Source :- BBC INDIA
“तानाशाही, हठधर्मिता, मनमानी….” ये सब कुछ ऐसे शब्द हैं, जो अमूमन तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा के भाषणों का हिस्सा होते हैं, चाहे वो संसद में हों या फिर बाहर.
वो अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के ख़िलाफ़ अक्सर इन शब्दों का इस्तेमाल करती रही हैं.
उनके आक्रामक तेवर और भाषणों की वजह से उनकी छवि एक ‘फ़ायरब्रांड’ नेता के रूप में बनी हुई है.
लेकिन पश्चिम बंगाल में अब उन्हीं के दल – यानी तृणमूल कांग्रेस के विधायकों ने उन पर ‘तानाशाही’ का आरोप लगाते हुए पार्टी के आलाकमान को एक प्रतिवेदन दिया है.
क्या आरोप लगाए?
उन पर ‘मनमानी’ करने और ‘हठधर्मिता’ के भी आरोप लगाए जा रहे हैं. ये पार्टी विधायक के ही आरोप हैं. इसको लेकर तृणमूल कांग्रेस के अंदर ही अंदर बहस भी छिड़ी हुई है.
ये सभी विधायक पश्चिम बंगाल के कृष्णानगर से हैं जो महुआ मोइत्रा का संसदीय क्षेत्र भी है.
पार्टी के ‘आलाकमान’ को दिए गए प्रतिवेदन में जिन विधायकों के हस्ताक्षर हैं उनमे बिम्लेंदु सिन्हा राय भी हैं जो करीमपुर विधानसभा सीट से जीतकर आए हैं. इसी सीट से महुआ मोइत्रा भी विधायक रह चुकी हैं.
राय के अलावा नक्काशीपाड़ा के विधायक कल्लोल ख़ान, चपरा के विधायक रुक्बनुर रहमान, दक्षिण कृष्णानगर के विधायक उज्ज्वल बिस्वास, पलाशीपाड़ा के विधायक मानिक भट्टाचार्य और कालीगंज से विधायक नसीरुद्दीन अहमद ने भी इस प्रतिवेदन पर हस्ताक्षर किए हैं.
इस प्रतिवेदन में तृणमूल कांग्रेस के पश्चिम बंगाल राज्य के अध्यक्ष सुब्रत बक्शी को संबोधित किया गया है जिसमें आरोप लगाए गए हैं “लोकसभा में निर्वाचन के बाद से ही महुआ मोइत्रा उत्तरी नदिया ज़िला तृणमूल कांग्रेस की अनदेखी कर रही हैं. वो स्थानीय नेताओं के साथ तालमेल नहीं बैठा पाई हैं और बिना किसी की सलाह लिए जो मन में आ रहा है वो कर रही हैं.”
ये भी आरोप लगाए गए हैं कि महुआ मोइत्रा ‘असामाजिक तत्वों’ को ‘प्रोत्साहन’ दे रही हैं जिसकी वजह से ‘अल्पसंख्यकों के बीच पार्टी की छवि धूमिल’ हो रही है.
सांसद होने के साथ-साथ महुआ मोइत्रा तृणमूल कांग्रेस की उत्तरी नदिया ज़िला अध्यक्ष भी हैं. लेकिन, ऐसा नहीं है कि पहली बार पार्टी के अंदर से नेताओं का आक्रोश उनके ख़िलाफ़ पनपा हो.
पहले भी कई नेता जता चुके हैं नाराज़गी
पार्टी के नेता बताते हैं कि साल 2019 में भी जब उन्हें पहली बार उत्तरी नदिया का ज़िला अध्यक्ष बनाया गया था तब भी उनकी कार्यशैली को लेकर पार्टी के नेताओं में, और ख़ासतौर पर ज़िला इकाई के अंदर, असंतोष पनपने लगा था.
नेताओं का कहना है कि इसी वजह से साल 2021 में उन्हें ज़िला अध्यक्ष के पद से हटा दिया गया था.
जब पिछले संसदीय सत्र में उनकी संसद सदस्यता रद्द कर दी गई थी तो उन्हें एक बार फिर ज़िला इकाई की ज़िम्मेदारी सौंप दी गयी थी क्योंकि पार्टी संदेश देना चाहती थी कि ऐसी घड़ी में वो महुआ मोइत्रा के साथ खड़ी है.
विधायकों के प्रतिवेदन में ये भी आरोप लगाए गए हैं कि उन्होंने किसी भी विधायक या वरिष्ठ नेताओं से परामर्श किए बिना ही तीन प्रखंड अध्यक्षों के साथ 16 अंचल और 116 बूथ स्तरीय अध्यक्षों को भी बदल दिया.
विधायकों का क्या है कहना
बीबीसी ने जब प्रतिवेदन पर हस्ताक्षर करने वाले विधायकों से संपर्क किया तो उन्होंने इसके बारे में कुछ भी बताने से इनकार कर दिया. वो महुआ मोइत्रा को लेकर मीडिया से कोई चर्चा भी नहीं करना चाहते.
हालांकि फ़ोन पर संपर्क करने पर एक विधायक का कहना था ” ज़िला कमिटी किस हिसाब से चलाई जा रही है उसकी जानकारी ज़िले के विधायकों को भी नहीं है.”
उनका कहना था कि हाल ही में पश्चिम बंगाल की विधानसभा के सत्र के दौरान सभी छह विधायकों ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मुलाक़ात की थी और उनका ध्यान “महुआ मोइत्रा की कार्यशैली” की तरफ़ खींचा था.
तृणमूल कांग्रेस से चपरा के विधायक रुक्बनुर रहमान ने बीबीसी से बात करते हुए कहा कि वो प्रतिवेदन को लेकर मीडिया से इसलिए चर्चा नहीं करना चाहते हैं क्योंकि ‘ये पार्टी का अंदरूनी मामला’ है.
फ़ोन पर चर्चा के दौरान वो इतना ज़रूर कह रहे थे, “महुआ मोइत्रा ना सिर्फ़ स्थानीय विधायकों की अनदेखी कर रही हैं बल्कि पुराने नेताओं को भी संगठन के फ़ैसलों में शामिल नहीं कर रही हैं. उनकी कार्यशैली से संगठन के नेताओं और उनके बीच तालमेल नहीं बैठ पा रहा है.”
विधायकों का कहना है कि उन्होंने पार्टी की केंद्रीय कमिटी को भी अपनी भावनाओं से अवगत कराया है.
उन्होंने कहा कि प्रतिवेदन देने की नौबत इसलिए आई क्योंकि अगर महुआ मोइत्रा किसी विधायक के क्षेत्र में कोई कार्यक्रम या भ्रमण कर रही होती हैं तो वो इसकी सूचना तक संबंधित विधायक को नहीं देती हैं.
SOURCE : BBC NEWS