्षेत्रों में समाधान के बाद ‘सामान्यीकरण की प्रक्रिया’ शुरू हो गई है और द्विपक्षीय तंत्र में तेजी आई है, जिसमें सीधी उड़ानें शुरू करने और कैलाश मानसरोवर यात्रा को फिर से शुरू करने के लिए वार्ता शामिल है। कलिता ने यह भी कहा कि दोनों देशों को अमेरिका द्वारा लगाए गए बढ़े हुए व्यापार शुल्क का सामना करना पड़ रहा है, जिसका वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भी प्रभाव पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि भारत और चीन विनिर्माण देश होने के साथ-साथ प्रमुख उपभोग बाजार भी हैं, इसलिए इनमें शुल्क में बदलाव का प्रभाव अधिक महसूस किया जाएगा।
अनुमान लगाना मुश्किल
पूर्व सैन्य कमांडर ने कहा, “इन जटिलताओं और भू-राजनीतिक घटनाक्रमों को देखते हुए, पहलगाम घटना से पैदा हुई अस्थिरता के प्रति चीन की कोई प्रत्यक्ष प्रतिक्रिया होगी या नहीं, इसका अनुमान लगाना फिलहाल मुश्किल है। लेकिन फिलहाल मुझे नहीं लगता कि वे सीधे तौर पर इसमें शामिल होंगे।” कलिता ने कहा, ‘‘पाकिस्तान के साथ समुद्री संपर्क की संवेदनशीलता जगजाहिर है। चीन के लिए पाकिस्तान के ज़रिए अरब सागर तक पहुंच का महत्व भी जगजाहिर है।’’
बांग्लादेश सीमा पर संवेदनशीलता के बारे में उन्होंने कहा कि यह अब भी बनी हुई है तथा “बांग्लादेश में सरकार बदलने के बाद यह और भी अधिक बढ़ गई है।” उन्होंने कहा, ‘‘शेख हसीना सरकार के गिरने के बाद हमने देखा है कि बांग्लादेश में भारत विरोधी भावना बढ़ रही है, जिसे धार्मिक कट्टरपंथियों द्वारा बढ़ावा दिया जा रहा है।’’ पूर्व सैन्य कमांडर ने कहा कि बांग्लादेश में कार्यवाहक सरकार के सत्ता में आने के बाद अंसार-उल -बांग्ला जैसे आतंकवादी समूहों के प्रमुख व्यक्तियों की जेल से रिहाई ने भी “सामूहिक रूप से भारत विरोधी भावना को बढ़ाने में योगदान दिया है।”
बांग्लादेश में आतंकवादी शिविरें शुरू होना चिंता का विषय
उन्होंने कहा कि आईएसआई के महानिदेशक समेत वरिष्ठ पाकिस्तानी सैन्य अधिकारियों का दौरा इस संवेदनशीलता को और बढ़ा देता है। उन्होंने कहा कि बांगलादेश से प्रवासन और पूर्वोत्तर में ‘इस्लामी कट्टरवाद फैलाने के लिए घुसपैठ’-यह सब उस मौजूदा संवेदनशीलता के कारण है जो जनसंख्या पैटर्न में मौजूद है, खासकर असम और त्रिपुरा जैसे राज्यों में, जहां जनसंख्या संतुलित और संवेदनशील है तथा ये सब चिंताजनक मुद्दे हैं। कलिता ने कहा कि संकीर्ण सिलीगुड़ी गलियारा भी भारत के लिए संवेदनशील क्षेत्र है, क्योंकि यह पूर्वोत्तर को रणनीतिक संपर्क प्रदान करता है। उन्होंने कहा कि बांग्लादेश में आतंकवादी शिविरों का संभावित रूप से फिर से शुरू होना चिंता का एक और पहलू है, क्योंकि वहां उल्फा और अन्य संगठनों के अड्डे हैं। हालांकि, कलिता ने कहा कि भारतीय सशस्त्र बल किसी भी स्थिति का सामना करने के लिए तैयार हैं। (इनपुट-भाषा)
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